Wednesday, July 11, 2018

सत्ता और अखरोट



प्रकृति द्वारा प्रदत्त समस्त उपहारों में अखरोट एक अलग ही प्रकार फल है । अंग्रेजी की कहावत नो पेन नो गेन ( बिना दर्द के लाभ नहीं मिलता ) शायद अखरोट फल को खाने की कोशिश के मानव प्रयासों से उपजी है । बाहर काष्ठ का कठोर आवरण जिसे तोडना आसान नहीं है । बचपन में दीवाली के दौरान मिले उपहारों में मिले अखरोट को तोड़ने की जुगत लगाने के सबके अपने अनुभव हैं। दांत से दबाकर तोड़ने की कोशिश असफल होने पर ज़मीन पर रख कर मुक्का मारकर तोड़ने की कोशिश करना । यह भी असफल होने पर पत्थर मारकर अखरोट तोड़ने को कोशिश में खुद अपने उंगलियों में चोट लगाना और फिर माँ की डांट खाना किसी भी बच्चे की कहानी हो सकती है । समस्त चोट और असफलताओं के बावजूद अखरोट के प्रति आकर्षण भी सर्वविदित है |
पिछले दशक एक फिल्म आयी थी आइस ऐज। उस फिल्म में एक गिलहरी के हाथ एक अखरोटनुमा फल लग जाता है और पूरी फिल्म वह उस अखरोट को ढोती रहती है। उस अखरोट को बचाने और सुरक्षित रखने की गिलहरी की कोशिश पूरी फिल्म में जारी रहती है। पूरी फिल्म में गिलहरी अपने जान की परवाह किये बगैर उस अखरोट को बचाने का प्रयास करती रहती है। अखरोट को अपने पास बनाये रखने उसकी कोशिशें दर्शकों के लिए हँसी का स्रोत है। लेकिन उस गिलहरी के लिए पूरी कहानी में सिर्फ संघर्ष था और वह पूरे जतन अपने अखरोट की रक्षा में लगी रहती है। इतनी जतन से आस पास ही हो रही समस्त घटनाओं से गिलहरी को कोई मतलब नहीं चाहे दुनिया में प्रलय भी आ रहा हो गिलहरी को बस अपने अखरोट की पड़ी थी ।
फिल्म में अखरोट का प्रसंग एक हास्य का पुट डालने के लिए ही रखा गया है लेकिन यह भी सच है कि सबसे गंभीर और कठिन सन्देश देने के लिए हास्य से बेहतर माध्यम मिलना सरल नहीं है।
क्या गिलहरी और अखरोट की यह कहानी कोई और गंभीर सन्देश भी दे सकती है ? गिलहरी अखरोट के लिए सारे खतरे मोल लेती है , सारे दुश्मनो से उसे छुपाती और बचाती रहती है । बस अखरोट को खा नहीं पाती , अखरोट को खाने की कोशिश का अर्थ होगा उसकी सुरक्षा में कमी जिसका फायदा मौके की ताक में बैठी दूसरी गिलहरियां उठा सकती हैं । मानव और सत्ता का सम्बन्ध गिलहरी और अखरोट के सम्बन्ध से कुछ ज्यादा अलग नहीं दीखती । कदाचित सत्ता और संपत्ति उस अखरोट की भांति ही है और मानव जाति वो गिलहरी । मानव इतिहास भी एक तरह से गिलहरी और अखरोट की कहानी है।
हर्षवर्धन , पृथ्वी राज , कुतुबुद्दीन ऐबक, रज़िया सुल्तान, बाबर, अकबर, औरंगजेब, बहादुर शाह, लार्ड माउंट बेटन , जवाहरलाल, प्रियदर्शिनी इंदिरा और नरेंद्र मोदी। सारी मानो गिलहरियां हैं और दिल्ली है एक बड़ा सा मुंह चिढ़ाता अखरोट। वैसा का वैसा । अक्षुण्ण। मानो मन ही मन आने वाली गिलहरियों के बारे में सोच रहा हो और सोच रहा हो वह सारी तरकीबें जो आने आने वाली गिलहरियां अपनाएंगी। दिल्ली देखेगी उन सारी तरकीबों को मानो कोई पुरानी फिल्म का रीमेक देख रहा हो। पात्र नए कथानक पुराना।
आगरे का किला और अपना छोटा सा घर देखता हूं तो कदाचित मन में एक ही विचार कौंध उठता है। बड़ी गिलहरी बड़ा अखरोट। छोटी गिलहरी छोटा अखरोट। दोनों मामले में गिलहरी क्षणभंगुर और अखरोट शाश्वत... गिलहरियों की अगली पीढ़ी के लिए। फतेहपुर सीकरी में दीवान - ए -आम को देखने आये हुए लोगों की भीड़ किसी चीटियों का झुंड सा लगता है जो किसी बड़े से अखरोट हो देख अचंभित हो रहा हो।
अखरोट पाने वाला उसका आनंद नहीं ले सकता.. सिर्फ उसकी सुरक्षा में चिंतित रहता है । अगर अखरोट को भोगने का सोचा भी तो समझ लीजिये दूसरी गिलहरियाँ उससे वह अखरोट बस छीनने ही वाली हैं । अखरोट किसके पास कितने देर रहेगी यह गिलहरी पर निर्भर करता है । गिलहरी अगर औरंगज़ेब जैसी हुई जो अखरोट के लिए किसी को भी रास्ते से हटा सकती है तो शायद अखरोट उसके पास कुछ ज्यादा देर रुकेगी । जफ़र जैसी गिलहरी के पास अखरोट को किसी और को सौंपने के सिवा कोई चारा नहीं रहता ।
ऐसा नहीं है हर गिलहरी और अखरोट की कहानी का अंत एक ही हुआ है जिसमे गिलहरी का पूरा जीवन सिर्फ अखरोट को हथियाने और सहेज कर रखने में बीत गया हो। कुछ गिलहरियों के पैने दांत इस अखरोट के कठोर बाह्य आवरण को तोड़ने में सफल भी हुए हैं । जैसे महान अशोक और युवराज गौतम ने देख लिया कि इस सत्ता की अखरोट के अंदर क्या है। यह एक मात्र संयोग नहीं की अखरोट का फल का ढांचा मानव मस्तिष्क से मिलता जुलता है । सत्ता आपके मस्तिष्क को एक एक बाह्य कठोर आवरण में कैद कर लेता है । चंड अशोक से धम्म अशोक का परिवर्तन शायद सत्ता का रहस्य पता चलना ही है । ऐसा ही कुछ परिवर्तन एक देवव्रत को बुद्ध बना देता है।
ऐसा अक्सर होता है कि आप अपनी ही आवाज़ की रिकॉर्डिंग सुन उसे नहीं पहचान पाते और कहते हैं कि यह मेरी आवाज़ नहीं हो सकती । आइस एज फिल्म में गिलहरी की बेवकूफियों और जिद पर हँस रहा मनुष्य शायद अपनी ही कहानी नहीं पहचान उस पर हँस रहा था ।

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