विज्ञान कहता है कि नींद के दौरान भी सपने आप तभी देखते हैं जब आप गहरी नींद में नहीं होते। इसे रैपिड आई मूवमेंट स्टेज कहा जाता है जिसमें मानसिक क्रियाओं का स्तर जागे हुए मस्तिष्क के बराबर होता है। मतलब सपने भी वोही देखता है जो सोते वक्त भी जगा हुआ सा हो।
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में अधखुली नींद में अलसाया हुआ सा एक जिला है कटिहार। मेरा गृह जिला। जब बिहार से निकला तो बिरले ही कोई मिलता जिसने कटिहार का नाम सुना हो। सब पूछते पटना के पास है? मैं कहता कि पटना से भी रात भर का सफर है कटिहार का। फिर मैं कहता कि आपने शायद भागलपुर सुना हो, कटिहार उसके आस पास ही है। विकास वो दौड़ है जिसमें कटिहार ने आज तक हिस्सा ही नहीं लिया, आगे पीछे होना तो दौड़ में शामिल होने के बाद की अवस्था है। मैं जब बाहर आईआईटी में पढ़ने पहुंचा तो अपने एक लखनऊ के मित्र को शिकायत करते सुना कि उनके लखनऊ में आजकल लोड शेडिंग बहुत हो रही है। मैंने पूछा यह लोड शेडिंग क्या होती है? उसने कहा कि लोड शेडिंग का मतलब है जब बिजली विभाग आपको पूर्व सूचना देकर बिजली काट देता है। बड़े भारी मन से उसने बताया कि आजकल चार घंटे तक लोड शेडिंग हो रही है। मैंने कहा चार घंटे लोड शेडिंग हो रही है मतलब तुम्हारे यहां बीस घंटे बिजली आती है, हमने आजतक दो घंटे से ज्यादा बिजली नहीं देखी। उसकी शक्ल देखने लायक थी।
बाढ़ जहां सालाना मेहमान हो, और सोलह सत्रह साल होने का मतलब या तो पटना 'तैयारी करने' जाने का समय है या 'दिल्ली पंजाब खटने ' के लिए जाने के लिए महानंदा एक्सप्रेस की जनरल क्लास में अपने लिए जगह ढूंढने की जद्दोजहद में लगना। कटिहार की अर्थव्यवस्था मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था कही जा सकती है जहां खेती से पेट भरता है लेकिन बदन पर कपड़ा दिल्ली की कमाई से ही आ पाता है।
गरीबी और पिछड़ेपन का लोमहर्षक वर्णन करना मेरा मकसद बिल्कुल नहीं है, यह भी सच है कि हाल के वर्षों में कटिहार में विकास की सुगबुगाहट सुनाई पड़ने लगी है। अब कटिहार वासी भी लोड शेडिंग की शिकायत करते सुने जा सकते हैं लेकिन देश के दूसरे हिस्सों से कटिहार का आनुपातिक संबंध सुदामा और कृष्ण जैसा ही है। कहने के लिए दोनों भले ही दोस्त हों, भौतिक सुविधाओं की कोई भी तुलना दूसरे के साथ एक भद्दा मजाक सरीखा प्रतीत होता है।
लेकिन जैसा कि अंग्रेजी में एक कहावत है कि tough times make tough men. कटिहार की भाषा में कहें तो अभावे म स्वभाव बनै छै। मतलब यह कि अभाव में ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है, सुख सुविधाओं की प्रचुरता शायद श्रम की जगह विलास की पौध को ज्यादा पोषण देती है। शायद इसी ओर नीरज चोपड़ा भी इशारा कर रहे थे जब उन्होंने बचपन में सुविधाओं के अभाव को मेडल जीतने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक बताया। और ऐसा ही कुछ उदाहरण हैं कटिहार के निवासी शुभम कुमार जिन्होंने कटिहार से निकल कर भारत के सर्वश्रेष्ठ परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है।
बिहार में आइएएस की परीक्षा का क्या महत्व है इसके लिए अलग से बात करनी पड़ेगी, बस इतना समझ लीजिए कि जितनी बड़ी बात आप समझते हैं उससे दस गुना बड़ी बात है यह। चलिए एक निजी अनुभव ही सुना देता हूं। स्कूल में कक्षा नौ में हमारे गणित के एक शिक्षक थे। नाम जानना महत्वपूर्ण नहीं है, बस इतना जान लीजिए कि शांत स्वभाव के शिक्षक थे, युवा थे और अपना काम चुपचाप से करते थे। अन्य शिक्षकों के बीच रहकर भी कुछ अलग से दिखते थे मानो उनके चारों तरफ से आवरण सा बना हुआ हो, भीड़ में रहकर भी अलग। लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं, जो शिक्षक डांटे नहीं, फेल करने की धमकी ना दे, होमवर्क ना करने पर सजा न दे उससे डरना कैसा। तो हुआ यह कि हमारे मैथ्स सर बोर्ड पर कुछ पढ़ा रहे थे और बच्चे पीछे शोर मचाने लगे। गणित वैसे भी बहुत लोकप्रिय विषय कभी नहीं रहा उपर से एक सरल शांत शिक्षक गणित पढ़ा रहा हो तो बच्चे ध्यान कहां देने वाले थे। लेकिन उस दिन शायद बच्चों का शोर और शरारत कुछ ज्यादा हो गया। हमारे मैथ्स टीचर ब्लैक बोर्ड छोड़ हमारी तरफ मुड़े और कहा। आपलोगों ने जिंदगी को मजाक समझ रखा है, आपको क्या लगता है कि जिंदगी इतनी आसान है जितनी आपको अभी लग रही है। मेरे पीठ पीछे आप शोर मचा रहे हैं। याद रखिए कि देश की सबसे ऊंची सीढ़ी के सबसे ऊपरी पायदान से मैं तीन बार नीचे गिरा हूं। इसीलिए आपसे कहता हूं कि अब आप अपने जीवन और करियर के प्रति कुछ गंभीर हो जाइए। इतना कहकर वो वापस पढाने लगे। हमें समझ नहीं आया कि हुआ क्या। सबसे ऊंची सीढ़ी, सबसे ऊपरी पायदान और वहां से गिरने का मतलब क्या था। बाद में कुछ बच्चे उनसे क्लास के बाद माफी मांगने पहुंचे तो उन्होंने सीढ़ी, पायदान और गिरने का मतलब बताया। सर तीन बार आइएएस की परीक्षा के इंटरव्यू तक पहुंच कर सफल न हो सके थे। यह सब बताते हुए उनकी आंखों में और आवाज में जो दर्द दिखा वो आजतक मैं महसूस करता हूं।
शुभम न केवल उस सीढ़ी के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे बल्कि वहां सबसे बेहतर रूप से पहुंचे। शुभम का समाचार सुनता हूं तो मैथ्स सर याद आते हैं और फिर याद आता है कटिहार। कटिहार में रहकर किसी ने अगर यह सपना देखा तो शायद कटिहार का भी इसमें हाथ है। जैसा कि हमने पहले कहा कि सपने अर्धजागृत अवस्था में ही देखे जा सकते हैं । कटिहार सुविधाओं से रहित वो सख्त बिछौना है जहां सोते समय भी वो गहरी नींद नहीं आ सकती जो मलमल के नर्म बिछौने पर आ सकती है। इसी कठोर बिछावन पर लेट कर कच्ची नींद में देखे गए सपने हैं जिन्हें शुभम ने पूरा किया और मैथ्स सर पूरा नहीं कर पाए।
एक पूरा सपना हजारों टूटे सपनो की भरपाई कर देता है। कटिहार का सपना आपने पूरा किया। शुभम को इसके लिए साधुवाद और बहुत बहुत बधाइयां।
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