Friday, July 20, 2018

मैं हिन्दू हूँ।।

मैं हिन्दू हूँ।

उपकृत हूँ मैं प्रकृति का। उसके हर रूप की उपासना की है मैंने। नदियों को माँ कह उसके गोद में खेला हूँ तो उसकी आँचल समान किनारों पर मैंने सनातन सभ्यता बसाई है। सूर्य और चंद्र ही नहीं, समस्त नवग्रह की विशालता और ऐश्वर्य को नमस्कार किया है। सूदूर तारों को सप्तर्षि कह सम्मानित किया है मैंने। और असंख्य तारों अपने बिछड़े पूर्वज और प्रियजन मान कर प्यार से निहारा है। पर्वत को अपने इष्ट का निवास कैलाश मान कर पूजनीय बनाया है तो हिमालय को माता गौरी का पिता कहा है। तुलसी और बरगद मेरे लिए कल्पतरु हैं। हमेशा चरणों के नीचे रहने वाली दूब जब तक मेरी पूजा में ना हो , मेरी पूजा अधूरी रहती है।

समस्त प्राणीजगत मेरे लिए प्रकृति और मेरे पूजा स्थल का एक अनिवार्य भाग है और मेरे लिए सम्मान का पात्र है।
एक बैल मेरे इष्ट का वाहन बन कर मेरा आराध्य है।  जिसके विषदंतो से मेरे प्राण चले जाएं, उसे भी मैंने अपने इष्ट के कंधों पर स्थान दिया है। मेरे फसलों को चुरा कर नष्ट करने वाले मूषक भी मेरे आंगन में मोदक पाते है और गणपति के साथ मेरी प्रथम पूजा में सम्मिलित हैं। नभ में विचरने वाले विशाल गरुड़ मेरी माँ की अस्मिता बचाने वाले रक्षक के रूप में जाने गए हैं तो एक वानर ने संजीवनी बूटी लाकर मेरे इष्ट के प्राण बचाये हैं। वानर भक्त को मैंने भगवान से ऊपर माना है। गौ को मैंने समस्त देवताओं का निवास स्थान माना है तो श्वान मेरे लिए धर्मराज के साथ सशरीर स्वर्ग जाने वाला एक मात्र जीव है। गौ को अगर मैंने माँ कहा है तो बिल्ली को मौसी कह पुकारा है। एक क्रोंच पक्षी युगल को रोते देख मेरे भावुक हृदय ने रामायण की रचना कर डाली है। शेर मेरे लिए शक्ति का वाहन है तो गजराज ऐश्वर्य का। समस्त प्रकृति मेरे लिए सम्मान का पात्र है ना कि भय और घृणा का। वसुधा पर निवास करने वाला हर वासी मेरे लिये परिवार है,सम्मानित है और मैं उसके बिना अपूर्ण हूँ।


सिर्फ प्रियदर्शी प्राणिजगत ही मेरे हृदय में वास करता हो, ऐसा नही है। मेरे हृदय में डरावने और कुरूप भूत पिशाचों के लिए भी स्थान है। उन्हें शिव का गण होने का गौरव प्राप्त है जो बनने के लिए हजारों सालों की तपस्या भी विफल जाती है। आठ अंगों से टेढ़े अष्टावक्र अपने ज्ञान के लिए हमारे पूजनीय हैं तो कुरूप वेद व्यास को महाभारत लिखने का अवसर मैने दिया है।

तुलसी, सूर और रैदास की छन्दों की चाशनी में डूबी मेरी वाणी है। मेरे  तानसेन और बैजू बावरा के राग और रागनियों में गुंजायमान है सरस्वती की वीणा। कृष्ण की सम्मोहण वाली बाँसुरी से लेकर कोकिला लता सब मुझमें ही समाहित है। मैं आर्यभट्ट का शून्य हूँ, तो मैं विंष्णुगुप्त का अर्थशास्त्र भी हूँ। सुश्रुत का चिकित्सा ज्ञान और विश्वकर्मा की अभियांत्रिकी मुझसे निकले हैं। वात्स्यायन का कामसूत्र भी जानता हूँ और रमण की तरह भौतिकी भी ज्ञात है मुझे। तिरुवल्लुवर की कविता हूँ, मण्डन का ज्ञान हूँ, शंकराचार्य की दूरदृष्टि हूँ, शुक्राचार्य की युद्धनीति हूँ और विवेकानंद का ओज हूँ। सुभाष की चपलता हूँ तो गांधी का गाम्भीर्य भी।

उर्मिला की विरह वेदना और भरत मिलाप का उल्लास दोनो मैं हूँ। सावित्री का सतीत्व हूँ तो अनुसूया का पातिव्रत्य भी। कर्ण और दधीचि का दान हूँ तो श्रवण की सेवा भी मैं ही हूँ। परशुराम का क्रोध हूँ तो यशोदा का वात्सल्य भी हूँ। अशोक का साम्राज्य हूँ तो चोल वंश का गौरव भी। बीरबल का हास्य हूँ। गोनू और तेनाली की प्रत्युत्पन्नमति हूँ। हिंदी की सरलता और व्यापकता हूँ, तो बंगाली की मिठास हूँ। तमिल के पद हूँ तो मलयालम के गीत। तेलगु की प्रार्थना हूँ तो गुजराती की रास। गुरमुखी में लिखी पंजाबी का थिरकता भांगड़ा हूँ तो असमिया की बाउल धुन। प्रेमचंद की लेखनी हूँ तो रवींद्र की बहुमुखी प्रतिभा भी।

मैं वो हूँ जो  बुद्ध और महावीर को भी अपने इष्ट का रूप मान कर पूजता है। मैं वो हूँ जो शिव और साईं दोनो के दरबार में नतमस्तक है। मैं अपने पवित्र त्रिवेणी संगम और प्रयागराज को भी अल्लाहाबाद कह पुकारता हूँ। मैं वो हूँ जो सूदूर देश से आई एक नन को मदर मानता है। गुरुद्वारे में सेवा करने में लगे सेवादारों की कतार में सर पर रूमाल बांधे में आपको दिखूंगा तो पुष्कर में ब्रह्म की उपासना के बाद अजमेर में  हर साल चादर चढ़ाने भी जरूर पहुंचता हूँ। मुझे न जानने वाले जब मुझे धर्मनिरपेक्षता की संकीर्ण परिभाषा समझाते हैं तो मन ही मन उन पर मंद मंद मुस्कुराता भी हूँ।

 मैं वो हूँ जो जिसने गौरी, तैमूर और औरंगज़ेब को जज़िया दिया पर अपना धर्म नहीं। मैं अगर मीरा का समर्पण हूँ तो कलिंग का प्रतिरोध भी हूँ। पराजय में भी सहेजा हुआ आत्मसम्मान पुरु हूँ मैं। मैं वो हूँ जो जयचंद की वजह से अगर पराजित  हुआ है तो शिवाजी की शौर्य गाथा का उत्तराधिकारी भी है। मैं सबमें समाहित हूँ,सबसे मिल कर रहा हूँ। रति और मोहिनी का सौंदर्य और लावण्य हूँ तो काली की रक्त से सनी जिह्वा भी हूँ। मैं शिव का डमरू हूँ और तीसरा नेत्र भी हूँ। तांडव भी ज्ञात है मुझे। शिमला की शांतिवार्ता हूँ तो पोखरण की ज्वाला भी मैं ही हूँ। भाई भाई सुन कर अक्साईचिन गंवाने वाला मैं हूँ तो 1971 में ढाका की वीरगाथा भी मैं ही हूँ।

मैं चिर सनातन हूँ । मैं हूँ तो यह धरा और भी सुंदर है।मैं कुछ शब्दों  में परिभाषित नहीं हो सकता। मैं अनन्त हूँ, मेरी कथायें अनन्त है। इस अनंत गौरवशाली कथा का एक पन्ना हूँ मैं। हिमालय से हिन्द तक मैं ही हूँ। मैं वो हूँ जिसका लहू गंगा, कालिंदी, कावेरी और नर्मदा के जल से बना है। मेरी अस्थियां हिमालय के पाषाण की तरह कठोर हैं। गीता और वेद मेरी दो आँखें हैं जो मुझे ज्ञान का मार्ग दिखाती हैं।

मैं वो हूँ जो हिन्दुस्तान का वासी है।

मैं हिन्दू हूँ।

2 comments:

RAJ said...

In baton Ko padh kar koi bhi hindu khud Ko reinvent kar Sakta hai, jai ho.

Shekhar Suman said...

Thanks