Wednesday, September 15, 2021

बदलता वक्त और उसके साथ बदलना

बहुत दुखद होता है अपने बीते हुए वक्त का गुलाम बन के रहना। अपने आज को बीते हुए कल की यादों के पीले पड़ते पन्नों की किताब को उलट पलट कर देखने में बिताना। ऐसे किताब जिसका नया संस्करण निकालने का जुनून आपके अंदर नहीं रहा। ऐसी जिंदगी जीना मानो बासी अखबार के पन्नो को पलट पर उसकी सुर्खियों में अपना जिक्र ढूंढने के जैसा है क्योंकि आज का अखबार पलटने की हिम्मत शायद नहीं बचती है बीते हुए कल के गुलामों में। 

आज के अखबार की सुर्खियां जो सच्चाई बयां करती है जिसे वो ही झेल सकता है जिसने अपनी कहानी लिखनी बंद नहीं की।जिसका सफर जारी है, जिसके सफर के चर्चे जारी हैं, जिसके जिंदगी का फलसफा एक जिंदा दस्तावेज है जो हर पल बदल रहा है बदलते वक्त के साथ। 
कहते हैं वक्त सबसे बलवान होता है, और वक्त हमेशा बदलता रहता है। मतलब यह कि बलवान वही है जो बदलना जानता है। रुक जाना ही मर जाना है, निर्झर यह झर कर कहता है। बहता पानी जो जीवन का रूप माना जाता है , रुक जाय तो सड़ जाता है। रूके सड़ते पानी से उठती बास वैसे ही लगती है जैसे अपने बीते स्वर्णिम कल को याद कर अपने खंडहर हवेली में बैठा जमींदार, अपनी तीस साल पुरानी धुनों पर जबरदस्ती से नाचता और खुद अपनी मिमिक्री करता बूढ़ा फिल्मस्टार। 

 बुरा वक्त बदल जाता है, अच्छा वक्त जल्दी बदल जाता है। इसीलिए आदमी अच्छा वक्त हमेशा पकड़े रहना चाहता है। शायद बीते वक्त का गुलाम बनने की शुरुआत यहीं से होती है। लेकिन यह कुछ ऐसा ही है जैसे किसी खूबसूरत तितली को मुठ्ठी में पकड़ लेना, किसी उड़ती चिड़िया को पकड़ कर पिंजड़े में कैद कर लेना और यह आशा करना कि तितली और पंछी का सौंदर्य बना रहेगा। नहीं, मुट्ठी में कैद तितली के पंख टूट जाते हैं, उसके पंखों का रंग विन्यास बिखर जाता है। कहने को वो आज भी तितली है लेकिन टूटे पंखों वाली मृतप्राय तितली का विद्रूप सौंदर्य कभी भी जीवंत तितली का सौंदर्य नहीं कहला सकता।

तितली और पंछी का सौंदर्य अगर अनवरत देखना है तो उस उपवन को हरा भरा बनाए रखना होता है जिसके कारण वो तितलियों का झुंड वहां आया था। उन फलदार पेड़ों की रखवाली करनी होती है जिसके पके अधपके फलों और फूलों के लिए विहंगो का कलरव गान हुआ करता है। बागीचे की मिट्टी पर कुदाल चला कर और उसको लगातार पानी से सींचने में मेहनत लगती है, जो हाथों में मिट्टी लगती है और चेहरे से धूप में चमकती पसीने की बूंदें टपकती हैं, वो ही बागीचे में तितलियों और पंछियों के रूप में दिखती है। 

बीच बीच में खुद को जांचना जरूरी हो जाता है कि कहीं हम भी तो क्यारियां सींचने वाले मेहनतकश काम को छोड़ तितलियों को कैद तो नहीं लगे, यह सोच कर कि एक बार तितलियां पकड़ ली तो हमेशा मेरे बाग में रौनक रहेगी। जब भी ऐसा लगे तो समझ जाना कि ठहराव, क्षरण और पतन की शुरुआत होने ही वाली है। क्योंकि वक्त खुद कभी नहीं रुकता और रुकने वालों को अपने साथ भी नहीं रखता। क्योंकि वक्त बलवान होता है और वो बदलता रहता है। 

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