ऐसी ही समस्या से रुबरू थी इंग्लैंड की चॉकलेट कंपनी कैडबरी। कैडबरी डेयरी मिल्क भारत के बाजार में अपनी स्थिर बिक्री से परेशान था। कारण यह कि भारतीय जनमानस चॉकलेट को बच्चों की चीज मानता था, चॉकलेट तो बच्चे खाते हैं वाली मानसिकता को जब तक ना तोड़ा जाय, चॉकलेट का बाजार बढ़ना असंभव ही था। ऐसे में कैडबरी का एक विज्ञापन आया जो आज भी सबकी जुबान पर है। कुछ खास है हम सभी में, कुछ बात है हम सभी में, क्या स्वाद है जिंदगी में।
इस विज्ञापन में एक महिला को चॉकलेट खाते दिखाया गया, और उसके बाद चॉकलेट बच्चों तक कभी सीमित नहीं रहा। अब तो कुछ मीठा हो जाए के विज्ञापन में अमिताभ बूढ़े होकर भी चॉकलेट खाते दिखते हैं और एक विज्ञापन ने यह उमर की दीवार, हिचक और सभी मान्यताओं को तोड़ दिया।
क्या खास था उस विज्ञापन में जिसने भारतीय जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव डाला। महिला की वेशभूषा विदेशी थी, लड़का भी विदेशी खेल क्रिकेट खेल रहा था, उत्पाद भी विदेशी, बस विज्ञापन की भाषा हिंदी थी। आप भारतीयों से या किसी भी व्यक्ति से उनकी भाषा में बात करो तो व्यक्ति आपने सारे संकोच उतार कर आपसे खुल कर संवाद करता है। भाषा में वो शक्ति है जो धर्म, जाति, संप्रदाय, रंग, क्षेत्र आदि सबकी दीवारें गिरा देता है। भाषा की यह शक्ति अन्य किसी मानव जनित संकल्पना में नहीं है। जहां तक हिंदी का प्रश्न है, अपनी सरलता और सर्व समावेशी गुण के कारण हिंदी की क्षमता कहीं अधिक है।
हिंदी की इसी शक्ति को आज आभास करने का दिवस है। खुल कर हिंदी को अपनाएं। आत्मसम्मान और समृद्धि की सिमसिम को खोलने की चाबी का मंत्र हिंदी भाषा में ही लिखा हुआ है।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
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