शून्य की एक खास बात है। चाहे कोई भी भाषा हो , कोई भी लिपि हो, शून्य को लिखने का एक ही तरीका है। एक वृताकार आकृति जिसके अंदर खाली है, बाहर खाली है। जिसका कोई ओर छोर नही। संख्या प्रणाली शून्य से शुरू हो बढ़कर अनंत तक जाती है। अनंत का निशान भी दो शून्य से मिलकर बना है। उसका भी कोई ओर छोर नहीं। अगर शून्य और अनंत एक जैसे हैं, तो इसके मायने क्या हैं?
आप किसी चीज़ को उछालो, चीज़ ऊपर जाएगी, फिर नीचे आएगी। आप ज्यादा जोर से उछालोगे तो चीज़ ज्यादा ऊपर जाएगी, पर नीचे आएगी जरूर। उसी रफ्तार से जिस रफ्तार से गई थी। इंसान तप करके ईश्वर बनना चाहता है, ईश्वर अवतार लेकर इंसान बनना चाहता है। कोई भी चीज़ सीधी नही है जिसके सिरे एक दूसरे से अलग हों। सारे सिरे एक दूसरे से मिलते हैं।
दुनिया गोल है। यह बात भौगोलिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से भी सच है। चीज़ें जहां से शुरू होती हैं, वहीं खत्म होती हैं। यह एक ध्रुव सत्य है। पर मानव इच्छाएं वृताकार नहीं उर्ध्वगामी है। हमेशा सीधी लकीर में ऊंचा से और भी ऊंचा जाना चाहती हैं। गोलाकार दुनिया सीधी मानव आकांक्षाओं को तब तक ही संभाल सकती है जब तक यह उसकी परिधि के परे न जाये। ज्यामिति के अनुसार कोई भी सीधी चीज़ तब तक ही सीधे रूप में एक गोले के अंदर रह सकती है जब तक उसकी लंबाई गोले के व्यास से कम हो। उससे ज्यादा सीधी चीज़ को अगर गोले के अंदर रहना है तो मुड़ना पड़ेगा। मुड़ना पड़ेगा उसी दिशा में जहां से उसकी शुरुआत हुई थी। आपकी प्रगति, इच्छाएं, महत्वाकांक्षाएं एक खास बिंदु से ऊपर जाकर वापस अपने आदि की तरफ लौटेगी। अब यह आप पर निर्भर है कि आप इसको प्रकृति का नैसर्गिक सिद्धांत मान स्वीकार करते हैं या इसके खिलाफ लड़ने का व्यर्थ प्रयास कर विफल और हताश होने का निर्णय लेते हैं।
आप किसी चीज़ को उछालो, चीज़ ऊपर जाएगी, फिर नीचे आएगी। आप ज्यादा जोर से उछालोगे तो चीज़ ज्यादा ऊपर जाएगी, पर नीचे आएगी जरूर। उसी रफ्तार से जिस रफ्तार से गई थी। इंसान तप करके ईश्वर बनना चाहता है, ईश्वर अवतार लेकर इंसान बनना चाहता है। कोई भी चीज़ सीधी नही है जिसके सिरे एक दूसरे से अलग हों। सारे सिरे एक दूसरे से मिलते हैं।
दुनिया गोल है। यह बात भौगोलिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से भी सच है। चीज़ें जहां से शुरू होती हैं, वहीं खत्म होती हैं। यह एक ध्रुव सत्य है। पर मानव इच्छाएं वृताकार नहीं उर्ध्वगामी है। हमेशा सीधी लकीर में ऊंचा से और भी ऊंचा जाना चाहती हैं। गोलाकार दुनिया सीधी मानव आकांक्षाओं को तब तक ही संभाल सकती है जब तक यह उसकी परिधि के परे न जाये। ज्यामिति के अनुसार कोई भी सीधी चीज़ तब तक ही सीधे रूप में एक गोले के अंदर रह सकती है जब तक उसकी लंबाई गोले के व्यास से कम हो। उससे ज्यादा सीधी चीज़ को अगर गोले के अंदर रहना है तो मुड़ना पड़ेगा। मुड़ना पड़ेगा उसी दिशा में जहां से उसकी शुरुआत हुई थी। आपकी प्रगति, इच्छाएं, महत्वाकांक्षाएं एक खास बिंदु से ऊपर जाकर वापस अपने आदि की तरफ लौटेगी। अब यह आप पर निर्भर है कि आप इसको प्रकृति का नैसर्गिक सिद्धांत मान स्वीकार करते हैं या इसके खिलाफ लड़ने का व्यर्थ प्रयास कर विफल और हताश होने का निर्णय लेते हैं।
संख्या शून्य अपने आप में एक संख्या से कहीं बढ़ कर है। शून्य आपका जीवन सार है। धरती पर खड़े होकर अपनी स्वप्निल आँखों से तारों भरे सुसज्जित आकाश को देख मानव ने उसे अनंत अंतरिक्ष कहा। वो अंतरिक्ष जहां पहुंचना और उसपर आधिपत्य मानव सभ्यता की पराकाष्ठा कही जाए। कालांतर में मानव जाति ने अंतरिक्ष को जानने के बाद उसका एक नाम शून्य ही रखा। अगर उत्पत्ति और पराकाष्ठा दोनों शून्य में ही समाहित हैं तो इसका अर्थ है कि आपकी उर्ध्वगामी सीधी रेखा वाली जीवन की योजनाएं बहुत दूरदर्शी नही है। सिर्फ छोटे समयकाल में आपकी ऐसे योजनाएं तार्किक लगती हैं। ओलिम्पिक में होने वाली दौड़ को ही देखें। 100 मीटर वाली दौड़ सीधी रेखा में होती है और 800 मीटर वाली दौड़ गोलाकार। आप जितनी लंबी दौड़ के धावक होंगे आप जानेंगे कि आपकी शुरुवात और आपकी नियति एक ही जगह होनी है। आप उसी हिसाब से अपनी मानसिकता को ढालेंगे और शून्य से डरेंगे नहीं बल्कि उसे ही सत्य मान स्वीकार करेंगे।
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