मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं, पहला विनिमय का माध्यम और मूल्य का संचयन। जब तक किसी देश की केंद्रीय बैंकिंग संस्था किसी भी मुद्रा को लीगल टेंडर का दर्जा नहीं से देती, वो उपरोक्त दोनों मानकों पर खरी नहीं उतरती।
भारतीय मध्यवर्ग जो चिटफंड में अपने पैसे के डूबने और यस बैंक में अपने पैसे फंसे होने पर सरकार का मुंह ताकती है, और यहां तक कि शेयर मार्केट के नीचे जाने पर भी सरकार से यह आशा रखती है कि सरकार कुछ करके सेंसेक्स को ऊपर ले जाए, क्रिप्टो करेंसी से जुड़े जोखिम को लेने को तैयार नहीं दिखता।
जोखिम लेना तो दूर अधिकतर लोग जोखिम को समझने की स्थिति में नहीं हैं। आर्थिक साक्षरता और तकनीकी ज्ञान के अभाव का ही प्रमाण है कि हमारे देश में बैंक से जुड़े इतने ठगी के मामले आते हैं। रही बात क्रिप्टो में बढ़ रहे निवेश को लेकर, तो यह कुछ ऐसा ही है जैसे छत्तीसगढ़ से एक स्कूली बालक के गाने 'बचपन का प्यार' रातों रात सबकी जुबान पर चढ़ गया। इसका अर्थ कतई नहीं है कि इसके गाने को सुनने वाले संगीत के जानकर थे या उस बालक में गाने की कोई नैसर्गिक प्रतिभा थी। यहां तक कि कुछ मीम कोइंस, जैसे कि डॉग कॉइंस, की सफलता यह दिखाती है कि वर्तमान में क्रिप्टो की सफलता का कोई मजबूत आधार नहीं है बल्कि यह भीड़ की बेकाबू भावनाओं के उबाल पर आधारित है जिसका ठोस आधार नहीं है।
हां यह बात अलग है कि हम इस डिजिटल युग में क्रिप्टो मुद्रा से आंख मूंद कर नहीं रह सकते। इसका उपाय यह है भारतीय सरकार अपनी एक डिजिटल मुद्रा जारी कर सकती है और इसके पीछे की ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित सप्लाई चेन, बैंकिंग , प्रशासन सब पर कार्य किया जा सकता है। प्रधानमंत्री वैसे भी औद्योगिक क्रांति 4.0 में भारतीयों के नेतृत्व को अपने विजन का हिस्सा मानते हैं, तो ब्लॉक चेन और उसपर आधारित मुद्रा को नज़रंदाज़ करना बड़ी भूल होगी।
यह सच है कि भविष्य डिजिटल है लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आधी अधूरी तैयारी के साथ इस मैदान में उतरा जाय क्योंकि इससे जुड़े खतरों और जोखिम को लेने के लिए ना हमारा समाज तैयार दिखता है और ना ही अर्थव्यवस्था। मुहम्मद बिन तुगलक ने तांबे की मुद्रा चलाई तो हर सुनार की दुकान टकसाल बन गई थी। अगर क्रिप्टो करेंसी को निर्बाध छूट दे दी गई तो कमजोर अर्थव्यवस्था , कम जोखिम लेने की क्षमता, आतंकवाद , ब्लैक अर्थव्यवस्था से जूझते देश के सामने कई नई समस्याएं आ सकती हैं। खास कर प्राइवेट करेंसी जहां पारदर्शिता का बिलकुल अभाव है, इन समस्याओं को कई गुना बढ़ा सकती है।
वर्तमान में प्राइवेट क्रिप्टो मुद्रा ड्रग्स का व्यापार करने वालों, फिरौती मांगने और दूसरे अवैध व्यापार करने वालों के लिए वरदान से कम नहीं है। क्योंकि इसमें पैसे भेजने वाले और पैसे पाने वाले दोनो की पहचान गुप्त रहती है। इसपर न कराधान हो सकता है और ना ही करवंचना पर कोई दंड देना संभव है। जिस प्रकार तुगलक काल में हर सुनार की दुकान एक टकसाल बन गया था, उसी प्रकार प्रकार के हालात आज दिखते हैं जहां हजारों क्रिप्टो करेंसी बाजार में आ चुकी है। एक सुझाव यह भी दिया जा रहा है कि क्रिप्टो करेंसी को मुद्रा का नहीं तो कम से कम कमोडिटी का दर्जा दे दिया जाय जिससे इसकी ट्रेडिंग की जा सके। यह सुझाव भी इस मामले में सही नहीं दिखता क्योंकि हर कमोडिटी के मूल्य निर्धारण के लिए हमारे पास जितने पैमाने हैं उनमें से किसी का भी प्रयोग कर हम इनका वास्तविक मूल्य निर्धारण नहीं कर सकते। अगर इसका कोई वास्तविक मूल्य निर्धारित नहीं किया जा सकता तो क्रिप्टो की ट्रेडिग और जुए में कोई खास अंतर नहीं है।
सच्चाई यह भी है कि पूरे विश्व की सरकार इसको लेकर असमंजस में हैं। एकाध छोटे देशों को छोड़कर किसी ने भी इनको मान्यता नहीं दी है। भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को, जहां मानवता का एक पांचवा हिस्सा निवास करता है और जो भूख और गरीबी से अपनी लड़ाई जारी रखे हुए है, कोई भी कदम सोच समझ कर ही उठाना चाहिए। व्यक्तिगत निवेशकों को भी यह समझना चाहिए कि निवेश और जुआ अलग अलग चीजें हैं। जोखिम को समझे बिना समझे किया गया निवेश जुए के ही बराबर है और जुआ खेल हो सकता है कमाई का का आधार नहीं।
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