आज सुबह उठा तो लघुशंका करने के बाद मन में एक शंका बैठ गई। शंका होने लगी कि आखिर मैं हिंदू हूं कि नहीं। अगर हूं भी तो कितना हिंदू हूं। अगर हिंदू हूं तो कैसे प्रमाणित करूंगा? अगर हिंदू हूं भी तो आखिर किस कैटेगरी का?
मेरे पास रामनामी चादर ओढ़े कोई फोटो नही है और ना ही सोशल मीडिया पर किसी गुफा में बैठे ध्यानमग्न मेरी कोई तस्वीर वायरल हुई है आजतक। महीना सावन का है या अगहन का, मुझे पता नहीं। उतनी ही बात हो तो शायद हिंदू बन भी जाऊं, लेकिन मैं तो यह मानता हूं कि आजादी 1947 में मिली। मैंने आजतक ना ही तेजोमहालय वाली पोस्ट किसी को फॉरवर्ड की है और ना ही मेरे फोन पर सुदर्शन न्यूज़ का ऐप इंस्टॉल्ड है। हां, शाखा मैं गया हूं, काफी बार गया हूं, लेकिन पचासों बार नजदीकी स्टेट बैंक की शाखा में जाने के बाद भी कभी सही समय पर नहीं पहुंच पाया। जब सुबह पहुंचा तो पता चला लंच के बाद आना है और लंच के बाद पहुंचा तो पता चला कि बड़े बाबू लंच के पहले ही फॉर्म जमा लेते हैं। एक बार सही समय पर पहुंच कर कतार में लग भी गया तो काउंटर पर पहुंच कर दो बातें पता चली, पहली यह कि मेरा तो काउंटर ही गलत है और दूसरा होम लोन लेने के लिए सारे डॉक्यूमेंट्स के साथ जो मैंने अपने जन्मपत्री लगाई थी उसमें मेरी कुंडली में मांगलिक दोष निकल आया है, अतः मुझे लोन नहीं मिल सकता। खैर, यह बातें फिर कभी। अब जो व्यक्ति आज तक सिर्फ बैंक की शाखा में गया हो, इतने बड़े अपराध बोध वाला व्यक्ति हिंदू कैसे हो सकता है। यही शंका दूर करते करते वापस से लघु शंका लग आई।
बाथरूम में जाकर बैठा तो देखा मेरा तो टॉयलेट तक हिंदू रीति से नहीं बना बल्कि अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया है। मैं निराशा के अंधकार में डूबता सा चला गया। आगे खयाल आया कि हनुमान चालीसा के नाम पर "भूत पिशाच निकट नहीं आवै" वाली लाइन के अलावा कुछ खास याद नहीं। एक बार ऑफिस में झल्लाए हुए बॉस को अपनी ओर आते देख कर यह लाइन मुंह से निकल गई थी तो बड़ी आफत आ गई थी। उसके बाद तो सार्वजनिक मंचों या सार्वजनिक सभाओं को छोड़िए, अपने बेडरूम में भी यह लाइन पढ़ने से डरता हूं। हिंदू बनने के लिए एक सांस में हनुमान चालीसा बांच जाने वाले तो कतई मुझे हिंदू नहीं मानेंगे।
इसके बाद शौचालय से निकल कर बाहर आया तो अर्धांगिनी ने पूछा कि ऐसे मुंह क्यों लटकाए हुए हो। मैने कहा कि मैं अपनी पहचान को लेकर परेशान हूं। हिंदू होने के लिए आपको अपना गोत्र न केवल याद होना चाहिए बल्कि आपको सबको बताना भी चाहिए। मुझे तो शादी के वक्त पहली बार मुझे अपना गोत्र का पता चला था, जो अब वापस से भूल भी गया हूं। बचपन में कराए गए उपनयन संस्कार में मिले पवित्र धागे को बाथरूम जाने वक्त ना कान के ऊपर स्थान देना याद रख पाता हूं और ना बाहर आने के बाद अपने जैकेट के ऊपर उसे कभी स्थान दिया। आखिर मैं कैसा हिंदू हूं?
आखिर कोई निकृष्ट हिंदू ही होगा जिसने आज तक" विष्णु माता की जय का जयकारा " नहीं लगाया। विष्णु माता की जय तो छोड़िए। अब जब ऊपर के सारे प्रकार के हिंदुओं में अपने को शामिल नहीं पाया तो बड़ी आशा से मैंने अपने आप को अगली कैटेगरी में फिट करने की कोशिश की। फिर हाथ में निराशा ही हाथ लगी। ना ही मैंने आजतक I am ashamed as a hindu वाले ट्वीट किए हैं, और ना ही आजतक दिन में कन्या पूजन और रात में छी छी वाला काम किया है। अगर दिन में कन्या पूजन करने लगा तो या तो जोरू का गुलाम कहलाऊंगा या सड़क पर एक और पापा की परी की संख्या बढ़ाऊंगा। दोनों ही स्थिति मुझे नागवार गुजरती है। जिंदगी भर ब्वॉयज स्कूल, बॉयज होस्टल और इंजीनियरिंग कॉलेज की जिंदगी जीने के बाद लड़कियों के सामने मेरा कॉन्फिडेंस तब तक ही रहता है जब तक लड़की 2D में हो। 3D कन्याओं के सामने मेरी ऐसे ही फटी रहती है। इसीलिए इस वाली हिंदू कैटेगरी में भी सम्मिलित होना संभव नहीं लग रहा।
बालकनी में बैठा बैठा सोच ही रहा था कि सामने से एक अर्थी जाती दिखाई दी। बरबस ही हाथ प्रणाम की मुद्रा में चले गए। फिर देखा कि तुलसी पिंडे की मिट्टी सख्त हो गई है , पिछले हफ्ते बाहर रहने के कारण उसमें खुरपी नहीं चला पाया था। जल्दी से घर से खुरपी लेकर आया तुलसी के आस पास की मिट्टी पलट दी। फिर पास ही रखे मिट्टी के बर्तन को पानी से भरा ताकि बालकनी में रहने वाली हमारी सबसे नज़दीकी पड़ोसन गौरेया को पानी की दिक्कत ना हो। इतने में देखा कि मौसम सुहाना हो रहा है। बारिश शुरू हुई, देवी जी को आवाज लगाई कि थोड़े प्याज के पकोड़े बना दो, कितना अच्छा मौसम हो रहा है। अंदर से आवाज आई, पापी कहीं के !! आज एकादशी है तो कोई लहसुन प्याज नहीं बनेगा। और यह पूजाघर का टेबल उठा कर बाहर कर दो, मुझे अल्पना बनानी है। पूजा घर का भारी टेबल और उसपर रखे सामान को उठा के जो पसीना निकला उसके साथ ही नासपीटे न्यूज़ चैनल्स की वजह से पैदा हुई हिंदू ना होने की शंका भी कहीं मुझसे कहीं दूर निकल गई।
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