Wednesday, November 10, 2021

छठ का महापर्व

याद आता है गंगा किनारे बसा साइंस कॉलेज का होस्टल केवेंडिश। होस्टल से बगल की जगमग सड़क और उससे गुजरता छठ व्रतियों का हुजूम। साउंड सिस्टम पर बजती छठ लोक गीतों का अनवरत सिलसिला। उस समय हम लोग आईआईटी की तैयारी कर रहे थे, इसलिए घर नहीं गए छठ पूजा में। छठ के पास आते ही पता चला कि होस्टल का मेस बंद रहेगा क्योंकि महराज जी छठ के लिए घर गए हुआ हैं। मेस चलाने वाले को हम महराज कहा करते थे। 

दो तीन दिन तक तो हम मैगी खाकर किसी तरह काम चलाते रहे। एक सीनियर से पूछा कि भैया ऐसे मैगी खाकर कैसे काम चलेगा। उसने कहा कि आज शाम की अर्घ्य है, कल सुबह इतनी व्यवस्था हो जाएगी कि पूछो मत। मैं समझ नहीं पाया। अगली सुबह वाली अर्घ्य के साथ ही छठ का समापन होने वाला था। केवेंडिश होस्टल के बगल वाली सड़क पर सुबह से ही रौनक थी। हमने भी उस सुबह एचसी वर्मा और केसी सिन्हा की किताबों को छठ की छुट्टी दी और सड़क पर खड़े होकर वो अनुपम नजारा देखते रहे। 

हमारे सीनियर भी साथ ही खड़े थे। हमने कहा कि भैया कल वाली बात याद है या नहीं। कि आज भी मैगी का ही कलेवा चलेगा। उसने कहा एक मिनट रुको। और वो अंदर जाकर एक साफ बेडशीट ले आया। और चादर को होस्टल के सामने बिछा कर खड़ा हो गया। सुबह की अर्घ्य देकर लौट रहे छठ व्रतियों का हुजूम केवेंडिस होस्टल के सामने से गुजरने लगा। बिना किसी से कुछ कहे हर बांस के सूप और दौरे से छठ का प्रसाद हमारे बिछाए हुए बेडशीट पर हरेक परिवार की तरफ से हमारे लिए छठ का प्रसाद दिया जाने लगा। मिनटों में ही हमारे लिए ठेकुआ , केतारी, सिंघाड़ा, नारियल, मूली का ढेर लग गया। हमने सीनियर की तरफ देखा, सीनियर के चेहरे पर मुस्कान थी। उसकी बात सच हो गई थी। छठ मैया की कृपा से हमें मैगी की एकरस जिंदगी से सीधे ठेकुआ की मीठी बयार मिली थी। 

छठ का महापर्व जिसके प्रसाद के लिए हाथ फैलाने में भी कोई शर्म नहीं, हर कोई मानो एक।बराबर हो जाता है। जिसके दावरे और सूप को सर पर उठा कर चलने में गर्व महसूस हो। छठ का पर्व जिसके लिए छठ व्रतियों के लिए सड़कों पर झाड़ू लगाना पुण्य समझा जाता है। एक अनूठा पर्व जिसकी कोई मिसाल नहीं।

सबको छठ की शुभकामनाएं।। 

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