What I think? I will let you know here.. Listen to the voices from my heart
Sunday, December 10, 2023
JNV alumni meet 2023
Monday, November 20, 2023
पर्व घर और घाट का
Tuesday, November 14, 2023
खेल और युद्ध
Thursday, November 9, 2023
कुदरत का निजाम
Sunday, November 5, 2023
विश्व क्रिकेट की दशा और दिशा पर मंथन
Saturday, October 28, 2023
घबराना नहीं है
Wednesday, October 25, 2023
टिक टिक करती रुकी घड़ियां
Saturday, October 21, 2023
सर्व सिद्धि दात्री दुर्गा पूजा
Thursday, October 19, 2023
Enough of Yo Mama Jokes !!!
Tuesday, October 17, 2023
Nostalgia : It's not for everyone
Monday, October 16, 2023
गहरे घाव
Saturday, October 14, 2023
For Mickey Arthur..
Friday, October 13, 2023
दुख निवारण का जंतर
Thursday, October 12, 2023
advice to all employees
Saturday, October 7, 2023
मौसम और मजदूर
Friday, October 6, 2023
Inzamam: The heavyweight batting genius
Monday, October 2, 2023
कटिहार जिले की स्वर्ण जयंती के अवसर पर
Thursday, September 28, 2023
आज की ताजा खबर
Wednesday, September 27, 2023
भूतों से डर नहीं लगता साहब!!!
Saturday, September 23, 2023
अंतर्मुखी का अंतर्मन
Wednesday, September 20, 2023
कहें तो कहें क्या
Sunday, September 17, 2023
पोल खोल की पोल खोल
Tuesday, September 5, 2023
सच का सच
Saturday, September 2, 2023
फवाद चौधरी जी आदित्य एल 1 के बाद
Thursday, August 24, 2023
निजी चंद्रयान 3
Monday, August 14, 2023
बुढ़ापा गदर और रजनीकांत
Friday, July 21, 2023
Tips for better promotion of Oppenheimer in India..
Tuesday, June 20, 2023
मधुर सरस औ अति मन भावन
Thursday, June 15, 2023
आम आदमी की दुविधा
Wednesday, June 7, 2023
हाय गर्मी
Saturday, March 11, 2023
Exploitative Private Schools
Monday, February 27, 2023
सर सर सर
Sunday, February 19, 2023
ख और रव का महीन अंतर
Tuesday, February 14, 2023
चांद सी महबूबा
Thursday, February 9, 2023
चलते चलते
Wednesday, February 8, 2023
निरंतर संवाद का विषय
रामायण में एक प्रसंग आता है राम रावण युद्ध के बाद का। अपनी नाभि में राम का अस्त्र लिए लंकेश रावण युद्ध क्षेत्र में धायल पड़े हैं। श्रीराम लक्ष्मण को रावण के जाने और उनसे ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं। लक्ष्मण कहते हैं कि हे राम! भला रावण मुझे ऐसा क्या ज्ञान दे सकता है जो मुझे आपसे प्राप्त नहीं हो सकता। श्रीराम कहते हैं कि रावण एक महान प्रतापी राजा था। उसने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया और जिसके प्रताप का लोहा तीनों लोकों ने माना है। भले ही हम इक्ष्वाकु वंश के वंशज हैं लेकिन हमें अपने पूर्वजों के सान्निध्य में राज्यनीति के बारे में सीखने का कोई खास अवसर नहीं मिला। और ना ही मेरे पास राज्य चलाने का कोई अनुभव है। उसके उलट रावण के पास शासन चलाने का गहरा अनुभव है। यहां से लौटते ही मुझे अयोध्या का राजकाज सौंप दिया जायेगा। मुझ जैसे अनुभवहीन शासक को रावण से सीखने का मौका गंवाना नहीं चाहिए।
दूसरा प्रसंग आता है राम बालि युद्ध के बाद। युद्ध में घायल बालि के पास राम जाते हैं। बालि राम से कहते हैं कि आपने छल से छिप कर मुझे मारा है। आपने इस युद्ध में हिस्सा लिया जिससे आपका कोई मतलब नहीं था। श्रीराम कहते हैं कि में क्षत्रिय हूं और तुम एक वानर हो। मुझे आखेट का अधिकार है इसीलिए मैं छिप कर भी चाहूं तो आखेट कर सकता हूं। बालि प्रत्युत्तर में कहते हैं कि आप मेरे मांस का भक्षण नहीं कर सकते और मुझसे आपको कोई प्राणों का भय भी नहीं था। इसीलिए आपका मेरा अकारण आखेट करना भी अनुचित है। श्रीराम कहते हैं कि मैं अयोध्या के राजन भरत का दूत हूं और यह भूमि राजा भरत के साम्राज्य का अंग है। अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी का हरण कर तुमने अयोध्या के नियमों का उल्लंघन किया है। उन नियमों को तोड़ने का दंड देने के लिए मैं महाराज भरत का अधिकृत दूत हूं।
राम बालि प्रसंग में किसका तर्क ज्यादा सही है यह विचारणीय प्रश्न हो सकता है लेकिन उपरोक्त दोनों प्रसंगों से एक बात स्पष्ट है। भीषण प्रतिद्वंदी और युद्ध होने के बाद भी श्रीराम बालि और रावण से संवाद का पुल बनाए रखते हैं। रावण और बालि जैसे अधम पुरुषों के लिए भी श्रीराम के दरबार में संवाद की संभावना हमेशा रही । युद्ध , मतभेद या वैचारिक विभेद कभी संवाद का विकल्प नहीं हो सकते। संवाद एक शाश्वत सत्य होना चाहिए। क्योंकि विपक्षी कोई भी ही आपको हमेशा कुछ न कुछ सिखा सकता है। अगर बालि जैसा वानर मर्यादा पुरुषोत्तम को निरुत्तर कर सकने वाले तर्क दे सकता है तो हर किसी से संवाद की संभावना हमेशा ही सुखद परिणाम दे सकती है।
दूसरी बात जो उपरोक्त दोनों प्रसंगों से उभर कर सामने आती है कि हमारे महाकाव्य अपने चरित्रों को अच्छे या बुरे के युग्म खांचों में जबरदस्ती ठूंसने का प्रयास नहीं करते। उनके चरित्र हमेशा अच्छे या बुरे होने के बजाय अच्छे और बुरे होते हैं। रावण और बालि के चरित्र का राम के द्वारा मूल्यांकन भी यही दर्शाता है। कदाचित राम द्वारा अपने आप को अनुभव हीन शासक के रूप में देखना और आगे चल कर अपनी पत्नी सीता को वनवास और अग्नि परीक्षा से गुजारना भी यही दर्शाता है कि राम भी केवल गुणों की खान नहीं हैं और उनमें भी कुछ कमियां हैं। ना राम पूर्ण रूप से पुरुषोत्तम हैं और ना रावण पूर्ण नराधम। सभी चरित्र इन दोनो चरम अवस्थाओं के बीच ही कहीं आते हैं। इसीलिए हर किसी से संवाद और संवाद का प्रयास ना केवल वांछनीय है अपितु संस्तुत भी है।