सही है, लेकिन msp तो इसीलिए शुरू की गई थी की देश में गेहूं और धान की कमी थी और अकाल से जूझने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना था। जाहिर है कि जब से msp का प्रावधान आया, फायदा सिर्फ हरित क्रांति वाले प्रदेश पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को हुआ।
तो अगर, गेंहू और धान के उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देना सही है तो दूध उत्पादकों को उनके उत्पाद के मूल्य की गारंटी क्यों ने दें? लाह उत्पादक, रेशम उत्पादक, कपास उत्पादक, जूट उत्पादक किसानों का क्या msp का हक नहीं बनता?
किसान ही क्यों? ठेला खींचने वाले, रिक्शा खींचने वाले की प्रति सौ मीटर ढुलाई की न्यूनतम भाड़े की गारंटी भी सरकार को देनी चाहिए। बढई द्वारा बनाए गए हरेक कुर्सी टेबल की न्यूनतम मूल्य की गारंटी सरकार क्यों ना दे? लोहार ने कौन सा गुनाह किया है कि उसके बनाए गए फावड़े की कीमत की गारंटी सरकार नहीं दे रही।
ट्यूशन पढ़ाने वाले, सिक्योरिटी गार्ड का काम करने वाले, घर में बर्तन धोने वाली काम वाली बाई की सेवाओं का न्यूनतम मूल्य सरकार कानूनी तरीके से तय क्यों न करे?
अरे मैं जो इतनी मेहनत से ब्लॉग लिखता हूं, उसके भी मिनिमम लाइक्स और कमेंट्स की गारंटी सरकार कानूनी रूप से क्यों नहीं देती? ट्विटर और इंस्टाग्राम पर मेकअप और फिल्टर बदल बदल कर वीडियो बनाने वाली जनता भी अपने रील्स के लिए न्यूनतम समर्थन रीट्वीट और लाइक्स के लिए एक कानून की मांग करने का लोकतांत्रिक अधिकार रखती है।
प्रश्न है कि सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही? तो उत्तर यह है कि सरकार का यह काम ही नहीं है। यह काम बाजार की शक्तियों का है। जब सरकार यह काम करने लगती है तो क्या होता है यह देखने के लिए रूस, क्यूबा और वेनेजुएला की हालत देख लीजिए। सरकार सिर्फ अपवाद के रूप में जहां आवश्यक हो ऐसे कदम उठा सकती है, लेकिन अपवाद साधारण नियम नहीं बन सकते।
Msp की कानूनी मांग सरासर गलत है और इसके नाम पर सड़कों को जाम करना सर्वसाधारण के अधिकारों का सर्वथा हनन। ऐसे गुंडों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। इन असमाजिक तत्वों को राजनीतिक समर्थन देने वाले आग से खेल रहे हैं , एक दिन आग में उनके अपने आशियाने भी आयेंगे, यह उन्हें याद रखना चाहिए।
रही बात टिकैत जैसे बिचौलियों के मुखौटे से निपटने की, तो उनके जैसे मौसमी आंदोलनकारियों के सामने झुकने का कोई सवाल ही नहीं है। सरकार का इकबाल बुलंद रहना चाहिए, वोह किसी ऐसे आदमी या संस्था से समझौता नहीं कर सकती जो दस हजार की भीड़ जमा कर अपना शक्ति प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं। अगर टिकैत के पास 5000 लोग हैं तो सरकार तेईस करोड़ लोगों के मतों से बनी है।
इनके साथ निपटने के लिए सब्र और बातचीत का समय बीत चुका है। क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थो और लक्ष्य से प्रेरित यह बकवास बहुत खिंच चुकी, अब इसको बंद कर,बल प्रयोग से ही सही, आम जनता को राहत देने का समय आ चुका है।
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