इसका एक प्रमाण हमें वर्तमान में जॉब मार्केट में आई उछाल में दिखता है। भविष्यवाणियों के उलट कंपनियां जम कर भर्तियां कर रही हैं और इन नई भर्तियों में दिए जा रहे पैकेज भी सामान्य से कहीं उपर हैं। इसका असर सिर्फ नई भर्तियों पर नहीं पड़ा है बल्कि कंपनियों को अपने कुशल कामगारों को कंपनी के साथ बनाये रखने के लिए भी खासी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। अमेरिका में अभी के दौर को द ग्रेट रेजिग्नेशन या बिग क्विट कहा जा रहा है जहां बेहतर नौकरी की आस में अपनी नौकरी से इस्तीफा देने की होड़ सी लग गई है। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में अप्रैल से जून 2021 वाली तिमाही में प्रतिमाह करीब 40 लाख इस्तीफे दिए गए। भारत में यद्यपि अमेरिका की तरह इस्तीफों की बाढ़ तो नहीं आई है, लेकिन यहां भी कंपनियां सामान्य से ज्यादा इस्तीफे की दर का सामना कर रही हैं। यह दिखाता है कि हमारा कॉरपोरेट जगत और उसमें कार्यशील वर्ग भविष्य को लेकर आशंकित ना होकर आशान्वित है। जहां एक तरफ यह पूर्वानुमान लगाया जा रहा था कि कोविड के बाद 1930 वाली मंदी के जैसे हालात आ जायेंगे, उसकी तुलना में अभी हम काफी सुखद स्थिति में हैं।
लेकिन परिस्थितियां उतनी भी अनुकूल नहीं हैं जितनी उपरी तौर पर दिख रही हैं। हमारी अर्थव्यवस्था की रिकवरी का पैटर्न जो रहा है उसे K शेप्ड रिकवरी का नाम दिया जा रहा है। K शैप्ड रिकवरी से आशय अर्थव्यवस्था में आए उस सुधार से है जहां अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ सेक्टर तो कोविड पूर्व स्थितियों का लौट चुके हैं, वहीं कुछ सेक्टरों के संकेतक अब भी रेड जोन में हैं। टेक्नोलॉजी, शिक्षा तकनीक, ऑनलाइन गेमिंग, क्लाउड , मोबाइल, एग्री टेक, और ऑनलाइन मीडिया जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे सेक्टर जहां प्रगति कर रहे हैं वहीं पर्यटन, होटल व्यवसाय, नागरिक उड्डयन, ऑटोमोबाइल और रियल स्टेट जैसे सेक्टर नकारात्मक वृद्धि दर दर्शा रहे हैं। इस प्रकार भले ही हमारी वृद्धि दर कुल मिलाकर धनात्मक रही है लेकिन इसका अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि हमारा पूरी अर्थव्यस्था महामारी के प्रभावों से उबरने की कगार पर है।
किसी एक खास सेक्टर के अंदर भी देखें तो अलग अलग स्किल वाले लोगों पर उसका अलग अलग असर पड़ा है। किसी सॉफ्टवेयर कंपनी का ही उदाहरण लें। कोरोना पूर्व समय में अधिकतर कंपनियां ऑफिस से काम करने के मॉडल पर कार्य करती थीं, लेकिन कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम का मॉडल अपनाना पड़ा। पिछले दो वर्षों के अनुभव से कंपनियों को यह अहसास हो रहा है कि एक तरफ टेक्नालॉजी पर काम करने वाले टेक्निकल स्टाफ की जरूरत बढ़ी है तो वहीं सामान्य प्रशासन और सहयोगी कार्य करने वाले स्टाफ की जरूरत कहीं कम रह गई है। उदाहरण के रूप में लें तो कोडिंग करने वाले स्टाफ तो पहले जितने ही चाहिए, लेकिन उन पर नजर रखकर काम करवाने वाले मिड लेवल मैनेजर की जरूरत कम हो गई है। चूंकि सभी लोग घर से ही काम कर रहे हैं,तो ऐसे कुशल लोगों की जरूरत बढ़ी है तो स्वतंत्र रूप से न्यूनतम दिशा निर्देशों के साथ काम कर सकें। इस प्रकार वास्तविक काम करने वाले और अंतिम उपभोक्ता के बीच का मिड लेवल मैनेजमेंट अपनी उपयोगिता खोता जा रहा है। आप नौकरी डॉट कॉम जैसी वेबसाइट्स पर जाकर देखें तो जहां खास स्किल बेस्ड नौकरियों की बाढ सी आई हुई है, सामान्य प्रबंधन और मैनेजर जैसी नौकरियां कम हो गई हैं।
आगे की राह देखें तो तस्वीर पहले से कहीं स्पष्ट होने लगी है। पहली बात यह कि जो सेक्टर्स K शेप्ड रिकवरी में नीचे रह गए हैं , उनको रिकवरी की लहर में शामिल करने के लिए सरकार की मदद बनाए रखने की आवश्यकता है। पर्यटन, होटल, नागरिक उड्डयन जैसे सेक्टर जो अर्थव्यवस्था की नींव का निर्माण करते हैं और अधिकतम रोजगार सृजन की क्षमता रखते हैं , उनके लिए विशेष पैकेज और नीतियों का सहयोग बनाए रखना होगा। इनमें लगे हुए उद्योगपतियों को भी अपने आर्थिक क्रियाकलापों में नवाचार का समावेश पहले से कहीं ज्यादा करने की आवश्यकता है। तभी इन सेक्टरों में आर्थिक कार्यकलापों का स्तर और वृद्धि दर कोरोना पूर्व स्तर पर आ सकेगी।
इसके अलावा अगर हम व्यक्तिगत स्तर पर देखें तो कामगारों को भी बदली आर्थिक स्थितियों के अनुसार खुद के कौशल में वृद्धि करनी होगी। पुरानी तकनीकों और कौशल से चिपके रहने के बजाय नई तकनीकों के लिए प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। सरकार की योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में नए पाठ्यक्रमों का समावेश और इनका दायरा बढ़ा कर अधिकाधिक मानव संसाधन को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। डाटा साइंस, मशीन लर्निंग, क्लाउड कम्प्यूटिंग जैसे कुछ भविष्योन्मुखी तकनीकों में खुद को प्रशिक्षित करना व्यक्तिगत स्तर पर कैरियर के लिए वैक्सीन का काम कर सकती है।
तीसरी बात यह है कि कोरोना काल में चलाई गई जन सुरक्षा और जन कल्याण योजनाओं को कुछ और समय तक चलाने की आवश्यकता है। K शेप्ड रिकवरी में हम अगर देखें तो शहरी क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां जहां सामान्य होने लगी हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी का स्तर अभी भी काफी बढ़ा हुआ है। ऐसे।में सरकारी योजनाओं का सुरक्षा कवच कुछ और समय तक बना रहना चाहिए जब तक कि हमारा ग्रामीण क्षेत्र भी अपनी पूरी गति ना पकड़ ले।
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