Wednesday, December 29, 2021

काले के गर्भ भी छुपा प्रकाश

सांप और रस्सी में फर्क पता न चलना अंधेरे का पहला लक्षण है। सहयोगी से भय और आक्रांता से मित्रवत व्यवहार व्यक्ति के अंधकार में होने का द्योतक है। अंधेरे में हर रंग एक सा दिखता है। निर्णय की क्षमता मंद पड़ जाती है। क्या हरा और क्या लाल, सारे रंग बराबर। अंधकार की एक और खासियत यह है कि वो हर रंग पर छा जाता है और उसपर कोई रंग नहीं चढ़ता। काला रंग अंधेरे का है और अंधेरे में कुछ नजर नहीं आता। इस अंधेरे का कमाल यह है कि एक लंबे समय तक अंधेरे की मोटी चादर के नीचे दबे रहने के बाद हरे भरे पेड़ भी काला कोयला बन जाते हैं। काले घुप अंधेरे में चलती ठंढी हवा भी सुकून की जगह सनसनी पैदा करती है। सूखे गिरे रंगीन पत्ते जो दिन की रोशनी में जंगल का सौंदर्य बढ़ाते नजर आते हैं, अंधेरे के साम्राज्य में अपनी सामान्य खड़खड़ाहट से भयभीत ही करते हैं। अंधेरा हर गुण को ढक देता है और हर अवगुण को उभारने का प्रयास करता है। रात के काले अंधेरे में कदाचित सद्चरित आत्मा भी कलुषित शक्तियों के सामने अपने आप को विवश पाती हैं। 
लेकिन काले का यह साम्राज्य तब तक ही रहता है जब तक ज्ञान का कोई दीपक अपना प्रकाश ना फैलाने लगे। प्रकाश के आते ही ना केवल सांप और रस्सी का भ्रम दूर हो जाता है बल्कि सांप से बचने और उस बेजुबान बचाने तक का काम करने की संभावना बन जाती है। रोशनी की छटा में हर रंग का सौंदर्य इंद्रधनुष बन कर दिखने लगता है । यहां तक कि काले रंग का तिल भी किसी नवयौवना के सौंदर्य को बढ़ाने लगता है और काले रंग का काजल टीका नवजात को नजर से बचाने लगता है। धूप पड़ने पर काली मिट्टी सफेद कपास देकर मानव मात्र को परिधान प्रदान करते लगती है। काले का साम्राज्य भयावह जरूर होता है लेकिन यह धनात्मक शक्तियों को एक जुट होने का एक अवसर प्रदान करता है। मां की कोख का अंधेरा एक जीवन को निर्मित करता है और उसी प्रकार अंधकार युग की गर्भ से पुनर्जागरण का जन्म होता है।

 काले अंधकार के सामने समर्पण करने की जगह अपने अंदर उस प्रकाश पुंज को जगाएं फिर देखिए कि कैसे काला कोयला भी जलकर रोशनी और ऊर्जा प्रदान करने लगता है। 

Saturday, December 25, 2021

पान : देश का सांस्कृतिक नक्शा

देश का नक्शा सिर्फ वो नहीं है जो कागज़ पर उकेरा जाय। सबसे बढ़िया नक्शा तो पान के एक पत्ते पर उकेरा जाता है। पान का पत्ता मगही वाला हो तो मगध क्षेत्र को दिखाता है। उसमें पड़ने वाला कत्था हिमाचल के जंगलों को दिखाती है। चूना राजस्थान का प्रतिनिधित्व करता है। उसकी गुलकंद महाराष्ट्र से आती है। लौंग और इलायची केरल की पहाड़ियों से आती है। केसर कश्मीर से आती है। सुपारी तटीय ओडिशा, आंध्र का स्वाद लेकर आती है। सुगंधित जर्दा अवध क्षेत्र को इंगित करता है। पान में पड़ने वाला किमाम गुजरात से आता है। तो पान को मोड़ने की कला बनारस को दिखाती है । पान की डंठल पर लगा चूना मानो अंडमान की तरह मुख्य नक्शे से थोड़ा अलग होकर भी नक्शे का अभिन्न अंग बन जाता है। और पान को खाने के बाद तो लाली छाती है वो मेघालय और मणिपुर की किसी नवयुवती के धूप पड़ने से हुए सुर्ख रुखसार को दिखाती है।


भारत के नक्शे को पान के एक बीड़े के बेहतर मीठे अंदाज में और कोई बयां नहीं कर सकता। कागजी नक्शा या तो राजनीतिक होता है या भौतिक। लेकिन भारत के सांस्कृतिक नक्शे को पान के एक पत्ते पर ही उकेरा जा सकता है। पूरे भारत का स्वाद सबसे आसानी से आपको एक पान ही दे सकता है। 

Friday, December 24, 2021

मेरे गांव की यह सड़क

मेरे गांव को शहर से जोड़ती 
मेरे गांव की यह सड़क।

सुबह को गाडियां 
सिर्फ जाती है शहर की ओर 
भर कर दूध , सब्जी, फल,
शाम में लौटेगी खाली गाडियां,
ले कागज़ के चंद टुकड़े 
कुछ तुड़े मुड़े कुछ कड़क।

पूरे घाटे का सौदा करवाती
मेरे गांव की यह सड़क।
कहते हैं गांव वाले कि
जाते हैं शहर
सपनों की तलाश में,
लेकिन जानते हैं लेकिन नींद 
तो लौट गांव में ही आएगी,
क्योंकि शहर में आंख लगने पर
मिलती मालिक की झिड़क।

ऊंघते झूमतों को वापस घर लाती
मेरे गांव की यह सड़क।

ले जाती हर सुबह
मेरे गांव से युवा ऊर्जा
से भरे चेहरे 
लबालब शरीर मेहनत और स्पन्द से।
शाम में वापस लेकर आती
लौटते भरे धूल से सने बदन
स्वेद से भीगी हर रग
थकी हर हरकत थकी हर धड़क।

थकाने के खेल में कभी न थकती
मेरे गांव की यह सड़क।

मेरे गांव को शहर से जोड़ती 
मेरे गांव की यह सड़क।





Thursday, December 16, 2021

फोन और रिश्ते

रिश्ते पहले होते थे
पुराने मोबाइल फोन की तरह,
जल्दी टूटते नहीं थे।
हाथों से गिर जाए तो
भले ही खुल जाता था,
मोबाइल का कवर
और बिखर जाती थी बैटरी,
निकल जाता था सिम
लेकिन एक क्षण में
वापस से जुड़ भी जाता था।
और फिर से काम करने लगता था फोन
जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
जैसे कुछ टूटा ही ना हो।

आज के फोन अगर 
हाथों से गिर जाए
तो तुरंत आ जाती है दरार,
कुछ भी दिखना बंद हो जाता है,
भले ही अंदर बैटरी हो दुरुस्त,
और ना कोई शिकायत न हो सिम में। 
लेकिन अब टूटे फोन का कोई इलाज नहीं,
उसको जोड़ने का कोई उपाय नहीं।
अब नहीं हो पाएगी इससे कोई बात,
कह कर छुड़ा लेते हैं दामन सब।
सब ले लेते हैं एक नया फोन।
एक चोट नहीं सह पाता 
एक बार गिरने के बाद 
उठता नहीं नया फोन।

पुराना फोन नहीं था उतना बातूनी
नहीं रख पाता था याद,
 पचास से ज्यादा लोगों के नाम
ना ही याद रख पाता था ।
पंद्रह से ज्यादा पुराने संदेश।
पिछली यादों और ढेर सारे दोस्तों
का बोझा नहीं था उसके सर।
जीता था वर्तमान में भुलाकर पिछली बातें।
इसलिए शायद भूल जाता था
अपनी चोट को,
अपने गिरने को भुला कर,
वापस से बातें करने लगता था।

नया फोन है बहुत बातूनी,
बना सकता है हजारों दोस्त,
याद रखता है नए पुराने सारे संदेश,
अपने अतीत से बाहर नहीं आ पाता।
हर पुरानी रंजिश याद रहती है इसे।
किसी बड़े से तहखाने में छुपाए रखता है,
सारे गम सारे राज सारे दर्द,
इसीलिए नहीं सह पाता
गिरने का दर्द।
बिना टूटे बिखर जाता है,
बिना बिखरे टूट जाता है,
कुव्वत नहीं बची एक दरार तक सहने की 
नए फोन में।

पुराना फोन करता जब किसी से बातें
 तो करता पूरे दिल से बातें ,
जब अपने पालतू सांप से खेलता
तो पूरा ध्यान अपने सांप पर ही रखता,
नया फोन एक साथ ही कर सकता है 
बातें करना और गेम खेलना।
समझ नहीं आता कि बातें हो रही हैं
या गेम चल रहा है।
पुराना फोन था साधारण
बेवकूफ सा
जो अंदर वो ही बाहर।
नया फोन रख सकता है
एक साथ दो दो सिम ।
बिना सिम के भी चल लेता है! 
पता नहीं चलता फोन देख कर,
कि कौन सा वाला नंबर 
बात कर रहा है।
पुराना फोन हमेशा एक ही
नंबर रखता था अंदर,
दुहराव नहीं था उसके अंदर,
इसीलिए शायद मजबूत था
अंदर से।
झेल सकता था झटके 
चोट और बेतहाशा खरोचों को।

नया फोन शायद
 जानता भी नहीं खुद को
इसीलिए नहीं समेट पाता ।
एक हल्की सी दरार,
और पड़ा पाता है खुद को
कचरे के अंबार में,
जहां उसके साथ पड़े होते हैं
कई और नए फोन।
कुछ तो ऐसे जिनमें दरार तक नहीं,
पर जिन्हें नकार दिया गया
क्योंकि उनसे भी नया फोन 
आ गया था बाजार में।

और पुराने फोन तो चल लेते थे
रबर से बंध कर भी
टूटे शीशे के साथ
घिसे कीपैड के साथ
और मुंह फुलाए फूफा 
जैसे बैटरी के साथ भी।
नए रिश्ते हैं नए फोन सरीखे
डिस्प्ले बड़ा लेकिन बैटरी बैकअप कम है
महंगे हों भले पर कीमती कम है।

शायद पुराना फोन बताता है 
हमें कि हमेशा अच्छी नहीं होती,
ज्यादा बेहतरी और बेहिसाब उपयोगिता।
कुछ चीज़ें पुरानी ही अच्छी हैं,
कम बेहतर होकर ही लाजवाब हैं,
कम उपयोगी होकर भी ज्यादा अजीज हैं।








the real glorious moment

This photo is generally considered the epitome of valor and bravery of Indian armed forces. An enemy officer signing at the extact same dotted lines with his bowed head where our army officer is directing him to sign. An absolute surrender by the enemy without any preconditions.
This is a perfect moment capturing our glory but this was no the first time an army had surrendered. There are many many instances in world history where armies had surrendered meekly. But what happened after this surrender has no precedence in history.

All 95000 surrendered soldiers were kept as guests. Defeated armies were given priority in distributing the limited resources available to the victorious Indian soldiers. Pakistani armies slept under the tents with a bed while our jawans slept under the sky. Not a single soldier was touched or harmed and they were returned to the safety of their homes with honor. They were not used as kidnapped people to extract any leverage during political negotiations held after the war. If indian army wanted to take any revenge from the captured Pakistanis, they didn't have to even lift their finger. All they had to do was to vacate the place and mukti vahini would have reciprocated the same treatment Bangladeshi people had received in operation searchlight.

The display of ethics and human values  post this moment is unparalleled in history. The real glory moments came after this pic. This only shows the deep-rooted civilization which separates us from rest of the world. Jai Hind.

Sunday, December 12, 2021

हरि अनंत हरि कथा अनंता

हिंदी में एक कहावत है सब्ज बाग दिखाना। इसका मतलब होता है धोखा देने के इरादे किसी को बडे बड़े वादे करना। वैसे अगर इस मुहावरे के शब्दार्थ देखें तो इसका अर्थ हुआ किसी को हरे बाग दिखाना। सब्ज़ का अर्थ होता है हरा। इस हिसाब से सब्जी हरी ही होती है। फिर तो 'हरी सब्जी ' कहना गलत है क्योंकि इसमें दोहराव का दोष है। 

फिर सोचा कि इतने दिनों से हरी सब्जी का लोग प्रयोग करते हैं किसी ने इस दोष की तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया। वास्तव में इसमें दोहराव का दोष नहीं है। हरी सब्जी में हरी शब्द का अर्थ रंग के संदर्भ में नहीं है। यहां हरी शब्द का अर्थ है ताजा। हरी शब्द का ताजे के अर्थ में इस्तेमाल एक और मुहावरे में होता है। घाव हरे हो जाना। इसका अर्थ भी यहां रंग ना होकर ताजा से ही है। मतलब 'हरी सब्जी' कहना बिलकुल सही है। यह तो शब्द हरी का एक अर्थ विन्यास है। अगर हरी में प्रयुक्त दीर्घ ई की मात्रा हृस्व में बदल जाय तो हरि बन जाता है।
 हरि शब्द के अर्थों का फैलाव हरी शब्द से कहीं ज्यादा है। हरि का अर्थ ईश्वर से है और कहा भी गया है "हरि अनंत हरि कथा अनंता"। वैसे हरि शब्द का अर्थ अगर रंग के रूप में भी हो सकता है । वहां  इसका अर्थ पीलापन लिए हरे रंग की तरफ होता है। बादामी और भूरे रंग को भी हरि कहा जाता है। 

हरि और हरी शब्द में एक और संबंध है। हरि शब्द का संस्कृत में द्विवचन हरी होता है।यद्यपि हिंदी में द्विवचन का विलोप हो चुका है इसीलिए हरी / हरि का यह प्रयोग हिंदी में दुर्लभ है। हरि शब्द घोड़ा, बंदर ,सिंह, मेंढक, तोता , गीदड़,  हंस, सांप किसी भी जानवर के  लिए प्रयुक्त हो सकता है। तो संस्कृत में हरी का अर्थ ऊपर लिखे किसी भी जंतु के जोड़े के लिए प्रयुक्त हो सकता है। 

हरि शब्द का एक और विशेषार्थ देखिए। हरिखंड का अर्थ जहां मोरपंख होता है , हरिगंध का अर्थ मोर की गंध न होकर चंदन का पेड़ होता है। हरिकेश शब्द का अर्थ हरे बालों वाला ना होकर भूरे बालों वाला होता है। 
हिंदी शब्द सागर और इसकी गहराइयों का अंदाजा इतनी जल्दी से नहीं लगाया जा सकता। सिर्फ हरी / हरि शब्द से जब इतने अर्थ निकल सकते हैं तो हिंदी का खजाना कितना अकूत है इसका अंदाज जल्दबाजी में नहीं बल्कि आराम से ही लगाया जा सकता है। 

महाकवि जायसी ने लिखा है, 
सूखा हिया हार भा भारी,
हरि हरि प्रान तजहिं सब नारी।
जायसी ने यहां हरि हरि शब्द का प्रयोग धीरे धीरे के रूप में है। हरि का अर्थ और शब्द इतिहास जानने के लिए यह एक छोटी सी बानगी भर था। 

हरि बोल। 

Saturday, December 11, 2021

न्यूज चैनल्स से कुछ शिकायतें

हमारे समाचार चैनल किसी टॉपिक को इतने डीटेल में कवर करते हैं कि आईएएस की तैयारी करवाने वाला टीचर भी न करवा पाया आजतक। अब जैसे कटरीना की शादी को ही लें। दुल्हन के कपड़े, बारात के खाने से लेकर सलाद के लिए मूली और प्याज किस दुकान से आए सब बता दिया। इतनी जानकारी दे दी कि यूपीएससी के पेपर का निबंध तक लिख डालें दर्शक। 
होना भी चाहिए आखिर एक समाचार चैनल एक अच्छे टीचर की तरह होता है। अच्छा टीचर तो वोही है जो जरूरी टॉपिक को अच्छे से पढ़ाए और जो जरूरी नहीं है उसको छोड़ दे। तो भईया ऐसा है कि यह जरूरी और गैर जरूरी हमारे समाचार चैनल से बेहतर कोई नहीं समझता। अब जैसे देखो संसद का सत्र चल रहा है ,कौन कौन से बिल पेश हुए, पास हुए तो क्या होगा, बिलकुल गैरजरूरी टॉपिक है। विषय ऐसा होना चाहिए जो छात्र आनंद से पढ़े और सुने। इसीलिए तो हमारे न्यूजचैनल पंजाब की ड्रग्स समस्या की जगह आपको पंजाब की हनीप्रीत के बारे में बताते हैं।
लेकिन मुझे कुछ शिकायत भी है। अच्छा टीचर न केवल टॉपिक पढ़ाता है, रिवाइज भी करवाता है। तुम न्यूज चैनल वाले लोग, यार पढ़ाते समय तो अच्छे से पढ़ा देते हो, रिवाइज करवाना भूल जाते। अब बताओ, राज कुंद्रा के गिरफ्तार होने पर तुमने कितना डीटेल में बताया था कि कैसे शिल्पा भाभी पछाड़ खा कर रो रही हैं, राज बाबू के ऐप का यह नाम है, उसके वेबसाइट का यह नाम है। राज भईया ने शिल्पा भाभी को क्या गिफ्ट दिया था अपने बच्चे के मुंडन पर। अब जब राज भैया बाहर आ गए तो तुम वो टॉपिक बिल्कुल भी ना बता रहे। बच्चे जानना चाहते हैं कि राज भैया अब क्या कर रहे हैं। घर पर खाली बैठे शिल्पा भाभी की रोटियां तो तोड़ ना रहे होंगे। कुछ तो नया कर रहे होंगे। दिक्कत यह है कि युवा पीढ़ी ने सारे ऐप सारे वेबसाइट खंगाल डाले, राज भैया का कोई नया काम न दिख रहा। तो उस टॉपिक को रिवाइज करने की जरूरत है।

‌कुछ टॉपिक आज आधा पढ़ा के छोड़ देते हो। जैसे तैमूर के बारे में तो सब बताया। क्या नाश्ता करता है, कब पॉटी जाता है, क्या नाश्ता करने पर पॉटी किस कलर का करता है, लेकिन उसके भाई ने कौन सा गुनाह कर दिया कि उसका नाम तक न ले रहे। आखिर वो भी तो सैफीना के घर का बच्चा है। कल को सैफीना पर शॉर्ट नोट लिखने को पूछ लिए तो बस मुंह ताकते रह जाएंगे बच्चे। कुछ सोचो उस बारे में। यह तो वोही हाल हो गया पटना के फिजिक्स टीचर का, मैकेनिक्स ही साल भर पढ़ाते थे और ऑप्टिक्स और मॉडर्न पढ़ाना ही छोड़ देते थे। 

‌और हां, अच्छे टीचर की तरह डाउट क्लियरिंग सेशन भी रखा करो बीच बीच में। डीटेल में पढ़ाने के बावजूद भी बच्चों को बहुत सारे डाउट रह ही जाते हैं। जैसे बच्चे जानना चाहते हैं कि रिया चक्रवर्ती जो काला जादू जानती थी वो उसने किससे सीखा था ? इंद्राणी मुखर्जी वाला काला जादू रिया वाले काले जादू से कैसे अलग है? अपने आशाराम बाबा की जादुई टार्च और राम रहीम की जादुई गुफा का जादू और काला जादू में क्या संबंध है। अब तुमने यह तो बता दिया कि एलियन गाय का दूध पीते हैं लेकिन बच्चों के मन में डाउट रह है कि उधर भी पेटा समर्थक वीगन सेलिब्रिटी एलियन भी हैं क्या जो विराट कोहली की तरह गाय का नहीं बल्कि सोया मिल्क पीते हैं। कम से कम कोई न कोई एक एलियन तो होगा जो अपने फिगर को मेंटेन करने के लिए टू परसेंट दूध पीता होगा। ऐसा कैसे चलेगा एलियन की न्यूज सुनाने वाली दीदी। कभी गड्ढे वाले प्रिंस से दुबारा मिलवाओ, अब तक तो काफी बड़ा हो गया होगा, शायद उसका बच्चा हो गया हो गड्ढे में गिरने लायक। उसका इंटरव्यू करो कि क्या वो अपने बाप के नक्शे कदम पर चलने को तैयार है। 
बाकी तो सब ठीक है लेकिन थोड़ा नोट्स भी मिल जाता तो कॉम्प्लेक्स टॉपिक समझना आसान हो जाता। अब आप हर न्यूज को ब्रेकिंग न्यूज, हर पत्रकार को वरिष्ठ पत्रकार और हर आतंकवादी को एरिया कमांडर और हर राजनीतिक को चाणक्य और हर चाल को मास्टरस्ट्रोक बता देते हो तो कभी कभी कन्फ्यूजन हो जाता है । हम गलती से वरिष्ठ पत्रकार की जगह वरिष्ठ चाणक्य और वरिष्ठ मास्टरस्ट्रोक लिख लेते हैं। थोड़ा शॉर्ट नोट्स भी मिल जाता तो कांसेप्ट क्लियर हो जाता।

बाकी और लिखता लेकिन अमीश देवगन सर का आर पार शो देखने का टाइम हो रहा है। एलियन की कसम, बचपन में wwe में अंडरटेकर और हल्क होगन की फाइट देखने में उतना मजा नहीं आता था जितने अमीश सर के क्लास में डिबेट देखने में आता है। पॉलिटी के सारे टॉपिक तो अमीश सर भी कवर करा देते हैं लेकिन यूपीएससी हमेशा की तरह अपनी गुंडई से बाज नहीं आता और हमेशा आउट ऑफ सिलेबस प्रश्न पूछता रहता है। 

Friday, December 10, 2021

जनरल रावत की शहादत

बच्चे की जान लोगे क्या?
अब क्या जान दे दूं?
जान से बढ़कर थोड़े ना है!
जान लगा दूंगा इसके लिए।
जान है तो जहान है।
थोड़ा शांत रहो।किसकी जान निकली जा रही है?
कुछ भी करो पर जान बचा लो।
जान बची तो लाखों पाए।
जान देकर भी कर्ज ना चुका पाऊंगा।

यह मुहावरों की अधूरी सूची सिर्फ इस लिए ताकि आप जान की कीमत का एक अंदाजा लगा सकें। और शायद बिपिन रावत और उनके साथी सैनिकों के बलिदान की कीमत समझ पाएं।
#NeverForget

Wednesday, December 8, 2021

dogs deserve better

We have always read that Dogs are man's best friend but we never read that men are dog's best friend. 

So if dog fulfills all duties of being a friend but human don't, dog-human relationship should not be termed as friendship. It is simply humans taking advantage of a trusting creature but hardly giving back anything. It is a viscous cocktail of exploitation, slavery, patronization and emotional blackmail. We humans just present a classic case of euphemism when we name dog-human relationship as friendship. Dogs deserve better.

Sunday, December 5, 2021

Security suggestions for VicKat wedding

Suggestions to Katrina and Vickey kaushal for foolproof security and less guests for their wedding..

Trump : Build a wall around the venue and strike a deal with the guests so that they pay for it.

Tikait : aane jaane wale saare raaston per  tent laga do.. udhar hi Langer DJ dance ka program rakh do.. shaadi se jyada maza isi mein hain. Shaadi mein kon aayega phir.

School teachers : Wedding library mein kar do.. waise bhi koi library nahin jaata.

BCCI : Wedding bio bubble mein karwao.. hotstar ko broadcasting rights bech kar millions kamao.. paise aur security dono..
Kejriwal : Guests ko announce kar do ki wedding venue per pani ki supply Yamuna ke pure water supply se ho rahi hai.. 

Nitsh ji: Take my police to search the venue and guests for bottles..

Shiv Sena: Declare that wedding is only allowed for Marathi manush and invite no Marathi manus.

BJP: Adopt our election slogan that shaadi mein koi aur nahin aayega.. aayega to modi hi..

Congress: Order Bofors and Rafael for the security. By the time security arrives, both bride and groom will be old and ugly.. no one will be interested in the wedding anyway.

Omicron virus: Ha ha . nice try..

A Dead horse and MBA

An uneducated person when discovers that he is riding a dead horse, 
the best strategy he follows is to dismount. 

MBA graduate, however, often try other strategies because they are highly educated..
These include...
1. Buying a stronger whip.
2. Changing riders.
3. Saying things like, "This is the way we always have ridden this horse".
4. Appointing a committee to study the horse.
5. Arranging to visit other sites to see how they ride dead horses.
6. Increasing the standards to ride dead horses.
7. Appointing a tiger team to revive the dead horse.
8. Creating a training session to increase our riding ability.
9. Comparing the state of dead horses in today's environment.
10. Change the requirements declaring that, "This horse is not dead".
11. Hire contractors to ride the dead horse.
12. Harnessing several dead horses together for increased speed.
13. Declaring that, "No horse is too dead to beat."
14. Providing additional funding to increase the horse's performance.
15. Do a Cost Analysis Study to see if contractors can ride it cheaper.
16. Purchase a product to make dead horses run faster.
17. Declare the horse is now "better, faster and cheaper."
18. Form a quality circle to find uses for dead horses.
19. Revisit the performance requirements for horses.
20. Say this horse was procured with cost as an independent variable.
21. Promote the dead horse to a supervisory position.
22. Setting up weekly review meeting to see if dead horse is gradually coming back to life.

23. Setting up a war room for aggressive whipping and its proper feedback.

24. Switching to agile mode of whipping instead of waterfall mode of whipping.

25. Telling the dead horse about the incentives if he starts running

26. Annoucing up an IPO to sell the dead horse. 

27. Declaring the horse will come to life if AI, Blockchain and machine learning techniques are used.
28. Allowing the dead horse to work from home so that it can have a better work life balance.
29. Asking dead horse to attend team building activities held by HR team so that he can be motivated.

Which one have you used?

#InspiredPost

Saturday, December 4, 2021

टकराना और प्यार

फिल्मों में दिखाते हैं कि एक कुंवारा लड़का और एक कुंवारी लड़की टकरा जाते हैं। लड़की के हाथ से किताबें, फूल, कागज गिर कर बिखर जाते हैं। लड़का समेटने में उसकी मदद करता है और दोनो एक दूसरे की आंखों में देखते हैं। पीछे वायलिन बजने लगता है और एक मिनट में प्यार हो जाता है। ~ यह है काल्पनिक दुनिया का प्यार।
असल जिंदगी में घर पर अगर पति पत्नी टकरा जाएं और बीवी के हाथ से ऊन का गोला, आटे का बर्तन, फोन या कचरे का डब्बा ही गिर कर बिखर जाय, तो पति अपनी पत्नी की क्या,  किसी की मदद के लायक नहीं रहता। पति की आंखें बंद हो जाती हैं लेकिन अपने कानों को कौन बंद सकता है। आगे पीछे ऊपर नीचे हर तरफ से वीर रस और वीभत्स रस के शब्द बाणों की बारिश होने लगती है जिसमें करुण रस में पहले से डूबा पति जलसमाधि ले लेता है। यह सब एक मिनट में हो जाता है। ~ यह है वास्तविक जीवन की हकीकत।

जोखिम जाने बिना निवेश जुए के बराबर

उदारीकरण की नीति को संसद में पेश करते समय डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि दुनिया की कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ चुका है। हालिया समय को देखें तो डिजिटल मुद्रा कुछ ऐसी ही संकल्पना लगती है। आने वाले समय में जीवन के हरेक पक्ष में डिजिटल का समावेश होना ही है, लेकिन क्या डिजिटल मुद्रा का मतलब क्रिप्टो करेंसी से ही है। क्रिप्टो करेंसी और इसमें बढ़ते निवेश और लोगों की उत्सुकता ने इस प्रश्न को और भी गंभीर बना दिया है।

मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं, पहला विनिमय का माध्यम और मूल्य का संचयन। जब तक किसी देश की केंद्रीय बैंकिंग संस्था किसी भी मुद्रा को लीगल टेंडर का दर्जा नहीं से देती, वो उपरोक्त दोनों मानकों पर खरी नहीं उतरती। 

भारतीय मध्यवर्ग जो चिटफंड में अपने पैसे के डूबने और यस बैंक में अपने पैसे फंसे होने पर सरकार का मुंह ताकती है, और यहां तक कि शेयर मार्केट के नीचे जाने पर भी सरकार से यह आशा रखती है कि सरकार कुछ करके सेंसेक्स को ऊपर ले जाए, क्रिप्टो करेंसी से जुड़े जोखिम को लेने को तैयार नहीं दिखता।

जोखिम लेना तो दूर अधिकतर लोग जोखिम को समझने की स्थिति में नहीं हैं। आर्थिक साक्षरता और तकनीकी ज्ञान के अभाव का ही प्रमाण है कि हमारे देश में बैंक से जुड़े इतने ठगी के मामले आते हैं। रही बात क्रिप्टो में बढ़ रहे निवेश को लेकर, तो यह कुछ ऐसा ही है जैसे छत्तीसगढ़ से एक स्कूली बालक के गाने 'बचपन का प्यार' रातों रात सबकी जुबान पर चढ़ गया। इसका अर्थ कतई नहीं है कि इसके गाने को सुनने वाले संगीत के जानकर थे या उस बालक में गाने की कोई नैसर्गिक प्रतिभा थी। यहां तक कि कुछ मीम कोइंस, जैसे कि डॉग कॉइंस, की सफलता यह दिखाती है कि वर्तमान में क्रिप्टो की सफलता का कोई मजबूत आधार नहीं है बल्कि यह भीड़ की बेकाबू भावनाओं के उबाल पर आधारित है जिसका ठोस आधार नहीं है।

हां यह बात अलग है कि हम इस डिजिटल युग में क्रिप्टो मुद्रा से आंख मूंद कर नहीं रह सकते। इसका उपाय यह है भारतीय सरकार अपनी एक डिजिटल मुद्रा जारी कर सकती है और इसके पीछे की ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित सप्लाई चेन, बैंकिंग , प्रशासन सब पर कार्य किया जा सकता है। प्रधानमंत्री वैसे भी औद्योगिक क्रांति 4.0 में भारतीयों के नेतृत्व को अपने विजन का हिस्सा मानते हैं, तो ब्लॉक चेन और उसपर आधारित मुद्रा को नज़रंदाज़ करना बड़ी भूल होगी।

यह सच है कि भविष्य डिजिटल है लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आधी अधूरी तैयारी के साथ इस मैदान में उतरा जाय क्योंकि इससे जुड़े खतरों और जोखिम को लेने के लिए ना हमारा समाज तैयार दिखता है और ना ही अर्थव्यवस्था। मुहम्मद बिन तुगलक ने तांबे की मुद्रा चलाई तो हर सुनार की दुकान टकसाल बन गई थी। अगर क्रिप्टो करेंसी को निर्बाध छूट दे दी गई तो कमजोर अर्थव्यवस्था , कम जोखिम लेने की क्षमता, आतंकवाद , ब्लैक अर्थव्यवस्था से जूझते देश के सामने कई नई समस्याएं आ सकती हैं। खास कर प्राइवेट करेंसी जहां पारदर्शिता का बिलकुल अभाव है, इन समस्याओं को कई गुना बढ़ा सकती है।


वर्तमान में प्राइवेट क्रिप्टो मुद्रा ड्रग्स का व्यापार करने वालों, फिरौती मांगने और दूसरे अवैध व्यापार करने वालों के लिए वरदान से कम नहीं है। क्योंकि इसमें पैसे भेजने वाले और पैसे पाने वाले दोनो की पहचान गुप्त रहती है। इसपर न कराधान हो सकता है और ना ही करवंचना पर कोई दंड देना संभव है। जिस प्रकार तुगलक काल में हर सुनार की दुकान एक टकसाल बन गया था, उसी प्रकार प्रकार के हालात आज दिखते हैं जहां हजारों क्रिप्टो करेंसी बाजार में आ चुकी है। एक सुझाव यह भी दिया जा रहा है कि क्रिप्टो करेंसी को मुद्रा का नहीं तो कम से कम कमोडिटी का दर्जा दे दिया जाय जिससे इसकी ट्रेडिंग की जा सके। यह सुझाव भी इस मामले में सही नहीं दिखता क्योंकि हर कमोडिटी के मूल्य निर्धारण के लिए हमारे पास जितने पैमाने हैं उनमें से किसी का भी प्रयोग कर हम इनका वास्तविक मूल्य निर्धारण नहीं कर सकते। अगर इसका कोई वास्तविक मूल्य निर्धारित नहीं किया जा सकता तो क्रिप्टो की ट्रेडिग और जुए में कोई खास अंतर नहीं है।

सच्चाई यह भी है कि पूरे विश्व की सरकार इसको लेकर असमंजस में हैं। एकाध छोटे देशों को छोड़कर किसी ने भी इनको मान्यता नहीं दी है। भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को, जहां मानवता का एक पांचवा हिस्सा निवास करता है और जो भूख और गरीबी से अपनी लड़ाई जारी रखे हुए है, कोई भी कदम सोच समझ कर ही उठाना चाहिए। व्यक्तिगत निवेशकों को भी यह समझना चाहिए कि निवेश और जुआ अलग अलग चीजें हैं। जोखिम को समझे बिना समझे किया गया निवेश जुए के ही बराबर है और जुआ खेल हो सकता है कमाई का का आधार नहीं।

Thursday, December 2, 2021

आप कतार में हैं

इंतजार करिए कि
 आप कतार में हैं।
करिए अपनी बारी का इंतजार
आप कतार में हैं।
हैं सख्त बड़े कानून उसके
आप जिस कतार में हैं
बस सीधा चलते जाना है 
उनके पीछे जो आपसे आगे
खड़े कतार में हैं।

मचाएगी शोर आपके
 पीछे वाली भीड़,
सर पर उठाएंगे आसमान
 आपके आगे वाले,
अगर तोड़ कर आगे जाने की कोशिश,
समवेत स्वर में आपको
 याद दिलाया जायेगा,
अरे भई, हम भी कतार में हैं
आप कतार में हैं।

झेलनी होगी पीछे वालों के ताने
थोड़ा तेज चलो भाई,
सामने वाले सुनाएंगे झल्ला कर
थोड़ा सब्र करो भाई,
गर एक कदम भी चले
कतार की रफ्तार से अलग ,
याद दिलाएगी दुनिया 
समेट लो अपने डैने कि
आप कतार में हैं।
ना आगे वाले को पता
ना पीछे वाले को पता,
कि क्यों खड़े हैं कतार में।
अकेले में वे बताएंगे कि
देखी भीड़ तो सोचा कि
कुछ अच्छा ही होगा।
तभी तो लगी है भीड़
और लंबी लगी कतार है।
बिन पतवार की नाव जैसे 
जाती उधर ही जिधर की बयार है।
लगा हूं जिसके लिए कतार में
 क्या मिल जायेगी खुशी मिल जाने पर
या हम भुलावे के संसार में हैं,
आप कतार में हैं।

अलग सा सुनसान रास्ता
ना भीड़ और न शोर
उधर न कोई कतार है,
ना आगे कोई जिसके
 पीछे चलना हो,
ना पीछे कोई जिसके आगे 
निकलने से डरना हो,
अलग है और बीहड़ है यह रास्ता
सपाट नहीं बिल्कुल ।
कौन जाने, एक कदम सड़क पर 
अगला कदम दरार में है।
भले इस रास्ते पर मेहनत और
किस्मत तकरार में हैं,
पर अनजान रास्तों में चलते
मुकाबला होता खुद से,
दिल सुकून और करार में हैं।
अकेली राह, अकेला सफर
पर कम से कम यह इत्मीनान कि
अब मेरी मेहनत, मंजिल और मंशा
 एक कतार में हैं।

Sunday, November 28, 2021

टेंपू की पिछली सीट के सुख की क्षणभंगुर माया

टेंपू में पीछे बैठे पुरुष का सुख उतना ही क्षणिक होता है जैसे कमल दल पर पड़े तुहिन कणों का जीवन। सूरज की किरणें आई नहीं कि ओस की बूंदें अपने कमलासन को छोड़ने को विवश हो जाती हैं।

टेंपू की पिछली सीट पर बैठे पुरुष को कब कह दिया जाय कि "भैया आप आगे आ जाओ, लेडीच बैठ जाएगी वहां", महादेव भी नहीं बता सकते। 

राही मनवा आगे वाली सीट की चिंता क्यों सताती है, ड्राइवर ही अपना साथी है।
पिछली सीट तो है एक छांव ढलती, आती है जाती है, 
ड्राइवर ही अपना साथी है।

Friday, November 26, 2021

Fly doves but feed hawks too

26/11 is not an ordinary date. While we cherish one of the most treasured achivements of post independence india if not the most treasured achivement, i.e. our constitution, we also remember that biggest terrorist attack on our civilians post independence.

Today is the day to remember that there should be no compromise on internal and external security. Gone are the days of traditional warfare where armed forces used to declare war and fight in open with integrity and dignity. Now warfare has transformed and expanded into cyber, economic, social, political turfs. Society which fails to recognise these threats proactively is doomed to perish and suffer. 

Our threat centers are not very far, it's across the border and inside our homelands. It's all desirable and perfectly fine to fly the peace doves but equally more important to keep feeding our hawks to pick on any potential threat.

We might have hung one Kasab, but Kasab building mechanism is on as usual. May be with higher vigour than ever. 

 These are very important things relevant to everyone. In case you feel that you are happy in your bunglow with a plum job and kids studing in a nearby school, and hence need not worry about these matters. Please remember that this life and it's amenities are available given the guarantee to a safe and stable nation. If nation is not safe, these things vaporise like water on a hot pan once nation falls to barberians. In case you can't visualize it, image yourself as a women University lecturer from Kabul, who has not got her salary in months, her kids are banned from attending School and her big bunglow in Kabul is not worth a hut anymore.

Let we forget. And yes, when any player  says that sportsmanship has won, most likely he has lost the match. I get the same feeling when I hear the often repeated but irritating phrase that terrorists can't beat the Spirit of Mumbai. Any reference to this 'Spirit of Mumbai'  only means that we have suffered another attack and are nonchalant about yet another bastards putting their feet on our land . 

Jai Hind..

Thursday, November 18, 2021

हिंदू ना होने की दुविधा

आज सुबह उठा तो लघुशंका करने के बाद मन में एक शंका बैठ गई। शंका होने लगी कि आखिर मैं हिंदू हूं कि नहीं। अगर हूं भी तो कितना हिंदू हूं। अगर हिंदू हूं तो कैसे प्रमाणित करूंगा? अगर हिंदू हूं भी तो आखिर किस कैटेगरी का?

मेरे पास रामनामी चादर ओढ़े कोई फोटो नही है और ना ही सोशल मीडिया पर किसी गुफा में बैठे ध्यानमग्न मेरी कोई तस्वीर वायरल हुई है आजतक। महीना सावन का है या अगहन का, मुझे पता नहीं। उतनी ही बात हो तो शायद हिंदू बन भी जाऊं, लेकिन मैं तो यह मानता हूं कि आजादी 1947 में मिली। मैंने आजतक ना ही तेजोमहालय वाली पोस्ट किसी को फॉरवर्ड की है और ना ही मेरे फोन पर सुदर्शन न्यूज़ का ऐप इंस्टॉल्ड है। हां, शाखा मैं गया हूं, काफी बार गया हूं, लेकिन पचासों बार नजदीकी स्टेट बैंक की शाखा में जाने के बाद भी कभी सही समय पर नहीं पहुंच पाया। जब सुबह पहुंचा तो पता चला लंच के बाद आना है और लंच के बाद पहुंचा तो पता चला कि बड़े बाबू लंच के पहले ही फॉर्म जमा लेते हैं। एक बार सही समय पर पहुंच कर कतार में लग भी गया तो काउंटर पर पहुंच कर दो बातें पता चली, पहली यह कि मेरा तो काउंटर ही गलत है और दूसरा होम लोन लेने के लिए सारे डॉक्यूमेंट्स के साथ जो मैंने अपने जन्मपत्री लगाई थी उसमें मेरी कुंडली में मांगलिक दोष निकल आया है, अतः मुझे लोन नहीं मिल सकता। खैर, यह बातें फिर कभी। अब जो व्यक्ति आज तक सिर्फ बैंक की शाखा में गया हो, इतने बड़े अपराध बोध वाला व्यक्ति हिंदू कैसे हो सकता है। यही शंका दूर करते करते वापस से लघु शंका लग आई।

बाथरूम में जाकर बैठा तो देखा मेरा तो टॉयलेट तक हिंदू रीति से नहीं बना बल्कि अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया है। मैं निराशा के अंधकार में डूबता सा चला गया। आगे खयाल आया कि हनुमान चालीसा के नाम पर "भूत पिशाच निकट नहीं आवै" वाली लाइन के अलावा कुछ खास याद नहीं। एक बार ऑफिस में झल्लाए हुए बॉस को अपनी ओर आते देख कर यह लाइन मुंह से निकल गई थी तो बड़ी आफत आ गई थी। उसके बाद तो सार्वजनिक मंचों या सार्वजनिक सभाओं को छोड़िए, अपने बेडरूम में भी यह लाइन पढ़ने से डरता हूं। हिंदू बनने के लिए एक सांस में हनुमान चालीसा बांच जाने वाले तो कतई मुझे हिंदू नहीं मानेंगे।

इसके बाद शौचालय से निकल कर बाहर आया तो अर्धांगिनी ने पूछा कि ऐसे मुंह क्यों लटकाए हुए हो। मैने कहा कि मैं अपनी पहचान को लेकर परेशान हूं। हिंदू होने के लिए आपको अपना गोत्र न केवल याद होना चाहिए बल्कि आपको सबको बताना भी चाहिए। मुझे तो शादी के वक्त पहली बार मुझे अपना गोत्र का पता चला था, जो अब वापस से भूल भी गया हूं। बचपन में कराए गए उपनयन संस्कार में मिले पवित्र धागे को बाथरूम जाने वक्त ना कान के ऊपर स्थान देना याद रख पाता हूं और ना बाहर आने के बाद अपने जैकेट के ऊपर उसे कभी स्थान दिया। आखिर मैं कैसा हिंदू हूं? 

आखिर कोई निकृष्ट हिंदू ही होगा जिसने आज तक" विष्णु माता की जय का जयकारा " नहीं लगाया। विष्णु माता की जय तो छोड़िए। अब जब ऊपर के सारे प्रकार के हिंदुओं में अपने को शामिल नहीं पाया तो बड़ी आशा से मैंने अपने आप को अगली कैटेगरी में फिट करने की कोशिश की। फिर हाथ में निराशा ही हाथ लगी। ना ही मैंने आजतक I am ashamed as a hindu वाले ट्वीट किए हैं, और ना ही आजतक दिन में कन्या पूजन और रात में छी छी वाला काम किया है। अगर दिन में कन्या पूजन करने लगा तो या तो जोरू का गुलाम कहलाऊंगा या सड़क पर एक और पापा की परी की संख्या बढ़ाऊंगा। दोनों ही स्थिति मुझे नागवार गुजरती है। जिंदगी भर ब्वॉयज स्कूल, बॉयज होस्टल और इंजीनियरिंग कॉलेज की जिंदगी जीने के बाद लड़कियों के सामने मेरा कॉन्फिडेंस तब तक ही रहता है जब तक लड़की 2D में हो। 3D कन्याओं के सामने मेरी ऐसे ही फटी रहती है। इसीलिए इस वाली हिंदू कैटेगरी में भी सम्मिलित होना संभव नहीं लग रहा।

बालकनी में बैठा बैठा सोच ही रहा था कि सामने से एक अर्थी जाती दिखाई दी। बरबस ही हाथ प्रणाम की मुद्रा में चले गए। फिर देखा कि तुलसी पिंडे की मिट्टी सख्त हो गई है , पिछले हफ्ते बाहर रहने के कारण उसमें खुरपी नहीं चला पाया था। जल्दी से घर से खुरपी लेकर आया तुलसी के आस पास की मिट्टी पलट दी। फिर पास ही रखे मिट्टी के बर्तन को पानी से भरा ताकि बालकनी में रहने वाली हमारी सबसे नज़दीकी पड़ोसन गौरेया को पानी की दिक्कत ना हो। इतने में देखा कि मौसम सुहाना हो रहा है। बारिश शुरू हुई, देवी जी को आवाज लगाई कि थोड़े प्याज के पकोड़े बना दो, कितना अच्छा मौसम हो रहा है। अंदर से आवाज आई, पापी कहीं के !! आज एकादशी है तो कोई लहसुन प्याज नहीं बनेगा। और यह पूजाघर का टेबल उठा कर बाहर कर दो, मुझे अल्पना बनानी है। पूजा घर का भारी टेबल और उसपर रखे सामान को उठा के जो पसीना निकला उसके साथ ही नासपीटे न्यूज़ चैनल्स की वजह से पैदा हुई हिंदू ना होने की शंका भी कहीं मुझसे कहीं दूर निकल गई।

Tuesday, November 16, 2021

चोर और उससे जुड़े अन्य विशेषण

‌एक विशेषण है चोर। चोर वो है जो दूसरे का सामान उठा ले वो भी बिना पूछे। दूसरे की कॉपी से नकल कर ले नजर बचा के। रात के अंधेरे में आपकी कार ले उड़े या आपकी साइकिल का ताला तोड़ उठा ले जाय। लेकिन चोर एक अच्छा विशेषण है। चोर सामान्यता तब कहलाता है जब वो या तो चोरी करता हुआ पकड़ा जाय या चोरी किया हुआ सामान उसके यहां बरामद हो। मतलब यह कि चोर प्रकृति से एक रिस्क टेकर होता है। एक गैंबलर, दूसरों का माल़ उड़ा ले जाने के लिए प्लानिंग करता है, हर खतरे को भांपता है और उसके लिए काट ढूंढता है। लेकिन चोर की बुरी हालत होती है उसके पकड़े जाने पर। जब दुनिया जान जाती है कि वो चोर है।
पकड़ा गया चोर दुनिया का सबसे दयनीय इंसान है। उसके चेहरे पर जो भाव आते हैं उसी भाव से एक विशेषण बनता है चोट्टा। चोट्टा मतलब जो देखने में ही पकड़ा गया चोर टाइप दिखे। कहीं जा रहा हो तो लगे कि चोरी करने जा रहा हो। दूसरों के सामान को ऐसे निहारे जैसे उड़ाने की योजना बना रहा हो। चोट्टा चोर जैसा दिखता है , उसका व्यवहार चोर जैसा होता है लेकिन कोई जरूरी नहीं कि वो चोर ही हो। सामान्यतः चोर कुछ चोरियां करने के बाद पकड़ा जाता है, पकड़े जाने के बाद अपने पिछले गुनाह कबूल करता है। अपनी चोरी के कारनामों और नए नवेले तरीकों की वजह से कुछ वाहवाही भी पाता है, चोट्टा ऐसा कुछ नहीं कर पाता। बेचारा सिर्फ गाली खाता है, लेकिन चोर बनने के बाद जो फायदे होते हैं उनसे वंचित रहता है। 
चोट्टा से नीचे भी एक कैटेगरी है। उसको चोरकट कहते हैं। अब चोरकट वो है जो चोर बनने के कोशिश करे लेकिन हर बार पकड़ा जाय। चोट्टा जैसी शक्ल लेकर घूमता फिरे और यह सोचे कि लोग उसको न चोर समझें और न चोट्टा कहें। ऐसे वेवकूफों को ही चोरकट कहा जाता है जो चोरी पकड़े जाने पर भी अपनी सफाई देते रहें और समझें कि सारी दुनिया तो बस उसकी सफाई सुनते ही कहेगी कि बेटा तुम चोर नहीं हो सकते। चोट्टा सब ही है जो तुमको चोर कहता है। बताओ इतना बड़ा आदमी हो तुम, चोर कैसे होगे। 

तो बात ये है कि हर चोरकट चोरी करना चाहता है लेकिन पकड़ा कर चोट्टा वाली शकल बनाकर अपने आप को चोर घोषित होने से बचाने से कोशिश करता है। पर चोरी वाले धंधे में यही तो दिक्कत है कि कब बुरा वक्त आ जाए पता ही नहीं चलता। चाहे पांच करोड़ की घड़ी पहन लो, चोर को चोट्टा बन कर चोरकट वाली हरकत आज ना कल करनी ही पड़ती है। 

Wednesday, November 10, 2021

छठ का महापर्व

याद आता है गंगा किनारे बसा साइंस कॉलेज का होस्टल केवेंडिश। होस्टल से बगल की जगमग सड़क और उससे गुजरता छठ व्रतियों का हुजूम। साउंड सिस्टम पर बजती छठ लोक गीतों का अनवरत सिलसिला। उस समय हम लोग आईआईटी की तैयारी कर रहे थे, इसलिए घर नहीं गए छठ पूजा में। छठ के पास आते ही पता चला कि होस्टल का मेस बंद रहेगा क्योंकि महराज जी छठ के लिए घर गए हुआ हैं। मेस चलाने वाले को हम महराज कहा करते थे। 

दो तीन दिन तक तो हम मैगी खाकर किसी तरह काम चलाते रहे। एक सीनियर से पूछा कि भैया ऐसे मैगी खाकर कैसे काम चलेगा। उसने कहा कि आज शाम की अर्घ्य है, कल सुबह इतनी व्यवस्था हो जाएगी कि पूछो मत। मैं समझ नहीं पाया। अगली सुबह वाली अर्घ्य के साथ ही छठ का समापन होने वाला था। केवेंडिश होस्टल के बगल वाली सड़क पर सुबह से ही रौनक थी। हमने भी उस सुबह एचसी वर्मा और केसी सिन्हा की किताबों को छठ की छुट्टी दी और सड़क पर खड़े होकर वो अनुपम नजारा देखते रहे। 

हमारे सीनियर भी साथ ही खड़े थे। हमने कहा कि भैया कल वाली बात याद है या नहीं। कि आज भी मैगी का ही कलेवा चलेगा। उसने कहा एक मिनट रुको। और वो अंदर जाकर एक साफ बेडशीट ले आया। और चादर को होस्टल के सामने बिछा कर खड़ा हो गया। सुबह की अर्घ्य देकर लौट रहे छठ व्रतियों का हुजूम केवेंडिस होस्टल के सामने से गुजरने लगा। बिना किसी से कुछ कहे हर बांस के सूप और दौरे से छठ का प्रसाद हमारे बिछाए हुए बेडशीट पर हरेक परिवार की तरफ से हमारे लिए छठ का प्रसाद दिया जाने लगा। मिनटों में ही हमारे लिए ठेकुआ , केतारी, सिंघाड़ा, नारियल, मूली का ढेर लग गया। हमने सीनियर की तरफ देखा, सीनियर के चेहरे पर मुस्कान थी। उसकी बात सच हो गई थी। छठ मैया की कृपा से हमें मैगी की एकरस जिंदगी से सीधे ठेकुआ की मीठी बयार मिली थी। 

छठ का महापर्व जिसके प्रसाद के लिए हाथ फैलाने में भी कोई शर्म नहीं, हर कोई मानो एक।बराबर हो जाता है। जिसके दावरे और सूप को सर पर उठा कर चलने में गर्व महसूस हो। छठ का पर्व जिसके लिए छठ व्रतियों के लिए सड़कों पर झाड़ू लगाना पुण्य समझा जाता है। एक अनूठा पर्व जिसकी कोई मिसाल नहीं।

सबको छठ की शुभकामनाएं।। 

Saturday, October 9, 2021

संतुलन की खोज

पुरानी फिल्मों में एक सीन हुआ करता था। ऑपरेशन थिएटर के बाहर जीरो वॉट वाला लाल बल्ब जलता रहता था और उसके आस पास एक परिवार के घबराए लोग बैठे रहते थे। डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकलता और भारी आवाज में बोलता, मरीज की हालत बहुत नाज़ुक है। हम बच्चे और मां दोनो में किसी एक को ही बचा सकते हैं। आप फैसला करिए। हीरो कहता मां को बचा लो, वो मेरा प्यार है। हीरोइन कहती, बच्चे को बचा लो वो मेरे कुल का चिराग है। बुढ़िया दादी कहती हे भगवान उनकी जान के बदले मेरे बच्चे और बहू की जान बक्श दे। बड़ा जबरदस्त सीन हुआ करता था, लोगों के आंखों से आंसू निकल आते थे। अगर बच्चा बच गया तो बिना मां के बड़ा होता था और हीरो बनता था। अगर मां बच गई तो पागल हो जाती थी जो पूरे फिल्म कपड़े की एक गुड़िया बना के चंदा है तू मेरा सूरज है तू, गाती रहती थी। 

भले ही ऊपरवाले सीन और कथानक से बहुत सारी फिल्में हिट हुई हों, लेकिन वास्तविकता से इसका कोई लेना देना नहीं है। ऐसी कोई बीमारी मेडिकल साइंस आज तक नहीं खोज पाया है, जहां डॉक्टर को आकर भारी आवाज में हम किसी एक को ही बचा सकते हैं वाला डायलॉग मारना पड़े। और अगर कोई ऐसा डायलॉग मारने वाला डाक्टर मिल जाय तो समझ लीजिए कि डाक्टर साब ने पढ़ाई या तो ढंग से नहीं की या बेटे और मां में किसी एक तो वो ऊपर पहुंचा चुके हैं और अपनी गलती छुपाने के लिए भूमिका बांध रहे हैं।

ऐसा ही कुछ हमारे जीवन में भी होता है। अपना स्वास्थ्य, अपना करियर, अपना परिवार और अपनी मन की शांति , अगर इनमें से किसी की भी बलि चढ़ाकर आप बाकी सब या सबकी बलि चढ़ाकर आप किसी एक को बचा रहे हैं जो आप भी पुरानी फिल्मों वाले बुरे डाक्टर जैसे हैं जो मां को मारकर बच्चे को और बच्चे को मारकर मां को बचाने का काम करता था। इन अच्छा डॉक्टर मां और बच्चे दोनो को बचाता है क्योंकि अगर किसी एक को बचाया तो या तो आपको एक अनाथ बच्चा मिलता है या बच्चे को खो चुकी टूटी मां। दोनो ही स्थिति सही नहीं है। उसी प्रकार स्वास्थ्य की बलि चढ़ाकर बने करियर, मन की शांति गंवा कर मिले परिवार, और करियर की बलि चढ़ा कर मिले शांति का मान अधूरा है। 

संतुलित आहार की तरह संतुलित जीवन भी कई चीजों से मिलकर बना है। उसी संतुलन की खोज ही जीवन है, उसी संघर्ष में आनंद है और वही जीवन का ध्येय होना चाहिए। बाकी मरना तो एक दिन है ही।

Tuesday, October 5, 2021

लाल बहादुर बनने की जगह पढ़ाई पर ध्यान दें

एक गांव में आम का एक बड़ा सा बागीचा था। उस आम के बागीचे में एक बूढ़ा सा चौकीदार बैठा रहता। अपने मचान पर बैठ कर बीड़ी फूंकता रहता और अपना समय काटता रहता। पिछले कुछ दिनों से वो देखता कि एक लड़की सुबह सुबह आती और दिन भर सूखे पत्ते बुहार कर जमा करती और शाम में गट्ठर बनाकर ले जाती। अगली दिन फिर आती और दिन भर मेहनत कर पत्ते बुहार कर ले जाती। एक दिन बूढ़े चौकीदार ने पूछा कि बेटी तुम यह सूखे पत्ते बुहार कर ले जाती हो, क्या घर में जलावन नहीं है और तुम अपनी मां की मदद करना चाहती हो। लड़की ने कहा कि बाबा मेरे घर में जलावन की कमी तो नहीं है , वो मां ले आती है, लेकिन मैं पढ़ना चाहती हूं। मैं पढ़कर अपने मां बाप का नाम रोशन करना चाहती हूं, लेकिन मेरे पास लालटेन नहीं है। इसीलिए मैं पत्ते बुहार कर ले जाती हूं, ताकि रात में इनको जला कर इनकी रोशनी में पढ़ सकूं। बूढ़े बाबा को लड़की पर बहुत दया आई, उसने अपने जेब से जितने पैसे थे निकाले और लड़की के हाथ में दे दिए। कहा बेटी, आज तुम अपने लिए एक लालटेन खरीद लेना। लड़की की आंखों में आंसू आ गए, उसने बाबा का धन्यवाद किया और एक लालटेन ख़रीदा। उसी लालटेन की रोशनी में पढ़कर वो एक बहुत बड़ी अधिकारी बनी। 

उपर जैसी कहानी आपने पढ़ी वैसी ढेरों कहानियां आपने सुनी होगी। ऐसी कहानियां प्रेरणादायक कहानियां कहलाती हैं और लोगों को बार बार दोहराई जाती हैं। लेकिन कहानियों का क्या है, कि कितनी सच है कितनी झूठ पता नहीं चलता। उपर वाली कहानी को ही लीजिए। आप कितना भी दिल में चाहें कि कहानी का अंत वैसे ही हो जैसा कि बताया गया है लेकिन सच्चाई उससे अलग है। कहानी का अंत कुछ इस प्रकार का है। बूढ़े बाबा ने लड़की को पैसे नहीं दिए, सिर्फ यह पूछा कि बेटा अगर तुम्हारे पास लालटेन नहीं है तो तुम दिन भर पत्ते बुहारने के बजाय दिन में ही क्यों नहीं पढ़ लेती जब रोशनी रहती है। रात में ही पत्ते जलाकर पढ़ना जरूरी है क्या? यह सुन कर ही लड़की के
 सारे नाटक की पोल खुल गई और वो उल्टे पांव भाग गई।

बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो अपने विक्टिम कार्ड को दिखाने के लिए कॉमन सेंस तक से समझौता कर डालते हैं। उनको अपनी कहानी में लाल बहादुर शास्त्री के नदी तैर कर स्कूल जाने और सड़क की रोशनी में पढ़कर प्रधानमंत्री बनने जैसा एक नाटकीय पक्ष डालना होता है । अपनी मेहनत और रणनीति की जगह वो इन चीजों पर ज्यादा ध्यान देते हैं ताकि उनकी बेचारी वाली छवि बन सके। दुर्भाग्य से ऐसी चीजों से आपको थोड़ी वाहवाही, थोड़ी दया और थोड़ी सहानुभूति भले मिल जाए, सफलता दूर ही रहती है। हाल में ही सासाराम स्टेशन की एक तस्वीर वायरल हुई जिसमें कई युवक स्टेशन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे, कारण बताया गया कि गांव में बिजली नहीं रहती इसीलिए वो स्टेशन पर आकर पढ़ते हैं। सच मानिए तो मुझे उन लड़कों का पक्ष पत्ते बुहारने वाली लड़की से ज्यादा सबल नहीं लगा। दिन भर पढ़ने के बाद में अगर उनको रोशनी ही चाहिए तो उनके पास स्टेशन के अलावा भी बहुत विकल्प होंगे। साथी का घर हो सकता है, पंचायत भवन हो सकता है जहां पर स्टेशन से कहीं ज्यादा शांति होगी और कम से कम वहां पर वो एक टेबल तो लगा ही सकते हैं। स्टेशन की भीड़ भाड़, आने जाने वाली गाड़ियों के शोर से भरे स्टेशन एक शांत चित्त होकर पढ़ने वाले विद्यार्थी की पहली पसंद नहीं हो सकते।

जहां तक मैने सुना है यह वायरल तस्वीर वाली बात अब शायद नहीं होती लेकिन अगर यह आज भी जारी है तो मेरी उन छात्रों से विनती है कि पढ़ने के लिए कोई और जगह तलाशें। अगर बिजली नहीं है तो अपने मोबाइल को बेचकर एक चाइनीज लाइट खरीद लें जो दिन में चार्ज हो जाए और रात में आपको घर पर ही रोशनी दे। सौ रुपए में ऐसे लैंप मिल जाते हैं जो एक बार चार्ज हो जाए तो आठ दस घंटे चलते हैं। अगर आपके पास सौ रुपए नहीं हैं तो आप किसी भी भले आदमी से उधार ले लें। मेरा मानना है कि समाज में आज भी ऐसे बहुतेरे हैं जो सहर्ष आपकी मदद करेंगे। वैसे आजकल बिहार में बिजली की हालत इतनी भी बुरी नहीं जितनी लोग सोचते हैं। 

सूखे पत्ते बुहारकर पढ़ने वाली बेवकूफाना हरकत बंद करें और स्टेशन खाली कर दें। यह आपके लिए भी अच्छा होगा और आने जाने वाले यात्रियों के लिए भी। यह विक्टिम कार्ड और ऐसी कहानियां इंडियन आइडल वाले प्रतिभागियों के लिए छोड़ दें, यह उधर ही चलेंगी । आपकी वाली प्रतियोगिता परीक्षाओं पर उसका कोई असर नहीं होगा।

Saturday, October 2, 2021

बड़े अच्छे लगते हैं।

कांग्रेस के बड़े नेता कन्हैया कुमार, जिन्होंने 2019 के बड़े चुनाव के समय बड़े गाजे बाजे वाले चुनाव प्रचार के बावजूद बड़ी हार हासिल की थी, ने कहा है कि कांग्रेस एक बड़ा जहाज है जिसे बचाने का बड़ा काम करने के लिए वो आ गए हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार इसे एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं क्योंकि जेएनयू में कश्मीर के बड़े मानवतावादी नेता अफजल गुरु की बरसी पर बड़ा कार्यक्रम आयोजित करके बड़ा नाम कमाने वाले कन्हैया कुमार की बड़ी लोकप्रियता से कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा। कन्हैया इससे पहले जेएनयू कैंपस की सबसे बड़ी पार्टी सीपीआई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं तो इसका बड़ा फायदा पार्टी को होता दिख रहा है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस को बचाने का बड़ा काम करने के लिए कन्हैया अकेले बड़े चेहरेरे नहीं हैं, उनके साथ जिग्नेश मेवानी जैसा बड़ा चेहरा भी है। वास्तव में यह सब कांग्रेस में अध्यक्ष और वर्किंग कमिटी से भी बड़ा ओहदा रखने वाले कांग्रेस की सबसे बड़ी आशा राहुल जी बड़ी राष्ट्रीय स्ट्रेटजी का एक हिस्सा है। इसी के तहत छुटभैये नेताओं जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है और बड़ी शेरोशायरी करने वाले सिद्धू जी को बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। यह अलग बात है सिद्धू जी को बड़ी से बड़ी सबसेे बड़ी वाली  जिम्मेदारी चाहिए थी, इसीलिए उन्होंने छोटी वाली बड़ी जिम्मेदारी के पद से इस्तीफा दे दिया है और बड़ा हंगामा कर दिया है। इतना बड़ा काम करने के बाद भी राहुल जी ने अपनी एक बार भी तारीफ नहीं की क्योंकि बड़े बड़ाई ना करें, बड़े ना बोलें बोल। 
वैसे चिंता को कोई बात नहीं है क्योंकि बड़ी बड़ी पार्टियों में ऐसी बड़ी बड़ी बातें होती रहती है। यह बड़ी रणनीति का ही कमाल है कि न्यूज कवरेज में यूपी जैसे बड़े राज्य को पछाड़ कर पंजाब ने अपना बड़ा नाम किया है । लगता है ऐसी बड़ी खबर राजस्थान से भी आने वाली है जहां बड़े मुख्यमंत्री और छोटे मुख्यमंत्री के बीच बड़ी जंग बड़े समय से हो ही रही है। और आगे क्या लिखूं? जितना मैं समझ पाया लिख दिया, आगे कुछ कहूंगा तो आप ही कहोगे कि छोटा मुंह बड़ी बात। जाते जाते बड़े दिन की शुभकामनाएं एडवांस में क्योंकि दुर्गापूजा पर कोरोना के कारण बैन है, दिवाली पर पॉल्यूशन के वजह से बैन है, छठ पर तो  वैसे भी भीड़ और नदी पॉल्यूशन के कारण बैन है। 

चरखा और आज़ादी

आज़ादी की लड़ाई में चरखा का क्या महत्व था? बंदूक से आज़ादी दुनिया में कई देशों ने पाई, लेकिन गांधी जी के दिमाग में यह चरखा कहां से आया। क्या चरखा सिर्फ इस चीज का प्रतीक था कि भारतीयों की निर्भरता इंग्लैंड के मिलों में बने विदेशी कपड़ों पर कम हो? क्या चरखा का महत्व सिर्फ आर्थिक रूप से था या इसके कुछ और मायने भी थे? चरखा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक चिह्न कैसे बना? क्यों गांधीजी ने चरखे पर इतना बल दिया?

वर्ष 1920, अगस्त माह। कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में अपना पहला राष्ट्रीय आंदोलन असहयोग आंदोलन शुरू करने के लिए जा रही थी।रंगमंच पर खेले जा रहे किसी नाटकीयता पूर्ण दृश्य की तरह एक अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया। 1 अगस्त 1920 वो तारीख थी जब देश गांधी जी के नेतृत्व में अपने पहले राष्ट्रीय आंदोलन असहयोग आंदोलन की औपचारिक शुरुआत करने वाला था। गांधी जी के देश लौटे करीब पांच साल हो गए थे और कांग्रेस की संस्था पर उनका प्रभाव सबसे ज्यादा हो चुका था। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना को तीन दशक से ज्यादा हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का प्रभाव अब भी शहरी क्षेत्र के पढ़े लिखे वर्ग तक ही सीमित था। यद्यपि स्थापना से गांधी युग की शुरुआत तक कांग्रेस को दादा भाई नौरोजी, सुरेंद्र नाथ बनर्जी, तिलक, एनी बेसेंट जैसे नेताओं का नेतृत्व मिला था लेकिन कांग्रेस अब तक कोई जन आंदोलन खड़ा करने में असमर्थ ही रही थी। गांधी जी के आने से पहले तक नरमपंथ का चरण 1907 तक समाप्त हो चुका था। अंदरूनी कलह के कारण सूरत अधिवेशन में कांग्रेस विभाजित होकर एक निष्प्राय संस्था बन चुकी थी। गरमपंथ के प्रमुख नेता तिलक काला पानी की सजा काटने के लिए अंडमान भेजा जा चुके थे। बीच में क्रांतिकारी आंदोलन जैसे लाला हरदयाल की गदर पार्टी भी अपने भरपूर प्रयासों के बावजूद सफल ना हो सके थे। 
इस प्रकार गांधी जी ने जब स्वाधीनता आंदोलन की बागडोर संभाली, भारतीय स्वाधीनता आंदोलन नरमपंथ, गरमपन्थ और क्रांतिकारी तीनों प्रकार के प्रयोग करके असफल हो चुका था। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौट कर पूरे भारत का भ्रमण किया और भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन किया। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की असफलता का कारण उन्हें जल्द ही समझ आ गया। 

1920 से पहले जो आंदोलन चल रहा था, उसमें किसान शामिल नहीं थे, मजदूर शामिल नहीं थे, कांग्रेस उनका प्रतिनिधित्व ही नहीं कर रही थी। मुस्लिम लीग का गठन हो चुका था जो मुसलमानों का प्रतिनिधत्व करने का दावा कर रही थी। मतलब कांग्रेस एक किसान विहीन, श्रमिक विहीन, और कतिपय मुस्लिम समाज से रहित अपना आंदोलन चला रही थी। सन 1917 में गांधी जी चंपारण जाकर किसानों को तथा जल्द ही अहमदाबाद में मिल मजदूरों के संघर्ष को अपना साथ देकर किसानों और मजदूरों को जन आंदोलन में जोड़ने का प्रयास कर चुके थे। खिलाफत को साथ लेकर वो मुस्लिमों को भी राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाना चाहते थे। 

लेकिन भारत का एक वर्ग था जो इन सब से बड़ा था और कांग्रेस की पहुंच से अब भी सबसे दूर था।  इस वर्ग को आंदोलन से जोड़ना सबसे कठिन भी था। क्योंकि इस वर्ग के लिए परदा और घर की चहारदीवारी को पार करना ही कठिन था तो सड़कों में आकर आंदोलनों में हिस्सा लेने के बात तो असंभव ही थी। गांधी जी के मन में यह स्पष्ट था कि समाज के हर वर्ग, खास कर इस वर्ग का सहयोग मिले बिना स्वाधीनता का कोई भी स्वप्न एक दिवास्वप्न ही था।  यह वर्ग था महिलाओं का। और उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि कैसे महिलाओं को आंदोलन का हिस्सा बनाया जाय।

महिलाओं को आंदोलन से जोड़ने का पहला प्रयास हुआ तिलक स्वराज फंड से रूप में। लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद उनके नाम पर तिलक स्वराज फंड की स्थापना हुई। गांधी जी ने देश की महिलाओं से आग्रह किया कि राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोग करने के लिए वो आर्थिक दान तिलक स्वराज फंड में दें। पूरे देश से महिलाओं ने अपने गहने और मंगल सूत्र तक दान देकर एक करोड़ रुपए की राशि फंड में तय समय से पहले ही जमा कर ली। इसके बाद महिलाओं ने अपने आप को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा हुआ महसूस किया। उनको यह विश्वास दिलाने के लिए 
कि स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए महिलाओं का घर से निकालना आवश्यक नहीं बल्कि  बैठे ही वे राष्ट्र सेवा कर सकती हैं। इस काम में चरखे ने बड़ी भूमिका निभाई। महिलाएं घर पर बैठ ही चरखे के माध्यम से अपना सहयोग आंदोलन को देने में सफल हुई। तिलक स्वराज फंड का एक बड़ा हिस्सा पूरे देश में चरखा वितरण के लिए प्रयोग हुआ और इसी चरखे के कारण देश के आधे हिस्से का राष्ट्रीय यज्ञ में सम्मिलित होना संभव हुआ।
चरखा महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बना, स्वाधीनता आंदोलन के व्यापकीकरण का जरिया बना, महिलाओं के आत्मविश्वास का साधन बना और इंग्लैंड की कपड़ा मिलों पर देश की नारे शक्ति का सबसे शक्तिशाली वार साबित हुआ। चरखा और उससे निकलने वाले कच्चे सूत के धागों ने देश को उस एकता सूत्र में बांधा जिसने गुलामी की मजबूत बेड़ियों तक को तोड़ने में मदद की।

गांधी जी के विचारों को गहराई से समझने के बाद ही लोग यह समझ पाते हैं कि चरखा विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार कैसे बना।

गांधी जयंती की शुभकामनाएं और बापू को कृतज्ञ राष्ट्र का नमन। 

Monday, September 27, 2021

MSP की कानूनी गारंटी के नाम पर अराजकता

किसानों को msp की कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए। 

सही है, लेकिन msp तो इसीलिए शुरू की गई थी की देश में गेहूं और धान की कमी थी और अकाल से जूझने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना था। जाहिर है कि जब से msp का प्रावधान आया, फायदा सिर्फ हरित क्रांति वाले प्रदेश पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को हुआ।

तो अगर, गेंहू और धान के उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देना सही है तो दूध उत्पादकों को उनके उत्पाद के मूल्य की गारंटी क्यों ने दें? लाह उत्पादक, रेशम उत्पादक, कपास उत्पादक, जूट उत्पादक किसानों का क्या msp का हक नहीं बनता?

किसान ही क्यों? ठेला खींचने वाले, रिक्शा खींचने वाले की प्रति सौ मीटर ढुलाई की न्यूनतम भाड़े की गारंटी भी सरकार को देनी चाहिए। बढई द्वारा बनाए गए हरेक कुर्सी टेबल की न्यूनतम मूल्य की गारंटी सरकार क्यों ना दे? लोहार ने कौन सा गुनाह किया है कि उसके बनाए गए फावड़े की कीमत की गारंटी सरकार नहीं दे रही। 

ट्यूशन पढ़ाने वाले, सिक्योरिटी गार्ड का काम करने वाले, घर में बर्तन धोने वाली काम वाली बाई की सेवाओं का न्यूनतम मूल्य सरकार कानूनी तरीके से तय क्यों न करे?

अरे मैं जो इतनी मेहनत से ब्लॉग लिखता हूं, उसके भी मिनिमम लाइक्स और कमेंट्स की गारंटी सरकार कानूनी रूप से क्यों नहीं देती? ट्विटर और इंस्टाग्राम पर मेकअप और फिल्टर बदल बदल कर वीडियो बनाने वाली जनता भी अपने रील्स के लिए न्यूनतम समर्थन रीट्वीट और लाइक्स के लिए एक कानून की मांग करने का लोकतांत्रिक अधिकार रखती है।

प्रश्न है कि सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही? तो उत्तर यह है कि सरकार का यह काम ही नहीं है। यह काम बाजार की शक्तियों का है। जब सरकार यह काम करने लगती है तो क्या होता है यह देखने के लिए रूस, क्यूबा और वेनेजुएला की हालत देख लीजिए। सरकार सिर्फ अपवाद के रूप में जहां आवश्यक हो ऐसे कदम उठा सकती है, लेकिन अपवाद साधारण नियम नहीं बन सकते।
Msp की कानूनी मांग सरासर गलत है और इसके नाम पर सड़कों को जाम करना सर्वसाधारण के अधिकारों का सर्वथा हनन। ऐसे गुंडों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। इन असमाजिक तत्वों को राजनीतिक समर्थन देने वाले आग से खेल रहे हैं , एक दिन आग में उनके अपने आशियाने भी आयेंगे, यह उन्हें याद रखना चाहिए। 

रही बात टिकैत जैसे बिचौलियों के मुखौटे से निपटने की, तो उनके जैसे मौसमी आंदोलनकारियों के सामने झुकने का कोई सवाल ही नहीं है। सरकार का इकबाल बुलंद रहना चाहिए, वोह किसी ऐसे आदमी या संस्था से समझौता नहीं कर सकती जो दस हजार की भीड़ जमा कर अपना शक्ति प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं। अगर टिकैत के पास 5000 लोग हैं तो सरकार तेईस करोड़ लोगों के मतों से बनी है। 

इनके साथ निपटने के लिए सब्र और बातचीत का समय बीत चुका है। क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थो और लक्ष्य से प्रेरित यह बकवास बहुत खिंच चुकी, अब इसको बंद कर,बल प्रयोग से ही सही, आम जनता को राहत देने का समय आ चुका है।

Friday, September 24, 2021

सबसे ऊंची सीढ़ी का सबसे ऊपर का पायदान

हाल में कौन बनेगा करोड़पति के एक एपिसोड में नीरज चोपड़ा को देखा। अमिताभ बच्चन उनसे पूछते हैं कि बचपन में आपको बहुत परेशानियां हुई होंगी क्योंकि सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। नीरज कहते हैं कि अगर मुझे सारी सुविधाएं मिल गई होती तो शायद यह मेडल आज नहीं मिलता। 

विज्ञान कहता है कि नींद के दौरान भी सपने आप तभी देखते हैं जब आप गहरी नींद में नहीं होते। इसे रैपिड आई मूवमेंट स्टेज कहा जाता है जिसमें मानसिक क्रियाओं का स्तर जागे हुए मस्तिष्क के बराबर होता है। मतलब सपने भी वोही देखता है जो सोते वक्त भी जगा हुआ सा हो। 

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में अधखुली नींद में अलसाया हुआ सा एक जिला है कटिहार। मेरा गृह जिला। जब बिहार से निकला तो बिरले ही कोई मिलता जिसने कटिहार का नाम सुना हो। सब पूछते पटना के पास है? मैं कहता कि पटना से भी रात भर का सफर है कटिहार का। फिर मैं कहता कि आपने शायद भागलपुर सुना हो, कटिहार उसके आस पास ही है। विकास वो दौड़ है जिसमें कटिहार ने आज तक हिस्सा ही नहीं लिया, आगे पीछे होना तो दौड़ में शामिल होने के बाद की अवस्था है। मैं जब बाहर आईआईटी में पढ़ने पहुंचा तो अपने एक लखनऊ के मित्र को शिकायत करते सुना कि उनके लखनऊ में आजकल लोड शेडिंग बहुत हो रही है। मैंने पूछा यह लोड शेडिंग क्या होती है? उसने कहा कि लोड शेडिंग का मतलब है जब बिजली विभाग आपको पूर्व सूचना देकर बिजली काट देता है। बड़े भारी मन से उसने बताया कि आजकल चार घंटे तक लोड शेडिंग हो रही है। मैंने कहा चार घंटे लोड शेडिंग हो रही है मतलब तुम्हारे यहां बीस घंटे बिजली आती है, हमने आजतक दो घंटे से ज्यादा बिजली नहीं देखी। उसकी शक्ल देखने लायक थी। 

बाढ़ जहां सालाना मेहमान हो, और सोलह सत्रह साल होने का मतलब या तो पटना 'तैयारी करने' जाने का समय है या 'दिल्ली पंजाब खटने ' के लिए जाने के लिए महानंदा एक्सप्रेस की जनरल क्लास में अपने लिए जगह ढूंढने की जद्दोजहद में लगना। कटिहार की अर्थव्यवस्था मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था कही जा सकती है जहां खेती से पेट भरता है लेकिन बदन पर कपड़ा दिल्ली की कमाई से ही आ पाता है। 

गरीबी और पिछड़ेपन का लोमहर्षक वर्णन करना मेरा मकसद बिल्कुल नहीं है, यह भी सच है कि हाल के वर्षों में कटिहार में विकास की सुगबुगाहट सुनाई पड़ने लगी है। अब कटिहार वासी भी लोड शेडिंग की शिकायत करते सुने जा सकते हैं लेकिन देश के दूसरे हिस्सों से कटिहार का आनुपातिक संबंध सुदामा और कृष्ण जैसा ही है। कहने के लिए दोनों भले ही दोस्त हों, भौतिक सुविधाओं की कोई भी तुलना दूसरे के साथ एक भद्दा मजाक सरीखा प्रतीत होता है।

लेकिन जैसा कि अंग्रेजी में एक कहावत है कि tough times make tough men. कटिहार की भाषा में कहें तो अभावे म स्वभाव बनै छै। मतलब यह कि अभाव में ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है, सुख सुविधाओं की प्रचुरता शायद श्रम की जगह विलास की पौध को ज्यादा पोषण देती है। शायद इसी ओर नीरज चोपड़ा भी इशारा कर रहे थे जब उन्होंने बचपन में सुविधाओं के अभाव को मेडल जीतने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक बताया। और ऐसा ही कुछ उदाहरण हैं कटिहार के निवासी शुभम कुमार जिन्होंने कटिहार से निकल कर भारत के सर्वश्रेष्ठ परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है।

 बिहार में आइएएस की परीक्षा का क्या महत्व है इसके लिए अलग से बात करनी पड़ेगी, बस इतना समझ लीजिए कि जितनी बड़ी बात आप समझते हैं उससे दस गुना बड़ी बात है यह। चलिए एक निजी अनुभव ही सुना देता हूं। स्कूल में कक्षा नौ में हमारे गणित के एक शिक्षक थे। नाम जानना महत्वपूर्ण नहीं है, बस इतना जान लीजिए कि शांत स्वभाव के शिक्षक थे, युवा थे और अपना काम चुपचाप से करते थे। अन्य शिक्षकों के बीच रहकर भी कुछ अलग से दिखते थे मानो उनके चारों तरफ से आवरण सा बना हुआ हो, भीड़ में रहकर भी अलग। लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं, जो शिक्षक डांटे नहीं, फेल करने की धमकी ना दे, होमवर्क ना करने पर सजा न दे उससे डरना कैसा। तो हुआ यह कि हमारे मैथ्स सर बोर्ड पर कुछ पढ़ा रहे थे और बच्चे पीछे शोर मचाने लगे। गणित वैसे भी बहुत लोकप्रिय विषय कभी नहीं रहा उपर से एक सरल शांत शिक्षक गणित पढ़ा रहा हो तो बच्चे ध्यान कहां देने वाले थे। लेकिन उस दिन शायद बच्चों का शोर और शरारत कुछ ज्यादा हो गया। हमारे मैथ्स टीचर ब्लैक बोर्ड छोड़ हमारी तरफ मुड़े और कहा। आपलोगों ने जिंदगी को मजाक समझ रखा है, आपको क्या लगता है कि जिंदगी इतनी आसान है जितनी आपको अभी लग रही है। मेरे पीठ पीछे आप शोर मचा रहे हैं। याद रखिए कि देश की सबसे ऊंची सीढ़ी के सबसे ऊपरी पायदान से मैं तीन बार नीचे गिरा हूं। इसीलिए आपसे कहता हूं कि अब आप अपने जीवन और करियर के प्रति कुछ गंभीर हो जाइए। इतना कहकर वो वापस पढाने लगे। हमें समझ नहीं आया कि हुआ क्या। सबसे ऊंची सीढ़ी, सबसे ऊपरी पायदान और वहां से गिरने का मतलब क्या था। बाद में कुछ बच्चे उनसे क्लास के बाद माफी मांगने पहुंचे तो उन्होंने सीढ़ी, पायदान और गिरने का मतलब बताया। सर तीन बार आइएएस की परीक्षा के इंटरव्यू तक पहुंच कर सफल न हो सके थे। यह सब बताते हुए उनकी आंखों में और आवाज में जो दर्द दिखा  वो आजतक मैं महसूस करता हूं।

शुभम न केवल उस सीढ़ी के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे बल्कि वहां सबसे बेहतर रूप से पहुंचे। शुभम का समाचार सुनता हूं तो मैथ्स सर याद आते हैं और फिर याद आता है कटिहार। कटिहार में रहकर किसी ने अगर यह सपना देखा तो शायद कटिहार का भी इसमें हाथ है। जैसा कि हमने पहले कहा कि सपने अर्धजागृत अवस्था में ही देखे जा सकते हैं । कटिहार सुविधाओं से रहित वो सख्त बिछौना है जहां सोते समय भी वो गहरी नींद नहीं आ सकती जो मलमल के नर्म बिछौने पर आ सकती है। इसी कठोर बिछावन पर लेट कर कच्ची नींद में देखे गए सपने हैं जिन्हें शुभम ने पूरा किया और मैथ्स सर पूरा नहीं कर पाए। 

एक पूरा सपना हजारों टूटे सपनो की भरपाई कर देता है। कटिहार का सपना आपने पूरा किया। शुभम को इसके लिए साधुवाद और बहुत बहुत बधाइयां। 

Saturday, September 18, 2021

भर जाने का भाव और स्लीपर क्लास

,रेल में स्लीपर का सफर तो कुछ ऐसा है जो आपको खाली नहीं छोड़ता, हर तरीके से भर देता है। डब्बे में हरेक पांच मिनट पर आने वाले खोमचे वाले , चायवाले , समोसे वाले, मौसमी फल वाले, पेप्सी पन्नी कुरकुरे वाले ना चाहते हुए भी आपका पेट भर देते हैं। डब्बे में हरेक तीन मिनट पर आने वाले हर तरीके के भिखारी, भड़काऊ कपड़े और मेकअप पहने किन्नर , परदेशी परदेशी गाना गाकर आपको अपनी सीट पे प्रायवेट कॉन्सर्ट की फील दिलाने वाले बच्चे, लोहे से एक छोटे से छल्ले से अपने धड़ को फंसाकर करतब दिखाते छोटे बच्चे आपका दिल भर देते हैं।

गंदे टॉयलेट देख कर आपकी आंखें भर आती हैं।वेटलिस्ट वाले पैसेंजर, 'बस दो स्टेशन जाने वाले हैं' कहकर आपकी सीट पर जम जाने वाले पैसेंजर आपकी सीट को भर देते हैं।  पूरे खानदानी मिल्कियत को अपने साथ लगेज बनाकर चलने वाले खवातीन ओ हजरात आपकी सीट के नीचे वाली जगह को भर देते हैं। रात के खाली सन्नाटे को सहयात्रियों के खर्राटों की सन्न कर देने वाली सनसनी भर देती है। आप थोड़ी मेहरबानी दिखाएं तो आपके सूटकेस में बची खाली जगह को भरने के लिए सौ प्रतिशत शुद्ध सूती, बनारसी, रेशमी, खादी चादर, साड़ी, चादर बेचने वाले मौजूद होते हैं। बच्चों के खाली हाथ चाइनीज खिलौने, रेल के डिब्बों पर स्पाइडर मैन वाले गोंद वाले खिलौने वाले भर देते हैं। 

आपके ज्ञान की कमी और सामान्य अध्ययन की कमी के खालीपन को डब्बे में चल रहा अनवरत चल रहे राजनैतिक विमर्श की तेज आवाज भर देती है। आप इस राजनीति विमर्श को सुनते सुनते अपने आप को मैकियावेली और चाणक्य समझने ही लगते हो कि एक इंसान आकर आपके जूतों को काली चमक से भर देने की फरमाइश कर देता है। इसके कोई फरक नहीं पड़ता कि आपने चमड़े के जूते नहीं पहने, चेन वाले बैग लेकर तो चल होगे। यह खुदा का बंदा आपके बैग की टूटी चेन ठीक कर देता है, बैग में सब ठीक भी हो तो भी उसमें एक्स्ट्रा पहिए लगाकर आपके बैग को माने पंख लगा कर उड़ने के भाव से भर देता है।

यह भरने का सिलसिला सिर्फ डब्बे के अंदर वाकया नहीं है। डब्बे के बाहर चलती गाड़ी का नजारा भी आपको आत्मग्लानि के भाव से भर देता है। आप अपनी खिड़की से बाहर ताक रहे हैं , मन में सोच रहे हैं कि यह जिंदगी भी रेल की कितनी तेज भाग रही है और मैं भी इसके साथ भागा जा रहा हूं, तभी आपको सुकून से बैठे लोगों की एक पंक्ति दिखाई देती है जिन्हें ना सम्मान की आशा है और न अपमान का भय। अपनी हया को उन्होंने पानी बना कर अपने साथ बिसलेरी के एक पुराने प्लास्टिक की बोतल में डाल रखा है, जिससे वो अपनी बाकी बची हया भी धो डालते हैं। जिनके जीवन का गीत है कि परदा नहीं जब कोई खुदा से,  बंदों से परदा करना क्या। आप सोचते हैं कि आपने आर्ट ऑफ लिविंग कोर्स करके भी यह बेतकल्लुफी और सुकून नहीं पाया जो सामने बैठी जमात ने पुरानी पटरियों के सानिध्य में बैठ कर पा लिया । ऐसा विश्राम का भाव जो शायद सूफी संतों को हाल की अवस्था में भी बिरले ही नसीब होता था।
स्लीपर बॉगी का सफर इन सबसे ऊपर आपके जेहन को यादों से भर देता है। वो यादें जिनके बनने के बाद यह महसूस होता है कि इनके बिना आप कितने खालीनुमा थे। 

Friday, September 17, 2021

याद रखियेगा कि कोई था

सवा दो करोड़ लोग की बांह में आज तेज चुभन हुई। आधे से ज्यादा लोगों की तो चीख निकल गई। वे ना ना करते रहे, लेकिन उनकी एक न सुनी गई। 2 करोड़ का मतलब समझते हैं, 130 करोड़ में सिर्फ दो करोड़। जब दो करोड़ लोग चुभन महसूस कर रहे हैं, तो बाकी का बहुसंख्यक 128 करोड़ मुस्कुरा रहा है। 

फासीवाद यही तो है। याद रखियेगा कि जब गोदी मीडिया सरकार के सामने नतमस्तक था,कोई आपको सच से रूबरू करवा रहा था। आशा है कि कम से कम आप उन दो करोड़ लोगों की चुभन पर मुस्कुरा नहीं रहे होंगे। ऐसे में इससे अश्लील और क्या हो सकता है? अगर आप फिर भी मुस्कुरा रहे हैं तो आपकी इस मुस्कुराहटों को मैं हजार लानतें भेज रहा हूं। शायद हजार लानतें कम पड़ जाएं इसलिए गिन कर दो करोड़ लानतें भेज रहा हूं। दो करोड़ लोग चुभन का अनुभव कर रहे हों और प्रधान सेवक अपना जन्मदिन मना रहे हैं। केक काटे जा रहे हैं, शायद काले दिन के लिए काला चॉकलेट केक। भारत के लोकतंत्र में आज एक काला दिन है। याद रखियेगा कि कोई था जो अपनी स्क्रीन काली करके आपको सच का उजाला दिखा रहा था।

Wednesday, September 15, 2021

बदलता वक्त और उसके साथ बदलना

बहुत दुखद होता है अपने बीते हुए वक्त का गुलाम बन के रहना। अपने आज को बीते हुए कल की यादों के पीले पड़ते पन्नों की किताब को उलट पलट कर देखने में बिताना। ऐसे किताब जिसका नया संस्करण निकालने का जुनून आपके अंदर नहीं रहा। ऐसी जिंदगी जीना मानो बासी अखबार के पन्नो को पलट पर उसकी सुर्खियों में अपना जिक्र ढूंढने के जैसा है क्योंकि आज का अखबार पलटने की हिम्मत शायद नहीं बचती है बीते हुए कल के गुलामों में। 

आज के अखबार की सुर्खियां जो सच्चाई बयां करती है जिसे वो ही झेल सकता है जिसने अपनी कहानी लिखनी बंद नहीं की।जिसका सफर जारी है, जिसके सफर के चर्चे जारी हैं, जिसके जिंदगी का फलसफा एक जिंदा दस्तावेज है जो हर पल बदल रहा है बदलते वक्त के साथ। 
कहते हैं वक्त सबसे बलवान होता है, और वक्त हमेशा बदलता रहता है। मतलब यह कि बलवान वही है जो बदलना जानता है। रुक जाना ही मर जाना है, निर्झर यह झर कर कहता है। बहता पानी जो जीवन का रूप माना जाता है , रुक जाय तो सड़ जाता है। रूके सड़ते पानी से उठती बास वैसे ही लगती है जैसे अपने बीते स्वर्णिम कल को याद कर अपने खंडहर हवेली में बैठा जमींदार, अपनी तीस साल पुरानी धुनों पर जबरदस्ती से नाचता और खुद अपनी मिमिक्री करता बूढ़ा फिल्मस्टार। 

 बुरा वक्त बदल जाता है, अच्छा वक्त जल्दी बदल जाता है। इसीलिए आदमी अच्छा वक्त हमेशा पकड़े रहना चाहता है। शायद बीते वक्त का गुलाम बनने की शुरुआत यहीं से होती है। लेकिन यह कुछ ऐसा ही है जैसे किसी खूबसूरत तितली को मुठ्ठी में पकड़ लेना, किसी उड़ती चिड़िया को पकड़ कर पिंजड़े में कैद कर लेना और यह आशा करना कि तितली और पंछी का सौंदर्य बना रहेगा। नहीं, मुट्ठी में कैद तितली के पंख टूट जाते हैं, उसके पंखों का रंग विन्यास बिखर जाता है। कहने को वो आज भी तितली है लेकिन टूटे पंखों वाली मृतप्राय तितली का विद्रूप सौंदर्य कभी भी जीवंत तितली का सौंदर्य नहीं कहला सकता।

तितली और पंछी का सौंदर्य अगर अनवरत देखना है तो उस उपवन को हरा भरा बनाए रखना होता है जिसके कारण वो तितलियों का झुंड वहां आया था। उन फलदार पेड़ों की रखवाली करनी होती है जिसके पके अधपके फलों और फूलों के लिए विहंगो का कलरव गान हुआ करता है। बागीचे की मिट्टी पर कुदाल चला कर और उसको लगातार पानी से सींचने में मेहनत लगती है, जो हाथों में मिट्टी लगती है और चेहरे से धूप में चमकती पसीने की बूंदें टपकती हैं, वो ही बागीचे में तितलियों और पंछियों के रूप में दिखती है। 

बीच बीच में खुद को जांचना जरूरी हो जाता है कि कहीं हम भी तो क्यारियां सींचने वाले मेहनतकश काम को छोड़ तितलियों को कैद तो नहीं लगे, यह सोच कर कि एक बार तितलियां पकड़ ली तो हमेशा मेरे बाग में रौनक रहेगी। जब भी ऐसा लगे तो समझ जाना कि ठहराव, क्षरण और पतन की शुरुआत होने ही वाली है। क्योंकि वक्त खुद कभी नहीं रुकता और रुकने वालों को अपने साथ भी नहीं रखता। क्योंकि वक्त बलवान होता है और वो बदलता रहता है। 

Monday, September 13, 2021

कुछ खास है हिंदी में

भारत में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू हो चुका था। वर्ष 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के द्वारा मजबूरी में ही सही लेकिन उठाए गए क्रांतिकारी कदमों की वजह से भारतीय बाजार बाहरी निवेशकों और कंपनियों के लिए खुल चुका था। इसी के साथ भारतीय उपभोक्ता सबके लिए चहेता सा बन बैठा था लेकिन लाइसेंस राज में जीने को आदी भारतीय उपभोक्ता की मुट्ठियां अभी भी कस कर बंद थी। भारतीय मध्यवर्ग अब तक अभी इच्छाओं को लकड़ी के पुराने संदूक में बंद कर उसपर आत्म संयम और संतोष का ताला लगा कर बैठा था। विदेशी कंपनियों को समझ नहीं आ रहा था कि भारतीय समाज,  बचत जिनकी जीवन शैली है, उनको उपभोग की ओर कैसे खींचा जाय।

ऐसी ही समस्या से रुबरू थी इंग्लैंड की चॉकलेट कंपनी कैडबरी। कैडबरी डेयरी मिल्क भारत के बाजार में अपनी स्थिर बिक्री से परेशान था। कारण यह कि भारतीय जनमानस चॉकलेट को बच्चों की चीज मानता था, चॉकलेट तो बच्चे खाते हैं वाली मानसिकता को जब तक ना तोड़ा जाय, चॉकलेट का बाजार बढ़ना असंभव ही था। ऐसे में कैडबरी का एक विज्ञापन आया जो आज भी सबकी जुबान पर है। कुछ खास है हम सभी में, कुछ बात है हम सभी में, क्या स्वाद है जिंदगी में। 

इस विज्ञापन में एक महिला को चॉकलेट खाते दिखाया गया, और उसके बाद चॉकलेट बच्चों तक कभी सीमित नहीं रहा। अब तो कुछ मीठा हो जाए के विज्ञापन में अमिताभ बूढ़े होकर भी चॉकलेट खाते दिखते हैं और एक विज्ञापन ने यह उमर की दीवार, हिचक और सभी मान्यताओं को तोड़ दिया। 

क्या खास था उस विज्ञापन में जिसने भारतीय जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव डाला। महिला की वेशभूषा विदेशी थी, लड़का भी विदेशी खेल क्रिकेट खेल रहा था, उत्पाद भी विदेशी, बस विज्ञापन की भाषा हिंदी थी। आप भारतीयों से या किसी भी व्यक्ति से उनकी भाषा में बात करो तो व्यक्ति आपने सारे संकोच उतार कर आपसे खुल कर संवाद करता है। भाषा में वो शक्ति है जो धर्म, जाति, संप्रदाय, रंग, क्षेत्र आदि सबकी दीवारें गिरा देता है। भाषा की यह शक्ति अन्य किसी मानव जनित संकल्पना में नहीं है। जहां तक हिंदी का प्रश्न है, अपनी सरलता और सर्व समावेशी गुण के कारण हिंदी की क्षमता कहीं अधिक है।

हिंदी की इसी शक्ति को आज आभास करने का दिवस है। खुल कर हिंदी को अपनाएं। आत्मसम्मान और समृद्धि की सिमसिम को खोलने की चाबी का मंत्र हिंदी भाषा में ही लिखा हुआ है।

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं। 

Friday, September 10, 2021

Oracle Neo ko kya batati hai?

Year 2002.. somewhere in the common room of Rajendra Bhawan, IIT Roorkee.. HBO channel is on.. I am standing there after my early dinner.. The room is fuller than usual, that's why I stop to see what's the matter. Someone says, Aaj HBO per matrix aa rahi hai.. though I hadn't seen the movie but definitely heard about it.. I had seen posters of this movie in Patna but never went to watch the movie. It was because movie was running only in 'morning shows'. In case you know in Bihar l, morning show has a brand image entirely different from rest of the country. Being a shareef ladka, I never gathered courage to watch a 'morning show' film.

Coming back to story, I again heard about this movie from one of my Delhi classmate.. who said.. abe tune matrix dekhi hai.. mast movie hai BC.. aisa action hai ki poocho mat.. Neo ne sabki maa c@##d ke rakh di hai.. dekhna jaroor..

Such filled room, obviously excited atomosphere , I decided to lose my virginity of English film & HBO. I found myself a seat on back row of chairs and started watching the film. Those days HBO didn't have subtitles for the movies, so watching a Chinese film or and English film gave almost same experience. Movie was good, action was superb but didn't understand what why whom when of the movie plot due to obvious reasons.. Still I watched full movie and returned to my room. 

Met the same Delhi guy in the lobby, abe kidhar tha, he asked.. I said that I was watching movie the matrix  in the common room. Abe sahi.. dekh li tune . Kaisi lagi bata.. maza aaya na??

I said Haan maza to aaya, but couldn't understand one thing.. Actually I couldn't understand 80% of plot but didn't want to expose myself like that.. I asked.. abe sab to samajh gaya, bas ek baat samajh nahin paaya ki Oracle Neo ko kya batati hai? Bata de yaar..  Delhi wala friend looks blankly into my face and says.. Abe yaar maine bhi English mein hi dekhi thi..

Aaj chal ke civil lines se hindi dubbed wali cd laate hain phir dono saath mein dekhenge..maza aayega BC..

19 years later Matrix 4 is going to get released, though I am excited to watch this one too, two question still bother me..
  a. Oracle Neo ko kya batati hai..
 b. Matrix 4 ka hindi dub bhi release hogi kya saath mein?


Thursday, September 9, 2021

Be like Ganesh..

Ganesha is far from being perfect.. He misses his natural head, has one teeth missing and by body structure he is no where near his competitors Greek gods . Yet he is God , infact he is the considered the first among Gods. He is the lucky charm and brings auspiciousness.

 He tells us that you need not be perfect but just be comfortable in your skin and be happy in whatever you have. He has a mouse as his ride yet considered superior to Indra who has elephant Eravat as his ride. He tells us to have simple tastes, he is happy having a simple Modak while other gods need chhappan bhog. He is polite and wins everyone with his politeness Unlike other gods who carry weapons. Don't be fooled by his awkward looks, simplistic lifestyle and harmless aura, there is a scholar in him who helped vedvyas write all puran shashtras.

Vinayak is simple, Ganpati is great.. Be like Ganpati.. Shubh Ganesh chaturthi..

Wednesday, September 8, 2021

Working from home is not that pleasant as it sounds

Calling it work from home is just tip of iceberg. It is actually work from your kitchen, toilets, bedrooms and gym. It is working when your kid is crying for your attention. It is also working when wife is in romantic mood due to some galactic aberrations and rare events but you have a meeting to attend. It is also working from sasural when your food is served and New york wali saali is waiting at the dinner table. 

It is working when you have just paid bribe to traffic police because he caught you talking over phone while driving. It is also working when you have not even changed your whites for two days and haven't used cologne for a week. Work from home is also working with a smile because you just broke a shaadi wala crockery set while trying to wash dishes and attending a concall together. Working from home is also continue working without a fuss while you can't even complain about the tea because it is made by angry wife. Working from home is complicated situation because now your bedroom is your workplace and any inappropriate behavior might be categorized as harrassment at workplace. So you keep working and working in your jammies and undies having a blind faith that your video is not accidently on and mute button is properly functioning. Because being famous is a good thing and being famous because you forgot to mute your Mike or switch off your camera is rarely pleasant.

So though work and home may be two great words, working from home is certainly not that great. 

Saturday, September 4, 2021

वो शिक्षक जिसे शायद आप शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं नहीं देते

 सामान्यतः शिक्षक शब्द सुन कर मन में आदर सम्मान और अनुग्रह का भाव आता है। इसीलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु  जैसे मैसेज से सोशल मीडिया भर सा जाता है। लेकिन क्या आपका शिक्षक हमेशा वैसा ही होता है  जिसका स्मरण कर आपके मन में आदर और सम्मान का भाव प्रकट हो। थोड़ी पड़ताल करते हैं।

शिक्षक का अर्थ होता है शिक्षा देने वाला। शिक्षा तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप है सीख।अब अगर शिक्षक शब्द को स्कूलों में मिलने वाली औपचारिक शिक्षा और घर परिवार में मां द्वारा दी जाने वाली प्रारंभिक शिक्षा तक सीमित रखा जाय तो शायद शिक्षक का कमोबेश वही रुप आपके मन में आएगा जो शिक्षक दिवस पर हर तरफ छाया रहता है। एक निस्वार्थ ज्ञानी जो आपको हमेशा अंधेरे से उजाले और अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता है। लेकिन शायद यह शिक्षा का धनात्मक रूप है, सीख देने का एक दूसरा रूप है जो ऋणात्मक है। ऐसी सीख आपको ऐसा व्यक्ति देता है जो आपके उत्साह को निराशा में बदलने को आतुर हो, आपको अज्ञान के अंधेरे में धकेलने के लिए अपनी शक्ति लगा दे और जिसे आपका अहित देख कर संतोष मिलता हो। यह सही है कि वो व्यक्ति जो आपका उत्साहवर्धन करे , आपको अपनी क्षमताओं का विश्वास करने को कहे, उसे आप अपना शिक्षक कहते हैं, अपना गुरु मानते हैं, लेकिन आपकी सफलता में उन लोगों का योगदान भी कम नहीं है जिन्होंने आपको दुत्कारा, आपको नीचा दिखाया और आपकी क्षमताओं का सरेआम मजाक उड़ाया। ऐसी परिस्थितियों में आपमें सामने वाले को गलत प्रमाणित करके का जो जोश जगता है वो उत्साहवर्धन करने वाले शिक्षक के कमतर नहीं होता। इतिहास गवाह है कि ऐसे अवसरों पर अपमानित होने के बाद मानवों ने ऐसे ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जो उनके आशीर्वचन देने वाले शिक्षकों की प्रेरणा से संभव नहीं थे। बहुधा अंदर की आग जलाने में एक कड़वा वचन या दुत्कार या अपमान जनक बात एक भोले आशीर्वचन से ज्यादा कारगर होती है।

अगर  मैं कहूं कि चाणक्य को मौर्य वंश की स्थापना करने को उत्प्रेरित करने में धनानंद की जितनी भूमिका थी उतनी उसके गुरुओं की नहीं थी, तो शायद अनुचित न होगा। व्हाट्सएप के संस्थापक को फेसबुक में नौकरी तक न मिलने से जो प्रेरणा मिली होगी वो वाह वाह करने वाले उनकी मित्र मंडली से शायद ही मिल सकती थी। शायद यही कारण थी कि मरणासन्न रावण से शिक्षा लेने को भगवान राम ने लक्ष्मण को भेजा। अगर कारगिल युद्ध के समय अमेरिका अगर अपने जीपीएस सिस्टम का प्रयोग करने से हमें माना नहीं करता तोनाज नाविक के रूप में हमारे पास हमारा अपना और जीपीएस से बेहतर नेविगेशन सिस्टम ना होता। मेरे एक मित्र ने अपना आम का एक पूरा बागीचा लगा लिया क्योंकि उनके एक रिश्तेदार ने बचपन में उनसे बागीचे में चुने हुए आम छीन लिए थे।


सीख देने वाला अगर शिक्षक है तो जीवन की पाठशाला में शिक्षक के अनेक रूप हैं। हर वो व्यक्ति जिसने आपकी क्षमताओं पर शक किया, आपको दुत्कारा, आपके सपनों का मजाक उड़ाया और आपसे यह कहा कि तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, आपका शिक्षक है। आपकी बातों में गलतियां निकाल कर आपको नीचा दिखाने वाला आपको सबसे ज्यादा सीख दे सकता है। शायद आपका सबसे बड़ा शत्रु आपका सबसे बड़ा शिक्षक हो सकता है।

शिक्षक दिवस पर अपने दोनो प्रकार के शिक्षकों के योगदान को याद करें और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें। ऋणात्मक शिक्षकों को अपनी उपलब्धियां दिखाने का जो सुख है उसकी मिसाल दुनिया में कम ही है। 

उपहास और आशीर्वाद देने वाले मेरे सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं। 

Thursday, September 2, 2021

Kabul is nearer than you think

Some people think why should we be worried about events unfolding at Afghanistan. That's hardly our concern. That's happening in a far far land. We should be worried about our domestic issues.

Well, let us address the distance logic. If you are sitting in Delhi, Kabul is nearer to you, Mumbai is located at a larger distance. So it's not happening very far. 

And for those who feel that we should be worried about our domestic issues only, sorry to break your bubble. When your neighborhood house is on fire, you can't be at ease because your house is not on fire. It's not on fire yet.. it's just matter of time.

Remember, when whole America was busy in discussing Clinton-Leweinsky scandle and bringing down its own president, somewhere in the hills of Tora Bora Osama Bin Laden was planning 9/11 attacks. 

I sincerely wish we, an island of democracy and sanity in a deep blue sea of sheer madness and non democratic failing states, don't fall into any such trap and are fully aware what we are dealing with here. Lest we forget.