Wednesday, July 11, 2018

योग्यता को सम्मान दें

मुग़ल काल की बात है। बादशाह सलामत अपने कमरे में बैठे नाच गाने का एक कार्यक्रम देख रहे थे। नर्तकी अपनी भाव भंगिमाओं से बादशाह का दिल बहलाने की कोशिश कर रही थी और साथ में अपनी दिलकश आवाज़ से गा भी रही थी। नर्तकी का लावण्य, उसकी नृत्य कला और उसकी आवाज़ सुल्तान को ऐसी पसंद आयी कि बादशाह ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि तुम एक लड़की नहीं बल्कि परी हो जिसकी आवाज़ प्रणय के गीत गाती कोकिला जैसी है।
नर्तकी: ऐसा न कहें जहाँपनाह। मैं तो सिर्फ एक दासी हूँ।
बादशाह: अगर ऐसा है तो हम तुम्हें अपनी बेग़म बना दिल्ली ले जाएंगे।
नर्तकी: जब मैं बेगम बन जाऊंगी, तब तो मुझे यहां से दूर महल में रहना पड़ेगा, फिर मैं ज़ोहरा से कैसे मिल पाऊंगी?
बादशाह : कौन ज़ोहरा?
नर्तकी: मेरी सबसे अच्छी दोस्त ज़ोहरा। यहीं तरबूज़ बेचती है। दिल्ली के सबसे मीठे तरबूज़।
बादशाह: ठीक है तो हम ज़ोहरा को आपकी मुख्य बांदी नियुक्त करते है, वो महल में हमेशा आपके साथ आपकी खिदमत में रहेगी।
नर्तकी : जहाँपनाह , और मेरे भाई नियामत का क्या जो सारंगी बजाता है?
बादशाह: हम नियामत को मुल्तान का नया सूबेदार बनाते है। अब खुश बेगम?

आप इसे कोई काल्पनिक कहानी नहीं समझें, बल्कि नवें मुग़ल बादशाह और औरंगज़ेब के पोते जहांदार शाह और उसकी बीवी लाल कुंवर की सच्ची कहानी है।


प्रकृति के मूल सिद्धांतों में एक मूल सिद्धांत है वांछित का अभाव। जो भी चीज़ वांछित होती है, वह अभाव में होती है। अभाव सेे उत्पन्न होती है प्रतिस्पर्धा। वांछित वस्तुओं के लिए हुई प्रतिस्पर्धा में जो सबसे योग्य प्रमाणित होता है, वस्तु उसे ही प्राप्त होती है। यह भी एक प्राकृतिक सत्य है। यह धरा इसी सिद्धांत पर चलती है। अमेज़न के वर्षावनों का उदाहरण लें। घने जंगलों में सूर्यप्रकाश का अभाव होता है और उसको पाने के लिए पेड़ों की प्रतिस्पर्धा होती है जिसकी वजह से पेड़ इतने ऊंचे ऊंचे हो जाते हैं।

अगर कोई भी मानवीय नियम या व्यवस्था इस नैसर्गिक नियम के विरुद्ध किसी अयोग्य को योग्य के ऊपर रखता है और वांछित से योग्य को वंचित करता है तो पतन की शुरुआत होती है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि जहांदार शाह मुग़ल बादशाह बनने लायक नहीं थे, लेकिन वह बादशाह बने और मुग़ल साम्राज्य के पतन की गाथा में वह एक बड़े खलनायक के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

भारतीय सन्दर्भ में देखें तो वर्णव्यवस्था जिसने प्रतिस्पर्धा और योग्यता की जगह जन्म और कुल को वरीयता दी, भारतीय समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है। यही वह कारण है जिसकी वजह से यह निश्चित किया गया कि सिर्फ क्षत्रिय जाति ही युद्ध कर सकती है, कोई और योद्धा नहीं। परिणाम यह कि जब भी बाहरी आक्रमणकारियों का आक्रमण हुआ, हम पराजित हुए और दो हज़ार सालों की दासता हमारे हिस्से आयी। वर्णव्यवस्था ही थी जिसने ज्ञान और विद्या पर ब्राह्मणों का एकाधिकार स्थापित किया और परिणाम यह है कि हम आज हम विश्वगुरु की जगह दुनिया के पिछड़े देशों में शुमार होते हैं।

समाजवाद, साम्यवाद और कम्युनिस्ट विचारधारा को बहुत सारे दार्शनिकों, लेखकों और कवियों ने दुनिया की जरूरत बताया है, एक ऐसी व्यवस्था जहाँ हर कोई बराबर हो, संसाधनों पर अधिकार योग्यता नहीं बल्कि नियमों के आधार पर तय हो। सुनने में भले ही ऐसी व्यवस्था आपको सर्वोत्तम और दोषहीन लगे, लेकिन वास्तविकता में इस व्यवस्था ने मानवजाति को जितने कष्ट दिए है, शायद महामारियों ने भी नहीं दिए। रूस, पूर्वी यूरोप, वेनेज़ुएला जैसे समाजवादी देशो की अर्थव्यवस्था और वहां के लोगों की हालत किसी से छुपी नहीं है। समाजवाद की भी वही समस्या है, कि यह प्रतिस्पर्धा और योग्यता के आधार पर वांछित के आवंटन के नैसर्गिक नियम का विरोध करती है। और इसके दुष्परिणाम आप सब जगह देख सकते हैं। अगर मैं कॉर्ल मार्क्स को मानवता का सबसे बडा खलनायक कहूँ तो अतिशयोक्ति न होगी। जितने लोगों ने कॉर्ल मार्क्स की विचारधारा की वजह से कष्ट झेलें है, उस संख्या के सामने हिटलर की विचारधारा की बलि चढ़े लोगों की संख्या नगण्य है।

अगर कोई भी व्यवस्था प्रतिस्पर्धा को नकार अयोग्य लोगों को योग्य लोगों से वरीयता या समानता देती है तो पतन अवश्यम्भावी है। जिसने भी इस नियम के विरुद्ध कुछ भी किया, उसके विनाशकारी परिणाम हुए। अपने अयोग्य भाइयों विचित्रवीर्य और चित्रांगद के लिए गंगापुत्र भीष्म स्वयंवर से काशी नरेश की राजकुमारियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका को हर लाये। उन्होंने प्रतिस्पर्धा के नैसर्गिक नियम का उल्लंघन किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि इच्छामृत्यु होने के बावजूद राजकुमारी अम्बा उनकी मृत्यु का कारण बनी।

मुग़ल साम्राज्य का पतन हो, गंगापुत्र भीष्म की मृत्यु हो, वेनेज़ुएला की अर्थव्यवस्था हो या भारतवर्ष की दासता हो, मूल कारण एक ही है। प्रतिस्पर्धा को बनाये रखें, योग्यता को सम्मान दें । ऐसी कोई भी व्यवस्था , कोई भी संस्था, कोई भी व्यक्ति जो योग्यता की वरीयता को झुठलाये, उसका बहिष्कार करें, विरोध करें। मानवता का विकास और कल्याण इसी में निहित है।

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