कुरुक्षेत्र के मैदान में अपने सामने खड़े युद्ध को आतुर परिजन और बंधु बांधवों को देख पार्थ निराश हो गये। समस्त आशंकाओं से बोझिल मानस पटल पर अनिर्णय के घने बादल छा गये। आशंकित मन ने शरीर को निस्तेज कर दिया और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के लिये भी गांडीव को धारण करना दुरूह हो गया। जीवन में ध्येय और मार्ग दोनों धूमिल से हो गये। मेरा लक्ष्य क्या है और उसकी प्राप्ति के लिए कौन सा मार्ग उचित है कौन सा अनुचित , ऐसे प्रश्नों के उत्तर न पा अर्जुन अपने आप को असहाय महसूस करने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर अर्जुन को इस आशंका से निकाला। क्या भगवान ने अर्जुन को युद्ध में जीत का आश्वासन दिया? क्या श्रीकृष्ण ने पार्थ को युद्ध में सहयोग का वचन दिया? नहीं। उन्होंने पार्थ को सिर्फ उसके कर्म करने की सलाह दी। वासुदेव द्वारा जीत का आश्वासन फल प्राप्ति का पूर्वानुमान होता, और सहयोग का वचन युद्ध नीति के विपरीत । यह अर्जुन का युद्ध था और उसे ही लड़ना था।
बहुधा हम अपने आप को पार्थ जैसी परिस्थितियों में पाते हैं। जीवन युद्ध में आप आशंकाओं से घिरे होने पर या तो फल का पूर्वानुमान करने की कोशिश करते हैं या किंकर्तव्यविमूढ़ हो उचित अनुचित का अत्यधिक विश्लेषण करने लगते हैं। ऐसे में आपको जरूरत होती है एक कृष्ण की जो आपके लिए अस्त्र तो नही उठाता पर आपको अस्त्र उठाने के लिए तैयार जरूर करता है। परिणाम का पूर्वानुमान लगाने की जगह कर्म करने की सलाह देता है।
अगर आप युद्ध में खड़े हैं तो इसका अर्थ है कि युद्ध तो होना है। और अगर युद्ध होना है तो परिणाम भी आना है। आप युद्ध नहीं टाल सकते क्योंकि भले ही आपको लगे कि युद्ध अनुचित है आपकी इच्छा के अनुरूप नही है, लेकिन यह युद्ध भी आपकी पिछले कर्मों का परिणाम है। आपके द्वारा लिए गए निर्णय और किये गये कर्मों की परिणीति आपके सामने युध्द बन खड़ी है। युद्ध आपकी नियति नहीं आपकी सिद्धि है। गांडीव उठा युद्ध करना अपने कर्मों को स्वीकृति प्रदान करना है। युद्ध में हार मान लेना अपने कर्मों की जिम्मेदारी से दूर जाना है। हार जीत की चिंता से परे , अपने संदेहों की घटा से निकल अपने पूर्णमनोबल के साथ वार करना ही आपका अपने प्रति न्याय है। अगर आपके साथ कृष्ण जैसे सहायक हैं तो आपका सौभाग्य है और आपके पूर्व कर्मो का परिणाम है। जीवन वो कथा है जिसकी पटकथा आपने लिखी है और आप ही उसके नायक हैं।
अच्छी बात यह है कि पठकथा का अंत अभी भी लिखा जाना बाकी है। अभी चल रहे कथानक के परिपेक्ष्य से पटापेक्ष का अनुमान लगाना व्यर्थ है। घर को छोड़ कर भाग जाने वाले आगे चल बुद्ध बन गए हैं और किन्नर शिखंडी ने महाप्रतापी भीष्म को शरशैय्या पर लिटा दिया है। आप अर्जुन की तरह निराश हों, बुद्ध की तरह पलायनवादी दिख रहे हों या अम्बा की तरह तिरस्कृत हो रहे हों, आपका निर्वाण युद्ध में ही निहित है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर अर्जुन को इस आशंका से निकाला। क्या भगवान ने अर्जुन को युद्ध में जीत का आश्वासन दिया? क्या श्रीकृष्ण ने पार्थ को युद्ध में सहयोग का वचन दिया? नहीं। उन्होंने पार्थ को सिर्फ उसके कर्म करने की सलाह दी। वासुदेव द्वारा जीत का आश्वासन फल प्राप्ति का पूर्वानुमान होता, और सहयोग का वचन युद्ध नीति के विपरीत । यह अर्जुन का युद्ध था और उसे ही लड़ना था।
बहुधा हम अपने आप को पार्थ जैसी परिस्थितियों में पाते हैं। जीवन युद्ध में आप आशंकाओं से घिरे होने पर या तो फल का पूर्वानुमान करने की कोशिश करते हैं या किंकर्तव्यविमूढ़ हो उचित अनुचित का अत्यधिक विश्लेषण करने लगते हैं। ऐसे में आपको जरूरत होती है एक कृष्ण की जो आपके लिए अस्त्र तो नही उठाता पर आपको अस्त्र उठाने के लिए तैयार जरूर करता है। परिणाम का पूर्वानुमान लगाने की जगह कर्म करने की सलाह देता है।
अगर आप युद्ध में खड़े हैं तो इसका अर्थ है कि युद्ध तो होना है। और अगर युद्ध होना है तो परिणाम भी आना है। आप युद्ध नहीं टाल सकते क्योंकि भले ही आपको लगे कि युद्ध अनुचित है आपकी इच्छा के अनुरूप नही है, लेकिन यह युद्ध भी आपकी पिछले कर्मों का परिणाम है। आपके द्वारा लिए गए निर्णय और किये गये कर्मों की परिणीति आपके सामने युध्द बन खड़ी है। युद्ध आपकी नियति नहीं आपकी सिद्धि है। गांडीव उठा युद्ध करना अपने कर्मों को स्वीकृति प्रदान करना है। युद्ध में हार मान लेना अपने कर्मों की जिम्मेदारी से दूर जाना है। हार जीत की चिंता से परे , अपने संदेहों की घटा से निकल अपने पूर्णमनोबल के साथ वार करना ही आपका अपने प्रति न्याय है। अगर आपके साथ कृष्ण जैसे सहायक हैं तो आपका सौभाग्य है और आपके पूर्व कर्मो का परिणाम है। जीवन वो कथा है जिसकी पटकथा आपने लिखी है और आप ही उसके नायक हैं।
अच्छी बात यह है कि पठकथा का अंत अभी भी लिखा जाना बाकी है। अभी चल रहे कथानक के परिपेक्ष्य से पटापेक्ष का अनुमान लगाना व्यर्थ है। घर को छोड़ कर भाग जाने वाले आगे चल बुद्ध बन गए हैं और किन्नर शिखंडी ने महाप्रतापी भीष्म को शरशैय्या पर लिटा दिया है। आप अर्जुन की तरह निराश हों, बुद्ध की तरह पलायनवादी दिख रहे हों या अम्बा की तरह तिरस्कृत हो रहे हों, आपका निर्वाण युद्ध में ही निहित है।
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