मेरे गांव को शहर से जोड़ती
मेरे गांव की यह सड़क।
सुबह को गाडियां
सिर्फ जाती है शहर की ओर
भर कर दूध , सब्जी, फल,
शाम में लौटेगी खाली गाडियां,
ले कागज़ के चंद टुकड़े
कुछ तुड़े मुड़े कुछ कड़क।
पूरे घाटे का सौदा करवाती
मेरे गांव की यह सड़क।
कहते हैं गांव वाले कि
जाते हैं शहर
सपनों की तलाश में,
लेकिन जानते हैं लेकिन नींद
तो लौट गांव में ही आएगी,
क्योंकि शहर में आंख लगने पर
मिलती मालिक की झिड़क।
ऊंघते झूमतों को वापस घर लाती
मेरे गांव की यह सड़क।
ले जाती हर सुबह
मेरे गांव से युवा ऊर्जा
से भरे चेहरे
लबालब शरीर मेहनत और स्पन्द से।
शाम में वापस लेकर आती
लौटते भरे धूल से सने बदन
स्वेद से भीगी हर रग
थकी हर हरकत थकी हर धड़क।
थकाने के खेल में कभी न थकती
मेरे गांव की यह सड़क।
मेरे गांव को शहर से जोड़ती
मेरे गांव की यह सड़क।
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