गदर चीज ही ऐसी है जो अक्सरहां बुड्ढे ही मचाते हैं। फिल्मी पर्दा हो तो 65 साल के सनी पाजी गदर मचाते हैं और असली जिंदगी वाला गदर हो तो 80 साल के बाबू कुंवर सिंह ।
जवानी तो कमबख्त काम करने और आटा चावल जमा करने में गुजर जाती है। उसके पास गदर के लिए वक्त कहां। और अगर वक्त निकाल भी लें तो वह अनुभव कहां । बुढ़ापे में वक्त भी है और अनुभव भी है । बुढ़ापे में खोने के लिए बचता नहीं। और जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है वह सब कुछ पाने के लिए जान लगा देता है ।
गदर के बाद ही स्वतंत्रता मिली है। इसकी कीमत समझें और सोच समझ कर उपभोग करें । वो महंगी वाली बोतलों पर लिखा रहता है ना कि Drink Responsibly!! स्वतंत्रता के साथ भी ऐसा ही है। बिना सोचे समझे अगर ज्यादा सर को चढ़ा ली तो बस नाली में जाकर गिरना तय है। बाकी चलिए रहा है।
वैसे आप कहोगे 65 साल के सनी पाजी को आप बुड्ढा कहते हो और 72 साल के रजनीकांत सर जिनकी फिल्म जेलर भी गदर के साथ ही रिलीज हुई है उनको बुड्ढा नहीं कहते । तो हम कहेंगे कि रजनीकांत को बुढ़ापा नहीं आता , बुढ़ापे को रजनीकांत आता है और जब बुढ़ापे पर रजनीकांत आ जाता है तो वही बुढ़ापा गदर मचाता है।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
No comments:
Post a Comment