Monday, October 16, 2023

गहरे घाव

गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।
वक्त की पपड़ी के नीचे एक बीज की तरह
बस छुपा करते हैं।

जिनसे फूट पड़ती हैं दर्द की कोंपलें 
जब संवेदना और ग्लानि की नमी पाया करते हैं।

बह निकलती है वेदना की पीव 
जो जड़ें बन कर और गहरी जमा करते हैं।
इंतजार करते हैं गहरे घाव
और वक्त बेवक्त फिर से हरे हुआ करते हैं।

छुपते हैं दो चार दिन वो मुस्कुराते हुए चेहरों के पीछे
लेकिन गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।
गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।






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