दुर्गा पूजा मूर्ति बनाने वाले कुम्हार के लिए है तो नवरात्रि का पाठ करने वाले ब्राह्मण के लिए भी। दुर्गा पूजा मेले में मिठाई की दुकान लगाने वाले हलवाई की है और सजे धजे बाजार में कपड़े की दुकान पर बैठे बनिए की भी है। इस पर्व में पान बेचने वाला पनवाड़ी भी उतना ही शामिल है जितना ढाक की ताल देने वाला ढाक वाला। यह दोनो हाथों में धूपची लेकर नृत्य करते पुरुषों का भी है और सिंदुरखेला करती महिलाओं का भी। यह नवमी को पूजी जाने वाली शक्ति स्वरूपा बच्चियों के लिए भी है और उनके साथ पंगत में बैठ कर खाने वाले उनके छोटे बालक भाइयों के लिए भी है। दुर्गा पूजा नारीवाद का उत्सव है और जननी का महोत्सव है।
यह मां की प्रतिमा को साष्टांग करते भक्तों का भी है और मां की प्रतिमा के साथ सेल्फी लेते gen Z की पीढ़ी का भी है। कोलकाता भी गलियों में गूंजते शंखध्वनि की आवाज के बीच भी दुर्गा पूजा है और न्यू जर्सी में बंगाली एसोसिशन द्वारा सात समंदर पार भी पूजोर आनंद भरपूर है।
साल भर नौकरी की चक्की में पिसने के बाद परिवार के साथ एक सप्ताह भर भक्ति, उल्लास के बीच गुनगुनाती ठंड के मौसम में समय व्यतीत करना , अगर यह मां का आशीर्वाद नहीं है तो और क्या है। शारदीय पर्व सबका है, सर्व समावेशी है, सर्व रस से सिक्त है और मां के नाम की तरह सर्व सिद्धिदात्री है।
मां आप सबका कल्याण करे। दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं।।
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