रेलवे के स्लीपर क्लास में सबके पास अपने अपने रंगीन कंबल और चद्दर होते हैं. रात में स्लीपर क्लास में सोते लोग ऐसे दिखते हैं मानो पहाड़ों के नीचे घाटियों में रंग बिरंगे फूल खिले हों. चारों ओर जीवन ही जीवन. लोहे की पटरियों पर दौड़ती रेल का अविरल कलरव और हवाओं का शोर मानो जीवमात्र की सांसो की ध्वनि आ रही हो |
वहीं उच्च वातानुकूलित डब्बों में सारे लोग सफेद चादर ओढ़ सोए रहते हैं, जैसे पहाड़ की चोटियों पर बर्फ ही बर्फ बिछी हो | ना पटरियों का कलरव ना हवाओं का गुदगुदाता शोर| सुनाई देती है तो सिर्फ़ ख़र्राटों की आवाज़ मानो मशीनो का घर्घर नाद सुन रहे हों | जीवन की तरंग नहीं कृत्रिमता का एक हताश कर देने वाला माहौल | आप रेल में बैठे हैं पर रेल की आवाज़ महसूस नही कर सकते । रेल सरसों के पीले पीले फूलों वालों खेतों से गुज़र रही है, पर आप उसकी खुशबू से मरहूम हैं । शायद आपने परदे भी गिरा रखें हैं ताकि आप अपने मोबाइल की स्क्रीन आराम से देख सकें । गाडी स्टेशन पर पहुँचती है तो चाय वाले, फल वाले , खोमचे वाले सारे स्लीपर क्लास की और दौड़ते हैं, जैसे कि मधुमक्खियाँ और तितलियां भी फूलों के बागीचे की तरफ ही उड़ते है। वातानुकूलित डब्बे उन तितलियों के लिए किसी उजाड़ चमन से कम नहीं । आप इलाहाबाद से गुज़रेंगे पर वहां के अमरुद आप तक नहीं पहुंचेंगे , ना ही आप तक पहुचेगी पटना स्टेशन पर मिलने वाली लिट्टी चोखे की सुगंध , हावड़ा पहुँच कर भी झाल मूढ़ी की तेज झांस से आप वंचित रहेंगे ।
स्लीपर में आप अपने सहयात्रियों के जीवन अनुभवों का रसास्वादन भी करेंगे क्योंकि समय काटने का उससे बेहतर कोई तरीका वहां नहीं है। वातानुकूलित डब्बे में हर सीट पर बिजली की व्यवस्था है , इसलिए आप अपने लैपटॉप पर लगे रहेंगे । आपके सहयात्री आपके लिए एक सीट नंबर से ज्यादा कुछ नहीं ।
आपका सफर वातानुकूलित डब्बे में एक यात्रा होगी और स्लीपर क्लास में एक अनुभव । #अबे_सुन_बे_गुलाब #CommunistThoughts #LifeAtTheBottomOfPyramid
वहीं उच्च वातानुकूलित डब्बों में सारे लोग सफेद चादर ओढ़ सोए रहते हैं, जैसे पहाड़ की चोटियों पर बर्फ ही बर्फ बिछी हो | ना पटरियों का कलरव ना हवाओं का गुदगुदाता शोर| सुनाई देती है तो सिर्फ़ ख़र्राटों की आवाज़ मानो मशीनो का घर्घर नाद सुन रहे हों | जीवन की तरंग नहीं कृत्रिमता का एक हताश कर देने वाला माहौल | आप रेल में बैठे हैं पर रेल की आवाज़ महसूस नही कर सकते । रेल सरसों के पीले पीले फूलों वालों खेतों से गुज़र रही है, पर आप उसकी खुशबू से मरहूम हैं । शायद आपने परदे भी गिरा रखें हैं ताकि आप अपने मोबाइल की स्क्रीन आराम से देख सकें । गाडी स्टेशन पर पहुँचती है तो चाय वाले, फल वाले , खोमचे वाले सारे स्लीपर क्लास की और दौड़ते हैं, जैसे कि मधुमक्खियाँ और तितलियां भी फूलों के बागीचे की तरफ ही उड़ते है। वातानुकूलित डब्बे उन तितलियों के लिए किसी उजाड़ चमन से कम नहीं । आप इलाहाबाद से गुज़रेंगे पर वहां के अमरुद आप तक नहीं पहुंचेंगे , ना ही आप तक पहुचेगी पटना स्टेशन पर मिलने वाली लिट्टी चोखे की सुगंध , हावड़ा पहुँच कर भी झाल मूढ़ी की तेज झांस से आप वंचित रहेंगे ।
स्लीपर में आप अपने सहयात्रियों के जीवन अनुभवों का रसास्वादन भी करेंगे क्योंकि समय काटने का उससे बेहतर कोई तरीका वहां नहीं है। वातानुकूलित डब्बे में हर सीट पर बिजली की व्यवस्था है , इसलिए आप अपने लैपटॉप पर लगे रहेंगे । आपके सहयात्री आपके लिए एक सीट नंबर से ज्यादा कुछ नहीं ।
आपका सफर वातानुकूलित डब्बे में एक यात्रा होगी और स्लीपर क्लास में एक अनुभव । #अबे_सुन_बे_गुलाब #CommunistThoughts #LifeAtTheBottomOfPyramid
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