Wednesday, July 11, 2018

शेर लिखना और शेर होना अलग अलग चीज़ें है।

अगर अपनी विचारधारा की ज़मीन पर खड़े होने में आप दिक्कत महसूस कर रहे हैं, बार बार फिसल जा रहे हैं, तो शायद आपकी विचारधारा की ज़मीन पर काई लग चुकी है। काई लगने की वजह से आपको अपनी ज़मीन हरी भरी भले ही दिखे पर यह हरियाली आपको कोई फसल नहीं दे सकती। वही हरियाली आपको फसल दे सकती है तो ज़मीन पर खड़ी है, जो हल के पैने दांतो का प्रहार झेल सकती है, जो धूप और हवा को निरंतर झेल सकती है। काई तो सिर्फ यह दिखाती है कि आपकी विचारधारा वास्तविकता के धरातल के दूर है और ज्ञान की उथली जलधारा ने आपकी विचारधारा की ज़मीन को ढक रखा है। आपकी ज़मीन ने न ही सालों से हल का सामना किया है और न ही नए विचारों की खाद उसमें पडी है।आप हरे तो दिख रहे हैं, पर आप हारे हुए ज्यादा हैं। आपके ऊपर पडी उथली जल की मात्रा अब सूखने वाली है और फिर यह तय है कि सूर्य की तेज़ किरणे आपकी वनस्पति होने का भरम जल्द ही तोड़ने वाली हैं। फिर जिस जमीन को आप ज्ञान और विद्या जल से रहित सूखी ज़मीन बता रहे है, उस पर खड़ा इंसान न फिसलता है और न वह ज़मीन तर्क और विवाद से ताप से डरती है। अगर आप सच में मुकाबला चाहते हैं तो अपने ऊपर से पडी वह दम्भ की जल परत को हटाएं । आपने विचारधारा की ऊपर ज़मी काई को मिटायें , आप देखेंगे कि आपका फिसलना कम हो गया है। गहरे समंदर में काई नहीं जमती और न ही सूखी ज़मीन पर। काई जमती है वहां जो ना पूरी तरह सूखी ज़मीन बनने का साहस रखता है और न ही उसमें सागर जैसी गहराई है। काई वाली ज़मीन पर जो पानी रहता है, उसमें आप तैर नहीं सकते, सिर्फ फिसल सकते है, आपकी ज़बान फिसल सकती है। आप भले ही आपने आप को समंदर मानें, हरियाली मानें, ज़मीन मानें, वास्तविकता में आप तीनो में कुछ भी नहीं है। हाँ आपकी तस्वीर ज़रूर अच्छी आ सकती है, तस्वीर में आप ज़रूर हरे भरे, तरल और प्रियदर्शी प्रतीत हो सकते है, पर यह तस्वीर सिर्फ मंदबुद्धि लोगों को आकर्षित कर सकती है। और वह मंदबुद्धि लोग अगर आपकी विचारधारा की ज़मीन पर आपके साथ खड़े होने की कोशिश करेंगे तो उनका फिसलना स्वाभाविक है। योद्धा को अपने आप को प्रमाणित करने के लिए भरतनाट्यम सीखने की आवश्यकता नहीं है। और भरतनाट्यम का असली जानकार कभी भी किसी सैनिक का मज़ाक इसलिए नहीं उड़ाएगा कि वह भरतनाट्यम नहीं जानता। यह सिर्फ यह दिखाता है कि आप भरतनाट्यम में कच्चे हैं और सैनिक तो आप कभी थे ही नहीं। शेर लिखना और शेर होना अलग अलग चीज़ें है। जंगल में आइये, आप जान जाएंगे असली शेर कैसा होता है।

No comments: