Saturday, September 23, 2023

अंतर्मुखी का अंतर्मन

चीज़ें पहली बार समझ नहीं आती मुझे। औरों से ज्यादा वक्त लेता हूं समझने में, कुछ ज्यादा ही वक्त ले लेता हूं खुलने में।शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

नए दोस्त जल्दी नहीं बना पाता, पुरानी दोस्ती भुला नहीं पाता। इसलिए थोड़ा खिंचा सा रह जाता हूं अतीत में बंधकर उसकी यादों के धागों से।शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

वर्तमान में खोया रहता हूं और भविष्य की ओर नहीं ताक पाता। आत्मविश्लेषण कुछ ज्यादा कर बैठता हूं, आत्मसम्वाद में जाया कर देता कुछ ज्यादा वक्त। दुनिया को अपना बनाने की जगह अपनी दुनिया में बना रहना भाता है मुझे। शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

बोलने से पहले सोचता हूं, कुछ बोलने के बाद उसको दुहराता रहता हूं अपने आप से जैसे कोई खराब घड़ी की सुई अटक सी गई हो। जो देख रही हो बाकी सुइयों को टिक टिक करते हुए, और फिर सोचती हो कि कितना भी टिक टिक करले, पहुंचती तो कहीं नहीं सुइयां। शायद इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।

किसी से मिलने में कतराता हूं, कोई मिल जाए तो घबराता हूं। सबसे मिल कर रहना चाहता हूं पर किसी से मिलना नहीं चाहता हूं। रहना चाहता हूं अलग, भीड़ से, शोर से और शायद दौड़ से। किसी दौड़ में शामिल होने से पहले हजार बार सोचता हूं कि क्या होगा हासिल इस दौड़ को जीत कर भी। इसीलिए पीछे रह जाता हूं दौड़ में।