Wednesday, July 11, 2018

जलालत मिली वो भी मोल लेकर

हवाई जहाज में बीच वाली सीट पर बैठा आदमी दुनिया के सबसे बदनसीब प्राणियों में शुमार होता है। वो कहते हैं ना कि हाथ को आया पर मुंह को ना आया। बेचारा पैसे सबके बराबर या जहाँ तक हो सबसे ज्यादा ही भरता है। अगर आपके पास आइल सीट या विंडो वाली सीट है तो इसका मतलब है कि आपने टिकट बहुत पहले कटाई थी जब किराये कम थे। बीच वाले बदनसीब लोगों ने बाद में टिकट ली जब सारी किनारे वाली सीट खत्म हो गई और दाम भी बढ़ गए। मतलब कि जलालत मिली वो भी मोल लेकर।


भाई, हवाई जहाज में इतने पैसे करके के सफर कर रहे हैं पर किस्मत ने ऐसी सीट दी है जिसे यह में नही पता चलता कि हाथ रखने के लिए उनका वाला बाजू कौन सा है। विंडों और आइल वाले अपना हाथ हटाएँ तो इन बीच वालों को हाथ रखने के लिए जगह मिलती है। विंडों वालों का क्या है जब तक मन हुआ खिड़की के बाहर नज़ारे देखे , जब मन हुआ खिड़की बन्द की और सर खिड़की से लगा कर सो गये। आइल सीट वालों के लिए तो आइल एक फ़ैशन रैंप की तरह होता है और वो उसके फ्रंट सीट वाले वीआईपी । एयरहोस्टेस की कैटवाक का नज़ारा देखते रहो सफर का लुफ्त लेते रहो। बेचारे बीच सीट वाले क्या करें। न नज़ारे नसीब में हैं ना नींद!! कैसे सोएं। विंडों सीट वाले साहबजादे ने तीन बोतल तो पानी पी रखी है एयरहोस्टेस से मांग मांग कर। अब पक्का यह उठकर बाथरूम जाएगा। साहबजादे बाथरूम जाना चाहते हैं, बीच सीट वाले खड़े होकर इस्तक़बाल फरमाएं वरना हुज़ूर की तौहीन समझी जाएगी। जलालत यहीं खत्म हो तो कोई बात नही, साहबजादे जब निपट कर वापस आएंगे तो फिर उनके इस्तक़बाल में खड़े हो जाना है। जब तक हुज़ूर बैठ नहीं जाते, बीच सीट वाले बैठ नही सकते। ऐसी बेइज़्ज़ती झेल कर आँखों में आंसू भले आ जाएं, नींद कतई नही आ सकती।
चाय नाश्ते के वक़्त पर होने वाली बेइज़्ज़ती और भी नागवार गुजरती है। विंडो सीट वाले साहब तक एयरहोस्टेस मोहतरमा के हाथ नही पहुंच सकते। बेचारी विंडो सीट वाले को नाश्ता का डब्बा देने के लिए आइल सीट वाले खुशनसीब के इतना करीब आ गयी है मानो यह साथ हवाई जहाज के सफर नही बल्कि कई मुद्दत तक चलेगा। विंडों सीट वाले साहबजादे मुस्कुरा कर नाश्ता के ट्रे पकड़ रहे हैं, आएल सीट वाले मना रहे हैं कि यह पल बस यहीं थम जाए और बीच सीट वाले परेशान हैं कि अभी हवाई जहाज हिला और गरम चाय की प्याली मेरे सर पर गिरेगी। आखिर कोई कैसे जिये ऐसी हालत में।
भगवान बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपनाने को कहा था क्योंकि मध्यम सीट पर बैठ कर खुश रहना बिना बुद्ध बने संभव नही है। अपने बगल बैठे खुशनसीबों की विलासिता देख बिना क्रोधित हुए एक संत का जीवन जीने वाले यह मिडिल सीट वाले आज के बुद्ध से कम नहीं हैं।

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