Wednesday, July 11, 2018

निष्ठा और परतंत्रता

अगर आपकी निष्ठा आपको अधर्म का साथ देने को विवश करती है तो आपकी निष्ठा निष्ठा नही बल्कि दासत्व है। अगर अपने सामने मातृभूमि और राष्ट्र के अपमान के विरुद्ध बोलने के मार्ग में निष्ठा आ खड़ी होती है, तो आपको अपनी निष्ठा के पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। अगर आपकी अंतर्मन की आवाज़ आपके स्वामी की आवाज़ से दब रही है, तो आप अपनी कमजोरियों और नपुंसकता को निष्ठा का आवरण पहना रहे हैं। अगर पांचाली के चीरहरण को देख , हस्तिनापुर के प्रति निष्ठा की ढाल में आप छुप रहे हैं तो समय के तीक्ष्ण शरों की शय्या आपकी प्रतीक्षा कर रही है। अगर निष्ठा के नाम पर आप छल पूर्वक किये गए अभिमन्यु के वध को धर्मयुद्ध बता रहे है तो आप धर्मराज युद्धिष्ठर के द्वारा भी छले जाने तो तैयार रहे। अगर निष्ठा आपके लिये निकास के सारे द्वार बंद करती है, तो आप निष्ठा के नाम पर परतंत्रता को अंगीकार कर रहे हैं। परतंत्रता में पुरुषार्थ उतना ही विरल होता है जितना मरुभूमि में जलप्रवाह। अगर आपका समस्त ज्ञान, कौशल, विद्या और अनुभव सत्य और असत्य का अंतर नहीं पहचान पा रहा तो इन समस्त गुणों के बावजूद आप इतिहास से रहम की उम्मीद न रखें।जिस आत्मसम्मान को आपने पहले ही दासता की पैरों तले कुचलने के लिए छोड़ दिया है, उसपर चोट लगने पर आपका चीत्कार व्यर्थ है।

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