हस्तिनापुर कीे रंगभूमि में कौरव और पांडव राजकुमारों की शस्त्र कला में अर्जित कौशल का प्रदर्शन चल रहा था। राजकुमार भीम जहाँ अपने गदा कौशल से सबको विस्मित किये हुए थे, वहीँ राजकुमार दुर्योधन के गदा कौशल कीे प्रशंसक समस्त हस्तिनापुर की प्रजा हो गयी थी। विशेषतः राजकुमार अर्जुन की धनुर्विद्या के सभी कायल थे। अर्जुन के रणकौशल की एक बानगी भर देख किसी के मन में कोई संदेह न रहा कि कुंती पुत्र अर्जुन विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं। किंतु ये क्या? एक सामान्य सा युवक जिसके कपडे साधारण थे, किन्तु मुख पर दिवाकर का तेज था, जिसकी आँखें विनम्रता का भाव तो दिखलाती थी, परंतु उसके कवच और कुंडल इस बात का प्रमाण थे कि युद्ध में इसे हराना अत्यंत दुरूह होगा। कर्ण नाम का यह युवक अकेला खड़ा रंगभूमि में अर्जुन को ललकार रहा था। उसकी बस एक ही मांग थी कि अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित करने से पूर्व उसे एक बार अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन करने दिया जाए।
गुरु द्रोण और कृपाचार्य की अनुभवी आँखें यह परख चुकी थीं कि कर्ण कोई साधारण योद्धा नहीं बल्कि अर्जुन से भी प्रवीण धनुर्धर है। एक साधारण युवक से कुंतीपुत्र अर्जुन की हार उन्हें कतई स्वीकार्य ना थी। उन्होंने कर्ण को प्रदर्शन से रोकने के लिए एक युक्ति निकाली। उन्होंने कर्ण को पूछा कि युद्ध करने से पूर्व वो अपनी जाति बताये और यह प्रमाणित करे कि वह एक आर्य पुत्र क्षत्रिय है। कर्ण ने आग्रह किया कि उसकी जाति का रण कौशल से क्या लेना देना। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कौन है इस बात का फैसला धनुष बाण से होना चाहिए ना कि उसकी जाति, कुल, उपनाम से। कर्ण को सूतपुत्र कह रणकौशल के प्रदर्शन से भले ही रोक दिया गया किन्तु रंगभूमि में उपस्थित प्रत्येक हस्तिनापुर वासी यह जान गया कि कदाचित सूर्यपुत्र राधेय कर्ण पाण्डुपुत्र अर्जुन से बड़ा धनुर्धर है। कर्ण को सूतपुत्र कह पुकारने से उसकी धनुर्विद्या कम नहीं हुई बल्कि जनमानस में यह बात फ़ैली कि कर्ण को रोकने के लिये राजगुरुओं ने अनैतिक तरीकों का सहारा लिया।
इस कथा को वर्तमान राजनैतिक और सामजिक परिपेक्ष्य में देखें तो यह कथा अत्यंत ही प्रासंगिक है। बहुधा ऐसा देखा जाता है कि कोई न कोई सूतपुत्र आकर एक व्यवस्था को ललकारता है। कोई राधेय आकर कुछ ऐसे प्रश्न पूछता है जो सत्ता में बैठे लोगों को सहज प्रतीत नहीं होती। कोई कर्ण आ जाता है जिसके तर्क के बाण व्यवस्था के अहंकार और दम्भ की छाती में जा चुभते हैं।
और जब समाज, व्यवस्था उन असहज सवालों से बिफर पड़ता है तो कर्ण को रोकने को कोशिश की जाती है। उसके तर्क को सुने बिना उसे सूत पुत्र कह अपमानित किया जाता है। उसकी धनुर्विद्या नहीं उसकी जाति की चर्चा की जाती है ताकि व्यवस्था के अर्जुन की तथाकथित सर्वश्रेष्ठता बनी रहे।
अमेरिका के इसबार के चुनाव को ही लें, डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यवस्था पर कुछ असहज सवाल उठाये। वहां की जनता को भी लगा कि यह सवाल पूछे जाने चाहिए। लेकिन व्यवस्था ने क्या किया, उन सवालों के जवाब देने के बजाय ट्रम्प को अपमानित करना शुरू किया। उसके समर्थकों को निकृष्ट और घिनौने की उपाधि तक दे दी गयी। व्यवस्था ने हर वो कोशिश की जिससे ट्रम्प और उसके समर्थक अपमानित हों लेकिन उनके प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश नहीं की। शायद व्यवस्था के पास उनका कोई जवाब था भी नहीं। एक प्रेसवार्ता के दौरान एक छात्रा द्वारा पूछे गए एक सवाल से ममता बनर्जी इतनी असहज हो गयी कि उस छात्रा को माओवादी, नक्सली और विरोधी पार्टी का बता दिया। किन्तु उसके सवाल का उत्तर नहीं दिया। शायद उस प्रश्न का उत्तर उनके पास नहीं था, इसीलिए सवाल पूछने वाले की प्रामाणिकता पर ही सवाल उठा दिये गए।
आप तुष्टीकरण पर सवाल उठाओ तो हिन्दू धर्मांध कह दिए जाते हो। आप सरकार की नीतियों पर सवाल उठाओ तो राष्ट्रविरोधी कह दिए जाते हो। मुस्लिम हितों के मुद्दे उठाने वाले जिहादी कह दिए जाते हैं और आदिवासियों की बात करने वाले नक्सली।
अगर आप सवाल पूछ रहे हैं और आपको नाम दिए जा रहे हैं तो समझ लीजिए कि आप वह राधेय हैं और व्यवस्था के पास आपके प्रश्नों का जवाब नहीं है। अगर आप किसी के असहज सवालों का उत्तर न देकर उसे अपमानित कर रहे हैं तो आप वह व्यवस्था हैं जो एक कर्ण की चुनौती से घबरा गया है। आप निश्चिन्त रहे कि वह रश्मिरथी आपके तम के साम्राज्य पर भारी पड़ेगा।
हर कोई कभी कर्ण होता है, तो कभी अर्जुन और तो कभी व्यवस्था रुपी द्रोण। अगर आप कर्ण हैं तो अपना संघर्ष जारी रखें। अगर आप अर्जुन और द्रोण हैं तो जानलें कि इतिहास आपकी विजय को पराजय से भी निकृष्ट मानेगी।
यह भी हो सकता है कि आप न तो कर्ण हैं, ना अर्जुन और ना द्रोण। इसका अर्थ है कि आप रंगशाला में बैठी हस्तिनापुर की जनता हैं। आप अगर किसी कर्ण के साथ हुए अपमान को देख चुप हैं, तटस्थ हैं तो समझ लें कि कुरुक्षेत्र के अवश्यम्भावी युद्ध में आपका भी विनाश निकट है। जरूरत है कि आप कर्ण के सवालों से आहत न हों, उसे अपमानित न करें। उसका साथ दें, महाभारत का विनाशकारी युद्ध रोकने का यही एक उपाय है।
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