Wednesday, July 11, 2018

माँ, जननी और मातृत्व

आचार्य विष्णुगुप्त यानि चाणक्य नंदवंश के विरुध्द अपनी सेना को तैयार करने में लगे थे। अगर चंद्रगुप्त को मगध साम्राज्य के सिंहासन पर आसीन होना था तो उसके लिए चाहिये था एक शक्तिशाली सैन्य बल । और सैन्य बल को चाहिए था अत्याधुनिक आयुधों का भंडार । और इन सब के लिए चाहिये था धन। अब एक विपन्न ब्राह्मण चाणक्य और एक दासी पुत्र चंद्रगुप्त के पास इतना धन कहाँ से आये? चाणक्य ने निर्णय लिया कि वो घन नंद से प्रताड़ित जनता से ही धन मांगेंगे और बदले में उन्हें नंद वंश के अत्याचारो से मुक्त करेंगे। चाणक्य ने लोगों से प्रार्थना की कि वे चंद्रगुप्त को अपना पुत्र मान अपनी संपत्ति का एक हिस्सा इस अभियान को समर्पित करें। चाणक्य ने एक दरवाजे पर पहुंच आवाज़ लगाई। माँ, घननंद के अत्याचारों के अंत के लिए हो रहे यज्ञ में हमारी मदद करो माँ। तुम मुझे अपना पुत्र मान एक हिस्सा दो। तुम्हारे इस दान का बदला तुम्हारा पुत्र एक कल्याणकारी शासन देकर चुकायेगा। घर की स्त्री ने कहा कि भंते आपका लक्ष्य सराहनीय है और आपका साहस अद्वितीय। किन्तु मैं आपको पुत्र कैसे मान सकती हूँ। मैंने आपको जन्म तो नहीं दिया। चाणक्य ने कहा : माते मैं आपका पुत्र होने का सारा धर्म वहन कर रहा हूँ। एक पुत्र का धर्म है कि माता पर हो रहे अत्याचार को रोके, आक्रांताओं का दमन करे। यह सारा धर्म निभाने के बाद भी क्या मैं आपका पुत्र सिर्फ इसलिये नही हो सकता क्योंकि मैंने आपको प्रसव पीड़ा नही दी?? स्त्री की आँखों में आंसू आ गए और उन्होंने अपने समस्त धन के साथ अपने बाकी पुत्रों को भी चाणक्य के साथ धर्मयुद्ध में शामिल होने का आदेश दिया।

मदर्स डे के अवसर पर देखता हूँ कि लोग माँ के लिए एक से एक सन्देश लिख रहे हैं। कुछ लोग माँ के बनाये पकवान याद कर रहे हैं तो कोई माँ की ममता के किस्से बयान कर रहा है। कोई अपनी माँ की पुरानी तस्वीर साझा कर अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कर रहा है तो कोई माँ की कही गयी सीख दुहरा रहा है। सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य मुझे कक्षा चार से ही घर से दूर छात्रावास , हॉस्टल , बोर्डिंग स्कूल, आप चाहे जो नाम कहना चाहें, में रहना पड़ा है। हॉस्टल में रह बचपन बिताने वालों की दुविधा यह है कि उन्हें अपनी माँ के साथ ज्यादा वक़्त नही मिल पाता। लेकिन जैसा कि प्रकृति का नियम है, संतुलन हर जगह बना रहता है। हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को अगर अपनी माँ का सानिध्य कम मिलता है तो इसकी पूर्ति कहीं बड़ी तरीके से होती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तब दिखता है जब महिने का वो दिन आता है जिस दिन अभिभावकों को हॉस्टल आकर बच्चों से मिलने की अनुमति होती है। मतलब पेरेंट्स डे।

हॉस्टल के तीस बच्चे अगर महीने के उनतीस दिन माँ के बिना बिताते हैं तो तीसवें दिन उन्हें तीस माँओं का प्यार एक साथ मिलता है। हॉस्टल में रखने वाले हर बच्चे की माँ जानती है कि उसके बनाये गए पकवान का इंतज़ार सिर्फ उसकी संतान नही कर रही बल्कि उसके साथ रहने वाले सभी बच्चे कर रहे हैं। इसीलिए हर माँ अपने बच्चे की जरूरत से ज्यादा हमेशा कहीं ज्यादा पकवान और संदेश बांध कर देती है। और हॉस्टल का हर बच्चा टूट पड़ता है उस प्यार की गठरी पर उसी हक़ से जैसे एक बच्चा अपनी माँ के पकवान खा रहा हो। हरेक साथी के माँ के पकवान का अलग स्वाद हमें आज भी याद है। हमारे लिये अपनी माँ और अपनी साथी की माँ में कोई फर्क नही था। कोई बच्चा अपने साथी की माँ से मिलने जाता और माँ की नज़र उस बच्चे की कमीज के टूटे बटन पर पड़ जाती, तो माँ अपने बच्चे को छोड़ दूसरे बच्चे की कमीज में बटन टांकने लग जाती। हॉस्टल में कई बार देखा है कि किसी और की माँ अपने बच्चे के बदले उसके बीमार साथी के सर पर गीले रूमाल रख पट्टी कर रही है। आज अगर माँ को याद करने और धन्यवाद करने का दिन है और मैं अपनी उस सारी माँओं को भूल जाऊं तो यह उचित नही जान पड़ता।

माँ शब्द जननी से कहीं बढ़कर है। यह संयोग नही है कि माँ शब्द सुनते ही आपके मन में यशोदा का नाम आता है। यशोदा कृष्ण की जननी नहीं थी, पर माँ अवश्य थी। माँ बनने के लिए मातृत्व का भाव आवश्यक है, जननी होना नहीं। हर किसी की ज़िंदगी में मातृत्व का भाव आपको सिर्फ आपकी जननी से मिले, ऐसा संभव नहीं है। आपकी धाय माँ, मौसी, बड़ी बहन, शिक्षिका, जननी, और आपकी धर्म माँ सब मिलकर आपके लिए माँ की परिभाषा पूरी करते हैं। यह बात अलग है कि जन्म देने वाली माँ का स्थान कोई और नही ले सकता , पर इससे आपकी बाकी माताओं का योगदान कमतर होकर नहीं आंका जा सकता। इनमें में ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जिनका योगदान आपको याद भी नही रहता। जननी के प्रेम में तो कदाचित यह भाव भी रहता है कि यह बड़ा होकर मेरा नाम रोशन करेगा, मेरे सपने पूरे करेगा, दूसरी माँओं का प्यार आपका ऐसा कर्ज़ है जो बिना शर्त बिना किसी आशा के मिलता है। चाणक्य के एक बुलावे पर उसको अपना पुत्र स्वीकार करने वाली हर वह स्त्री उसके लिए माँ थी। आज का दिवस उन सबको प्रणाम करने का दिवस है। आज मातृत्व को नमन करने का दिवस है। मातृत्व एक व्यक्ति से परे है। शायद इसलिए एक अफ्रीकी कहावत है कि एक बच्चे को पालने में पूरा गांव लगता है। आज उस गांव को प्रणाम करने का दिन है। हैप्पी मदर्स डे।

1 comment:

Manish Siddhartha said...

Can't agree more.. we might not be having too many memories of the Home or how our mothers were at home with us but we have a shared feeling of how all mothers have made us feel on the monthly Parent's day event.

I might not remember all the details but the feeling remains. its because of all those mothers Instead all those parents who became a part of our upbringing and contributed to the formation of person we are today.

very nice read.. kudos to the clarity of thoughts and flow of ideas translated into the words.