Sunday, November 28, 2021

टेंपू की पिछली सीट के सुख की क्षणभंगुर माया

टेंपू में पीछे बैठे पुरुष का सुख उतना ही क्षणिक होता है जैसे कमल दल पर पड़े तुहिन कणों का जीवन। सूरज की किरणें आई नहीं कि ओस की बूंदें अपने कमलासन को छोड़ने को विवश हो जाती हैं।

टेंपू की पिछली सीट पर बैठे पुरुष को कब कह दिया जाय कि "भैया आप आगे आ जाओ, लेडीच बैठ जाएगी वहां", महादेव भी नहीं बता सकते। 

राही मनवा आगे वाली सीट की चिंता क्यों सताती है, ड्राइवर ही अपना साथी है।
पिछली सीट तो है एक छांव ढलती, आती है जाती है, 
ड्राइवर ही अपना साथी है।

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