Sunday, November 5, 2023

विश्व क्रिकेट की दशा और दिशा पर मंथन

90 के दशक में जब हमने क्रिकेट देखना शुरू किया तो पाकिस्तान हम पर हावी हुआ करता था। वकार वसीम आमिर सोहेल सईद अनवर एजाज अहमद यूसुफ योहाना और इंजमाम उल हक के नाम भारतीय प्रशंसकों के दिल में खौफ का पर्याय हुआ करते थे। अरविंद डिसिल्वा रोमेश कालू विठारना चमिंडा वास मुरलीधरन और सनथ जयसूर्या के चेहरे रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेते थे। लारा चंद्रपौल कार्ल हूपर एंब्रोस वाल्श जैसे नाम भारतीयों के जीतने का ख्वाब शायद ही कभी सच होने देते थे। ऑस्ट्रेलिया की क्या बात करें, स्टीव वाग मार्क वाग मैक्ग्रा ली गिलेस्पी बेवन और वार्न तो हर बार भारतीय फैंस का दिल तोड़ जाते थे। यह तो बड़ी टीमें हुई, जिम्बाब्वे के ओलंगा एंडी फ्लावर और हीथ स्ट्रीक जैसे खिलाड़ी भारतीयों को कड़ी टक्कर देकर पराजित करने का माद्दा रखते थे। दक्षिण अफ्रीका की बात करें तो विश्व में न किसी भी टीम के पास डोनाल्ड की तरह तेज गेंदबाज था और न कालिस की तरह कोई हरफनमौला, जोंटी रोड्स की तरह न कोई फील्डर था और न हैंसी क्रोन्ये सरीखा कप्तान।

हालिया वर्षों में या तो विश्व क्रिकेट का स्तर निरंतर गिरा है या भारतीय टीम का स्तर सामान्य से अधिक उठ चुका है। जहां श्रीलंका जिम्बाब्वे और बांग्लादेश की टीम भारत के सामने किसी क्लब स्तर की टीम दिखती है वहीं वेस्ट इंडीज क्रिकेट अपने इतिहास का एक बदसूरत कंकाल से ज्यादा कुछ नहीं दिखता। पाकिस्तान में भी वैसे खिलाड़ी नहीं बचे जो शारजाह और चेन्नई वाली जीतों को दोहरा सकें तो इंग्लैंड की टीम भी हतोत्साहित थके लड़ाकों का एक चुका हुआ झुंड मात्र प्रतीत होता है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अभी भी एक सशक्त टीम हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया अपने 90 और 2000 वाले दशक वाली टीम की एक धूमिल परछाई से ज्यादा कुछ नहीं है।

लगातार मिल रही एकतरफा जीतों और दूसरे टीम का निरंतर गिरता प्रदर्शन भले भारतीय फैंस के लिए आनंद दायक हो, लेकिन विश्व क्रिकेट के लिए यह सुखद संदेश कतई भी नहीं है। क्रिकेट वैसे भी गिनती से 10 देशों में खेला जाता है और वहां भी अगर साथ टीमें अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हों, तो क्रिकेट का भविष्य कोई बहुत उज्जवल प्रतीत नहीं होता।
क्रिकेट की नियामक संस्थाओं खेलने वाले देश के बोर्डों और खिलाड़ियों को मिल बैठ कर एक साझी रणनीति बनानी होगी जिससे क्रिकेट अन्य देशों में भी फैले और उसकी लोकप्रियता में इजाफा हो। एशियाड खेलों में नेपाल का बेहतरीन प्रदर्शन इसका गवाह है कि छोटे छोटे देशों में भी एक से एक क्रिकेटिंग प्रतिभा मौजूद है। अगर अफगानिस्तान जैसे समस्याग्रस्त देश से मौजूदा टीम जैसी एक जुनूनी टीम आ सकती है तो कोई कारण नहीं है कि सही दिशा देने पर आने वाले विश्वकप में 10 की जगह 32 टीमें हिस्सा ना लें। सभी क्रिकेट प्रशंसकों और सभी क्रिकेट के शुभचिंतकों को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।

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