Wednesday, July 11, 2018

गांव के अँधेरे थिएटर में प्रवेश

गांव आकर यह एहसास होता है शहर के चहल पहल और चमक दमक में आप बहुत सारी चीज़ें पीछे छोड़ आये हैं। रात को ही लें, रात का मतलब शहर में नाईट लाइफ और डीजे का तेज संगीत से आप लेते हैं। गांव की नाईट लाइफ का मतलब है घुप्प अँधेरा। शहर में इतना ज्यादा कृत्रिम प्रकाश है कि घुप्प अंधकार शहर में मिलना शायद नामुमकिन ही है। गांव आते ही आप शुरू में अन्धकार से शायद कुछ डरते हैं, आपके मन में यह भाव उठता है कि कहाँ आकर फंस गया। लेकिन जल्द ही यह अंधकार काले जादू सा आपको अपने वश में करने लगता है। जैसे तेज प्रकाश से आप सिनेमाहाल में प्रवेश करते ही शुरू में आप थोड़े असहज होते हैं पर जल्द ही परदे पर चल रहा प्रकाश और संगीत आपको सब कुछ भुला देता है। गांव के अँधेरे थिएटर में प्रवेश करने के कुछ समय के बाद जब आपकी आंखें अँधेरे में अभ्यस्त होती है तो सबसे पहले आपकी नज़र पड़ती है दुनिया के सबसे बड़े परदे आसमान पर। आसमान और उसपर जगमगाते तारों ने जाने कितने वैज्ञानिको, दार्शनिको, साहित्यकारों और प्रेमी युगलों को क्यों प्रभावित किया है इसका अहसास आप गांव से दिखने वाले आसमान को देख कर ही कर सकते हैं। आपके ऊपर का तारों से सुसज्जित आकाश किसी प्रेमी को प्रेमिका के आँचल सा तो किसी वैज्ञानिक को किसी सुदूर ग्रह से आती अन्य सभ्यता की लौ का अहसास कराती है। गांव वालों के लिए यह आकाश दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद सुकून से सोने के लिए बनी एक बड़ी सी चादर है जिसे मानो माँ प्रकृति अपने सोये सारे बच्चों को एक साथ ओढा देती है।


जैसे सोने में सुगंध आ जाये वैसे ही इस अनुपम दृश्य में प्रकृति और भी रंग डालती है। तारों के आसामान के नीचे बैठे आप एक दैविक शांति का अनुभव करते हैं, पर आप इस शांति को सन्नाटा न समझें। सन्नाटा तो जीवन रहित भय का संकेत है। गांव में भय कैसा और जीवन की ध्वनि गांव के रेशे रेशे से आती रहती है। गांव की शांति में आप दूर से आते किसी वृद्ध के संध्या आरती के भजन की मधुर ध्वनि सुन सकते हैं। साथ में सुनायी देता है झींगुरों का कलरव, मानो जीवमात्र रात्रि की देवी की उपासना में लगा हो। इस उपासना के समारोह में पेड़ पौधे शामिल न हों ऐसा कैसे हो सकता है। रात्रि में खिलने वाले खुशबू दार फूलों वाले पेड़ों, मंजर से लदे आम के बागानों से जब बहकर हवा आती है तो ऐसा लगता है कि पूजा में अगरबत्तियों की सुगंध फ़ैल गयी है।

‌खेतों में फलों और फसलों की रखवाली करने गये किसान अपने आप को गर्म रखने के लिए अलाव जला बैठे रहते हैं। अलाव के पास बैठे किसान और बागान के रखवालों को देख अपने घर के फायर प्लेस के सामने बैठे अंग्रेजों की याद आ जाती है। अलाव के सामने बैठ चिलम फूंकते अपने फलों से लदे बागान देख जो सुकून एक किसान को मिलता है वह शायद क्यूबन सिगार पीते साहबों को न मिलता हो। गांव की रात्रि में पेड़ों के बीच अलाव जलाये किसान माँ प्रकृति की गोद में बैठे बच्चों की तरह लगते है जिनके साथ प्रकृति के दूसरे बच्चे भी बाल क्रीड़ा आ मिलते हैं। कुत्तों का समूह भी अपने दिन के सारे मतभेद भुला उस अलाव के पास आ जाता है जैसे युद्ध विराम के बाद सारे सैनिक अपनी संगीनों को परे रख हंसी मजाक कर रहे हों। जैसे सैनिक भले ही रात में आराम कर लें जासूसों का काम रात में भी नहीं रुकता। उसी तरह चमगादड़ों का समूह रात में भी फलों के बागान में अपने भोजन की तलाश में घूमता रहता है। दूर से आती सियारों की आवाज़ ऐसे लगती है जैसे दुश्मन का खेमा अगले आक्रमण की योजना बना रहा हो। गांव में बैठ कर रात को दूर तक देखें तो कहाँ आकाश ख़त्म हुआ और कहाँ धरती शुरू हुई पता नहीं चलता। आखिर जुगनुओं का टिमटिमाता सामूहिक सौंदर्य तारों के रूप से किसी रूप में कमतर थोड़े ही है।
‌लेकिन यह रात्रि उत्सव उषाकाल से कहीं पूर्व समाप्ति की ओर बढ़ जाता है। सूर्य के आगमन के लिए स्वागत गान गाते पंछी , जलाशय की ओर जाता भैंसों का समूह के कदमताल की आवाज़, दूध की आस में अपनी माँ को पुकारते गाय के बछड़ों की पुकार सब मिल आपको जगाते हैं कि उठो दिवस प्रारम्भ होने को है। अलाव की राख की गर्म चादर में सोये गांव के पहरेदार कुत्ते अब भी अलसाये से पड़े रहते हैं और एक खीझ वाला भाव जताते हैं कि सुबह इतनी जल्दी क्यों आ गयी। गांव वाले भी अपने अलसाये आँखों को मलते उठते हैं और जीवन चक्र फिर वैसे ही द्रुत गति से चल पड़ता है अपने अगले रैन बसेरे की तलाश में।

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