,रेल में स्लीपर का सफर तो कुछ ऐसा है जो आपको खाली नहीं छोड़ता, हर तरीके से भर देता है। डब्बे में हरेक पांच मिनट पर आने वाले खोमचे वाले , चायवाले , समोसे वाले, मौसमी फल वाले, पेप्सी पन्नी कुरकुरे वाले ना चाहते हुए भी आपका पेट भर देते हैं। डब्बे में हरेक तीन मिनट पर आने वाले हर तरीके के भिखारी, भड़काऊ कपड़े और मेकअप पहने किन्नर , परदेशी परदेशी गाना गाकर आपको अपनी सीट पे प्रायवेट कॉन्सर्ट की फील दिलाने वाले बच्चे, लोहे से एक छोटे से छल्ले से अपने धड़ को फंसाकर करतब दिखाते छोटे बच्चे आपका दिल भर देते हैं।
गंदे टॉयलेट देख कर आपकी आंखें भर आती हैं।वेटलिस्ट वाले पैसेंजर, 'बस दो स्टेशन जाने वाले हैं' कहकर आपकी सीट पर जम जाने वाले पैसेंजर आपकी सीट को भर देते हैं। पूरे खानदानी मिल्कियत को अपने साथ लगेज बनाकर चलने वाले खवातीन ओ हजरात आपकी सीट के नीचे वाली जगह को भर देते हैं। रात के खाली सन्नाटे को सहयात्रियों के खर्राटों की सन्न कर देने वाली सनसनी भर देती है। आप थोड़ी मेहरबानी दिखाएं तो आपके सूटकेस में बची खाली जगह को भरने के लिए सौ प्रतिशत शुद्ध सूती, बनारसी, रेशमी, खादी चादर, साड़ी, चादर बेचने वाले मौजूद होते हैं। बच्चों के खाली हाथ चाइनीज खिलौने, रेल के डिब्बों पर स्पाइडर मैन वाले गोंद वाले खिलौने वाले भर देते हैं।
आपके ज्ञान की कमी और सामान्य अध्ययन की कमी के खालीपन को डब्बे में चल रहा अनवरत चल रहे राजनैतिक विमर्श की तेज आवाज भर देती है। आप इस राजनीति विमर्श को सुनते सुनते अपने आप को मैकियावेली और चाणक्य समझने ही लगते हो कि एक इंसान आकर आपके जूतों को काली चमक से भर देने की फरमाइश कर देता है। इसके कोई फरक नहीं पड़ता कि आपने चमड़े के जूते नहीं पहने, चेन वाले बैग लेकर तो चल होगे। यह खुदा का बंदा आपके बैग की टूटी चेन ठीक कर देता है, बैग में सब ठीक भी हो तो भी उसमें एक्स्ट्रा पहिए लगाकर आपके बैग को माने पंख लगा कर उड़ने के भाव से भर देता है।
यह भरने का सिलसिला सिर्फ डब्बे के अंदर वाकया नहीं है। डब्बे के बाहर चलती गाड़ी का नजारा भी आपको आत्मग्लानि के भाव से भर देता है। आप अपनी खिड़की से बाहर ताक रहे हैं , मन में सोच रहे हैं कि यह जिंदगी भी रेल की कितनी तेज भाग रही है और मैं भी इसके साथ भागा जा रहा हूं, तभी आपको सुकून से बैठे लोगों की एक पंक्ति दिखाई देती है जिन्हें ना सम्मान की आशा है और न अपमान का भय। अपनी हया को उन्होंने पानी बना कर अपने साथ बिसलेरी के एक पुराने प्लास्टिक की बोतल में डाल रखा है, जिससे वो अपनी बाकी बची हया भी धो डालते हैं। जिनके जीवन का गीत है कि परदा नहीं जब कोई खुदा से, बंदों से परदा करना क्या। आप सोचते हैं कि आपने आर्ट ऑफ लिविंग कोर्स करके भी यह बेतकल्लुफी और सुकून नहीं पाया जो सामने बैठी जमात ने पुरानी पटरियों के सानिध्य में बैठ कर पा लिया । ऐसा विश्राम का भाव जो शायद सूफी संतों को हाल की अवस्था में भी बिरले ही नसीब होता था।
स्लीपर बॉगी का सफर इन सबसे ऊपर आपके जेहन को यादों से भर देता है। वो यादें जिनके बनने के बाद यह महसूस होता है कि इनके बिना आप कितने खालीनुमा थे।
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