Wednesday, July 11, 2018

सूचनाओं की जुगाली

कुछ शाकाहारी जीवों में पायी जाने वाली एक अलग और अजीब सी प्रवृति है जुगाली। गाय, बकरी, भैंस जैसे जीव खाते समय अपने भोजन को पूरी तरह नहीं चबाते बल्कि निगल जाते हैं। उनकी शारीरिक संरचना कुछ इस प्रकार की होती है कि यह जानवर भोजन के कुछ देर बाद उसी निगले भोजन को छोटे छोटे टुकड़ों में अपने उदर से वापस मुंह में ले आते हैं। फिर शुरू होता है उस भोजन को चबाने और पचाने का काम। सही में पूछें तो जुगाली करते जानवर बड़े हास्यास्पद से लगते हैं। बैठे हैं पसर के एक तरफ और बस मुंह चला रहे हैं। कभी कभी मुंह से झाग तक गिर रही है और जानवर हैं कि अपने आस पास की दुनिया से बेखबर लगे हुए हैं मुंह चलाने में। बैठ कर जुगाली करते जीव आलसी और नकारा से लगते हैं। लेकिन वास्तविकता में वो जीवन का बहुत ही आवश्यक और अनिवार्य कार्य कर रहे होते हैं। बिना जुगाली के निगले हुए भोजन का सही पाचन और बिना सही पाचन के पशु का सही पोषण और जीवन संभव नहीं है।

क्या जुगाली करने की प्रवृति सिर्फ जानवरों तक सीमित है? क्या और कोई जीव जुगाली नहीं करते या उन्हें जुगाली करने की जरूरत नहीं है? जुगाली शब्द का प्रयोग यहाँ एक चिन्ह स्वरुप किया गया है। जुगाली वास्तव में है क्या? आखिर जुगाली प्रक्रिया का मूल सिद्धांत क्या है? इस प्रक्रिया की आवश्यकता क्यों है और इस प्रक्रिया द्वारा किस उद्देश्य की प्राप्ति होती है ? अगर हम इन प्रश्नों के समुचित उत्तर ढूंढ सकें तो शायद जुगाली के ऊपर से प्रतीत होते कदाचित हास्यास्पद और अनाकर्षक रूप के भीतर छुपे गूढ़ अर्थ को पहचान पायें।

जुगाली को हम सब एक मंथन की एक प्रकिया के रूप में देख सकते हैं । पशु ने ढेर सारा भोजन निगल लिया जल्दी जल्दी में, अब जुगाली के दौरान उसको धीरे धीरे चबा रहा है। चबाने के दौरान भोजन को दांत पीसते हैं, उसमें मुख में मौजूद लार ग्रंथियां लार और अन्य पाचक अवयव मिलाती हैं, और भोजन सुपाच्य होने जाने के बाद वापस शरीर को भेज दिया जाता है ग्रहण करने के लिए। जुगाली के बाद ही निगल हुआ भोजन वास्तव में पशु के शरीर के लिये जीवन दायक और पुष्टिकारक सिद्ध होता है।

अगर जुगाली के इस बाह्य रूप और आवरण के भीतर झांके तो यह आवश्यक रूप से वही प्रक्रिया है जिसे डाटा प्रोसेसिंग भी कह सकते हैं। डाटा प्रोसेसिंग मतलब हज़ारों सूचनाओं, विचारों, सिद्धांतो के समंदर से अपने विवेक का इस्तेमाल कर अपने काम का ज्ञान निकाल लेना। आज के सूचना क्रांति के युग में आप सूचनाओं के बवंडर के बीच खड़े हैं। चौबीसों घंटे ब्रेकिंग न्यूज़ परोसते समाचार चैनल, पल पल समाचारों की नोटिफिकेशन भेजते न्यूज़ एप्प, व्हाट्सएप्प पर मिलती सूचनाएं, हर बात पर हंगामा मचाता ट्विटर, फेसबुक पर हर छोटी बड़ी चीज़ शेयर करते मित्रगण, रास्ते पर बड़े बड़े होर्डिंग्स और एफ एम पर चिल्लाता रेडियो जॉकी सब मिल आपको बस सूचनाएं देते रहते हैं। अनवरत गति से, निर्बाध रूप से आप सूचनाएं पाते रहते हैं, सूचनाओं की मात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है और इसके कम होने की कोई आशा निकट भविष्य में नज़र नहीं आती।
जल्दबाज़ी , कार्य की बहुतायत, समय का अभाव, निज विचारधारा की वजह से कई बार हम इस सारी सूचनाओं को बस ग्रहण कर लेते है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे पशु घास चरते समय मैदान में ढेर सारी घास खा लेते हैं। हम मनुष्यों और पशुओं में फर्क यह है पशु तो निगली हुई सारी घास को जुगाली करने बाद ही वास्तव में ग्रहण करते हैं, हम मनुष्य जैसी सूचनाएं मिली, सत्य मान आत्मसात कर लेते हैं।
कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए मानव की इस प्रवृत्ति का गलत फायदा उठाने का सतत प्रयास करते रहते हैं। किसी ने कह दिया कि भगवान गणेश की मूर्ति दूध पी रही है, सब लोग जा पहुँचे मंदिरों में और करनेे लगे दावा कि उन्होंने भी गणपति बप्पा को अपने हाथों से दूध पिला दिया। किसी राजनेता ने कहा कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है, एक अभिनेता ने हाँ में हाँ मिला दी, कुछ पत्रकार और न्यूज़ चैनल कहने लगे और आप सब मान बैठे कि हाँ भई असहिष्णुता बढ़ गयी है ,भले ही आप इस असहिष्णुता शब्द का अर्थ तक न समझें। दंगे फ़ैलाने के लिए बस सीरिया की वीडियो क्लिप व्हाट्सअप पर फैला दी जाती है कि यह घटना भारत में हुई है और हम हो जाते हैं तैयार मरने मारने को।

आवश्यक है कि जो भी सूचना हम ग्रहण करें, सबको मंथन की प्रक्रिया के गुज़ारना आवश्यक समझें। दूसरे शब्दों में सूचनाओं की जुगाली करनी आवश्यक है। सभी सूचनाओं पर तर्क संगत विमर्श की जरूरत है।इस प्रक्रिया से जिस भी चीज़ को अलग रखा जायेगा और ग्रहण किया जाएगा वह चीज़ पचेगी नहीं, पूरे शरीर और समाज का नुकसान करेगी।
जो भी सूचना आप ग्रहण करें उसकी जुगाली करें। तर्क के दांतों द्वारा उसको चीरें फाड़े, पीसें । विवेक और विचारों की लार उसमें मिलने दें। सिर्फ यह न सुने कि सामने वाला क्या कह रहा है, बल्कि यह भी सोचें कि वह ऐसा क्यों कह रहा है, अभी ही क्यों कह रहा है? आखिर वह कहना क्या चाहता है? ये साधारण से सवाल बड़े से बड़े षड्यंत्र के साथ कहे गये झूठ का नक़ाब उतार फेंकने में सक्षम हैं। यह प्रक्रिया इतनी सरल भी नहीं है। हो सकता है कुछ लोग गुस्सा हो हंगामा करें, आप उसको मुख से गिरती झाग की तरह अनदेखा करें । असत्य और मिथ्या सूचनाएं आपके तर्क के दाँतों का प्रहार नहीं झेल पाएंगी और उनका वास्तविक रूप सामने आ जायेगा। मिट्टी को मिठाई का रूप दे देने से आप जिह्वा रूपी बुद्धि को नहीं ठग सकते। पर आवश्यक है कि आप किसी चीज़ को मिठाई को मानने से पहले और खाने से पहले उसे अपनी जिह्वा से स्पर्श जरूर करवाएं। सिर्फ इसीलिए किसी चीज़ को मिठाई मान न निगल जाएँ क्योंकि लोग कह रहे हैं। सबसे जरूरी बात, यह चीज़ें आराम से करें। कोई जल्दबाज़ी नहीं, आराम से , शांतचित्त हो। किसी भी बात पर उद्वेलित हो फ़ौरन यकीन कर अपनी विचारधारा न बनाएं। एक बात और, जिस चीज़ के बारे में आप स्वयं आश्वस्त नहीं है, दूसरों को उस चीज़ के लिए आश्वस्त न करें। अगर आप नहीं कर सकते और कम से कम करने वालों को न रोकें। तर्क संगत तरीके से सूचनाओं को कसौटी पर कसने वालों पर तंज न कसें। उनको नर्ड, फिलॉस्फर, दार्शनिक आदि की संज्ञा देकर मुख्य धारा से अलग करने की कोशिश न करें। वो पूरी तरह से सामान्य जन हैं जो जनसामान्य के बीच रह जनसामान्य के हित का कार्य कर रहे हैं। जब समाज में कोई सूचनाओं की जुगाली कर रहा हो तो उसको परेशान न करें।

इतनी छोटी सी बात जो में में करने वाली बकरी समझती है तो मैं मैं करने वाला इंसान क्यों नहीं समझ सकता।

No comments: