पूजा के दो से तीन हफ्ते पहले से ही बच्चों की टोलियां चंदा जमा करने के लिए घूमने लगती हैं। मां सरस्वती के लिए मन में चाहे कितनी भी श्रद्धा और भक्ति हो, माता लक्ष्मी के आशीर्वाद के बिना कोई उपलक्ष आज तक पूरा हुआ है भला। बच्चे की टोलियां आपसे कोई भी चंदा स्वीकार नहीं करेंगी। आपका पूर्ण आर्थिक, सामाजिक और वैयक्तिक विश्लेषण के बाद ही हर व्यक्ति के लिए चंदे की राशि निर्धारित की जाती है। क्या चाची, आपके यहां तो दो दो लोगों को नौकरी है, भैया का भी दरोगा वाला एग्जाम का पीटी निकलिए गया है। पिछले बार आप 51 रुपया देकर निकल लिए थे, इस बार आपका रसीद 501 से कम का नहीं कटेगा। इतनी व्यूह योजना के बाद शायद ही कोई बहाने की गुंजाइश बचती है।
अर्थ संकलन के बाद एक टोली का काम होता है मूर्ति की व्यवस्था करना। वैसे तो मां का हर रूप मोहक और वात्सल्य पूर्ण होता है लेकिन बच्चों के लिए मां की मूर्ति पिछले साल और पड़ोस के स्कूल के बड़ी और सुंदर होनी की शर्त अनिवार्य है। कुम्हार बेचारा बच्चों की हर मांग मानते मानते और कीमत पर बकझक कर कर के परेशान हो जाता है। हर बच्चे की मांग होती है कि कम से कम कीमत पर उनको सबसे सुंदर प्रतिमा दी जाय। मां की साड़ी, आभूषण, हंस की गर्दन हर चीज पर बच्चों को बात कलाकार को माननी ही पड़ती है। मूर्ति पूजा से पहले कम से कम तीन दिन पहले तैयार हो जानी चाहिए। हरेक दिन बच्चों की टोली मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया का निरीक्षण करने पहुंच ही जाती है और कम से कम एक घंटे तक अपने सुझाव कारीगर को देकर ही लौटती है।
पंडाल सजाने का काम मुख्यता पूजा की पूर्व संध्या को ही किया जाता है। रंगीन कागज़, फूल , आम की पत्ते की लड़ियों से मां का दरबार सुसज्जित किया जाता है। यहां भी शर्त वही है कि सजावट पिछले साल और पड़ोस से स्कूल से अच्छी होनी चाहिए। जिन बच्चों की आंख सूरज के ढलते ही लग जाती है, वोही बच्चे पूरी रात जागकर सजावट करते हैं। उससे पहले स्कूल प्रांगण की सफाई, फूलों के गमले की क्यारियां सजाने का काम एक दिन पहले ही पूरा कर लिया जाता है। चूने और लाल रंग से रंगी ईंटों को एक के बाद एक तिरछे रूप से सजा कर रास्ते बनाए जाते हैं, फिर चूने की धारियों से मां के पंडाल तक जाने वाले रास्ते के आस पास जय मां सरस्वती, जय मां शारदे जैसे उद्घोष लिखे जाते हैं।
रात भर जाग कर सजावट करने के बाद पौ फटने के आसपास ही प्रसाद काटने का काम शुरू होता है। मिश्रीकंद, बेर, गाजर, शकरकंद, नारंगी, केले और सेव का पूर्ण रूप से प्राकृतिक प्रसाद काट कर रख लिया जाता है। उसके साथ रस वाली बूंदी का जोड़ ना हो तो प्रसाद अधूरा ही रहता है। इसीलिए सुबह से हलवाई की दुकान पर मधुमक्खियों से ज्यादा बच्चे मौजूद रहते हैं। जल्दी कीजिए, जल्दी कीजिए, पंडी जी आ गए हैं, इगारे बजे तक का मुहूर्त है, जल्दी दीजिए प्रसाद , अभी घर जाकर नहाना भी है। कैसे होगा, आपको कल्हे बोल दिए , सात किलो बुनिया का एडवांस भी दिया हुआ है। जल्दी कीजिए। हलवाई सभी ताने सुन सुन के जल्दी जल्दी बुनिया छानता रहता है।
अब बारी आती है पूजा के कार्यक्रम की। सारे बच्चे अपने बस्ते एक एक किताब लेकर मां के चरणों में रखते हैं। जितनी बड़ी टोली, किताबों का उतना ही बड़ा जखीरा मां के चरणों में जमा हो जाता है। बच्चों की मेहनत, पढ़ाई, ट्यूशन सब ठीक है लेकिन जब तक मां का आशीर्वाद ना मिले , आज तक किसी को विद्या नहीं मिलती। दूसरी बात यह भी कि मां की पूजा में किसी भी प्रकार की अवहेलना सातों विद्या नाश कर देने का खतरा उत्पन्न कर देती है।
यही श्रद्धा और कुछ भय का परिणाम होता है कि चाहे चंद्र टरै, सूरज टरै, बिना पूजा के पूर्ण हुए कोई भी बच्चा एक दाना अनाज का मुख को नहीं डालता। भले मुंह अंधेरे किसी और की बगिया से सारे फूल चुरा लेने का पाप बच्चे कर दें, बिना पुष्पांजलि के कोई भोजन ग्रहण नहीं करता। मां का प्रसाद जल्दी मिले, भोग की खिचड़ी जल्दी खाएं, इसके लिए जरूरी है कि पंडित सबसे पहले उनके यहां ही पूजा करवाएं। इसके लिए पंडित को सबसे पहले बुलाने के लिए एक बच्चों का दल पंडित के यहां सुबह से ही पिकेटिंग करता रहता है। पूजा कर भले ही पुण्य मिले, लेकिन पंडित जी हर टोली को यही झूठा आश्वासन देते रहते हैं कि तुम्हारे यहां सबसे पहले आयेंगे। आखिर इससे नीचे कोई बच्चा मानता भी तो नहीं।
पूजा संपन्न होने के बाद मां की वंदना के गीत गाए जाते हैं, शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। आखिर मां सरस्वती विद्या के साथ साथ संगीत की भी देवी तो हैं। मां वीणा पाणि की पूजा बिना संगीत समारोह के पूर्ण भी नहीं हो सकती। यह समस्त आयोजन सिर्फ बच्चों द्वारा संचालित और व्यवस्थित किए जाते हैं। और इसके हिंदू बच्चों का त्योहार समझ कर यह मानने की भूल न करें कि यह आयोजन हिंदू बच्चों द्वारा किए जाते हैं। हर धर्म संप्रदाय के बच्चे इसमें शामिल होते हैं आखिर विद्या किसे नहीं चाहिए और मूर्ति विसर्जन की मस्ती से कौन वंचित रहना चाहता है।
मूर्ति विसर्जन में बच्चे अपनी सारी थकावट मिटा के अबीर लगा कर खूब नाचते हैं , गाते हैं। कुछ जिम्मेदार बच्चे मां की प्रतिमा के पास उनको संभाल कर रखते है कि रास्ते के गड्ढों से मां को कोई चोट ना लगे। बाकी बच्चों के लिए तो मानों होली, गरबा, इंडियन आइडल का ऑडिशन और डांस इंडिया डांस की तैयारी सबका सम्मिश्रण है मां का विसर्जन ।
मां को अगले बार इस बार से भी बेहतर आयोजन और विदाई के संकल्प के साथ ही सरस्वती पूजा का उत्सव संपन्न होता है।
सबको वसंत पंचमी की शुभकामनाएं। मां शारदे की अनवरत कृपादृष्टि आपपर सदैव बनी रहे। जय मां सरस्वती।
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