Wednesday, July 11, 2018

भारतीय रेल में आर ए सी

भारतीय रेल की कई खास खूबियां हैं , उनमें से एक अलग सी खूबी है आर ए सी। आर ए सी का मतलब है रिजर्वेसन अगेंस्ट केंसीलेशन। दूसरे शब्दों में कहें तो इस शब्द की उत्पत्ति इस बात से हुई है कि भारतीय रेल का दिल बहुत बड़ा है, कम से कम यूनाइटेड एयर लाइंस से ज्यादा बड़ा।
सीट से ज्यादा आदमी आ जाने पर भी भारतीय रेल उनको यथासंभव निराश नही करती। उन्हें खींच घसीट कर बाहर नही निकालती, बल्कि अपने साथ जगह देती है कि चलो देखते हैं अगर रास्ते में कुछ हो पाया तो तुम्हारा भी कुछ करेंगे। हमारी रेल और हमारे यात्री को भरोसा रहता है कि कोई न कोई तो ट्रेन मिस करेगा ही। कुछ लोग ट्रैफिक जाम की वजह से ट्रेन मिस करेंगे, तो कुछ किसी बंद हड़ताल की वजह से। अगर यह कारण नहीं भी हुए तो अशुभ महूर्त, हानिकारक यात्रा योग, दिशा शूल और बिल्ली के रास्ता काटने की वजह से कोई न कोई तो नही आएगा और आर ए सी वालों को सीट मिल जाएगी। अब उम्मीद पर दुनिया कायम है, तो फिर आर ए सी वाले उम्मीद का दामन क्यों छोड़ें??

‌आपने कई बार सुना होगा कि हाशिये पर पहुंचा दिए गए लोग। हाशिये पर रहने वाले लोगों की समस्या। अगर इन शब्दों को समझने में आपको दिक्कत आ रही है तो आपने आर ए सी वालों को नहीं देखा है। साइड वाली छोटी लोअर सीट पर दुबके बैठे आर ए सी वाले लोग हाशिये पर बैठे लोगों का जीवंत उदाहरण पेश करते दिखते हैं। वो लोग जिन्हें अब तक वो जगह नही मिल पाई जिसके वो हकदार हैं। पर दबे कुचले लोगों की भांति वो अन्याय के खिलाफ कुछ बोलते नहीं बस आखों में उम्मीद की एक किरण लिये पूरी सीट वालों की तरफ ताकते रहते हैं। 



अब जिनके पास पूरी सीट है वो तो आर ए सी वालों को ऐसे देखते हैं जैसे उनके उपवन में वानर घुस आए हों। जैसे उनके नो एंट्री वाली सोसाइटी में सामान बेचने वाले हॉकर आकर हाज़मे की गोली बेच रहे हों। आर ए सी वालों को ऐसी दुत्कार और तिरस्कार मिलने के कई कारण हैं। आर ए सी वाले रेल की दुनिया के त्रिशंकु हैं। ना इधर ना उधर। रेल में हैं पर पूरे यात्री नहीं, सीट मिली पर पूरी नहीं। यह कुछ ऐसा है कि जैसे रेल वाली महबूबा ने वैलेंटाइन डे के दिन आपको फ़्रेंडजोंन में डाल दिया हो।
देखिये अगर आप आर ए सी में सफर कर रहे हैं तो दो तीन बातें तो साफ है। पहली यह कि हवाई जहाज से चलने की आपकी औकात और मंशा दोनों नहीं है। दूसरी रेल मंत्रालय के किसी अधिकारी से दूर दूर तक आपका कोई नाता नहीं है। किसी नेताजी को आप नही जानते, नेताजी को छोड़िये आप किसी ढंग के ट्रेवल एजेंट तक को नही जानते। वरना आप आर ए सी की जगह कनफर्म टिकट पर चल रहे होते। आपकी कोई पहुंच है नही और आप अपने गन्तव्य पर पहुंचना भी चाहते हैं पूरे आराम से। यह मुंह और मसूर वाली दाल वाली बात हो गई यह तो। आप आम जनता हो यह बात उसी समय सिद्ध हो गई जब आपका नाम आरक्षण तालिका में सबसे नीचे आर ए सी वालों के साथ लिखा गया। उसी के साथ आपके भाग्य में लिख दिया गया वो दुत्कार जो कन्फर्म टिकट वाले यात्री आपके साथ करने वाले हैं।

आर ए सी के साथ बुरा व्यवहार सिर्फ कन्फर्म टिकट वाले करें तो फिर भी समझ सकते हैं। रेल ने मिलाई जोड़ी स्कीम के तहत जो आपके साथ शयनयान में बैठे हैं उनका व्यवहार भी कुछ खास नही रहता। दोनों एक दूसरे की तरफ ऐसे देखते हैं कि तू मर क्यों नही गया जो आज यहां आ गया। हे भगवान इतने लोगों की ट्रेन छूटती है इसकी भी छुड़वा देता। और इतना सामान लेकर आ गया है उतना तो तुग़लक़ भी दिल्ली से दौलताबाद लेकर नही गया था। प्यार का जवाब प्यार से मिले न मिले, यकीन रखिये आपकी इस भावना को आपके शायिका बंधु न सिर्फ समझेंगे बल्कि आपके प्रति भी उतना ही प्रेम भाव रखेंगे जितना आपके मन में उनके लिए है। भले ही फिल्मों में दिखाया जाए कि दो अजनबी मिले और उनकी कहानी बिफोर सनराइज की तरह रोमांटिक हुए पर आर ए सी वाली जनता की किस्मत तो स्लीपिंग विथ द एनिमी वाली ही रहनी है।

मुझे पता है कि अगर आप आम आदमी हैं तो कभी न कभी आर ए सी वाले जरूर रहे हैं। आपको गर्व होना चाहिये कि आपने आर ए सी वाली ज़िन्दगी जी है और समाज के समस्त तिरस्कार को सह भी आप समाज की मुख्यधारा से जुड़े रहे। वरना इतने मानसिक अत्याचार के बाद तो आप नक्सली या पत्थर बाज़ बन जाएं तो कई लोग आपका समर्थन भी करेंगे।

अगर आप कभी आर ए सी वाले नही रहे और आर ए सी वालों के साथ आपका व्यवहार रूखा है तो आपको आत्ममूल्यांकन की नितांत आवश्यकता है। आखिर आर ए सी वाले आपके डब्बे के प्रहरी हैं। आप गहरी नींद सोते हैं पर वो जागते रहते हैं। आपको सोते हुए इतने प्यार से देखते हैं जितने गौर से माँ भी अपने बच्चे को नही देखती। जिस तरह से हनुमान चालीसा सुन भूत पिशाच निकट नही आते, जिस डब्बे में 2-4 आर ए सी वाले हों , चोर और उठाईगीर उस डब्बे से दूर ही रहते हैं। आखिर उन अधजगी आखों से बचकर कौन आपका सामान चुरा सकता है । बेचारे हर एक सीट के बारे में जानते हैं कि कौन सी सीट कब खाली होनी है, किसको कहाँ उतरना है इनको अपने नाम की तरह याद है, उससे पहले कोई सामान लेकर कैसे उतर सकता है।

आर ए सी वाले जैसे आपकी क्रिकेट टीम के 12th मैन हैं। टीम में हैं पर सिर्फ पानी पहुंचाने और तौलिया लाने का काम करते हैं, बिना शिकायत किये। आपका तकिया ऊपर वाले बर्थ से नीचे गिर गया ? आपको उतरने की जरूरत नही। अपने आर ए सी वालों को कहिये आपका तकिया उठा कर आपको देंगे। आपकी चादर गिर गई, आर ए सी वाले आपको न केवल ध्यान दिलाएंगे, चादर उठाकर आपको ओढा भी देंगे। आपको नींद नही आ रही, आर ए सी वालों को बोलिये लाइट ऑन कर देंगे ताकि आप पढ़ सकें। आपका पढ़ना पूरा हो गया, बस उनको एक इशारा करिये और लाइट ऑफ।

आपके पास आई फोन हो न हो, अगर आपके डिब्बे में आर ए सी वाले हैं तो आपके पास साक्षात मानवरूप में सीरी है। कितना बजा है, कौन सा स्टेशन है, गाड़ी समय पर है कि नही, आपके सारे सवालों का जवाब आर ए सी वालों के पास है। आपको बाथरूम जाना है तो किस तरफ वाला बाथरूम साफ है या खाली है, यह सारी रियल टाइम इनफार्मेशन आपको आर ए सी वाले ही दे सकते है। वो भी फ्री में ।

पूरी सीट वालों के लिए टीटी एक परेशान करने वाला चरित्र है। आपको नींद से उठा कर टिकट मांगने वाला और पहचान पत्र को लेकर खिचखिच करने वाला एक अनावश्यक व्यवधान । पर आर ए सी वालों के लिए टीटी का महत्व एक इष्ट की तरह है। टीटी अगर सौरमंडल का सूर्य है तो आर ए सी वाले नवग्रह। एक टीटी अगर खड़ा है तो नौ आर ए सी वाले उनके चारों तरफ घूमते नज़र आएंगे। टीटी के लिए आर ए सी वाले लोग उनके ससुराल वाले जैसे हैं।क्यों न हो इतनी आवभगत तो इनके ससुराल वाले भी नही टीटी की नहीं करते जितने आर ए सी वाले करते हैं। और अब ससुराल वालों से थोड़ा उपहार ले लेने में हर्ज़ क्या है ? इतना तो हक़ बनता है टीटी साहब का।

आधा है चंद्रमा, रात आधी, रह न जाये तेरी मेरी बात आधी वाला गाना अगर किसी पर पूरी तरह लागू है तो वो एक आधे सीट वाले आर ए सी वालों पर ही लागू है। अगर किसी शोषित को आरक्षण सबसे पहले मिलने चाहिए, तो उनमें आर ए सी वाले सबसे पहले नंबर पर हैं। रेल का सफर इन आधे यात्रियों के बिना अधूरा है।

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