अपनी मुस्कुराहट को
दूर कर दिया है मैंने
अपने आप से,
जैसे सिलाई उधड़ गई हो
मेरी पसंद की कमीज की
और मैंने रख दिया हो उसे
तह लगाकर पुराने सूटकेस में,
पुरानी कमीजों के नीचे,
संभाल कर सहेज कर
इस इंतजार में कि
कभी कोई आएगा
जो वापस से सिल देगा मेरी फटी
कमीज सी मुस्कुराहट।
अपनी शोखियों को टांग दिया
है मैंने पुराने आलने पर
पहनी हुई कमीज के जैसे,
औंधी पड़ी आलने पर कमीज
जिस पर लगे हों
दाग धूल और पसीने के
और तुडी मुड़ी मटमैली कॉलर
ताक झांक करती दूर से ही।
शोखियों वाली हँसी को छोड़ दिया
पहनी कमीज जैसे
सोच कर यह कि कभी वापस से
पहनूंगा इसे धोकर
खुशबू वाले साबुन से
गुनगुनी धूप में सुखा कर।
ज़माने ने फीकी कर दी है मेरी हँसी
जैसे रंग उड़ गया हो
सुर्ख लाल कमीज का
धूप झेलते झेलते
मार खा खा कर धोबी की
जैसी दी गई हो हजारों पटखनी
इसे घाट के पत्थर पर।
ज़माने की धुलाई ने
निकाल दिए हैं सारे रंग
मेरी हँसी के।
अब मेरी मुस्कुराहट
मेरी शोखियां
और मेरी हंसी
मानो हैं पुरानी कमीज के जैसी
खूंटी पर टंगी
आलने पर बिखरी
बदरंग रंग वाली
उधड़ी सिलाई वाली
दागदार।
मगर फेंका नहीं है
अपनी कमीज को अब तक
कि इंतजार है कि कोई आएगा रंगरेज
अपनी हँसी के रंग
वापस भर देगा मेरी हँसी में।
वापस सिल देगा उधड़ी हुई सिलाई
अपनी लंबी लंबी बातों के धागे से,
और उसकी शोखियां धो डालेंगी
दर्द के दाग और
वापस से चमचमा उठेगी मेरी कमीज
बिलकुल नई सी।
तब तक यूं ही
टंगी रहेगी
औंधी पड़ी रहेगी
मेरी फटी बदरंग
हँसी वाली कमीज।
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