Wednesday, July 11, 2018

एक ठो लभर बॉय रहिन नाम रहे शांतनु

बहुते साल पहले एक ठो लभर बॉय रहिन नाम रहे शांतनु। भाई साब के माथे पर इशक के भूत ए तरीके से छैले रहे कि कोनों भी मौड़ीयन के देख पसर जैहियेण बस। बस कैसो करके कौनो मौड़ी टांका भिराबै खातिर मान जाए तो लाइफे सेट हो जाई, यही सोच डेली डेली नदी किनारे शिकार पर निकल जैहैं। एक दिन का देखें कि एक ठो बहुते जबरदस्त टाइप मौड़ी नदी किनारे खड़ी रहें। फिर का? फिसल गेलै भाई साब बिना बरसात के। जाके लड़किन को बोलें कि हमरे साथ बियाह रचाई लियो तो तुम्हरी लाइफ बना देंगे। पैसा कौड़ी ज़मीन जायदाद हेरा जवाहरात की कौनो कमी तो थी नहीं लौंडे के पास। देखे में शांतनु भी उ दिन मस्त राजकुमार टाइप लग रैलहै थे। बस बिल्ली के भाग से छीका गया टूट। लड़की मान ता गइली लेकिन एक ठो शर्त रख दीहिस। शर्त इ की आप हमको कभियो किसी बात पर टोकेंगे नहीं, रोकेंगे नहीं। जै दिन टोका, वै दिन चल देंगे हम छोड़ छाड़ के और रह जइयो फिर अकेले। शांतनु मन में विचार करिहें कि ऐसी सुन्दर लुगाई को काहेे ला टोकेंगे। इ मान जाये बस। बिना सोचे समझे हाँ कह दिये भाई साब और गंगा भाभी को ले घर को आ गये। 



फिर तो भाई साब के मजे ही मजे। भाई साब की मेहनत लायो रंग और गंगा भाभी के पाँव हो गियो भारी। एक साल के भीतर एक बेटा भी हुओ । इससे पहले कि शांतनु बाबू मुँह मीठा करवाते सबका, गंगा भाभी बचवन को जाके फेंक आयी पानी में। शांतनु बस कसमसा के रह गइनी। का करते..वादा कर चुके थे कि कभियो किसी बात पर न टोकेंगे। कहीं भाभी छोड़ के गयी तो बचवा तो गया ही लुगाई भी चल देगी। लभर बॉय कितने दिन उदास रहते, कुछे दिन दुःख में गुजारे, फिर खो गए भाभी के प्यार में। अगले साल फिर एक बेटा। भाभी एहो बार बचवन के पानी में बहा आयी। उसके बाद फेर तो इ स्कूल के एनुअल फंक्शन हो गइनी। हर साल भाई साब मेहनत करते, भाभी मेहनत पे पानी फेर आती। सात साल ऐसे ही चलयो। आठवें साल फिर से एक बेटा हुआ, और भाभी जी ले के चल दी बचवे को नदी में बहाने। अबकी बार भैया रोक नहीं पाये अपन को और बोले । बहुत हो गया तुम्हार खेला। अबकी बार बचवे की जान न लेने देंगे। लवर बॉय से पूरा एंग्री यंग मैन बन गए रहैं भाई साब। भाभी भी कोई कच्ची खिलाडन थोड़े न थी। बोली अब तुमसे निबाह न हो पायेगा। हमरी शर्त तोड़ी, हम रिश्ता ही तोड़ के जा रहे हैं। चलो इस बेटे को न मारेंगे, लौटा देंगे तुमको इसको पाल पोस के। इ कह के गंगा भाभी चल दिहिस और हमारे लवर बॉय बन गयो देवदास ।

फिर तो भाई साब 15-20 साल हाथ पैर समेट राज काज पर ध्यान देते रहें फिर एक दिन गंगा भाभी आठवें बेटे को लौटाबे खातिर प्रकट भई । बोलीं की इ लो अपना बेटा देवव्रत। भाई साब खूब कोशिस कर लस कि कैसो से भाभी भी रुक जाये, लेकिन उ हो न सका। भाभी शांतनु भैया के दिल फेर से तोड़ के चल दीं।

भाभी को देख भैया भीतरे भीतर फेर जवान हो गइलस। आखिर घास कब तक ज़मीन के भीतर पड़ल रहें, बारिश को दू बूँद पड़े नहीं कि बढ़ जाऐं हरहरा के। फेर से वही नदी किनारे मटरगश्ती वाली आदत शुरू कर देलस। एक दिन का देखे, कि एक सुन्दर मौड़ी खड़ी है नाव लेके। भाई साब उसके नाव पे का बैठे, डूब गए मौड़ीयन के आँखों में। जाके उसके बाप से बोले कि अपनी लड़की सत्यवती का बियाह हमसे कर दो , तुम्हरी और तुम्हरी बेटी दोनों की लाइफ सेट कर देंगे। पहले तो बुढऊ बाप बड़ी माई बाप करलस की हमरे भाग खुल गए और फलाना ढिमका। इससे पहले की अपने लवर बॉय मन में फूटे लड्डू खा पाते, बुढऊ रख दिहिस एक शर्त। शर्त इ की आपका बेटा देवव्रत राजा न बनिहैं, राजा बनिहैं तो हमार नाती। इ शर्त सुन लवर बॉय समझ गये की लड्डू हाथ तो आया पर मुंह न आया। मन में सोचे कि शर्त मानने वाली बात अब न मानेंगे। पर का करें किस्मते लिखी गयी है हमरी गधे की कलम से, बिना शर्त कोई मौड़ी हां ही ना बोलती। बोले इ शर्त हम न मान सकते, और कह के लौट आये।

पर फेर से वही सत्यवती की याद में मुंह लटकाय के घर में बैठे रहें अपने भाई साब। बेटवा भी जवान हो गये रहें, समझ गइनी कि बापू फेर से कहीं फिसल गए हैं। ज्यादा काबिल बनै के चक्कर में पहुच गए अपने ही बाप के लगन लेकर बुढऊ और सत्यवती के पास। बुढऊ समझ गइनी कि लौंडा जवानी के जोश में कुछो दे बैठेगा। बेचारे नए लौंडे से कहलवा लिया कि ऊ ज़िन्दगी भर कुंवारे रहेगा औ कुंआरे ही मरेगा। देवब्रत अपन बाप लवर बॉय के लिए नयी लुगाई ले अइ लस तो बाप भी थोड़ी देर खातिर खूब आशिरबाद वगैरह दिहिस कि खूबे ज़िंदा रहो लेकिन फिर अपनी नयी बीवी के साथे अपने पुराने दिन गुज़ारने लगिस।

ऐ लंबी लवर बॉय कहानी से दू ठो बतवा समझे के हइ । पहला इशक लडैयो लेकिन थोड़ा लिमिट में रह के। इतना जरूर ध्यान रखियो की अपने ही हिस्से का इश्कबाज़ी करे न की बेटवा के हिस्से की इश्कबाज़ी भी खुदे कर जइयो। दूसरा इ की इश्कबाज़ी के चक्कर में लड़की पावे खातिर जो सो बात पर हाँ न कर दियोे। वरना होगा इ की आप तो मस्ती करके निकल लोगे और आपका बेटवा बिना बाप बने ही ज़िंदगी भर पितामह पितामह कहलैतै रहीं। मतलब इ की खाया न पिया गिलास तोडिस दस हज़ार का।सावधानी हटी दुर्घटना घटी। बाकी आप खुदे समझदार हो। हाँ हैप्पी वाला वैलेंटाइन डे तो बोलना भूलिये गये। लगता है बूढ़ा रहे है ससुरा।

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