Wednesday, July 11, 2018

मुखिया मेरी बीवी को क्यों नही मना रहा

एक आदमी था। बड़ा ही सनकी और गुस्सैल। हमेशा बीवी को धमकियां देता और ताने मारता। चाय लाने में दो मिनट देर हुई नही की गालियॉ देना शुरू। तेरे लक्षण ठीक नहीं है, तेरा गांव के मुखिया से चक्कर है। एक दिन गुस्से में आकर उसने बीवी को थप्पड़ जड़ दिया। बीवी ने हड़ताल कर दी। माफी मांगो तभी घर का चूल्हा जलेगा। 2-3 दिन तो चला, फिर आदमी की अकल ठिकाने आयी। बीवी की हड़ताल खत्म करने के लिये गांव के मुखिया के यहां डेरा डाल दिया।
आने जाने वाले लोगों को कहता मुखिया मेरी बीवी को क्यों नही मना रहा, और अगर मेरा घर एक अलग गांव होता तो मैं उसका मुखिया होता और बीवी की हड़ताल खत्म करवा देता। दो चार दूर के पड़ोसी भी जमा हुए जिनका मुखिया से थोड़ा मनमुटाव था। कहने लगे रूठी बीवी को मनाना मुखिया का धर्म है, मुखिया अधर्मी हो अपने कर्त्तव्य से विमुख है।
हम चाहते हैं कि मुखिया इस भले आदमी की दो मांगे अभी मान ले। उसकी बीवी की हड़ताल अभी खत्म करवाये और उसके घर को अलग गांव घोषित करे। गांव वाले परेशान थे, मुखिया के दरवाज़े जाएँ तो तमाशबीनों का मेला लगा रहता। उन्होंने मन बना लिया कि अपनी ही बीवी को थप्पड़ मार कर यह सारा तमाशा करने वाले इस आदमी को गांव से जरूर निकाल फेकेंगे। बस वो अगले मौके का इंतजार कर रहे थे।

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