Wednesday, July 11, 2018

उड़ान

सच्चाई क्या है? जो दृष्टिगोचर हो रहा है, क्या वह सच है? अंग्रेजी फ़िल्म मैट्रिक्स के एक दृश्य में मॉर्फियस नाम का चरित्र नायक नीओ से पूछता है कि वास्तविकता क्या है? क्या वास्तविकता वो है जो आपको अपनी आँखों से दृष्टिगोचर होता प्रतीत होता है? या वास्तविकता वो है जिसका संज्ञान आप अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा लेते हैं? अगर यह वास्तविकता की यह परिभाषा है तो यह वास्तविकता आपके मस्तिष्क द्वारा महसूस किए गए विद्युत तरंग हैं। अगर इस बात को हम ध्यान से देखें तो हम पाएंगे कि वास्तविकता में आपका एक पुट मौजूद है। वास्तविकता वह है जो आपके मस्तिष्क ने महसूस किया। मतलब अगर मस्तिष्क बदल दिया जाए तो वास्तविकता बदल जाएगी। तारे और चांद आखों को इतने मनभावन और सुंदर प्रतीत होते हैं कि उन्हें हम अपने प्रेमी, प्रेयसी, मामा, हीरे , मोती जाने किस किस की संज्ञा नही दे चुके हैं। नज़दीक जाकर दिखने वाली वास्तविकता यह है कि चांद एक जलरहित, जीवन रहित बंजर है जहां जीवन की कल्पना भी कठिन है। तारे वास्तव में सूर्य भांति जलते अग्निपिण्ड हैं जिसके हज़ारों मील दूर भी खड़े रहना संभव नही।

उन्मुक्त गगन में विचरण करते पंछी समूह प्रागेतिहासिक काल से मानव को उड़ने के लिए प्रेरित करते रहे हैं। करीब एक सदी पूर्व तक जब तक बिल्वर बंधुओं ने अपनी पहली उड़ान नही भरी, उड़ने का स्वप्न एक दिवा स्वप्न ही था। आखिर उड़ना इतना मनभावन है। आप हमारी कहानियों , लोक साहित्य और प्राचीन ग्रंथों को ही देख लें। चाहे रामायण के पुष्पक विमान का वर्णन हो, या अलादीन की जादूई चटाई , पेगासस के रूप में उड़ने वाले घोड़े हों या झीने झीने पंखों वाली परियां, उड़ान को हमेशा से एक सुखद स्वप्निल अनुभव की तरह पेश किया जाता है। विज्ञान और तकनीक की प्रगति ने उड़ान की मानव इच्छा को कल्पना की दुनिया से निकाल वास्तविक जीवन का एक साधारण अंग बना दिया है। जिस तरह दूर से दिखने वाले चाँद और वास्तविक चाँद में अंतर है, क्या यही चीज़ मानव उड़ान पर भी लागू है?

‌ऊंचा उडने के लिये सबसे पहले आपको तेज दौड़ना पड़ता है। इतनी तेज कि आसपास की सारी चीज़ें पीछे भागती नज़र आये। इतनी तेज कि पीछे भागती चीज़ें आप देख भी न पाएं। आप देख भी नही सकते क्यूंकि आपकी नजर सीधी अपने रास्ते पर होनी चाहिये, वरना आप तेज़ दौड़ नही पाएंगे। आप उन लोगों को भी नही देख सकते जो शायद आपकी तेज गति को देख हतप्रभ हो ताली बजा रहे हैं। एक बच्चा जो आपको तेज गति से दूर जाता देख हाथ हिला कर आपको विदा कर रहा है । आपको पता भी नही चलेगा ,उसको वापस से हाथ हिला कर जवाब देना तो दूर की बात है। आखिर यह सब करने से आपकी गति कम होगी , जो आपके उड़ने का सपने में बाधक है। अब इतनी तेज दौड़ने के लिए जरूरी है कि आप भीड़ से दूर हो जाएं । भीड़ में तेज नही दौड़ सकते। सबको साथ लेकर तेज़ नही दौड़ सकते। उड़ने के लिए जितनी तेज आप दौड़ना चाहते है वो भीड़ से दूर खाली जगह पर अकेले ही संभव है। आप दौड़ने के लिए भी आप अपने लिये आप ऐसी जगह चाहते हैं जो बिल्कुल खाली हो। तो आप सबसे पहले भीड़ से अलग होते हैं। हर ऐसी चीज़ जो आपके तेज दौड़ में बाधक है, वो भीड़ है , अवांछित है। यहां तक कि वो पंछी भी आपकी उड़ान के समय अवांछित हो जाता है जिसको देख आपको उड़ने की प्रेरणा मिली थी।

उड़ने के लिये धरातल को छोड़ना आवश्यक है। आप धरातल के नजदीक भी नही उड़ सकते। उड़ना शुरू करते ही, यह जरूरी हो जाता है आप धरातल से दूर हो जायें। जैसे जैसे आप धरातल से दूर होते जाते हो आपको धरती के लोग चीज़ें छोटे दिखने लगते हैं। आपको लगता है कि आप बहुत बड़े हो गए हो जो आसमान में उड़ रहे हो। वस्तुतः आप बड़े नही होते हो, बस बाकी लोगों से दूर हो गए होते हो। इस दूरी को अपना गुरुत्व और बड़प्पन समझने की भूल बहुधा देखी गई है। जैसे जैसे आप और ऊंचाई पर पहुंचते हो आपकी गति काफी तेज हो गई होती है। लेकिन आपको लगता है कि आप या तो स्थिर हो या अत्यंत मंथर गति से आगे चल रहे हो। उपर अकेले उड़ते हुए ऐसा भी आभास होता है कि शायद आप उड़ भी नही रहे वरन स्थिर हैं। यह एक अजीब सी स्थिति है, कि आप
उड़ तो रहे हैं पर स्थिर या जड़ होने की हताशा आपको घेरे हुए है। आप उड़ने का अपना स्वप्न जी रहे हैं लेकिन जड़ता का भाव आपके मानस पटल पर छाया है। आप उन पंछियो से कहीं ऊपर आसमान की सैर कर रहे हैं जिनको देख आपने उड़ने का प्रण लिया था ,पर आपकी उड़ान में पंछियों का वह नाद वह कलरव अनुपस्थित क्यों है।

पंछियों की उड़ान क्या उन्हें वही आनंद, वही उल्लास देती है जो धरती पर खड़े मानव उनको देख महसूस करते हैं? मानव के उड़ने का अनुभव उसके बिल्कुल उलट है। क्या पंछियों का उड़ते समय दिखने वाला आनंद वास्तव में हमारी आँखों का एक भ्रम है और पंछी भी उसी जड़ता और एकाकी भाव से त्रस्त हैं जो मानव उड़ते समय महसूस करते हैं? शायद इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ उड़ कर देना संभव नही है, इसके लिए पंछी बन उड़ना पड़ेगा। शायद मानव को ज्ञात उड़ने की वास्तविकता से मानव मस्तिष्क का यह पुट हटाये बिना यह ज्ञात नही हो सकता।

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