Wednesday, July 11, 2018

घर एक सुकून का नाम है

आप किसी बच्चे को घर की तस्वीर बनाने को कहो । ज्यादातर बच्चे एक अलग सा घर बनाएंगे जो पूरी तस्वीर में सिर्फ एक घर होगा। आस पास एक पतली से सड़क बनी होगी, जो सीधे घर के दरवाजे तक जाएगी। आस पास पहाड़ भी बने हो सकते हैं, एक बगीचा सा होगा । ऊपर आकाश दो तीन पंछी उड़ते दिखाई दे सकते हैं। बच्चे को कुछ और समय दें तो बच्चा घर से बाहर खड़े अपने माँ बाप और अपनी तस्वीर बनायेंगे जो एक दूसरे का हाथ पकड़ कर खड़े होंगे।

बच्चे क्या ज्यादातर बड़ों को भी घर की तस्वीर बनाने को कहो वे भी कुछ मिलता जुलता ही बनाएंगे। शायद ही कोई मिले जो एक बड़ी सी कॉलनी बनाएगा, जिसमें दस बड़ी इमारतें खड़ी होंगी और किसी एक इमारत की एक खिड़की को वो कहेगा कि यह रहा मेरा घर।

यह तस्वीरों वाला घर जो हम बड़े और बच्चे बनाते हैं वास्तविकता से इतना अलग सा क्यों दिखता है? क्यों बच्चे अपना घर प्रकृति के बीच खड़ी एक अकेली शांत आकृति के रूप में बनाते हैं ना कि उस भीड़ और मुहल्ले के रूप में जैसा उनका वास्तविक घर है। एक और खास बात । यह घर का चित्र लगभग हर बच्चा एक सा बनाएगा चाहे वो किसी झोपड़पट्टी वाली अवैध कॉलोनी में रहता हो या किसी बड़ी से पॉश कॉलोनी में। शायद घर की जो तस्वीर हमारे मन में रहती है वो आपके वास्तविक घर से अलग होती है।

कुछ दिनों पहले यूनाइटेड एयरलाइन्स में एक यात्री को जबरदस्ती घसीट कर जहाज से उतारने वाली खबर और उसका वीडियो आया था। यात्री घबराया हुआ दौड़ता हुआ वापस आता है और कहता है मुझे घर जाना है, मुझे घर जाना है। इंसान क्या हमारी कहानियों में दूसरे ग्रह से आये एलियन भी हमेशा घर लौटने की ही कोशिश करते रहते हैं।

चाहे कोई भी मनुष्य हो ,किसी भी उम्र का हो, घर एक जगह से बढ़ कर है। घर एक सुकून का नाम है, घर नाम है शांति का। घर एक ऐसा मुक़ाम है जो पूरी दुनिया से अलग है, शांत है। शायद इसलिये बच्चे घर का चित्र पूरी दुनिया से अलग बनाते हैं। जहाँ पहुँच रास्ते खत्म हो जाते हैं। जहाँ भीड़ नही है। कहीं न कहीं हर कोई घर उसे ही कहता है जहाँ बाकी दुनिया से थक कर आप वापस लौटना चाहते हो। काम बहुत हो गया, अब घर चलते हैं। पार्टी काफी देर हो चुकी, घर जाने का समय आ गया।

एक बात गौर करने की है कि घर पर मिलने वाले सुकून का वहाँ उपलब्ध सुख सुविधाओं से ज्यादा लेना देना नही है। कवि राम नरेश त्रिपाठी लिखते हैं :
विषुवत् रेखा का वासी जो ,
जीता है नित हांफ हाफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ भूमि पर।।

ध्रुववासी जो हिम में हम में ,
जी लेता है कांप कांप कर ।
वह भी अपनी मातृ भूमि पर,
कर देता है प्राण निछावार।।

शायद इसलिये आज भी घर से निकाला जाना सबसे बड़ी सज़ा है और घर छोड़ रेफ्यूजी कैंपो में रहना सबसे बड़ी मानव त्रासदी। अपना घर छोड़ महानगरों की फुटपाथ पर पसरे लोग और रैन बसेरों में रात काटते लोग अपने दुख को बयां तक नहीं कर सकते। अंग्रेज़ी फ़िल्म द टर्मिनल में टॉम हैंक्स का किरदार सारी मुसीबतों के बावजूद अपने घर लौटना चाहता है। जरूरत है कि सबको मूलभूत आवश्यकताएं अपने घर के आस पास मुहैया कराई जाएं। कोई मनुष्य मजबूरन अगर अपना घर छोड़ रहा है तो समझिये कि कुछ ऐसा हुआ है जिसको बेहतर ढंग से किया जा सकता था ।

प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूस्खलन और सूखा अगर मानव विस्थापन का कारण बनती हैं तो कुछ हद तक समझ सकते हैं लेकिन अगर राजनीतिक कारणों से ऐसा हो रहा है तो उसके राजनीतिक हल अविलंब ढूंढे जाने चाहिये। आर्थिक कारण जैसे रोजगार की कमी मानव विस्थापन की विश्वव्यापी वजह है। कारण जो भी हो अनैच्छिक मानव विस्थापन एक घोर मानव त्रासदी है जिसका निकट भविष्य में कोई स्थायी समाधान मिलना कठिन लगता है।

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