Sunday, December 10, 2023

JNV alumni meet 2023



As we strolled down the memory lane at our Katihar Navodaya Schools for this grand alumni meet, it was like maneuvering through a maze of nostalgia – dodging the ghosts of bad haircuts we all received by the government barberlr, sidestepping fashion faux pas, and doing our best to erase those cringe-worthy teenage dramas. But hey, we were all in this together, so buckle up for a rollercoaster ride of hilarity!

Strolling through those revered halls felt like stepping into a time warp – a place where hairstyles were questionable, and fashion sense was, well, a bit sketchy. If those walls could talk, they'd probably say, "Remember that time you thought shirts with crease and full pants with plated creases were the epitome of cool?" Yeah, those were the days. The multi purpose hall was really multipurpose but on Sunday in served only one purpose. Running a Bollywood movie of VCR where 400 students watched a 14 inch color television. 

Reconnecting with old buddies was like attending a comedy show where the punchlines were our shared teenage antics. The belly laughs and eye rolls were in abundant supply as we exchanged stories of epic fails, failed live stories and unknown crushes... Talk about a blast from the past!

Entering the classrooms felt like gate-crashing a reunion of dusty textbooks and slightly out-of-date chalkboards. Our teachers, the unsung heroes of our academic escapades, must have been sipping chai somewhere, chuckling at the thought of molding our young minds. Big shoutout to you, dear educators, for enduring the rollercoaster that was us! Seeing our teachers healthy and happy filled our hearts with joy seeing them enjoying their retirement life peacefully.

And let's not forget the hostel rooms – those cramped spaces that bore witness to everything from impromptu dance-offs to failed attempts at making the perfect cup of chai. The walls, if they could talk, would probably say, I am still here, it's you who left.

In that reunion, we weren't just counting the years but also the number of times we collectively embarrassed ourselves. The laugh lines may have been more pronounced, and the metabolism slower, but our ability to find humor in the shared craziness of our youth remained evergreen.

So, here's to 25 years of surviving bad hair days, questionable fashion choices, and desi-style teenage adventures. As we attacked the food plates once again after 25 years, we raised a toast to the hilarity that was our shared past and the comic gold that awaited in the future. ☕ #DesiReunionDelight #Nostalgia #Navodayans

Monday, November 20, 2023

पर्व घर और घाट का


यह पर्व है घर का
यह पर्व है घाट का।

है उगते सूरज का
और डूबते सूरज का।
पर्व है आस्था का
पर्व है जज़्बात का,
यह पर्व है घर का
यह पर्व है घाट का।

शुचिता से जुड़ी हर बात का
ठेकुआ और कसार की सौगात का
ना किसी वर्ग और ना किसी जात का
ना उत्पात का और ना औकात का
यह पर्व है घर का
यह पर्व है घाट का।


है जितना बिहार का
उतना ही गुजरात का
कभी महसूस करो तो लगे
यह पर्व है सारी कायनात का।
यह पर्व है घर का 
यह पर्व का घाट का।





Tuesday, November 14, 2023

खेल और युद्ध

युद्ध, मानव इतिहास का एक स्थाई और सबसे मुखर पहलू है, जिसने सभ्यता की कहानी पर एक अमिट छाप छोड़ी है। मानव इतिहास वास्तव में युद्धों का ही इतिहास है। हालाँकि, जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ा, एक उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ: खेल युद्ध की मूल प्रवृत्ति के विकल्प के रूप में उभरे। यह विकास महज़ एक ऐतिहासिक जिज्ञासा नहीं है बल्कि मानवता की अपनी आक्रामक प्रवृत्तियों को पुनर्निर्देशित करने की क्षमता का एक गहरा प्रमाण है। खेल, इस पुनर्निर्देशन की अभिव्यक्ति, अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली साधन बन गया है, जो प्रतिस्पर्धा, कौशल और सौहार्द की भावना का प्रतीक है।

एक महत्वपूर्ण उदाहरण फ़ुटबॉल की जड़ों में छिपा है, एक ऐसा खेल जिसकी वंशावली प्राचीन युद्ध अनुष्ठानों से जुड़ी है। कहा जाता है पराजित सेना के कटे नरमुंडों को लात मारकर खेलने और विजय का उत्सव मनाने से फुटबाल खेल का प्रदूर्भव हुआ। फुटबाल का खेल अपने रणनीतिक तत्वों, टीम वर्क और क्षेत्रीय विजय के साथ, युद्धक्षेत्र युद्धाभ्यास की गतिशीलता को प्रतिबिंबित करता है। फ़ुटबॉल का मूल सार एक सैन्य अभियान की संरचित अराजकता की प्रतिध्वनि करता हुआ प्रतीत होता है, हालांकि वास्तविक युद्ध के मुकाबले बहने वाले रक्त की जगह स्वेद कणों ने ले ली है। या युद्ध का ही एक रूप तो है, भले ही कम गंभीर और अधिक मनोरंजक रूप में। जैसे-जैसे खिलाड़ी मैदान पर जीत के लिए प्रयास करते हैं, वे उन संघर्षों के प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण में संलग्न होते हैं, जिन्होंने मानव इतिहास को आकार दिया है।

क्रिकेट, एक अन्य वैश्विक खेल, अपने ऐतिहासिक संदर्भ की छाप भी रखता है। मध्ययुगीन इंग्लैंड में उत्पन्न, एक देहाती मनोरंजन से एक परिष्कृत खेल तक क्रिकेट का विकास व्यापक सामाजिक परिवर्तनों को दर्शाता है। जटिल नियम, टीम की गतिशीलता और खेल का उतार-चढ़ाव सैन्य रणनीतियों की जटिलता के समानांतर हैं। युद्ध की तरह क्रिकेट भी सावधानीपूर्वक योजना, अनुकूलनशीलता और अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता की मांग करता है। यह एक ऐसा मंच बन गया है जहां राष्ट्र सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया को मूर्त रूप देने के लिए केवल एथलेटिक कौशल से आगे बढ़कर प्रतिस्पर्धा करते हैं।

मुक्केबाजी, विशेष रूप से हेवीवेट मैच, युद्ध से खेल में संक्रमण की एक ज्वलंत याद दिलाते हैं। प्राचीन यूनानी ग्लैडीएटर खेलों में समाहित हाथ से हाथ की लड़ाई की मूल प्रकृति, मुक्केबाजी रिंगों में आधुनिक अभिव्यक्ति पाती है। पाशविक बल, व्यक्तिगत कौशल और मुक्केबाजी की गहन प्रतियोगिता वाली आमने-सामने की प्रकृति प्राचीन रोमन काल की ग्लैडिएटर वाली लड़ाई की भावना पैदा करती है। फिर भी, खेल कौशल और नियमों के संदर्भ में, मुक्केबाजी आक्रामकता को एक अनुशासित कला में बदल देती है, जिससे पता चलता है कि मानवता ने अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति को नियंत्रित और विनियमित करना कैसे सीख लिया है।

समकालीन परिदृश्य में, ये खेल न केवल मनोरंजन करते हैं बल्कि पहचान और समुदाय की भावना को भी बढ़ावा देते हैं। वे राष्ट्रों को मैत्रीपूर्ण प्रतिस्पर्धा में शामिल होने का अवसर प्रदान करते हैं, युद्धों की विनाशकारी प्रकृति को खेल भावना की रचनात्मक भावना से प्रतिस्थापित करते हैं। जैसे-जैसे स्टेडियम वैश्विक एकता के लिए मैदान बन जाते हैं, भीड़ की दहाड़ विविध मानवता की सामूहिक धड़कन को प्रतिध्वनित करती है।

निष्कर्षतः, युद्ध से खेल तक का प्रक्षेप पथ मानव अनुकूलन क्षमता और लचीलेपन का प्रमाण है। फुटबॉल, क्रिकेट और मुक्केबाजी इस विकास के जीवित अवतार के रूप में खड़े हैं, जो ऐतिहासिक संघर्षों से प्रेरणा लेते हुए प्रतिस्पर्धा और विजय के लिए सहज मानवीय व्यवहार के लिए अधिक रचनात्मक आउटलेट प्रदान करते हैं। जैसे ही हम मैदान पर जीत और हार का जश्न मनाते हैं, हम संघर्ष को कौशल, रणनीति और साझा जुनून के तमाशे में बदलने की मानवता की क्षमता की जीत का भी जश्न मनाते हैं। 
खेल भले ही युद्ध का आधुनिक रक्तरहित रूप हो, लेकिन खेल और युद्ध में मूल अंतर यही है कि जहां युद्ध में इश्क की तरह सब कुछ जायज मान लिया जाता है, वहीं खेल में सिर्फ नीतिपरक चीज़ें ही जायज मानी जाती है। संभवतः लिखित नियमों और अलिखित परंपराओं का सम्मान जिसे संयुक्त रूप से खेल भावना कहा जाता है, युद्ध जैसी विध्वंसकारी मानव गतिविधि को भी एक मनोरंजक खेल में बदल देता है।

Thursday, November 9, 2023

कुदरत का निजाम

कुदरत का निजाम कुदरत का निजाम
बाय बाय पाकिस्तान।

सीआईडी में लाश, सर पर उसके खून का निशान
80 का स्ट्राइक रेट, किंग बाबर सबसे महान
बाय बाय पाकिस्तान।
कुदरत का निजाम, कुदरत का निजाम।

गांव में खेत, खेत में मचान
8 की इकोनॉमी, शाहीन मेरा दिल शाहीन मेरी जान,
बाय बाय पाकिस्तान।
कुदरत का निजाम, कुदरत का निजाम।

हांडी में बिरयानी, बिरयानी पर है ध्यान
हर एक्टर का बाप है हमारा रिजवान।
बाय बाय पाकिस्तान।
कुदरत का निजाम, कुदरत का निजाम।
टेबल पर किताब, किताब में है ज्ञान
कराची में टूटा टीवी और गुस्से में है बलूचिस्तान
बाय बाय पाकिस्तान।
कुदरत का निजाम, कुदरत का निजाम।

स्टेडियम में डीजे, डीजे पर नाचे इरफान
आगे से मारे हिंदुस्तान , पीछे से मारे अफगानिस्तान
बाय बाय पाकिस्तान
कुदरत का निजाम कुदरत का निजाम।



















Sunday, November 5, 2023

विश्व क्रिकेट की दशा और दिशा पर मंथन

90 के दशक में जब हमने क्रिकेट देखना शुरू किया तो पाकिस्तान हम पर हावी हुआ करता था। वकार वसीम आमिर सोहेल सईद अनवर एजाज अहमद यूसुफ योहाना और इंजमाम उल हक के नाम भारतीय प्रशंसकों के दिल में खौफ का पर्याय हुआ करते थे। अरविंद डिसिल्वा रोमेश कालू विठारना चमिंडा वास मुरलीधरन और सनथ जयसूर्या के चेहरे रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेते थे। लारा चंद्रपौल कार्ल हूपर एंब्रोस वाल्श जैसे नाम भारतीयों के जीतने का ख्वाब शायद ही कभी सच होने देते थे। ऑस्ट्रेलिया की क्या बात करें, स्टीव वाग मार्क वाग मैक्ग्रा ली गिलेस्पी बेवन और वार्न तो हर बार भारतीय फैंस का दिल तोड़ जाते थे। यह तो बड़ी टीमें हुई, जिम्बाब्वे के ओलंगा एंडी फ्लावर और हीथ स्ट्रीक जैसे खिलाड़ी भारतीयों को कड़ी टक्कर देकर पराजित करने का माद्दा रखते थे। दक्षिण अफ्रीका की बात करें तो विश्व में न किसी भी टीम के पास डोनाल्ड की तरह तेज गेंदबाज था और न कालिस की तरह कोई हरफनमौला, जोंटी रोड्स की तरह न कोई फील्डर था और न हैंसी क्रोन्ये सरीखा कप्तान।

हालिया वर्षों में या तो विश्व क्रिकेट का स्तर निरंतर गिरा है या भारतीय टीम का स्तर सामान्य से अधिक उठ चुका है। जहां श्रीलंका जिम्बाब्वे और बांग्लादेश की टीम भारत के सामने किसी क्लब स्तर की टीम दिखती है वहीं वेस्ट इंडीज क्रिकेट अपने इतिहास का एक बदसूरत कंकाल से ज्यादा कुछ नहीं दिखता। पाकिस्तान में भी वैसे खिलाड़ी नहीं बचे जो शारजाह और चेन्नई वाली जीतों को दोहरा सकें तो इंग्लैंड की टीम भी हतोत्साहित थके लड़ाकों का एक चुका हुआ झुंड मात्र प्रतीत होता है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अभी भी एक सशक्त टीम हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया अपने 90 और 2000 वाले दशक वाली टीम की एक धूमिल परछाई से ज्यादा कुछ नहीं है।

लगातार मिल रही एकतरफा जीतों और दूसरे टीम का निरंतर गिरता प्रदर्शन भले भारतीय फैंस के लिए आनंद दायक हो, लेकिन विश्व क्रिकेट के लिए यह सुखद संदेश कतई भी नहीं है। क्रिकेट वैसे भी गिनती से 10 देशों में खेला जाता है और वहां भी अगर साथ टीमें अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हों, तो क्रिकेट का भविष्य कोई बहुत उज्जवल प्रतीत नहीं होता।
क्रिकेट की नियामक संस्थाओं खेलने वाले देश के बोर्डों और खिलाड़ियों को मिल बैठ कर एक साझी रणनीति बनानी होगी जिससे क्रिकेट अन्य देशों में भी फैले और उसकी लोकप्रियता में इजाफा हो। एशियाड खेलों में नेपाल का बेहतरीन प्रदर्शन इसका गवाह है कि छोटे छोटे देशों में भी एक से एक क्रिकेटिंग प्रतिभा मौजूद है। अगर अफगानिस्तान जैसे समस्याग्रस्त देश से मौजूदा टीम जैसी एक जुनूनी टीम आ सकती है तो कोई कारण नहीं है कि सही दिशा देने पर आने वाले विश्वकप में 10 की जगह 32 टीमें हिस्सा ना लें। सभी क्रिकेट प्रशंसकों और सभी क्रिकेट के शुभचिंतकों को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।

Saturday, October 28, 2023

घबराना नहीं है

सबसे पहले जी हमने घबराना नहीं है। मुश्किलात हैं हमारे लड़कों के साथ , इसलिए हमें बस कुछ तब्दीलियां करनी है। सबसे पहले तो टीम के खानसामे को बदलना है जी। केवल कार्बोहाइड्रेट खिलाता है हमारे बैट्समैन को । इस बंदे को प्रोटीन वाला खाना बनाना आंदा ही नहीं। इसी खानसामे की वजह से हमारे बंदे छक्के नहीं मार पा रहे। यही खानसामा था जिसके हाथ की निहारियां पा पा के हमारा सरफराज विकेट के पीछे जम्हाइयां लिया फिरता था। जो सेंचुरी हमारे किंग बॉबी नू लगानी थी, वो सेंचुरी हारिश रऊफ लगा दे रहा है बॉलिंग में। ऐसे वाहियात खानसामे के रहते 92 वाली परफार्मेस कैसे हो सकती है जी।
दूसरा बदलना है आईसीसी के वाहिद अफसरों को। अजी हमारे माकूल ना पिच दे रहे हैं और ना हमारे माकूल तमाशाई। नामाकूल पिच पर हमारी नंबर वन टीम खेल भी ले, लेकिन नामाकूल टीम के खिलाफ कैसे खेलें। जब हमारी सारी प्रैक्टिस जिम्बाब्वे के खिलाफ थी और आपने जिम्बाब्वे को बुलाया ही नहीं खेलने के लिए। यह तो सरासर हमारे जिमबाबर भाई की odi रैंकिंग छीनने की साजिश भर है।

इसके बाद जरूरी है बदलना हमारे टीम के लास्ट ओवर फेंकने वाले को। नवाज कितने आखिरी ओवर फेंकेगा जी। आखिर फिनिशर का रोल वो अकेला कब तक निभाए। धोनी हो या माइकल बेवन, नवाज से बेहतर फिनिशर पाकिस्तानी क्रिकेट नहीं बल्कि पूरी दुनिया की क्रिकेट की तारीख में मिलना मुश्किल है जी। आखिर हमारी क्रिकेट टीम एक फैमिली है, एक चाचा हैं, एक इंजी भाई के भतीजे हैं, एक दामाद हैं जिनको रिवर्स स्विंग तभी मिलती है जब सामने वाली टीम तीन सौ रन मार के गेंद का हुलिया बिगाड़ दे। कप्तान बॉबी बादशाह हमारे शाहीन को पहले ही बॉलिंग पर ले आता है तो बेचारे शाहीन की क्या गलती। हारिश और शादाब अपना कोटा पूरा कर लें, शाहीन से पहले। बस मिलने लगेगी शाहीन को रिवर्स स्विंग। हारिश तो हमारा हीरो है जी, 150 पर बॉल डालता है, और दूसरों के 300 करवाता है।

लास्ट में बस एक म्यूजिक थेरेपिस्ट चाहिए। अफगान जलेबी वाला गाना सुन के टीम के कई लड़कों को घबराहट के दौरे पड़ने लगे हैं। दिल दिल पाकिस्तान सुना के जैसे तैसे इनको सम्हाला है जी। म्यूजिक से याद आया, हमारे पीसीबी चीफ की कुर्सी के।लिए जो म्यूजिकल चेयर वाला गेम चल रहा है, उसको भी थोड़ा बंद करना पड़ेगा जी। लोग हमारी क्रिकेट से ज्यादा पीसीबी वाली गेम ज्यादा देखते हैं। बाकी तो बॉयज ऑलवेज प्लेड वेल। एक और मैच हैदराबाद में रखवा दो जी। हैदराबाद की बिरयानी और पाया दा शोरबा एक और बार जी भर के खाना है, कराची की फ्लाइट पकड़ने से पहले। 

Wednesday, October 25, 2023

टिक टिक करती रुकी घड़ियां

दीवाल घड़ी अचानक से खराब होकर नहीं रुकती। रुकने से पहले वो कुछ दिन तक टिक टिक करती रहती है। घड़ी टिक टिक करती है , घड़ी की सुइयां हिलती हैं पर आगे नहीं बढ़ती। बस घड़ी एक जगह अटक कर टिक टिक करती रहती है। इंसान भी अचानक से नहीं रुकते, रुकने से पहले टिक टिक करते रहते हैं।

अपने आस पास देखिए, बहुत सारी ऐसी घड़ियां दिख जाएंगी। इनसे बात करिए तो उनका टिक टिक करना भी सुन लेंगे। उनसे पूछिए कि आजकल गाने कौन से सुन रहे हैं, तो वो बताएंगे कि कुमार शानू और अलका याग्निक के बाद उनको कोई पसंद ही नहीं आया। क्रिकेट के बारे में पूछिए तो आपको पता चलेगा कि भाई साब की सुई अब तक जावेद मियांदाद और इमरान खान पर अटकी हुई है। फिल्म में भाई साब अब भी साजन और सनम बेवफा की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहते हैं। पूछिए कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताइए तो भाई साब अपने दादा जी की जमींदारी के किस्से बांचने लग जायेंगे । समझ लीजिए, कि भाई साब अटकी हुई घड़ी हैं , बस टिक टिक कर रहे है, आगे नहीं बढ़ रहे।

बस टिक टिक करना और आगे ना बढ़ना, रुकने से पहले वाला पायदान है। ऐसे टिक टिक वाली घड़ियां हमेशा गलत समय बताती हैं, हालांकि वो घड़ियां खुद गलत रहती हैं । ऐसी टिक टिक करने वाले घड़ियां जो समय के साथ आगे नहीं बढ़ती, अपने आप को बदल नहीं पाती, अक्सर बदल दी जाती हैं। 

बीच बीच में खुद को भी देखिए कि कहीं आप भी पीछे तो अटके नहीं हुए हैं। या तो अपनी बैटरी बदलिए, या खुद में चाबी भरिए, या अपनी स्प्रिंग बदलिए, और समय के साथ आगे बढिए । नई चीज़ें सीखिए, नए शौक पालिए, नई आदतें डालिए, किसी नई जगह घूम आइए, कोई नई किताब पढ़ डालिए, नए दोस्त बनाइए वरना किसी कबाड़ी की दुकान का एक अंधेरा कोना आपका इंतजार कर रहा है। 

Saturday, October 21, 2023

सर्व सिद्धि दात्री दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा तो सबके लिए है और दुर्गा पूजा में सबके लिए कुछ न कुछ है। दुर्गा पूजा उनके लिए है जो सारा बाजार खंगाल कर अपने लिए नए नए कपड़े खरीदते हैं और रोज रोज नए वस्त्र धारण करते हैं। और दुर्गा पूजा उनके लिए भी है जो एक अधोवस्त्र पहनकर अपनी छाती पर कलश स्थापना कर नौ दिन का कठिन तप करते हैं। मां का आर्शीवाद उनके लिए भी है जो प्रत्येक दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और उनके लिए भी है जो मां को बिदाई देने के समय डीजे की तेज धुन पर बस पूरे रास्ते नाचते हैं। शारदीय उत्सव जितना फलाहार पर रहने वालों का है उतना ही प्रत्येक दिन नए नए व्यंजन खाने के लिए रेस्टोरेंट्स जाने वालों का है। नवरात्रि पर उनको भी उतनी ही प्रसन्नता मिलती है जो शहर में स्थापित हर प्रतिमा का दर्शन कर लेना चाहते हैं और उनका भी जिनका झुकाव केवल पंडाल की जगमग रोशनी और कलात्मक सौंदर्य से है। यहां तक कि मां दुर्गा का आशीर्वाद तो उनके लिए भी है जिन्हे न पंडाल देखना और ना दुर्गा प्रतिमा, उन्हें तो बस मेले में लगे झूले, मौत का कुंआ और पापड़ी चाट के ठेले पर भीड़ लगानी है।

दुर्गा पूजा मूर्ति बनाने वाले कुम्हार के लिए है तो नवरात्रि का पाठ करने वाले ब्राह्मण के लिए भी। दुर्गा पूजा मेले में मिठाई की दुकान लगाने वाले हलवाई की है और सजे धजे बाजार में कपड़े की दुकान पर बैठे बनिए की भी है। इस पर्व में पान बेचने वाला पनवाड़ी भी उतना ही शामिल है जितना ढाक की ताल देने वाला ढाक वाला। यह दोनो हाथों में धूपची लेकर नृत्य करते पुरुषों का भी है और सिंदुरखेला करती महिलाओं का भी। यह नवमी को पूजी जाने वाली शक्ति स्वरूपा बच्चियों के लिए भी है और उनके साथ पंगत में बैठ कर खाने वाले उनके छोटे बालक भाइयों के लिए भी है। दुर्गा पूजा नारीवाद का उत्सव है और जननी का महोत्सव है।

यह मां की प्रतिमा को साष्टांग करते भक्तों का भी है और मां की प्रतिमा के साथ सेल्फी लेते gen Z की पीढ़ी का भी है। कोलकाता भी गलियों में गूंजते शंखध्वनि की आवाज के बीच भी दुर्गा पूजा है और न्यू जर्सी में बंगाली एसोसिशन द्वारा सात समंदर पार भी पूजोर आनंद भरपूर है। 

साल भर नौकरी की चक्की में पिसने के बाद परिवार के साथ एक सप्ताह भर भक्ति, उल्लास के बीच गुनगुनाती ठंड के मौसम में समय व्यतीत करना , अगर यह मां का आशीर्वाद नहीं है तो और क्या है। शारदीय पर्व सबका है, सर्व समावेशी है, सर्व रस से सिक्त है और मां के नाम की तरह सर्व सिद्धिदात्री है।

मां आप सबका कल्याण करे। दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं।।

Thursday, October 19, 2023

Enough of Yo Mama Jokes !!!



Ladies and gentlemen, let's embark on a cosmic comedy journey to explore why our planet Earth often suffers from an inferiority complex. I mean, come on, Earth! Why so glum when you've got so much going for you?

First of all, have you ever noticed how aliens get all the credit in science fiction? They swoop in with their advanced technology, sleek spaceships, and a penchant for mysterious, interstellar dance-offs. Meanwhile, we Earthlings are left feeling a bit, well, behind the times. It's like we're showing up to a cosmic party in a horse and buggy while they're sporting light-speed sneakers.

But here's the kicker: these aliens don't even exist! Earth is the real deal, baby. Sure, we haven't discovered any extraterrestrial neighbors yet, but we've got it all: lush forests, shimmering oceans, and the undeniable charm of the raccoon digging through your trash at 2 AM.

And speaking of charming, let's dive into the realm of mythological scriptures. Our ancestors had quite the imagination when they decided that heaven was located somewhere above our planet, high up in the clouds. I mean, can you blame them? Clouds are fluffy and white – quite heavenly, one might say. But did anyone ever wonder how we were supposed to get up there? Stairway to heaven, anyone? I bet even escalators in the clouds would have us all huffing and puffing by the time we reached the pearly gates.

Our cosmic complex also sneaks into our everyday language. We describe extraordinary things as "out of this world." But really, isn't everything we know right here on Earth? Are you trying to tell me that chocolate lava cake with a scoop of vanilla ice cream is less mind-blowing than a comet whizzing by? I don't think so! I'd choose that cake over a comet any day.
Now, let's get serious for a moment – well, as serious as this comedy can get. The truth is, Mother Earth is an absolute gem. Just look around! From the jaw-dropping landscapes to the diverse wildlife to the delicious food (chocolate lava cake included), we've got it all. And here's the kicker: scientific discoveries suggest that we might be living on one of the rarest planets with a habitable environment. So, take that, aliens!

And if anyone ever praises "other planets" over our Earth, it's like the cosmic version of a "Yo Mama" joke. You know the ones where you say, "Yo Mama's so awesome that other planets wish they were Earth!" It's a reminder that we don't need to look to the stars for the extraordinary – it's right here on our home planet.

In conclusion, Earth, you don't need to feel inferior to anyone or anything. You've got charm, beauty, and chocolate cake. So, let's celebrate our lovely blue planet and remember that in the grand cosmic comedy, Earth is the real headliner.

Tuesday, October 17, 2023

Nostalgia : It's not for everyone

Privilege and Perspective

Nostalgia, that wistful longing for a bygone era, often evokes feelings of warmth and fondness. Yet, it is important to recognize that nostalgia is not universal and can sometimes be a signal of privilege. This essay delves into the notion that the ability to feel nostalgia is often linked to a privileged past, drawing examples from both Indian and world history. Oppressed individuals, such as Black people who endured slavery or India's so-called untouchables, rarely experience nostalgia due to the horrors they endured. The essay also examines the poignant cases of children rescued from bonded labor and young girls freed from the shackles of flesh trade, demonstrating how their harrowing pasts preclude nostalgia. It is crucial to reflect on our own privilege when we experience nostalgia, as not everyone is fortunate enough to share in these sentiments.

The Privilege of Nostalgia

Nostalgia is a reflection of happier times, often associated with one's past. However, it is essential to acknowledge that not everyone's past is worth reminiscing about. To illustrate this, let's consider the history of slavery, both in the United States and across the world.

In the context of the United States, Black people endured centuries of brutal enslavement. Their history is fraught with unimaginable suffering, exploitation, and systemic oppression. It is implausible that any Black person would be nostalgic about this dark chapter in their history. The memories of slavery, separated families, and the relentless pursuit of basic human rights overshadow any glimmer of nostalgia. Instead, their history calls for a remembrance of resilience and the pursuit of justice.

Similarly, India has its own history of oppression in the form of the caste system, particularly affecting the so-called untouchables or Dalits. For generations, they faced discrimination, segregation, and violence. Their past is scarred by indignity and despair. Thus, the notion of nostalgia for such a community is nearly inconceivable.

The Inability to be Nostalgic: A Glimpse into Harrowing Realities

Taking the discussion further, let's consider the experiences of children who have been rescued from bonded labor and underage girls who have been freed from the clutches of flesh trade. These young souls have lived through traumatic, inhumane conditions, and their pasts are etched with fear and suffering. Nostalgia is a luxury they cannot afford, as their focus is on healing, recovery, and rebuilding their lives.

Children rescued from bonded labor often have stories of toiling in hazardous conditions, devoid of a childhood. Their memories are filled with exploitation, deprivation, and the absence of the opportunities that many take for granted. Similarly, young girls who escape the horrors of flesh trade have suffered physical and emotional trauma. Their past is a testament to the resilience of the human spirit, as they strive to reclaim their lives.

Reflecting on Our Privilege

In experiencing nostalgia, it is essential to pause and reflect on our privilege. We must acknowledge that our ability to reminisce about a happier past is not universal. It is rooted in the circumstances of our lives, which, in many cases, have been privileged and free from systemic oppression and violence.

Conclusion

Nostalgia is a powerful emotion, but it is not experienced by everyone in the same way. The ability to feel nostalgia often indicates a privileged past, while oppressed individuals and survivors of harrowing experiences are unlikely to share these sentiments. The cases of Black people during slavery, India's untouchables, children rescued from bonded labor, and girls freed from flesh trade highlight the profound impact of oppression on one's ability to feel nostalgia. We must recognize our privilege when we experience nostalgia and use it as an opportunity to support those whose pasts do not allow for such sentiments. Nostalgia should be a call to action, a reminder that we must work towards a more equitable and just future for all.

Monday, October 16, 2023

गहरे घाव

गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।
वक्त की पपड़ी के नीचे एक बीज की तरह
बस छुपा करते हैं।

जिनसे फूट पड़ती हैं दर्द की कोंपलें 
जब संवेदना और ग्लानि की नमी पाया करते हैं।

बह निकलती है वेदना की पीव 
जो जड़ें बन कर और गहरी जमा करते हैं।
इंतजार करते हैं गहरे घाव
और वक्त बेवक्त फिर से हरे हुआ करते हैं।

छुपते हैं दो चार दिन वो मुस्कुराते हुए चेहरों के पीछे
लेकिन गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।
गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।






Saturday, October 14, 2023

For Mickey Arthur..

Dear Mickey Arthur,

Your recent embrace of " being Brutally honest" invites a deeper exploration of history. Let me offer a glimpse into why you may not have heard "Dil Dil Pakistan" chants in the crowd during the recent India-Pakistan match as much as you may have expected.

In the annals of the India-Pakistan rivalry, we find a significant incident from the 2nd ODI at Jinnah Stadium, Sialkot, on October 31, 1984. Pakistan won the toss and chose to bowl, but with the onset of winter and the absence of floodlights, the match was limited to forty overs per inning, to be played during daylight hours.

As India was at bat, Mr. Ismile Quraishi, the Deputy Commissioner of Sialkot overseeing the event, received a phone call bearing grave news – the assassination of India's Prime Minister, Smt. Indira Gandhi. He was ordered to halt the match by Pakistan's President, Mr. Zia ul Haq. Yet, Mr Quraishi hesitated, fearing the backlash from 25,000 Pakistani spectators who would feel shortchanged by an abandoned game.
Mr. Quraishi courageously entered the Indian dressing room to break the devastating news. The Indian team, except for Dilip Vengsarkar and Ravi Shastri, who were on the field, were stunned. Mr. Quraishi chose to wait until the end of India's inning to avoid upsetting the Pakistani crowd since they won't get the " Paisa Vasool".

With India's innings ending at 210/3 after 40 overs, Vengsarkar and Shastri were informed of the tragic events, and the match's abandonment was declared. Shocked and in tears, the Indian team began to pack their bags. At that moment, Quraishi revealed the assassination of Smt. Indira Gandhi and the match's abandonment. 
Astonishingly, the crowd at Sialkot Stadium applauded and cheered for nearly 20 minutes. Yes, you read it correctly – the crowd cheered the death of the Indian Prime Minister while the visiting team members were left in shock and tears.

This account is just one of many that contribute to the absence of "Dil Dil Pakistan" chants in Ahmedabad. The story I've recounted is but one of countless narratives. In conclusion, I'd like to borrow and adapt a famous line from the movie "A Few Good Men" to emphasize that perhaps we should be cautious when invoking the concept of brutal honesty. " You can't handle the brutal honesty". As for the notion of karma, it's worth remembering the saying about it being a bitch.

I wish you the best for the rest of your campaign and suggest you wait until Zimbabwe team's next tour to Pakistan, where you'll hear "Dil Dil Pakistan" resounding in full force.

Honestly yours..


Friday, October 13, 2023

दुख निवारण का जंतर

मैं आपको एक जंतर देता हूं। जब भी किसी समस्या में घिरे हों , परेशान हों, तो इस जंतर का प्रयोग करके देखें। जब भी अपनी समस्याओं से इतने परेशान हों कि कोई उपाय नहीं दिख रहा हो तो और एक अत्यंत सरल समाधान है। आप अपनी समस्या की जगह
दूसरों की समस्या के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए।

जैसे मान लीजिए आप खुद शुगर बीपी मोटापे से परेशान हैं, ना सुबह टहलने का कार्यक्रम शुरू हो पा रहा है और न रात में पुलाव और मटन के कंठ तक भर कर भोजन करने का कार्यक्रम रुक पा रहा है। अब क्या करें, आसान है.. आप अपना ध्यान इस चीज पर केंद्रित करिए कि शुभमन गिल का डेंगू कब ठीक होगा, ऋषभ पंत अगला आईपीएल खेलेगा कि नहीं, करीना कपूर का स्वास्थ्य उसके तीसरे बच्चे के लिए उपयुक्त है या नहीं। फिर अपने आप को यह कह कर मना लें कि अब मेरी औकात तो है नहीं कि मोदी जी की तरह बीस हजार रुपए किलो वाले मशरूम खा सकूं, या विराट कोहली की तरह ब्लैक वाटर की बॉटल खरीद सकूं, फिर तो मेरा मोटा होना और थोड़ा बहुत शुगर ऊपर नीचे होना बिलकुल जायज है।
मान लीजिए कि आपकी बगल वाली पड़ोसन से तो बनती है लेकिन पड़ोसी से नहीं बनती। पड़ोसी रोज आपके घर के आगे अपना कचरा डाल जाता है और आपका अखबार उठा ले जाता है। रात को जब आप सोने को जाते हैं तो पड़ोसी को राग गर्धब का रियाज करना होता है और सुबह जब ऑफिस जल्दी निकलना हो तो आपकी कार के आगे उसके कार खड़ी रहती है। कुछ कहा भी नहीं जाता क्योंकि पड़ोसी सोसाइटी का अध्यक्ष है। ऐसे में आप इस समस्या को छोड़ कर गाजा पट्टी और अल अक्सा मस्जिद के बारे में सोचना शुरू कर दें। पड़ोसी के बारे में सोचने के बदले हमास और मोसाद के बारे में सोचें। सोचें कि मेरा तो सिर्फ अखबार जा रहा है, वहां किसी की जमीन जा रही है। मेरे यहां तो दुश्मन सिर्फ कचरा डाल रहा है , उधर तो रॉकेट और रॉकेट डाले जा रहे हैं। हमास और मोसाद से जी भर जाए तो चीन और ताइवान के बारे में सोचना शुरू कर दें। बस हो गई आपकी समस्या छू मंतर।


गर्लफ्रेंड छोड़ के चली गई हो तो ऋतिक रोशन के बारे में सोचना शुरू करें। उसको तो बीवी छोड़ के चली गई। शादी नहीं हो रही है तो सलमान खान और राहुल गांधी के बारे में सोचें। शादी करके बीवी से परेशान हों तो शिखर धवन के बारे में सोच सकते हैं। 

हर परिस्थिति में आप पाएंगे कि आपकी वर्तमान समस्या के लिए आप बिलकुल भी जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि यह तो एक संयोग है , बाकी दुनिया तो बस ऐसे ही दुखी है।

देखने में कोई खास सुंदर ना हों और इसको लेकर परेशान रह रहे हों तो राखी सावंत के बारे में सोचें कि भारतीय मीडिया राखी और उर्फी जावेद के पीछे ज्यादा पागल है या ऐश्वर्या राय के पीछे। आपको आपकी समस्त दुविधा का हल मिल जायेगा। 

अपनी समस्या भुलाने के लिए दूसरों की समस्या देखने से बेहतर उपाय नहीं है। अपना दर्द भुलाने के लिए दूसरों का दर्द निहारने से उत्तम उपाय आज तक मानवता को ज्ञात नहीं है। इस जंतर को अपना कर देखिए, आपका सारा दर्द, सारी चिंताएं दूर होती नजर आएंगी। 

इति जंतरः ।।


Thursday, October 12, 2023

advice to all employees

ADVICE TO ALL EMPLOYEES  

1. Build a home earlier. Be it rural home or urban home. Building a house at 50 is not an achievement. Don't get used to government houses. This comfort is so dangerous. Let all your family have good time in your house.
 
2. Go home. Don't stick at work all the year.  You are not the pillar of your department.  If you drop dead today, you will be replaced immediately and operations will continue.  Make your family a priority.

3. Don't chase promotions.  Master your skills and be excellent at what you do. If they want to promote you, that's fine if they don't,  stay positive to your personal.
development.

4. Avoid office or work gossip. Avoid things that tarnish your name or reputation. Don't join the bandwagon that backbites  your bosses and colleagues. Stay away from negative gatherings that have only people as their agenda.

5. Don't ever compete with your bosses.  You will burn your fingers.  Don't compete with your colleagues, you will fry your brain.

6. Ensure you have a side business.  Your salary will not sustain your needs in the long run.

7. Save some money. Let it be deducted automatically from your payslip. 

8. Borrow a loan to invest in a business or to change a situation not to buy luxury. Buy luxury from your profit.

9. Keep your life,marriage and family private. Let them stay away from your work. This is very important.  

10. Be loyal to yourself  and believe in your work. Hanging around your boss will alienate you from your colleagues and  your boss may finally dump you when he leaves. 

11. Retire early.  The best way to plan for your exit was when you received the employment letter. The other best time is today.  By 40 to 50 be out. 

12. Join work welfare and be an active member always. It will help you a lot when  any eventuality occurs.

13.Take leave days utilize them by developing yr future home or projects..usually what you do during yr leave days is a reflection of how you'll live after retirement..If it means you spend it all holding a remote control watching series on Zee world, expect nothing different after retirement.

14. Start a project whilst still serving or working. Let your project run whilst at work and if it doesn't do well, start another one till it's running viably. When your project is viably running then retire to manage your business. Most people or pensioners fail in life because they retire to start a project instead of retiring to run a project. 

15. Pension money is not for starting a project or buy a stand or build a house but it's money for your upkeep or to maintain yourself in good health. Pension money is not for paying school fees or marrying a young wife but to look after yourself.

16. Always remember, when you retire never be a case study for living a miserable life after retirement but be a role model for colleagues to think of retiring too. 

17. Don't retire just because you are finished or you are now a burden to the company and just wait for your day to die. Retire young or whilst energetic to enjoy waking up for a cup of coffee, enjoy the sun, receive money from your business, visit nice place that you missed and spend good time with family. Those who retire late, spend about 95% of their time at work than with their family and that's why they see it difficult to spend time with their family when they retire but end looking for another job till they die. If they don't get another job, they die early.

18. Retire at your house than at government accommodation so that when you retire you can easily fit into the society that raised you. It's not easy to adjust to live in a location after spending more years at company house or at government house.

19. Never let your employment benefits make you forget about your retirement. Employment benefits are just meant to make you relax, get finished whilst time is moving. Remember when you retire no one will call you boss if you don't have a viable business.

20. Don't hate to retire because one day you will retire either voluntarily or involuntarily. 

Hope this will help you look at life positively

📸Millionaire Secrets

Saturday, October 7, 2023

मौसम और मजदूर

गर पसंद है तुम्हें बारिश, तो घर तेरा ऊंचाई पर है,
सर्दियां भाती हैं गर, तो सर तुम्हारा रजाई पर है।
लगती हैं अच्छी गर्मियां, तो हवा तेरे कमरे की तराई पर है,
हम ठहरे मजदूर, नजर हमारी मौसम पर नहीं , दो जून की कमाई पर है।

Friday, October 6, 2023

Inzamam: The heavyweight batting genius

If you were to ask any cricket enthusiast to name their top five batsmen, you'd typically hear names like Bradman, Viv Richards, Sachin Tendulkar, Lara, and Steve Waugh. Inzamam ul Haq's name seldom finds its way onto such lists, and there are valid reasons for that. Inzamam wasn't the fittest or the most agile athlete on the field. His running between the wickets often provided comic relief in cricketing circles, and his English language skills could amuse the elite. However, it's unanimous that no one would dare label Inzamam as a poor batsman. Those who witnessed his play would even argue that he was on par, if not better, than his contemporaries like Lara and Sachin.

What set Inzamam, or "Inzy bhai," apart? In one sentence, it was his extraordinary ability to seemingly have more time to play a shot—an extra second that made him exceptional and compensated for his other shortcomings. While most specialist batsmen are meticulous about their bat's size, weight, and brand, Inzamam was different. His dressing room tales reveal that he could casually pick up any bat, perhaps even one belonging to a number 11 batsman, and still score a century.

Listen to interviews with his contemporary bowlers like Waqar Younis and Wasim Akram, and you'll understand just how highly they regarded Inzamam for his batting genius. Despite his harmless appearance, he could wield the bat with remarkable speed. His batting repertoire included elegant cricketing shots, cheeky placements, and powerful brute force hits, all executed with that extra second. He detested running and preferred dealing in boundaries, shunning the idea of converting ones into twos. He believed in turning singles into fours and sixes.
Another reason why Inzamam is my personal favorite is his authentic persona and straightforward demeanor. He expressed his thoughts candidly and thought in simple terms. He made batting appear effortless and added a touch of grace to the game. These reminiscences harken back to a time when cricket was played in distinct seasons, unlike the continuous format we see today.

Statistics may not always do justice to Inzy bhai's true potential, as numbers can sometimes be deceptive. Inzamam seemed to be born in the wrong cricketing nation. Had he been born in Australia or India, his name would likely have been more prominent in those top five batsmen lists than it is today.

Monday, October 2, 2023

कटिहार जिले की स्वर्ण जयंती के अवसर पर

मेरे गृह जिला कटिहार का पचासवां स्थापना दिवस आज मनाया जा रहा है। 2 अक्टूबर 1973 को तत्कालीन पूर्णिया जिले के एक अनुमंडल से कटिहार एक स्वतंत्र जिला बना। 

गंगा कोशी और महानंदा जैसी प्रमुख नदियों के बीच बसा है कटिहार। जहां यह नदियां कटिहार की उपजाऊ भूमि और भरपूर पेयजल की जरूरत को पूरा करती हैं वहीं बाढ़ की समस्या भी हमारे यहां है। 

इस बात में शायद ही कोई शक हो कि कटिहार अब भी भारत और बिहार से सबसे पिछड़े जिलों में एक है। हालांकि अपने बचपन से अब तक मैने कटिहार को प्रगति करते ही देखा है। यह प्रगति विकास के हर पैमाने पर है। चाहे शिक्षा हो या सड़क या पानी, या बिजली । अस्सी के दशक के कटिहार से आज के कटिहार ने लंबी दूरी तय की है। कटिहार में आज बच्चों के लिए अच्छे स्कूल हैं, फोर लेन सड़कें हैं, चौबीस घंटे बिजली है। 

हां यह बात अलग है कि हमारी विकास दर देश के अन्य क्षेत्रों से थोड़ी कमतर रही है लेकिन हालिया वषों में यह शिकायत भी दूर होती नजर आ रही है। रेल संपर्क में कटिहार हमेशा ही मुख्य धारा से जुड़ा हुआ है। निकट भविष्य में साहिबगंज मनिहारी के बीच बन रहे फोर लेन ब्रिज और उसको जोड़ने वाली फोर लेन सड़क कटिहार को न केवल झारखंड बल्कि उत्तरपूर्व भारत तथा उत्तर भारत से जोड़ेगी। समृद्धि सड़क मार्ग से होकर आती है। इस सड़क के बन जाने के बाद समृद्धि कटिहार की ओर अपना रुख करेगी।

भागलपुर के विक्रमशिला पुल होकर जाने की जरूरत खत्म होने के बाद कटिहार साहिबगंज और मनिहारी में बन रहे मल्टी माडल ट्रांसपोर्ट हब का उपयोग कर कटिहार के कृषक और अन्य उत्पादक अपने उत्पादों के लिए एक बृहद बाजार से जुड़ सकेंगे। 

 कटिहार क्षेत्र अपने आम, मक्का, मखाना , चूड़ा और मछली जैसे उत्पादों को पूरे देश में भेजकर अपनी आय कई गुना बढ़ाने की पूरी संभावना रखता है। अभी तक कटिहार से मुख्यता अकुशल मजदूरों का दिल्ली पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में पलायन होता रहता है क्योंकि कटिहार में रोजगार की संभावनाएं अभी न्यून मात्रा में ही हैं। कोरोना काल में पूरे बिहार में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर कटिहार जिले में लौटे थे। आशा है शीघ्र ही रोजगार के लिए हो रहे पलायन दर में कमी आयेगी और रोजगार के अनेक अवसर कटिहार में ही उपलब्ध होंगे।

कटिहार के विकास की कक्षा में प्रक्षेपित होने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और आने वाले समय में कटिहार के तीव्र विकास की गति को कोई भी नकार नहीं सकता। विकास के लिए आवश्यक हर कारक चाहे वो मानव संसाधन हो या अन्य भौतिक साधन , कटिहार में सबकी प्रचुर मात्रा उपलब्ध है। 

अगले पच्चीस साल कटिहार के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण पचास साल होने वाले हैं। आशा है इसमें कटिहार के निवासी, शासन और नीति निर्माता तीनों पूर्ण सहयोग रखेंगे और कटिहार जिले की स्थापना की हीरक जयंती के समय वर्ष 2048 में कटिहार एक विकसित जिला होगा।

अपनी स्वर्ण जयंती के अवसर पर कटिहार विकास के स्वर्ण युग में प्रवेश करे, ईश्वर से यही कामना है। सभी कटिहार वासियों को स्थापना दिवस की स्वर्ण जयंती की शुभकामनाएं।। 

Thursday, September 28, 2023

आज की ताजा खबर

मुद्दतों से ना सुना पूरा सच , ना सच्ची खबर
बेइंतहा अब हमारा इंतजार औ सबर हो गए।

सीमा हैदर हैं आज की भी ताजा खबर
बाकी खबर बासी और बेअसर हो गए।

बेखबर हो गई आवाम,
खबरदार करने वाले जब से बेकदर हो गए।

दफन हो गई असली खबर ,
जब से खबरनवीस खुद खबर हो गए।

इश्तेहारों के बीच घुट रही कहीं खबर
अखबार अब खबरों के कबर हो गए।

बन ठन कर सजी है झूठ की मंडी 
बस सच बोलने वाले दर बदर हो गए।

Wednesday, September 27, 2023

भूतों से डर नहीं लगता साहब!!!

बचपन में सुनी गई कहानियों को याद करता हूं तो बरबस ही याद आता है कि भूतों से बड़ा डर लगा करता था। ऐसा लगता था दुनिया में हर जगह भूत ही भूत हैं। पलंग के नीचे अंधेरे में, स्कूल की बंद पड़ी लाइब्रेरी में, रास्ते में पड़ने वाले पीपल पर, कब्रिस्तान में, श्मशान में, टूटी पड़ी चौकीदार की खोली में। मतलब हर तरफ भूत ही भूत। 

बड़ा होने पर पता लगा कि भूत तो बेचारे बड़े क्यूट से होते हैं। आज तक किसी को परेशान नहीं किया, किसी को मारा पीटा नहीं, किसी के पैसे नहीं छीने, किसी की गर्लफ्रेंड नहीं पटा ली। अगर किसी को परेशान किया भी बस इतना ही कि पीछे से हू  हू की आवाज निकाल दी, गुमनाम है कोई टाइप गाना सुना दिया। जिसको सुनाया उसको जिंदा छोड़ दिया ताकि वो बाकी सबको भूत की कहानियां अपने बुढ़ापे तक सुना सके।भूत बेचारे इतने शरीफ कि आपने हनुमान चालीसा पढ़ी नहीं कि बेचारे समझ जाते हैं कि आप उनका स्वागत नहीं करने वाले और वो चुपचाप से निकल लेते हैं। अब पता चल रहा है कि भूत से ज्यादा परेशान करता है भूतिया। जिस किसी से पूछ लो , वो ही भूतिया लोगों से परेशान है।

 कोई दोस्त नए शहर में गया हो, उसको फोन करो तो कहेगा कि क्या कहूं दोस्त, बाकी सब तो ठीक है लेकिन इस शहर वाले बड़े भूतिया किस्म के लोग हैं। किसी की नई शादी हुई हो तो वो आपको बताएंगे कि उसके ससुराल वाले कितने भूतिया टाइप के लोग हैं। कोई नई फिल्म जिसका बड़ा नाम सुनकर आपने हजार रुपए की टिकट और बारह सौ का पॉप कॉर्न खरीदा, पता चला कि फिल्म का डायरेक्टर भूतिया निकला। 


सड़क पर नई कार लेकर निकलना मुश्किल हो गया है, पता नहीं कौन सा भूतिया रॉन्ग साइड से ओवरटेक करने के चक्कर में बड़ा सा स्क्रैच मार दे। गाड़ी ठीक करवाने के लिए इंश्योरेंस क्लेम करने जाओ तो पता चलेगा कि स्क्रैच मारने वाले से बड़ा भूतिया आदमी तो इंश्योरेंस कंपनी का क्लेम सेटेल करने वाला एजेंट है। लब्बोलुआब यह कि दुनिया में भूतिया लोगों को ही साम्राज्य है। महान अशोक और सिकंदर दी ग्रेट और चंगेज खान का साम्राज्य इन भूतिया लोगों के साम्राज्य के आगे चाय कम पानी है।


भूतिया साम्राज्य से बच पाना असम्भव है। उसकी पहुंच आपके घर के अंदर तक है। आप अपने आरामदायक सोफे पर डेढ़ लाख रुपए के हाई डेफिनिशन टीवी को खोल कर बैठते हो कि बाहर के भूतिया लोगों से कुछ चैन मिले तो पता चला टीवी पर बिग बॉस आ रहा है। अब बिग बॉस देख कर बता पाना मुश्किल है कि इसमें सबसे बड़ा भूतिया कौन है। उसके पार्टिसिपेंट सेलिब्रिटी , उसका होस्ट या उसको देखने वाले आप। टीवी बंद कर आप अपना नया आईफोन 15 देखने लगते हो तो पता चलता है कि उसमें बैक बटन ही नहीं है। फिर आपको अहसास होता है कि इन भूतियों ने एप्पल जैसी बड़ी कंपनी पर भी कब्जा जमा लिया है। एंड्रॉयड वाले आपका डाटा चुरा चुरा कर आपको भूतिया बनाने में कोई कसर तो पहले से नहीं छोड़ रहे थे।

फिर आप सोचते सोचते सोचने लग जाते हो कि जिस तरह से मुझे सारी दुनिया भूतिया लगती है, कहीं दुनिया की नजर में मैं भी तो भूतिया नहीं हूं। फिर आप सोचते हो कि आखिर मेरे में ऐसा क्या खास है जो मैं इन भूतिया लोगों को भूतिया ना दिखूं । भाई, बड़ा से बड़ा क्रिकेटर जो फाइनल में जीरो पर आउट हो जाता है, बड़ा से बड़ा निर्देशक जो छह सौ करोड़ लगा के एक फ्लॉप फिल्म बनाता है और पूरी दुनिया जो आईफोन के पीछे पागल है, भूतिया हो सकती है ,तो मेरे में ऐसी कौन सी अलग बात है कि मैं भूतिया ना लगूं।

फिर सोचते सोचते आप यूक्लिड ज्यामिति और आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत तक पहु्च जाते हो। फिर आपको पता चलता है कि भूतिया होना कोई निरपेक्ष अवस्था नहीं है, बल्कि भूतिया होना या भूतिया दिखना एक सापेक्ष अवस्था है। जिस प्रकार यूक्लिड की ज्यामिति में किसी भी बिंदु की अवस्थिति का मापन एक निश्चित बिंदु ओरिजिन जिसे (0,0) से निर्धारित करते हैं, से किया जाता है, उसी प्रकार जब आप पूरी दुनिया को भूतिया समझते हो तो आप वास्तव में अपने फ्रेम ऑफ रिफ्रेंस के ओरिजिन से दूसरों के भूतियापा का मापन कर रहे होते हो, ठीक उसी समय दूसरा व्यक्ति अपने फ्रेम ऑफ रिफ्रेंस के ओरिजिन से आपके भूतियापा का मापन कर रहा होता है। अपने फ्रेम ऑफ रेफरेंस और केवल आपके फ्रेम ऑफ रेफरेंस में आपका भूतियापा हमेशा शून्य रहता है, बाकी के सभी फ्रेम ऑफ रेफरेंस से आपका भूतियापा का माप कुछ न कुछ रहता ही है।  अब आप महसूस करते हो कि बिग बॉस के सारे पार्टिसिपेंट वास्तव में भूतिया नहीं हैं, बल्कि भूतिया बनने का नाटक कर रहे हैं ताकि आपको भूतिया बना सकें। उनके फ्रेम ऑफ रेफरेंस में आपका भूतियापा का माप बहुत ही ज्यादा है। आखिर आपके भूतियापे से ही उनका घर चल रहा है और वो सेलिब्रिटी बने घूम रहे हैं।


वैसे भूत और भूतिया लोगों के बारे में इतना पढ़ जाने के बाद भी आपको लग रहा होगा कि यह आलेख तो भूतिया लोगों के बारे में है ही नहीं, बल्कि किसी और टाइप के लोगों के बारे में है। शायद आपको भी लगने लगा होगा कि यहां भी भूतियापा ने पीछा नहीं छोड़ा। मैंने तो शुरू में ही कह दिया था कि इनका साम्राज्य सर्वत्र और सर्वव्यापी है, आप ही नहीं माने। एक भूतिया सी फिल्म का डायलॉग याद आ रहा है कि भूतों से डर नहीं लगता साहब, भूतिया लोगों से लगता है। 


Saturday, September 23, 2023

अंतर्मुखी का अंतर्मन

चीज़ें पहली बार समझ नहीं आती मुझे। औरों से ज्यादा वक्त लेता हूं समझने में, कुछ ज्यादा ही वक्त ले लेता हूं खुलने में।शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

नए दोस्त जल्दी नहीं बना पाता, पुरानी दोस्ती भुला नहीं पाता। इसलिए थोड़ा खिंचा सा रह जाता हूं अतीत में बंधकर उसकी यादों के धागों से।शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

वर्तमान में खोया रहता हूं और भविष्य की ओर नहीं ताक पाता। आत्मविश्लेषण कुछ ज्यादा कर बैठता हूं, आत्मसम्वाद में जाया कर देता कुछ ज्यादा वक्त। दुनिया को अपना बनाने की जगह अपनी दुनिया में बना रहना भाता है मुझे। शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

बोलने से पहले सोचता हूं, कुछ बोलने के बाद उसको दुहराता रहता हूं अपने आप से जैसे कोई खराब घड़ी की सुई अटक सी गई हो। जो देख रही हो बाकी सुइयों को टिक टिक करते हुए, और फिर सोचती हो कि कितना भी टिक टिक करले, पहुंचती तो कहीं नहीं सुइयां। शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

किसी से मिलने में कतराता हूं, कोई मिल जाए तो घबराता हूं। सबसे मिल कर रहना चाहता हूं पर किसी से मिलना नहीं चाहता हूं। रहना चाहता हूं अलग, भीड़ से, शोर से और शायद दौड़ से। किसी दौड़ में शामिल होने से पहले हजार बार सोचता हूं कि क्या होगा हासिल इस दौड़ को जीत कर भी। इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।



Wednesday, September 20, 2023

कहें तो कहें क्या

ट्रुडो भईया ,

पूरा कन्फ्यूजिया दिए हो!! करें तो करें क्या, और बोलें तो बोलें क्या!! ना तुम दिवाली पर हमको भुक भाक करने वाला झालर बेचते हो, और ना हम लोग तुम्हारा बनाया फोन यूज करते हैं , जिसको खरीदना बंद कर दें। आईपीएल में ना तुम्हारे खिलाड़ी खेलने आते हैं जिसको बैन कर दें और ना कामरान अकमल की तरह तुम्हारी अंग्रेजी खराब है जिसका मजाक उड़ा सकें। बांग्लादेश की तरह तुमको आजादी भी नहीं दिलवाए हैं कि उसका ताना मार सके। एक खिलाड़ी कुमार थे जिसको वर्तमान हालात में शायद बॉयकॉट कर देते लेकिन समय रहते ऊ भी पाला बदल लिए। और तो और तुम्हारा आदमी सब इधर आकर नकली आधार भी तो नहीं बनाता है। 

दिमाग भनभना गया है। ठीक वैसे जैसे हमारे बल्लेबाज श्रीलंका और बंगलादेश के खिलाफ राजकोट और इंदौर में 360 रन बनाने के बाद मेलबॉर्न में 36 पर निपट लेते हैं। हमारे बॉयकॉट वाले सभी हथियार का जखीरा सब बेकार लग रहा है। कोई जोक भी नहीं सूझ रहा , आंख भी छोटा नहीं है तुम लोगों का कि बंद आंख वाला चाइनीज जोक तुम पर चिपका देते। सारा प्रैक्टिस पाकिस्तान, चाइना, बांग्लादेश सब पर किए हुए हैं और सिलेबस से बाहर क्वेश्चन आ गया कनाडा पर। क्या करें? कोई फिल्म भी बनाते तो साला जेतना भी स्क्रिप्ट है सब गदर और लगान जैसा ही है, उधर भी तुम्हारा कोई जिक्र तक नहीं है। तुम्हारा मजाक भी कैसे उड़ाएं।

 बस इतना कह सकते हैं कि इंडिया घूमते समय जो तुम शेरवानी और रंगीन कुर्ता पहन पहन के दिखाते हो ना, ऊ सब पालिका बाजार में फुटपाथ पर गोल लोहे वाले आलने पर हैंगर में झूलते हुए 350 रुपया में मिल जाता है। थोड़ा मोल मोलाई करो तो दुकानदार 650 रुपया में दू सेट दे देता है कि आप बोहनी कर रहे हो इसीलिए आपको दे रहे हैं नहीं तो 400 से कम में नहीं देते हैं।

बाकी देखते हैं, अगर ज्यादा दिन ऐसे ही करते रहे तो कुछ जोक वोक सोचना पड़ेगा तुम्हारे लिए भी। उससे पहले सुधर जाओ, वोही ठीक रहेगा। 

एक सामान्य भारतीय!! 
( जिसको वीजा नहीं चाहिए) 

Sunday, September 17, 2023

पोल खोल की पोल खोल

बारिश के दिनों में अकसर सुनता पढ़ता हूं कि तेज बारिश ने नगर निगम की पोल खोल दी। तब समझ नहीं आता कि यह पोल होती क्या है, कहां होती है जो बार बार खुल जाती है। 

पोल चीज ही ऐसी है कि कभी भी किसी की भी खुल सकती है। कितनी भी बार खुल सकती है। कुछ लोगों की पोल साल में एक बार खुलती है जैसे हमारी क्रिकेट टीम की icc टूर्नामेंट के फाइनल में । कुछ लोगों की पोल हमेशा खुलती रहती है। जैसे नेताओं की पोल।सत्ता में रहने वाले नेताओं की पोल अखबार वाले खोलते हैं अगर। और जब विपक्ष में रहे तो सत्ता वाले पोल खोल देते हैं। कभी पार्टी छोड़ गुस्साया नेता कर पोल खोल देता है और कभी होटल में छुपा कैमरा पोल खोल देता है। लेकिन पोल बिना बंधे कैसे खुल जाती है , यह बात भौतिकी के मूल सिद्धांतों को चुनौती देती रहती है। 

और अगर पोल खुलती है तो कोई ना कोई बांधता जरूर होगा ताकि दुबारा खुल सके। पोल बांधने वाला जरूर व्यक्ति बहुत व्यस्त रहता होगा क्योंकि हमेशा दुनिया भर में किसी न किसी की पोल खुलती ही रहती है। जो चीज इतनी खुलती है तो उसको बांधने वाला भी कोई तो होगा। जरा गौर फरमाएं तो आधी दुनिया का काम ही पोल बांधने का है।
किसी की पोल ना खुले इसके लिए बहुत मेहनत लगती है। मेकअप करने और करवाने का पूरा उद्योग ही पोल ना खुलवाने पर आधारित है। चेहरे पर पड़ रही झुर्रियां, कील मुहांसे , दाग , सांवलापन जैसी चीजें जो आपके अक्षत यौवना होने की पोल खोल सकता है , मेकअप के द्वारा ढक दिए जाते हैं। उजड़े चमन सर को अमेजन वर्षा वनों से भी सघन केश राशि से सुसज्जित दिखाने वाले विग भी पोल बांधने वाले बृहत उद्योग का ही एक हिस्सा हैं।

स्तरहीन पटकथा, बकवास अभिनय, और बेढंग नृत्य , इन सबकी पोल खोलने से रोकने के लिए VFX और कंप्यूटर ग्राफिक्स का एक फलता फूलता उद्योग है। गर्दभ राग को भी राग मल्हार बना देने के लिए साउंड मिक्सिंग का सारा प्रपंच रचा जाता है। सारी पीआर इंडस्ट्री सेलिब्रिटी के उदार होने की पोल बांधने का ही तो काम करती हैं। 

सूची अनंत है। अपने आस पास देखिए, दस लोग पोल बांधते नजर आ जायेंगे। । यहां तक कि पोल खोलने वालों की पोल खुल जाती है कि उन्होंने फलां की पोल खोली तो अलां की पोल क्यों नहीं खोली। यह अलां और फलां के बीच ही पोल खोलने वालों को पोल बंधी होती है। लेकिन जिस तरह से हार जन्म लेने वाले की मृत्यु तय है, उसी प्रकार से हर बंधी पोल का खुलना तय है। शाश्वत सत्य है।

 पोलिंग सीजन आ रहा है, पोल खुलने और बंधने का काम युद्ध स्तर पर जारी है। बस नजरें जमाए रखिए और आनंद लेते रहिए। जीवन की दौड़ में पोल पोजीसन पाने का यही तरीका है। 

Tuesday, September 5, 2023

सच का सच

ऐ सच्चाई!! क्योंकि तुम 
हमेशा जीतती हो,
इसीलिए हमेशा जीतने के गुमान
ने तुम्हें बना दिया है इतना घमंडी।

कि हमेशा जीत ने बना दिया 
है तुम्हें कड़वी
कि लोग तुम्हें कड़वी सच्चाई कहते हैं।

कि लगातार जीतने की वजह से
तुम में न बाकी रही कोई शर्म।
कि लोग तुम्हें नंगा सच बुलाने लगे हैं।

सच्चाई , सच तो ये है 
सर्वकालिक सर्वत्र विजेता 
होने के बाद भी
कोई तुम्हारा सामना नहीं करना चाहता
कोई तुमसे नजरें नहीं मिलाना चाहता।

कोई तुम्हें देखना नहीं चाहता
कोई तुम्हें सुनना नहीं चाहता।
लेकिन क्या फर्क पड़ता है तुमको
तुम तो आखिर में जीत ही जाओगी।

सत्यमेव जयते के जय घोष में
दब जायेंगी वो सब आवाजें 
जो बताती हैं सच का सच
कि कितनी बेरुखी, कड़वी और नंगी हो तुम।

Saturday, September 2, 2023

फवाद चौधरी जी आदित्य एल 1 के बाद

हमारी मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में सूरज को लेकर एक प्वाइंट ऑफ व्यू है। सूरज हमें रोज दिख जाता है। उसके उगने और डूबने का समय आसानी से अखबार में मिल जाता है। तो हमें उतने पापड़ बेलने की जरूरत नहीं है। 

हमें पता है कि सूरज बहुत गरम है और वहां इंसानों के बसने के लिए बहुत दिक्कत है। चूंकि वहां गर्मी बहुत है इसीलिए उधर रहने पर एसी का बिल बहुत आएगा। हमारी तंगेहाल तंजीम अभी इतना ज्यादा एसी का बिल चुकाने के लिए राजी नहीं है। 

जहां तक हमें पता चला है कि सूरज से हमें कोई लोन वोन मिलने की भी गुंजाइश कम ही है। जो जितना पैसा लगा कर हम अपने सायंसदानों को सूरज पर भेजेंगे, उससे सस्ते में हमारे वजीर ए आला सऊदी और दुबई जा सकते हैं और वहां से लाख दो लाख कर्जा उधार ला सकते हैं। 

हिन्दुस्तान की आवाम को पैसे खर्चने का शौक है तो वो भेजे अपने सैटेलाइट सूरज पर या उड़ाए अपने पैसे गदर 2 देख कर। हमें ना सूरज पसंद है और ना गदर 2। 

और हिंदुस्तान यह याद रखे कि हम एक शेर मुल्क हैं, और आटा चावल की कमी के कारण भूखे शेर हैं। भूखा शेर कितना खतरनाक होता है, हिंदुस्तान की आवाम और वजीरे आजम को यह पता होना चाहिए। 

हिन्दुस्तान पहले अपने यहां टॉयलेट बनाए । हमसे सीखे। हमने खाना कम कर दिया है, हमने टॉयलेट की जरूरत ही नहीं पड़ती। 

हिन्दुस्तान के साइंटिस्ट भले ही आदित्य L1 और चंद्रयान उड़ा लें, लेकिन हमारा एक एक बच्चा मौका मिलने पर बिना किसी खास तामील के पूरा एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और स्कूल तक उड़ा सकते हैं। हम हैंडपंप से भले थोड़ा डरें, L1 और चंद्रयान से बिल्कुल भी खौफजदा नहीं हैं।

Thursday, August 24, 2023

निजी चंद्रयान 3

शुक्र मनाइए कि इसरो एक सरकारी संस्था है और चंद्रयान तीन एक सरकारी मिशन। वरना चंद्रयान का पूरा नाम होता विमल सिल्वर कोटेड इलायची प्रेजेंट्स चंद्रयान थ्री को-स्पॉन्सर्ड बाय कमलापसंद सुगंधित पान मसाला पावर्ड बाय रूपा यह आराम का मामला है।

प्रज्ञान का नाम होता ड्यूरासेल प्रज्ञान, आम बैटरी चले धरती तक, ड्यूरासेल बैटरी चले चांद तक। विक्रम रोवर को क्लब महिंद्रा हॉलीडेज स्पॉन्सर करती और कहती कि चलें चांद पर घूम आएं। टेक ऑफ , लैंडिंग सब जगह कहीं बनियान चड्डी दिखती तो कहीं मैकडॉवेल म्यूजिक सीडी। चांद की धरती को भी गोरा बनाने वाली क्रीम के विज्ञापन से पाट दिया जाता। चांद जैसा गोरापन पाने के लिए लगाएं फेयर एंड ग्लो।

टीवी पर मुफ्त में चंद्रयान की लैंडिंग नहीं दिखती और ना ही उसका एड फ्री टेलीकास्ट होता। हॉटस्टार का प्रीमियम सब्सक्रिप्शन लेने वालों मून लैंडिंग को ही देखने को मिलती और के सीवन का इंटरव्यू कट करके नोरा फतेही का स्पेशल डांस परफॉर्मेंस दिखाया जाता। 

कुछ चीज़ें सार्वजनिक ही अच्छी हैं, जहां पर काम करने का कारण मुनाफा कमाने की होड़ की जगह कुछ नया पाना होता है। कुछ चीज़ें सरकारी ही अच्छी हैं। 



Monday, August 14, 2023

बुढ़ापा गदर और रजनीकांत



गदर चीज ही ऐसी है जो अक्सरहां बुड्ढे ही मचाते हैं। फिल्मी पर्दा हो तो 65 साल के सनी पाजी गदर मचाते हैं और असली जिंदगी वाला गदर हो तो 80 साल के बाबू कुंवर सिंह । 

जवानी तो कमबख्त काम करने और आटा चावल जमा करने में गुजर जाती है। उसके पास गदर के लिए वक्त कहां। और अगर वक्त निकाल भी लें तो वह अनुभव कहां । बुढ़ापे में वक्त भी है और अनुभव भी है । बुढ़ापे में खोने के लिए बचता नहीं। और जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है वह सब कुछ पाने के लिए जान लगा देता है । 

गदर के बाद ही स्वतंत्रता मिली है। इसकी कीमत समझें और सोच समझ कर उपभोग करें । वो महंगी वाली बोतलों पर लिखा रहता है ना कि Drink Responsibly!! स्वतंत्रता के साथ भी ऐसा ही है। बिना सोचे समझे अगर ज्यादा सर को चढ़ा ली तो बस नाली में जाकर गिरना तय है। बाकी चलिए रहा है। 

वैसे आप कहोगे 65 साल के सनी पाजी को आप बुड्ढा कहते हो और 72 साल के रजनीकांत सर जिनकी फिल्म जेलर भी गदर के साथ ही रिलीज हुई है उनको बुड्ढा नहीं कहते । तो हम कहेंगे कि रजनीकांत को बुढ़ापा नहीं आता , बुढ़ापे को रजनीकांत आता है और जब बुढ़ापे पर रजनीकांत आ जाता है तो वही बुढ़ापा गदर मचाता है। 

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

Friday, July 21, 2023

Tips for better promotion of Oppenheimer in India..

Sabse pahle to Cillian Murphy ko bigg Boss ott ke weekend ka war wale special episode per bhejiye.. wahan per Salman Khan ke saath Murphy bhaiya bigg Boss inmates ko road safety aur ladies ki izzat kaise karte hain wale moral lessons denge aur mujhse shaadi karogi Wale gaane per ek do step karke dikhayeenge..

Robert Downey Jr India's best dancer per Jaa sakte hain.. udhar wo judges ke saath chair per baith kar Geeta maa aur sonali bendre ke saath thoda flirt karein, aur phir har ek contestant ka bachpan wala woh sapna poora karein jismein unhone apne aap ko iron man ke saath thumke lagate hue dekha tha.. do char contestant ki dukh bhari kahani sun ke aason baha dein to Oppenheimer ki chandi ho jaaye..

Emily blunt ko Kapil Sharma show per bhejiye.. wahan Kapil Sharma unse poochhenge ki Oppenheimer karne ke baad kya unhone socha tha ki unko Kapil Sharma show per aane ka mauka milega.. uske baad Krishna aur Kapil dono Hindi mein koi cheesy baat bol ke Emily blunt ko flirt karenge. Last mein kiku Sharda Emily se poochenge ki atomic bomb ki aawaz jayada tez hai ya Archana ji ki hasi!!

Matt Damon kaawaliya kaawaliya Wale gaane per reel bana kar Rajni sir se unke Ghar per mil sakte hain.. unka ashirwad lekar Oppenheimer ka Tamil version release kar sakate Hain aur phir Aisa koi hint de sakte hain ki Oppenheimer 2 mein Rajni sir ka guest appearance wala ek role hoga.. ya Oppenheimer actually KGF universe se related hai..
Finally Nolan saab Gorakhpur per jaaker yogi ji ke saath Gita press Gorakhpur Jaa sakte hain jahan woh kahenge ki Oppenheimer to bahana hai, asli to Gita sabko sabko samjhana hai.. uske baad shayad Oppenheimer UP mein tax free ho jaay. Lekin ek risk yeh bhi hai ki shayad iske baad Oppenheimer west Bengal mein ban ho jaay.. lekin kuch paane ke liye kuch khona padta hai, Aisa gita mein hi likha hai..

Baaki bache hue star cast log bade influencers jaise Sofia ansari aur Ranu mandal ke saath kacha badam Wale gaane per dance karke film ko promote kar sakte hain..

Yaad rakhiye, Gita ke aathve adhyay mein Sanjay apni divyadrishti se dekhkar batate Hain ki kaliyug mein Bina VFX ke film ban jaroor ban to sakti hai lekin Bina promotion ke India mein chal nahin sakti...





Tuesday, June 20, 2023

मधुर सरस औ अति मन भावन

सीता राम चरित अति पावन
मधुर सरस और अति मन भावन।
पुनि पुनि कितनेहू सुने सुनाए
हिय की प्यास बुझत ना बुझाए।।

राम कथा का सौंदर्य इसी में है कि यह कथा अनंत बार कही गई है और असंख्य बार सुनी गई। सुनने सुनाने का यह क्रम अनवरत चलता रहे, यही  हमारे संस्कृति की प्राणवायु समान कथा को अमर रख सकता है। आदिपुरुष के निर्देशन और पटकथा लेखन में जो गलतियां हुई हैं, उसको लेकर नाराजगी स्वाभाविक है। लेकिन ओम राउत और मनोज मुंताशिर पर गुस्सा उतना ही दिखाएं कि आगे से कोई राम कथा को गलत न सुनाए। हां इतना ध्यान अवश्य रखिए कि इतना गुस्सा ना हो जाएं कि आगे से कोई राम कथा कहने का साहस तक न करे। सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग भी राम भक्त बने मनोज मुंताशिर के लिए नंगी तलवार लिए घूम रहे हैं जिनकी राम भक्ति पानी के बुलबुले की तरह अस्थाई है और जिनका लक्ष्य कुछ और ही है।  याद रखिए रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि तो राम शब्द तक का गलत उच्चारण करते थे और मरा मरा का जाप करते थे। जब मरा मरा का जाप करने पर कोई वाल्मीकि बन सकता है तो फिर राम कथा कहने की इच्छा तक रखने वाला राम का प्रिय बन सकता है।
रामकथा चाहे जिस रूप में हो , मन को आनंद देने वाली और समाज में मर्यादा की पुनर्स्थापना करने वाली है। राम ने मारीच, सुबाहु, बालि और रावण जैसों को क्षमा किया और उनको बैकुंठ प्रदान किया। मरा मरा का जाप करने वाले को अपनी कथा लिखने का अवसर दे दिए तो उनके वंशज ओम और मनोज को क्षमा तो कर ही सकते हैं। जय श्री राम।

Thursday, June 15, 2023

आम आदमी की दुविधा

पलंग के नीचे जूट के बोरे पर
सजी हैं कच्चे आमों की लड़ियां,
बस पकने ही वाली हैं
और फिर आम के पकते ही शुरू हो जाएगा 
वो ही मध्यम वर्ग का यक्ष प्रश्न!!
कौन सा वाला आम पहले खाऊं?
वो वाला जो थोड़ा ज्यादा पक गया है
पिलपिला सा हो गया है ,
और कल तक खराब हो जायेगा।
या वो वाला जो आज ठीक है लेकिन
कल पिलपिला हो जायेगा।
उभर आयेंगे उसके छिलके पर काले दाग।
आज में जियूं और भोग लूं सब कुछ जी भर आज ही
या कर लूं थोड़ा सा सबर
बचा कर रखूं कल के लिए ।
खुश हो लूं आज या टाल दूं 
अपनी खुशियां कल के लिए।
पकते आमों की लड़ियां 
दिखा रही हैं आईना मुझे 
कि मिडिल क्लास हूं मैं।
जीता हूं कल के लिए
आज की कीमत पर।
करता हूं पुण्य आज कि कल किसी और
 दुनिया में स्वर्ग मिलेगा,
जबकि स्वर्ग आज मेरे सामने पड़ा है
जो कल तक पिलपिला हो जायेगा।
सामने पड़ा आम बता रहा है कि
कितना आम आदमी हूं मैं। 

Wednesday, June 7, 2023

हाय गर्मी

सूर्य से ताप पाकर धरती में जीवन का संचार हो उठता है। सोना गर्मी पाकर कुंदन बन जाता है। गर्मी से आम का कच्चा खट्टा टिकोला मीठा आम बन जाता है। मां पक्षी के डैनो का ताप अंडे में छुपे भ्रूण को नन्हें चूजों में बदल देता है। मिला जुला कर कहें तो क्षिति जल पावक गगन समीरा से बने किसी भी पिंड में ऊष्मा ताप जीवन का ही संचार करती है तो फिर मेरी शकल भागलपुर की गर्मी का ताप पाकर कुंदन की तरह क्यों नहीं चमक उठती। क्यों यह गर्मी शाम होते होते नाज़ी जर्मनी के कैंप से बचाए गए यहूदी अंकल जैसी हो जाती है। क्यों आम की तरह मेरी बोली गर्मी पाकर मीठा ना होकर एचडीएफसी के मैनेजर की तरह कड़वी और शुष्क हो जाती है। किसी पक्षी के अंडे की तरह गर्मी पाकर मुझमें जीवन का संचार क्यों नहीं होता बल्कि इस गर्मी में मुझे जीवन तक से ऊब होने लगती है। हाल यह है कि अब नोरा फतेही का वो हाय गर्मी वाला गाना सुनने तक की इच्छा नहीं बची।सुना है बड़े हो जाने के बाद सिर्फ प्रोफेसर्स और न्यायाधीशों को गर्मी की छुट्टी मिलती है। शायद उनको ही गर्मी के मौसम का वो सुख महसूस होता हो, बाकी तो बस गर्मी में सूख जाते हैं। 

Saturday, March 11, 2023

Exploitative Private Schools


In India, private schools are engaging in dishonest business practices that go unchecked by society. These schools dictate which stores parents must buy books, uniforms, notebooks, notebook covers, and shoes from. Additionally, they require students to purchase new books and uniforms every year, rendering last year's purchases useless. These items are sold at exorbitant prices, and the schools dictate when and where parents can buy them, forcing them to take time off work and wait in long lines to be exploited.

These schools blatantly disregard rules designed to prevent black market activities and monopolies. They are not truly in the business of education and should not be allowed to operate under the guise of a temple of learning or a minority institution. As someone who has attended government schools, I may be biased against these exclusive private schools and their exploitative practices. However, it seems impossible to justify their unethical behavior.





Monday, February 27, 2023

सर सर सर

हिंदी में सर को सिर भी कहते हैं। अंग्रेजी में लिखते तो सिर ( sir) हैं लेकिन पढ़ते सर हैं। वैसे हिंदी में सर का मतलब हेड होता है इंग्लिश में सर का मतलब हेड नहीं होता। लेकिन किसी संस्था के हेड को वहां के सारे लोग सर सर ही कहते हैं। स्कूल में था तो हिंदी शिक्षक को लोग हिंदी सर कहते थे, पता नहीं हिंदी सर वाले नाम में लगने वाला सर हिंदी वाला था या अंग्रेजी वाला। अंग्रेजी वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि हिंदी वाले शिक्षक का नाम अंग्रेजी में लिया जाय यह बात सर से उपर निकल जाती है। लेकिन अगर हिंदी वाला सर माने तो उनका नाम का मतलब हिंदी माथा या हिंदी सिर हो जाता है। जो सही नहीं लगता। वैसे हिंदी सर हिंदी विभाग के हेड थे, तो उनको हिंदी सर कहना सरासर गलत भी नहीं था।

सरासर गलत तो होता है किसी वरीय पदाधिकारी के तुगलकी गलत फरमान को भी आकाशवाणी तुल्य ईश्वरी आदेश सुन कर कनीय पदाधिकारियों की सर सर सर की गूंज वाली सरसराहट। जैसे अगर आदेश हो जाय कि नहर खोद कर गंगा की धार को कानपुर से मोड़ कर वापस गंगोत्री पहुंचाना है तो भी सर के आदेश के बाद जो सर सर सर का समवेत स्वर गूंजायमान होता है उसपर विहंगो के प्रातःकालीन कलरव को भी शरम आ जाय। बेशरम ही सही लेकिन सर सर की ध्वनि का असर जबरदस्त होता है।सर सर सुन कर बड़े पदाधिकारी का सीना जहां एक तरफ चाटुकारिता पाकर छप्पन इंच का हो जाता है वहीं उनके तलवे सहलाने वाली जुबान भी ऐसे लपलपाने लगती है मानो सामने किसी ने छप्पन भोग के व्यंजन बना के रख दिया हो। किसी खास विभाग की यह खासियत नहीं है, पूरे सरकारी महकमे में ही यह व्याप्त है। यह संयोग नहीं है कि सरकार शब्द ही सर से ही शुरू होता है। बिना सर के सरकार सिर्फ कार रह जाती है। कार भी नहीं,बेकार ही कहिए। वोही कार में सिर्फ सर लग जाय तो सरकार बन जाती है और सरपट भागने लगती है।

कोई सरपंच हो , सरदार हो या हो कोई सरगना उसकी सारी सरगर्मी सर शब्द से ही आती है। सरगम में भी सर नहीं हो तो बस गम रह जाता है । दुनिया का पूरा सरकस भी सर के ही बदौलत है। सरसरी निगाह से देखें तो इस सरजमीं पर सर के बिना सब कुछ बेअसर ही है। तो क्या समझे सर!!



Sunday, February 19, 2023

ख और रव का महीन अंतर

हिंदुस्तान खासकर उत्तर भारत में सूचना पट्टों और विज्ञापन के होर्डिंग्स पर अशुद्ध हिंदी देख कर मन क्षुब्ध हो जाता है। ख व्यंजन को लिखने का तरीका रव से थोड़ा अलग है। रव में जहां र और व अलग अलग होते हैं वहीं ख में र के नीचे वाली लकीर टेढ़ी होकर व के नीचे जुड़ जाती है। इसलिए रव और ख ध्वनियों के ना केवल बोलने बल्कि लिखने में भी अंतर है। अगर इस महीन अंतर का ध्यान न रखा जाय तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

पटना जंक्शन पर लगे हुए इस बोर्ड को ही देख लीजिए। यह दुकान बिहार का मशहूर उत्पाद मखाना और उससे बने अन्य उत्पाद बेचती है। लेकिन ख को अशुद्ध लिखने के कारण उसने अपना नाम मरवाना लिख रखा है। बिहार मखाना के लिए जहां प्रसिद्ध है और होने चाहता है लेकिन मारने और मरवाने के लिए शायद ही कोई प्रसिद्ध होना चाहे। ऐसे गलत बोर्ड पढ़ कर हिंदी के जानकार इस दुकान पर कुछ खाना नहीं चाहेंगे बल्कि डरकर वहां से रवाना हो जाएंगे।

Tuesday, February 14, 2023

चांद सी महबूबा

चांद अजीब सा प्राणी है। हर दिन उसका मूड अलग रहता है। चांद को पूरा देख पाना संभव तक नहीं है उसको समझना तो दूर की बात है। चांद की कलाएं और कुछ नहीं बस आपकी जिंदगी में घटता बढ़ता अंधेरा है। चांद पा कर भी कुछ खास होने वाला नहीं है क्योंकि चांद पर जिंदगी मुमकिन नहीं। चांद के पास जाकर भले ही आपका जीवन संभव नहीं हो लेकिन उसकी खूबसूरती में कसीदे कम नहीं पढ़े गए हैं । किसी भी एक कसीदे में आज तक सुनामी का जिक्र तक नहीं आया , ज्वार की लहरों का नाम नहीं आया जिससे इतनी तबाही मची रहती है। कुछ लोग कहते हैं कि नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पा लिया था लेकिन काफी लोग ऐसे भी हैं जो इसको हव्वा बताते रहते हैं। 

चांद की इतनी तारीफ सुनने के बाद यह आश्चर्य ही है कि हर दूसरी कविता हर तीसरा शेर प्रेमिका को चांद का नाम देता रहता है। चांद सी महबूबा कहना तारीफ कैसे है समझ नहीं आता। सारे शायर अपनी महबूबा को चांद तभी कहते होंगे जब अपनी महबूबा के रोज़ बदलते मूड से परेशान हो जाते हैं या उनको पता चल जाता है कि महबूबा अगर मिल गई तो जीवन संभव नहीं है। या शायद तब जब पहली बार मेकअप की मोटी परत के नीचे छुपे चेहरे के दागों का दीदार शायर पहली बार करता है। सबसे दुखी मन से शायद शायर तभी अपनी महबूबा को चांद कहता है जब उसे पता चलता है कि जिस चांदनी को वो महबूब के चेहरे का नूर और शीतल सुकून कहता रहा है वो किसी दूसरे सूरज की वजह से है।काफी गुंजाइश है कि तीसरे की एंट्री के बाद ही किसी शायर ने पहली बार प्रेमिका को चांद कहा होगा। संभवतः इसीलिए चांद की ओर हमेशा ताकते रहने वाले पक्षी को भी शास्त्रों में चातक कहा गया है। शास्त्रों के रचयिता कहना तो कुछ और चाहते होंगे लेकिन शास्त्रों में गाली तो लिख नहीं सकते इसीलिए गालीनुमा नाम चातक कह दिया। 

इंसान भी अजीब है। जिस धरती पर जिंदगी मुमकिन है , उसे इंसान अपने पैरों तले रखता है और सूखे बंजर चांद के ख्वाब देखता रहता है। इश्क जो ना कराए। 

बाकी सब ठीक है। आप सुनाओ? कल आप टेडी  बियर वाली दुकान पर दिखे थे!! सब ठीक ठाक तो है ना? 

Thursday, February 9, 2023

चलते चलते

भाई साब चल ही नहीं पा रहे थे। उनको चलाने की बहुत कोशिश की गई लेकिन साहब थे कि किसी भी तरह से चले ही नहीं।  फिर उनके आस पास के चालू लोगों ने कहा कि साब आप चिल ज्यादा करते हैं इसलिए आप चल नहीं पा रहे। ना साहब चल पा रहे थे और ना ही अपनी पार्टी चला पा रहे थे। चुनाव दर चुनाव विपक्षी उनको चलता किए जा रही थी। कुछ साल पहले साहब ने पार्टी चलाने वाला काम छोड़ दिया । दिक्कत यह थी कि पार्टी  के लोग ज़िद करके बैठ गए कि साहब पार्टी तो आप ही चलाओ। लेकिन साहब थे कि चलना तो दूर अपनी जगह से हिले डुले तक नहीं।समय का पहिया चलता रहा , पार्टी के पुराने लोगों ने पार्टी की हालत देख कर " अच्छा, चलता हूं " कहना शुरू कर दिया। सब कहने लगे कि ऐसे  तो पार्टी ही चल बसेगी।

 फिर एक दिन किसी चालू चापलूस  ने कहा कि साहब, श्री मोहन दास भी पहले नमक के लिए चले थे, फिर तो ऐसा चले, चल चल कर ही ऐसे उनके भाग्य बदले कि वैसे करम दुनिया में चंद लोगों की ही होती है।  फिर भाई साब ने भी सोचा कि चिल बहुत हुआ, अब चला जाय। फिर भाई साब चलने लगे। खूब दूर दूर तक चले, दक्षिण से चले और उत्तर की तलाश में। उनकी पार्टी की धमनियों में रुका रक्त चलने लगा और साथ ही चलने लगा उनका मीडिया अभियान। खूब खबरें चलाई गई, एडिटर लोग साहब के चलने के किस्से लिखने के लिए ताबड़तोड़ कलम चलाने लगे।  टीवी पर बटेरबाजी और मुर्गे की लड़ाई की याद दिलाने वाली चर्चाओं का दौर चला। लेकिन यह सब भी कितने दिन चलता। उनकी खबरें चलाने वाले सहयोगी भी अपनी दुकान बेच कर चलते बने ।  

 चल चल कर थक जाने के बाद साहब दिल्ली पहुंचे । दिल्ली पहुंचे तो वहां भी गए जहां साल में तीन बार सत्र चलता है। साहब वहां भी अपने चलने की कहानियां चलाने लगे लेकिन वो ही पुराना कैसेट कितनी चलता। लोग कहने लगे कि भाई वो ही घिसी पिटी बात को चलता करो । साहब का मजाक उड़ता देखसाहब के लोगों को गुस्सा आ गया।  पुराना ज़माना  होता तो तलवारें चल जाती। लेकिन आज के ज़माने में तलवार से ज्यादा जुबां चलने का रिवाज है। कहने लगे कि साहब इतना चले हैं कि और कुछ नहीं चलने देंगे, यह सत्र भी नहीं। सत्र भी रुक रुक कर ही चला। जनता बेचारी दूर खड़ी सोचती रही कि आखिर चल क्या रहा है? 

साहब का चलना भले ही रुक गया हो लेकिन कहानी क्रमशः यूं ही चलती रहेगी । यही तो खासियत है कहानी और गाड़ी की, कि दोनो चलती रहती है।  इसीलिए तो एक सुपरहिट चलचित्र बनी थी ' चलती का नाम गाड़ी' । वैसे चलते चलते एक और बात बता दूं कि एक और चलचित्र है बढ़ती का नाम दाढ़ी। लेकिन दाढ़ी वाली चलचित्र कोई खास चली नहीं थी। 

चलने चलाने की इस छोटी सी कथा के अंत में इतना ही कहना है कि  चलना ही तो जिंदगी है।  बीमारों को क्या चाहिए यही कि उनकी दवा चलती रहे। दोस्तों को क्या चाहिए यही कि उनका याराना चलता रहे। व्यापारियों का व्यापार चलता रहना चाहिए, नवयुवकों और नवयुवतियों का चक्कर चलता रहना चाहिए, जाम और शाम का यह सफर चलता रहना चाहिए और चलता रहना चाहिए हमारा यह फलसफा।  पता नहीं यह सब पढ़ कर आपके दिमाग में क्या चल रहा है। आप हर चीज में गंभीरता और दर्शन तलाशना बंद करिए। कभी कभी हल्का फुल्का हंसी मजाक भी चलना चाहिए। चलता हूं। 

Wednesday, February 8, 2023

निरंतर संवाद का विषय

रामायण में एक प्रसंग आता है राम रावण युद्ध के बाद का। अपनी नाभि में राम का अस्त्र लिए लंकेश रावण युद्ध क्षेत्र में धायल पड़े हैं। श्रीराम लक्ष्मण को रावण के जाने और उनसे ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं। लक्ष्मण कहते हैं कि हे राम! भला रावण मुझे ऐसा क्या ज्ञान दे सकता है जो मुझे आपसे प्राप्त नहीं हो सकता। श्रीराम कहते हैं कि रावण एक महान प्रतापी राजा था। उसने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया और जिसके प्रताप का लोहा तीनों लोकों ने माना है। भले ही हम इक्ष्वाकु वंश के वंशज हैं लेकिन हमें अपने पूर्वजों के सान्निध्य में राज्यनीति के बारे में सीखने का कोई खास अवसर नहीं मिला। और ना ही मेरे पास राज्य चलाने का कोई अनुभव है। उसके उलट रावण के पास शासन चलाने का गहरा अनुभव है। यहां से लौटते ही मुझे अयोध्या का राजकाज सौंप दिया जायेगा। मुझ जैसे अनुभवहीन शासक को रावण से सीखने का मौका गंवाना नहीं चाहिए।

दूसरा प्रसंग आता है राम बालि युद्ध के बाद। युद्ध में घायल बालि के पास राम जाते हैं। बालि राम से कहते हैं कि आपने छल से छिप कर मुझे मारा है। आपने इस युद्ध में हिस्सा लिया जिससे आपका कोई मतलब नहीं था। श्रीराम कहते हैं कि में क्षत्रिय हूं और तुम एक वानर हो। मुझे आखेट का अधिकार है इसीलिए मैं छिप कर भी चाहूं तो आखेट कर सकता हूं। बालि प्रत्युत्तर में कहते हैं कि आप मेरे मांस का भक्षण नहीं कर सकते और मुझसे आपको कोई प्राणों का भय भी नहीं था। इसीलिए आपका मेरा अकारण आखेट करना भी अनुचित है। श्रीराम कहते हैं कि मैं अयोध्या के राजन भरत का दूत हूं और यह भूमि राजा भरत के साम्राज्य का अंग है। अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी का हरण कर तुमने अयोध्या के नियमों का उल्लंघन किया है। उन नियमों को तोड़ने का दंड देने के लिए मैं महाराज भरत का अधिकृत दूत हूं।


राम बालि प्रसंग में किसका तर्क ज्यादा सही है यह विचारणीय प्रश्न हो सकता है लेकिन उपरोक्त दोनों प्रसंगों से एक बात स्पष्ट है। भीषण प्रतिद्वंदी और युद्ध होने के बाद भी श्रीराम बालि और रावण से संवाद का पुल बनाए रखते हैं। रावण और बालि जैसे अधम पुरुषों के लिए भी श्रीराम के दरबार में संवाद की संभावना हमेशा रही । युद्ध , मतभेद या वैचारिक विभेद कभी संवाद का विकल्प नहीं हो सकते। संवाद एक शाश्वत सत्य होना चाहिए। क्योंकि विपक्षी कोई भी ही आपको हमेशा कुछ न कुछ सिखा सकता है। अगर बालि जैसा वानर मर्यादा पुरुषोत्तम को निरुत्तर कर सकने वाले तर्क दे सकता है तो हर किसी से संवाद की संभावना हमेशा ही सुखद परिणाम दे सकती है।


 दूसरी बात जो उपरोक्त दोनों प्रसंगों से उभर कर सामने आती है कि हमारे महाकाव्य अपने चरित्रों को अच्छे या बुरे के युग्म खांचों में जबरदस्ती ठूंसने का प्रयास नहीं करते। उनके चरित्र हमेशा अच्छे या बुरे होने के बजाय अच्छे और बुरे होते हैं। रावण और बालि के चरित्र का राम के द्वारा मूल्यांकन भी यही दर्शाता है। कदाचित राम द्वारा अपने आप को अनुभव हीन शासक के रूप में देखना और आगे चल कर अपनी पत्नी सीता को वनवास और अग्नि परीक्षा से गुजारना भी यही दर्शाता है कि राम भी केवल गुणों की खान नहीं हैं और उनमें भी कुछ कमियां हैं। ना राम पूर्ण रूप से पुरुषोत्तम हैं और ना रावण पूर्ण नराधम। सभी चरित्र इन दोनो चरम अवस्थाओं के बीच ही कहीं आते हैं।  इसीलिए हर किसी से संवाद और संवाद का प्रयास ना केवल वांछनीय है अपितु संस्तुत भी है। 

Sunday, February 5, 2023

Reflections on Pathaan..

Some reflections on Pathaan..

1. Pathan is a sharp critique of our society. Our country is led by politicians well into their 80s, our T20 cricket team is captained by aging players with strike rate of 80, and our movies feature spies portrayed by actors from the 80s. What can the Desh ka Yuva do? They haven't been given much to do besides making reels and TikToks.

2. If John Abraham, with his gym-toned body, rightfully plays a character named "Gym," why can't SRK's character be named "VFX Pathan" or "Photoshop Pathan?"

3. If Pathan is India's top secret spy, it's curious that everyone from Afghanistan, Pakistan, India, and Dubai knows him by his name and face. Everywhere he goes, he is greeted by his first name. Perhaps he should learn the basics of using code names and not referring to himself in the third person.

4. There are also some questions regarding character naming. Deepika plays a lady spy from Pakistan and is curiously named Rubina. Why must every pretty woman from Pakistan be named something similar to Hina Rabbani? The name "Rabbani" could be interchangeable with "Rubina." Potato potahto.

5. Not only the character names, but the naming of a terrorist organization as "Outfit X" also raises concerns. The name sounds more like a fashion outlet for plus size people than a dangerous organization. Furthermore, why it is called an organisation if a single person who is also the boss of the organisation is responsible for everything from street fighting to bombing to stealing weapons to negotiating with Indian and Pakistani officials. It's a classical case like those startups where same person is CEO, Managing Director, CFO and Personal secratary to himself.

6. A serious question about Tiger also arises. Was he assigned to save Pathan from the Russians or just to give him a paracetamol tablet? It seems absurd that Bhai was carrying nothing but a gamchha and crocin while being on such a crucial mission. Come on.. RAW is not that poor.

7. Talking of poverty, credit should be given where it's due. Kudos to the perfect casting of Deepika Padukone as an ISI agent. She truly looks like someone from a country facing poverty and starvation. 

7. In nutshell.. everyone from Pakistan, Afghanistan, Dubai is good and is blessed with golden hearts except a decorated soldier from Indian army and our RAW chief. Self deprecating humor pro Max.. Pathaan script writing has Besharam rang splashed all over it.