Tuesday, February 14, 2023

चांद सी महबूबा

चांद अजीब सा प्राणी है। हर दिन उसका मूड अलग रहता है। चांद को पूरा देख पाना संभव तक नहीं है उसको समझना तो दूर की बात है। चांद की कलाएं और कुछ नहीं बस आपकी जिंदगी में घटता बढ़ता अंधेरा है। चांद पा कर भी कुछ खास होने वाला नहीं है क्योंकि चांद पर जिंदगी मुमकिन नहीं। चांद के पास जाकर भले ही आपका जीवन संभव नहीं हो लेकिन उसकी खूबसूरती में कसीदे कम नहीं पढ़े गए हैं । किसी भी एक कसीदे में आज तक सुनामी का जिक्र तक नहीं आया , ज्वार की लहरों का नाम नहीं आया जिससे इतनी तबाही मची रहती है। कुछ लोग कहते हैं कि नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पा लिया था लेकिन काफी लोग ऐसे भी हैं जो इसको हव्वा बताते रहते हैं। 

चांद की इतनी तारीफ सुनने के बाद यह आश्चर्य ही है कि हर दूसरी कविता हर तीसरा शेर प्रेमिका को चांद का नाम देता रहता है। चांद सी महबूबा कहना तारीफ कैसे है समझ नहीं आता। सारे शायर अपनी महबूबा को चांद तभी कहते होंगे जब अपनी महबूबा के रोज़ बदलते मूड से परेशान हो जाते हैं या उनको पता चल जाता है कि महबूबा अगर मिल गई तो जीवन संभव नहीं है। या शायद तब जब पहली बार मेकअप की मोटी परत के नीचे छुपे चेहरे के दागों का दीदार शायर पहली बार करता है। सबसे दुखी मन से शायद शायर तभी अपनी महबूबा को चांद कहता है जब उसे पता चलता है कि जिस चांदनी को वो महबूब के चेहरे का नूर और शीतल सुकून कहता रहा है वो किसी दूसरे सूरज की वजह से है।काफी गुंजाइश है कि तीसरे की एंट्री के बाद ही किसी शायर ने पहली बार प्रेमिका को चांद कहा होगा। संभवतः इसीलिए चांद की ओर हमेशा ताकते रहने वाले पक्षी को भी शास्त्रों में चातक कहा गया है। शास्त्रों के रचयिता कहना तो कुछ और चाहते होंगे लेकिन शास्त्रों में गाली तो लिख नहीं सकते इसीलिए गालीनुमा नाम चातक कह दिया। 

इंसान भी अजीब है। जिस धरती पर जिंदगी मुमकिन है , उसे इंसान अपने पैरों तले रखता है और सूखे बंजर चांद के ख्वाब देखता रहता है। इश्क जो ना कराए। 

बाकी सब ठीक है। आप सुनाओ? कल आप टेडी  बियर वाली दुकान पर दिखे थे!! सब ठीक ठाक तो है ना? 

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