Monday, February 28, 2022

महाशिवरात्रि 2022

आज महाशिवरात्रि है। आज शिव के शक्ति में युग्म होने का मुहूर्त है जिससे सृष्टि का निर्माण होता है। आज तांडव और लास्य के मिलन की बेला है जिससे ताल की रचना होती है। आज शौर्य और सौंदर्य की संधि का संयोग है जिससे शांत रस का निर्माण होता है। आज समस्त सुर और असुर की शक्तियों के शिव में तल्लीन होने की रात है जहां एको अहम द्वितीयो नास्ति का संदेश मिलता है। आज मानव से परे समस्त पशु पक्षियों के संरक्षक भगवान पशुपति की उपासना का दिन है। आज जीवन से परे विद्यमान शक्तियों यथा शिव गणों भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, जय, विजय और आदि के उल्लास का दिन है। आज वैराग्य और गार्हस्थ्य के सामंजस्य का दिन है। आज पुरुषार्थ और स्त्रीत्व के सुखद सामासिक संयोग का दिन है। आज शस्त्र और साज के सम्मिलित रूप में त्रिशूल में बंधे डमरू के पूजन का दिन है। आज समस्त विश्व के भगवान विश्वनाथ की उपासना का दिन है। आज काल से बड़े भगवान महाकाल की अर्चना का दिन है। आज सोम के समान पुष्टि वर्धन करने वाले भगवान सोमनाथ का दिन है। समस्त रोगों का विनाश करने वाले भगवान वैद्यनाथ आज अपने संपूर्ण रूप में विराजमान हैं। स्वभाव से सरल भगवान भोलेनाथ और कर्पूर की भांति श्वेत वर्ण भगवान गौरांग और करुणा से परिपूर्ण करुणावतार भगवान शंकर का दिन है। आज अपनी समस्त चिंताओं को शिव की तीसरी नेत्र के सामने रख उसे भस्म कर देने का दिन है। समस्त विघ्न और बाधाओं को भस्म कर उसकी भभूति कपाल पर लगा लेने का दिन है। तीनों लोकों में अपने संरक्षक भगवान शिव को तीन पत्तों वाले बेल पत्र चढ़ाने का दिन है। अत्यंत विशाल आध्यात्मिक विश्व से स्वामी भगवान आदि योगी से अपना योग करने का दिन है। आज महाशिवरात्रि है।

आप सबको महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं। हर हर महादेव। ॐ नमः शिवाय।।

Saturday, February 26, 2022

The Great Entrepreneur Azad

In year 2022, almost like an exception, I saw something on indian television. Shark tank India. I was amazed by young entrepreneurs and their visions. Sharks in thier late thirtees/ early forties and entrepreneurs in early thirtess. I was pleasantly surprised how big people these young can dream. How do they recognise a problem and decide to solve it for greater good most of the time, investing their life savings and life in a cause they truly believe in.

Now cut to 1922, a fifteen-year-old boy gets disillusioned with Gandhi ji vision after he withdraws the Non-cooperation movement. He decides to do something on his own to make his motherland free. In the next couple of years, he establishes an organization and tries to recruit similar-minded young boys who share his vision for mother India. His recruits include Bhagat Singh , Ram Prasad bismil, Ashfaqulla Khan , Yashpal and Bhagwati Charan vohra.

He expands his organisation and decides to attack the colonial government where it hurts the most . Also, they needed money to run the organisation. So they loot a British train near Kakori carrying money from the treasury. They avenge the killing of Lala Lajpat Rai . Their organisation decided to make their mission known to everyone by throwing a bomb at the legislative assembly. Later on, they even tried to fund a bomb company to continue their fight. Such was his terror that even after he died in a police encounter, police shot him twice in his legs to confirm that he was actually dead before daring to come near him.



And he did all this in his short life of twenty-five years. He died before celebrating his twenty-sixth birthday. Compared to him and his vision, our sharks and budding entrepreneurs look like dwarfs. Such was the charishma and life of Chandra Shekhar Azad. He himself took the name Azad and lived his life Azad and the colonial government which ruled the world could never arrest a twenty-year-old boy.

Respects on his 91st death anniversary . Jai Bharat..  

Get out of those kothas

A short list of Hollywood actresses and their best performances....

Meryl Streep : Sophie's choice
Uma Thurmon : Kill Bill
Julia Roberts : Pretty women
Judi foster : Silence of the lambs
Charlize Theron : Monster
Kate Winslet : Titanic
Frances mcdormand: Fargo

Now look at bollywood actresses and their best performances.

Meena Kumari : Pakeeza
Madhubala : Mughal e azam
Rekha : Umrao jaan
Smita Patil : Mandi
Shabana Azmi : Mandi
Tabu: Chandni bar
Kareena : Chameli
Alia : Gangu Bai.. ( arguably) 

In Hollywood, actresses have excelled and given their best performances while playing a cop, a serial killer, divorced women , a trainee journalist, a girl in love and a call girl.. writers have written brilliant characters and scripts exploring all aspects of women characters and thus extracted such diverse range of performances..

When we land in our own dream city Mumbai, look at the best performances by actresses, invariably either they play a prostitutee or a courtesan. This doesn't show that anything is lacking in our women but definitely raises a big question mark on part of our writers and their narrow vision. How come they have explored only this aspect of women so deeply while neglected an ocean of possibilities to write women characters other than prostitutes where our actresses can excel.

It is a point to ponder and shows a big room for improvement available in developing women characters in Bollywood scripts. Come on Bollywood.. please get out of those badnaam galian and kothas.. aur bhi gham hain zindagi mein mujre ke siva.. you have done good and that's enough..

Give us our own Kill Bill and Fargo..

P.S. I am not going to watch any Gangu Bai anymore as there can't be anything new not done already atleast twenty times.





Friday, February 25, 2022

कोरोना के बाद जॉब मार्केट

कोरोना की तीसरी लहर के करीब करीब शांत हो जाने पर वापस से सबका ध्यान पूरी तरह से हमारी अर्थव्यवस्था और इसके दुबारा पटरी पर लौटने पर लग चुका है। इस वैश्विक महामारी ने बहुत सारे स्थापित मानदंडों , अनुमानों और परिणामों को धता बताया है। वर्ष 2019 ने नवंबर माह में शायद विश्व का कोई भी पंडित , विशेषज्ञ कल्पना भी नहीं कर सकता था कि अगले कुछ महीनों में दुनिया कितनी बदल जायेगी। ऐसा ही कुछ हाल महामारी के शुरुआती महीनों में की गई भविष्यवाणियों का है। अधिकतर प्रारंभिक भविष्यवाणियां निराशापूर्ण भविष्य की ओर इशारा कर रही थी। खासकर भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था के लिए तो इस अनुमानों में मानों पूरा मर्सिया ही लिख दिया गया था। सौभाग्य की बात है कि आज जब हम महामारी की तीनों लहरों को पार कर चुके है, हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी स्वास्थ्य अवसंरचना और हमारी विकास दर उन नकारात्मक भविष्यवाणियों को काफी हद तक झुठला चुकी हैं।
इसका एक प्रमाण हमें वर्तमान में जॉब मार्केट में आई उछाल में दिखता है। भविष्यवाणियों के उलट कंपनियां जम कर भर्तियां कर रही हैं और इन नई भर्तियों में दिए जा रहे पैकेज भी सामान्य से कहीं उपर हैं। इसका असर सिर्फ नई भर्तियों पर नहीं पड़ा है बल्कि कंपनियों को अपने कुशल कामगारों को कंपनी के साथ बनाये रखने के लिए भी खासी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। अमेरिका में अभी के दौर को द ग्रेट रेजिग्नेशन या बिग क्विट कहा जा रहा है जहां बेहतर नौकरी की आस में अपनी नौकरी से इस्तीफा देने की होड़ सी लग गई है। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में अप्रैल से जून 2021 वाली तिमाही में प्रतिमाह करीब 40 लाख इस्तीफे दिए गए। भारत में यद्यपि अमेरिका की तरह इस्तीफों की बाढ़ तो नहीं आई है, लेकिन यहां भी कंपनियां सामान्य से ज्यादा इस्तीफे की दर का सामना कर रही हैं। यह दिखाता है कि हमारा कॉरपोरेट जगत और उसमें कार्यशील वर्ग भविष्य को लेकर आशंकित ना होकर आशान्वित है। जहां एक तरफ यह पूर्वानुमान लगाया जा रहा था कि कोविड के बाद 1930 वाली मंदी के जैसे हालात आ जायेंगे, उसकी तुलना में अभी हम काफी सुखद स्थिति में हैं।

लेकिन परिस्थितियां उतनी भी अनुकूल नहीं हैं जितनी उपरी तौर पर दिख रही हैं। हमारी अर्थव्यवस्था की रिकवरी का पैटर्न जो रहा है उसे K शेप्ड रिकवरी का नाम दिया जा रहा है। K शैप्ड रिकवरी से आशय अर्थव्यवस्था में आए उस सुधार से है जहां अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ सेक्टर तो कोविड पूर्व स्थितियों का लौट चुके हैं, वहीं कुछ सेक्टरों के संकेतक अब भी रेड जोन में हैं। टेक्नोलॉजी, शिक्षा तकनीक, ऑनलाइन गेमिंग, क्लाउड , मोबाइल, एग्री टेक, और ऑनलाइन मीडिया जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे सेक्टर जहां प्रगति कर रहे हैं वहीं पर्यटन, होटल व्यवसाय, नागरिक उड्डयन, ऑटोमोबाइल और रियल स्टेट जैसे सेक्टर नकारात्मक वृद्धि दर दर्शा रहे हैं। इस प्रकार भले ही हमारी वृद्धि दर कुल मिलाकर धनात्मक रही है लेकिन इसका अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि हमारा पूरी अर्थव्यस्था महामारी के प्रभावों से उबरने की कगार पर है।

किसी एक खास सेक्टर के अंदर भी देखें तो अलग अलग स्किल वाले लोगों पर उसका अलग अलग असर पड़ा है। किसी सॉफ्टवेयर कंपनी का ही उदाहरण लें। कोरोना पूर्व समय में अधिकतर कंपनियां ऑफिस से काम करने के मॉडल पर कार्य करती थीं, लेकिन कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम का मॉडल अपनाना पड़ा। पिछले दो वर्षों के अनुभव से कंपनियों को यह अहसास हो रहा है कि एक तरफ टेक्नालॉजी पर काम करने वाले टेक्निकल स्टाफ की जरूरत बढ़ी है तो वहीं सामान्य प्रशासन और सहयोगी कार्य करने वाले स्टाफ की जरूरत कहीं कम रह गई है। उदाहरण के रूप में लें तो कोडिंग करने वाले स्टाफ तो पहले जितने ही चाहिए, लेकिन उन पर नजर रखकर काम करवाने वाले मिड लेवल मैनेजर की जरूरत कम हो गई है। चूंकि सभी लोग घर से ही काम कर रहे हैं,तो ऐसे कुशल लोगों की जरूरत बढ़ी है तो स्वतंत्र रूप से न्यूनतम दिशा निर्देशों के साथ काम कर सकें। इस प्रकार वास्तविक काम करने वाले और अंतिम उपभोक्ता के बीच का मिड लेवल मैनेजमेंट अपनी उपयोगिता खोता जा रहा है। आप नौकरी डॉट कॉम जैसी वेबसाइट्स पर जाकर देखें तो जहां खास स्किल बेस्ड नौकरियों की बाढ सी आई हुई है, सामान्य प्रबंधन और मैनेजर जैसी नौकरियां कम हो गई हैं।
आगे की राह देखें तो तस्वीर पहले से कहीं स्पष्ट होने लगी है। पहली बात यह कि जो सेक्टर्स K शेप्ड रिकवरी में नीचे रह गए हैं , उनको रिकवरी की लहर में शामिल करने के लिए सरकार की मदद बनाए रखने की आवश्यकता है। पर्यटन, होटल, नागरिक उड्डयन जैसे सेक्टर जो अर्थव्यवस्था की नींव का निर्माण करते हैं और अधिकतम रोजगार सृजन की क्षमता रखते हैं , उनके लिए विशेष पैकेज और नीतियों का सहयोग बनाए रखना होगा। इनमें लगे हुए उद्योगपतियों को भी अपने आर्थिक क्रियाकलापों में नवाचार का समावेश पहले से कहीं ज्यादा करने की आवश्यकता है। तभी इन सेक्टरों में आर्थिक कार्यकलापों का स्तर और वृद्धि दर कोरोना पूर्व स्तर पर आ सकेगी।

इसके अलावा अगर हम व्यक्तिगत स्तर पर देखें तो कामगारों को भी बदली आर्थिक स्थितियों के अनुसार खुद के कौशल में वृद्धि करनी होगी। पुरानी तकनीकों और कौशल से चिपके रहने के बजाय नई तकनीकों के लिए प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। सरकार की योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में नए पाठ्यक्रमों का समावेश और इनका दायरा बढ़ा कर अधिकाधिक मानव संसाधन को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। डाटा साइंस, मशीन लर्निंग, क्लाउड कम्प्यूटिंग जैसे कुछ भविष्योन्मुखी तकनीकों में खुद को प्रशिक्षित करना व्यक्तिगत स्तर पर कैरियर के लिए वैक्सीन का काम कर सकती है।

तीसरी बात यह है कि कोरोना काल में चलाई गई जन सुरक्षा और जन कल्याण योजनाओं को कुछ और समय तक चलाने की आवश्यकता है। K शेप्ड रिकवरी में हम अगर देखें तो शहरी क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां जहां सामान्य होने लगी हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी का स्तर अभी भी काफी बढ़ा हुआ है। ऐसे।में सरकारी योजनाओं का सुरक्षा कवच कुछ और समय तक बना रहना चाहिए जब तक कि हमारा ग्रामीण क्षेत्र भी अपनी पूरी गति ना पकड़ ले। 

http://rashtriyasahara.com/epaperimages/26022022/26022022-hst-md-3.pdf

Wednesday, February 23, 2022

India vs Russia

How decision to attack another country is taken in India and Russia

Russia :
Day 1: 
 Putin .. we need to attack Ukraine tomorrow.. any doubts?
No sir
Any questions?
No sir..
Okay.. let's bomb the hell out of them .

India:
Day 1: sir .. We have to attack this country to teach them a lesson..
Humm.. Lekin abhi to Telangana mein pachayat chunav hain.. ek mahine baad dekhte hain..
Ek mahine baad :
Attack kiya jaay?
Haan sir jaroor, lekin attack ke khilaaf kisi ne new york times mein article likha hai, with title "Ashamed to be an indian".
Abe, yeh to bahut bura hua.. ek hafte baad attack karenge..
Ek hafte baad:
Ab attack karein?
.. sir .. parliament mein bahut halla ho raha hai . Opposition is demanding for the decision to be verified by a joint parliamentary committee.
Okay.. let's wait for the report..
Six months later:
Ab to committee ki report aa gayi.. ab attack karein.. ?
Nahin sir, kisi ne pahle hi media mein report leak kar di.. abhi supreme court mein das PIL file ho gaye hain..
Abe yaar ab kya kar sakte hain. Let's wait for supreme court .
One month later..
Us PIL ka koi decision hua?
Nahin sir.. abhi judge sahab ka summer vacation chal raha hai..next week hi kuch ho payega..
One week later..
Sir, ab attack karein kya?

Attack karna jaroori hai kya? Abhi T20 world cup hone jaa raha hai.. pahla hi match hai dono ke beech.. attack wattck baad mein dekhenge. Abhi yeh dekho.. mauka mauka wale gaane ka naya version aaya hai . #MaukaMauka...
 #AmanKiAsha


Sunday, February 20, 2022

पुरानी बदरंग कमीज


अपनी मुस्कुराहट को
दूर कर दिया है मैंने
अपने आप से,
जैसे सिलाई उधड़ गई हो 
मेरी पसंद की कमीज की
और मैंने रख दिया हो उसे
तह लगाकर पुराने सूटकेस में,
पुरानी कमीजों के नीचे,
संभाल कर सहेज कर
इस इंतजार में कि
कभी कोई आएगा
जो वापस से सिल देगा मेरी फटी 
कमीज सी मुस्कुराहट।

अपनी शोखियों को टांग दिया 
है मैंने पुराने आलने पर
पहनी हुई कमीज के जैसे,
औंधी पड़ी आलने पर कमीज
जिस पर लगे हों 
दाग धूल और पसीने के
और तुडी मुड़ी मटमैली कॉलर 
ताक झांक करती दूर से ही।

शोखियों वाली हँसी को छोड़ दिया 
पहनी कमीज जैसे
सोच कर यह कि कभी वापस से
पहनूंगा इसे धोकर
खुशबू वाले साबुन से
गुनगुनी धूप में सुखा कर।

ज़माने ने फीकी कर दी है मेरी हँसी
जैसे रंग उड़ गया हो
सुर्ख लाल कमीज का
धूप झेलते झेलते 
मार खा खा कर धोबी की
जैसी दी गई हो हजारों पटखनी
इसे घाट के पत्थर पर।
ज़माने की धुलाई ने
निकाल दिए हैं सारे रंग 
मेरी हँसी के।

अब मेरी मुस्कुराहट 
मेरी शोखियां 
और मेरी हंसी
मानो हैं पुरानी कमीज के जैसी
खूंटी पर टंगी
आलने पर बिखरी
बदरंग रंग वाली
उधड़ी सिलाई वाली
दागदार।

मगर फेंका नहीं है 
अपनी कमीज को अब तक
कि इंतजार है कि कोई आएगा रंगरेज
अपनी हँसी के रंग 
वापस भर देगा मेरी हँसी में।

वापस सिल देगा उधड़ी हुई सिलाई
अपनी लंबी लंबी बातों के धागे से,

और उसकी शोखियां धो डालेंगी
दर्द के दाग और 
वापस से चमचमा उठेगी मेरी कमीज
बिलकुल नई सी।

तब तक यूं ही
टंगी रहेगी
औंधी पड़ी रहेगी 
मेरी फटी बदरंग 
हँसी वाली कमीज।


Saturday, February 19, 2022

अपने उदगम पर ही सूखती हिंदी

अपने ब्लॉग के लिए 300वां ब्लॉग लिखने के लिए विषय की तलाश काशी से बेहतर स्थान पर पूरी नहीं हो सकती थी। आखिर काशी हिंदी साहित्य और भाषा के अविरल प्रवाह का उद्गम स्रोत सा रहा है। काशी ही वो धरती है जहां से कबीर ने अपने अक्खड़ अंदाज से भक्ति आंदोलन का श्रीगणेश किया। यह काशी असी घाट ही था जहां बैठ कवि श्रेष्ठ तुलसी दास ने रामचरितमानस की रचना की और राम कथा को अजर अमर बना दिया। अगर तुलसी अवधी में रामचरित मानस ना रचते तो वाल्मीकि की रामायण संस्कृत भाषा की कैद में बंद एक बुलबुल बन गई होती जिसकी आवाज जन साधारण तक नहीं कुछ विशेष वर्ग तक ही पहुंच कर घुट घुट कर मर जाती। 

यह वाराणसी की पावन धरती ही थी जहां भारतेंदु आए और हिंदी में पुनर्जागरण का बीड़ा उठाया। यहीं की गलियों में प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियां रची गई तो वाराणसी में ही मनु श्रद्धा और इड़ा की कामायनी प्रसाद जी के हाथों अवतरित हुई। जैनेंद्र भी यहीं रहे और धूमिल की विद्रोही मशाल भी यहीं प्रज्जवलित हुई। यहां तक कि जेएनयू के कीर्ति स्तंभ और हिंदी आलोचना के सुपरस्टार नामवर सिंह भी बनारस के ही थे। 

मैने सोचा कि कितना अच्छा हो कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद हिंदी साहित्य के इन रत्नों इन महापुरुषों के स्मारक और निशानियों का साक्षात्कार किया जाय। जैसे ही मैंने जानकारी जुटानी शुरू की, मेरे हाथ निराशा के कुछ और ना लगा। जयशंकर प्रसाद की एक मूर्ति तक तलाश पाना असम्भव है। उनका निवास स्थान , पांडुलिपियां सब गुमनाम हैं। कोई भी बता नहीं पाया जयशंकर प्रसाद का। अपने ही शहर में लापता से हो गए हैं प्रसाद जी। तुलसी की कर्म भूमि असी घाट पर एकांत तलाशते युवा जोड़ियों और उनकी सेल्फी के बाद एक और सेल्फी लेने की हरकतें ही दिखी, तुलसी कहीं नहीं दिखे। एक ऑटो वाला लमही का ही निकला, मैंने पूछा भैया प्रेमचंद के जन्मस्थान या स्मारक पर ही ले चलो। उसने भारी मन से बताया कि एक छोटा सा स्मारक है तो कभी खुलता है कभी नहीं। अभी शायद बंद ही हो, बेहतर है आप वहां ना ही जाएं। भारतेंदु के नाम पर एक बच्चों का पार्क अवश्य है लेकिन उनके साहित्य को स्मरण करता कोई भी पुस्तकालय या संग्रहालय का पता मुझे नहीं लगा। इन सब के बाद धूमिल , नामवर आदि का नाम पूछने का साहस मुझे नहीं हुआ।

फिर मुझे याद आया कि भले ही साहित्यकारों की यादों को सहेज पाने में हम अक्षम रहे हैं, लेकिन एक संस्था जिसने आधुनिक हिंदी के लिए भागीरथ का कार्य किया, उसके पदचिह्न अभी भी यहां जरूर होंगे। नागरी प्रचारिणी सभा, जिसके तत्वावधान में आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा, हिंदी शब्द सागर का संकलन हुआ और जिन्होंने सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन कर खड़ी बोली हिंदी के मानकीकरण की दिशा में अभूतपूर्व कदम उठाए। 

गूगल पर खोजा तो नागरी प्रचारिणी सभा मिल गई। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। आखिर इतनी निराशा हाथ लगने के बाद, कुछ क्या बहुत कुछ मिला। अगर नागरी प्रचारिणी सभा की संस्थागत उपस्थिति वाराणसी में है तो आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, सरस्वती पत्रिका, आचार्य शुक्ल के पदचिन्हों से रूबरू होने का एक सुनहरा अवसर मिल सकता था।

चटपट मैने रिक्शा लिया और रिक्शे वाले को गूगल मैप के आधार पर नागरी प्रचारिणी सभा वाले अपने गंतव्य पर ले गया। और वहां पहुंचते ही मेरी आशा का दीपक बुझने लगा। नागरी प्रचारिणी सभा का तोरण द्वार तो बना हुआ था, लेकिन कब्रिस्तानों में भी उससे ज्यादा चहल पहल दिखाई देती है। सुनसान सा पड़ा एक द्वार जिसके बाहर एक पान की गुमटी लगी है । पान मसाला की रंगीन लड़ियों के पीछे झांकते पान वाले ने कहा कि भैया लाइब्रेरी तो बंद है , सोमवार को खुलेगी। मैने कहा कि पुस्तकालय नहीं , यहां और भी बहुत कुछ होगा, वो ही देख लूंगा। 
अंदर घुसते ही आर्य भाषा पुस्तकालय की तख्ती लगी थी। तख्ती के दिखाए रास्ते पर आगे बढ़ा तो पुस्तकालय के बंद किवाड़ों के बगल में कचरे के ढेर के ऊपर एक पट्टिका लगी दिखी। पट्टी पर लिखा था कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की कांस्य प्रतिमा का अनावरण कविवर सुमित्रा नंदन पंत के द्वारा आचार्य जी की जन्म शती के मौके पर किया गया। पट्टिका जगह जगह से टूट चुकी थी और सबसे बड़ी बात कि आचार्य की प्रतिमा गायब है। शायद नागरी प्रचारिणी सभा की दुर्दशा देख आचार्य खुद रूष्ट हो कहीं चले गए हैं।
आगे घूमने पर पर पता चला कि प्रांगण की एक बिल्डिंग का प्रयोग कोई कंपनी अपने गोदाम के रूप में कर रही है। आगे एक बड़ी से दीवार पर नागरी प्रचारिणी सभा का कुल गीत लिखा हुआ है। 
जय हिंदी जय नागरी
ऋषि मुनियों के अमर मंत्र की गागरी
जय हिंदी जय नागरी।

पूरे प्रांगण में जगह जगह पर पट्टिका लगी है कि अमुक तारीख को अमुक ने अमुक का शिलान्यास किया। सभी पट्टिका का अध्ययन करने के बाद पता चला कि आखिरी बार कोई कार्यक्रम यहां 45 साल पहले हुआ था। पूरे प्रांगण में आवारा कुत्ते आराम फरमा रहे थे। दिल भर आया। 

सच कहिए तो नागरी प्रचारिणी सभा जिस हालत में दिखी, हमारी हिंदी उससे बुरी हालत में है। भारतेंदु याद आ गए। निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति के मूल। अगर उनकी इस बात में कोई सच्चाई है, तो हमारी उन्नति के आसार कम ही हैं। 
बाहर निकलते समय तोरण द्वार पर उल्टी दिशा मोटे मोटे अक्षरों में लिखा दिखा , जय हिंदी जय नागरी। चिंता को लेकर कोई काशी से नहीं निकलता। आप अपनी चिंताएं बाबा को सुपर्द कर आते हैं, यही सोच बाबा का स्मरण किया और वहां से प्रयाण किया। हर हर महादेव।

एक दिवसीय काशी प्रवास

ईश्वर का दिव्य रूप तो सर्वत्र विद्यमान है लेकिन ईश्वर का यह रूप सूक्ष्म है। इसके दर्शन के लिए परम ज्ञान की आवश्कता होती है। जैसे भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य रूप कुरुक्षेत्र से पहले सिर्फ विदुर और भीष्म को परिलक्षित था। अर्जुन को ईश्वर का वो रूप दिख सके इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अपना भव्य विराट रूप दिखाया। एक तरफ जहां दिव्यता सूक्ष्म होती है और उसको आत्मसात कर सकने वाले लोगों की संख्या सीमित होती है। प्रसार के इसी संकुचन का निवारण भव्यता में है। भव्यता नग्न आखों से भी देख जाती है इसीलिए इसका प्रसार बड़े वर्ग तक हो पाता है।

काशी में भगवान विश्वनाथ सनातन काल से से अपने दिव्य रूप में मौजूद हैं। लेकिन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण से उस दिव्य रूप को एक भव्य स्वरूप दिया जा रहा है। इससे हम जैसे असंख्य स्थूलदर्शी प्राणियों को बाबा विश्वनाथ के दर्शन हो पा रहे हैं। कार्य अभी निर्माणाधीन है, आशा है अगली बार काशी प्रवास में दिव्यता और भव्यता का मणिकांचन योगअपने पूर्ण रूप में देखने को मिलेगा।मंदिर प्रांगण में माता अहिल्या बाई और आदिगुरु शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित कर उनको यथोचित सम्मान देना भी सराहनीय प्रयास लगा। हर हर महादेव। 

Tuesday, February 15, 2022

पटना गया पैसेंजर

रविवार की तपती उमस वाली सांझ
मैं पहुंचा गया स्टेशन हांफते हांफते
तो पाया कि खचाखच भरा है हर डब्बा
पटना गया पैसेंजर का।

और दनादन सीटी मार रही है,
मानो हर लेट लतीफ
 छूटे पैसेंजर को बुला रही हो,
कि आ जाओ, मैं निकलने वाली हूं।
भैया सोच क्या रहे हो 
आज की आखिरी गाड़ी हूं, 
अगली पैसेंजर मिलेगी आठ घंटे बाद।
देखा अपनी कलाई घड़ी की ओर तो पाया
कि नियत समय से पांच मिनट
 ज्यादा ही हो गया था।
फिर देखा ट्रेन की तरफ 
मानो मेरे लिए ही रूकी हो,
कह रही हो जैसे कि
किसी तरह बैठ जाओ, 
मिल जायेगी आगे कहीं सीट भी।
ठुकरा ना पाया आमंत्रण
पटना गया पैसेंजर का।
ठुकराता भी कैसे,
सोमवार की सुबह ऑफिस भी
तो पहुंचना था टाइम से,
 वरना साहब जी का पारा हो जाता पार
गया जी की गर्मी से भी ज्यादा।
हिम्मत कर घुसा जनरल डिब्बे में  
तो पाया कि भर चुकी है सारी सीट
एक सज्जन ने कहा , आज भीड़ बहुत है, 
कल रैली है ना गरीब पिछड़ों की।
मतलब कि गरीबों को 
उनके मसीहा से मिलाने की,
पटना तक ले जाने का काम है
पटना गया पैसेंजर का। 

फिर सज्जन ने कहा कि भैया
 नीचे तो सीट मिलेगी नहीं, 
बैठ जाओ आप ऊपर वाली 
सामान रैक पर
उतार लेता हूं मैं अपनी गठरी
 उतर जाऊंगा जहानाबाद वैसे भी मैं।
उनकी आत्मीयता पाकर लगा 
मानो फैल गई
 मनुष्यता की शीतल बयार,
सुकून सा भरा लगने लगा डिब्बा
पटना गया पैसेंजर का।

गठरियों के बीच जा बैठा 
मैं दुबका सा
बैठना मुश्किल से हो रहा था, 
और ध्यान नीचे चप्पलों पर था,
तो चप्पलों के बहाने ही सुनने लगा
कि क्या बातें हो रही हैं लोगों में।
कह रहे थे एक सज्जन
 कि आए थे गया जी
वो अपने भतीजे के साथ ,
पिंडदान करने उनके भाई और भाभी का
जो चढ़ गए भेंट कोरोना के,
अब रहता है उनका छोटा भतीजा
 उनके ही साथ।
इसीलिए साथ लेकर आए हैं उसको 
कि दे सके वो अंतिम भेंट 
अपने दिवंगत माता पिता को।
सबकी निगाहें गई 
उस छोटे बच्चे की तरफ
बैठा चाचा की गोद में
देख रहा था खिड़की से बाहर।
अपने गम को समझने तक में नाकाम,
इसीलिए शायद अपने दर्द को
 झेलने में सबसे सक्षम।
लेकिन एक सिहरन सी
 फैल गई डब्बे में
सहानुभूति की बारिश 
होने लगी चारों तरफ से

सुनाने लगे सभी अपना दुखड़ा
कि कोरोना में मैंने इसे खोया
मैने उसे खोया
वो गया
वो भी नहीं बचा
हर किसी की खुल गई दुख वाली पोटरी
रिसने लगे सूखते घाव
गमछे से पोंछी जाने लगी भरभराती आखें
दुखों का बादल फट पड़ा
और बह सा गया आसूंओं में जनरल डब्बा
पटना गया पैसेंजर का।

कि अचानक आ गया एक पेडे वाला
बेचने दस रुपए के दो पेडे।
और वो बच्चा कहने लगा 
चाचा पेडे खाऊंगा,
एक नहीं दो खाऊंगा
और दिला दो मुझे सोहनपापड़ी
 का वो बड़ा सा डब्बा।
मुस्कान सी तैर गई चाचा के चेहरे पर
कहने लगे बहुत शरारती है यह
मिठाई पसंद है इसे।
सुनकर यह सब बताने लगे 
कि अपने अपने
घरों के मुन्ने के बारे में।
उनकी चुहल उनकी जिद और
उनकी शरारतों के बारे में।
हर कोने से आने लगी बच्चों की बातें
हर आंख मुस्कुरा उठी।
और गमछे से पोंछे जाने लगे 
बच्चों के मिठाई और पेडे लगे मुंह।
खिलखिला सा उठा डब्बा
पटना गया पैसेंजर का।

ऊपर बैठे बैठे सोचा मैने
कि यह दुनिया है एक शीशा घर
चारों तरफ लगे हैं आईने ही आईने ।
दुनिया नहीं देखते हो आप,
देखते तो आप बस अपनी ही शकल
चारों ओर दुनिया के आईने में।
रोते हुए को दिखती दुनिया रोती हुई
और पेडे खाते बच्चे के लिए 
दुनिया है मिठाई घर।
पेडे और सोहन हलवे से भरी।
दिखता है अपना ही प्रतिबिंब
दुनिया में आपको।
चाहिए खुशहाल दुनिया तो 
रहना पड़ता है खुश
और बदहाल लोगों के लिए
रोती चिल्लाती है यह दुनिया।
बुद्ध को मिला ज्ञान गया में
और मैंने पाई जहां यह आभा
वो था जनरल डब्बा
पटना गया पैसेंजर का।

वो जनरल डब्बा
पटना गया पैसेंजर का।

Monday, February 14, 2022

क्या है वो बला गालिब कि जिसे इश्क कहते हैं

माटी को यह चंदन सा माथे से लगाए रे
जुबां पे तो मोह माया नमक लगाए रे
कि देखे ना भाले ना जाने ना दाये रे
दिशा हारा केमोन बोका मोन टा रे। 

प्यार वो है जो आपको बताता है कि मेंढकों को चुंबन देकर राजकुमार बनाया जा सकता है। प्यार आपको चांद तोड़ लाने की हिम्मत देता है तो सारी दुनिया पर छा जाने का ख्वाब दिखाता है। प्यार अभी भी तर्कसंगत नहीं होता, मानकों से दूर अपनी एक दुनिया बसाता है। परखना तो दूर, देखना तक गवारा नहीं इसको, इसीलिए तो अंधा कहलाता है। आ बैल मुझे मार भले ही बेवकूफी को दर्शाता मुहावरा हो लेकिन प्यार तो गा गा कर दूसरों पर फेंके जा रहे पत्थरों का रुख अपनी ओर मोड़ लेता है। परियों की कहानियों को सच मान झीने प्रेमपत्रों के पंख लगाकर सूरज की तरफ उड़ जाना चाहता है। 

कभी चांद में अपनी प्रेयसी को ढूंढ लेता है तो कभी जलती आग में परवाना बंद कूद जाने का निर्णय ले लेता है। एक अफीम की गोली है जो दिल दिमाग जिस्म और रूह सब पर एक साथ असर करती है। अकबर के द्वारा दीवार में चुनवा दिए जाने को भी मान लेता है लेकिन डरना स्वीकार्य नहीं इसको। लाभ हानि तर्क वितर्क लोक लज्जा कायदे कानून भय जैसे शब्द इसकी शब्दावली से बाहर हैं। इसलिए प्यार अपनी सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं करता, क्योंकि इंतजाम करने में दुनियादारी आ जाती है।

 इसलिए प्यार नाजुक हो जाता है, गुलाब की पंखुड़ी पर पड़ी शबनम की बूंद की तरह सूरज की रोशनी पड़ने पर उसकी तरह गर्म नहीं होता, बल्कि अपनी नरमी को त्यागे बिना रूप बदल कर अनंत आसमान की तरफ कूच कर जाता है। करने पर होता नहीं और हो जाने पर कुछ और करने के लायक नहीं छोड़ता।
सब इसके बारे में सब कुछ जानते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं जानता। यह दीवाना भी है और कमबख्त भी, गुलाबी भी है तो खून का लाल रंग भी। ठंडी पवन की शीतल बयार है तो जौहर का अग्नि कुंड भी है। कोई बताए तो समझ ना आए। मेलोडी खाओ खुद जान जाओ वाला संसार है। शायद ऐसा ही कुछ प्यार है। 

Sunday, February 13, 2022

मैं और मेरी तनहाई

 मैं पैदल चलता था, कार के पीछे भागता था, तब मेरी उमर की लड़कियों को साइकिल वाले लड़के पसंद थे। BSA SLR साइकिल वाले। 

फिर जब तक मैने साइकिल खरीदी, पता चला अब हमारी उमर की लड़कियों को पल्सर चलाने वाले लड़के पसंद आने लगे हैं। 

फिर कुछ दिनों बाद जब मैंने बुलेट खरीदी, तो पता चला कि अब लड़कियों को सनरूफ वाली कार वाले लड़के पसंद आ रहे हैं। 

अब जब मैंने महंगी कार खरीद ली है तो लड़कियों को मैराथन दौड़ने वाले लड़के पसंद आ रहे हैं।

देवियों, एक बात बताओ, अगर तुमको दौड़ने वाले ही पसंद थे, तो तब मुझे क्यों नहीं पसंद किया जब मैं कार के पीछे दौड़ता था और कार से भी आगे निकल जाता था। हद है यार। 

मुझे पता है कि कल को जब मैं दौड़ना शुरू करूंगा तो तुम लोगों को व्हील चेयर वाले शुगर डैडी पसंद आने लगेंगे। बाबर आजम बना दिया मुझे और लड़कियां बन गई आईपीएल का कॉन्ट्रैक्ट। जयदेव उनादकट तक पर वारी वारी जाती हो और मैं " बिस्मिल्लाह ए रहमान रहीम, बॉयज प्लेड वेल" करता रह गया।

Saturday, February 12, 2022

तेरह की महिमा

जीवन में सफलता इस बात पर निर्भर है कि कल की योजना आप आज बनाएं। कल के निर्णयों पर आप आज ही सोचें, पूर्व निर्धारित कर लें कि कल क्या करना है। 

‌दूसरी बात यह कि कोई भी बड़ा निर्णय किसी शुभ मुहूर्त में ही लेना चाहिए। शुभ काल में लिए गए निर्णय ही आपके जीवन को सही दिशा दे सकते हैं।

तो ऐसा है कि कल है 14 तारीख, तो उसका फैसला तुमको लेना है आज। कोई भी बड़ा कदम कल अगर लेना उठाना चाहते हो, तो आज ही निर्णय लेना होगा। लेकिन दुर्भाग्य से आज पड़ती है तेरहवीं तारीख। और तेरहवीं की महिमा किसी से छिपी थोड़ी है। बड़े बड़े बिल्डर भी अपनी इमारतों में तेरहवीं मंजिल नहीं रखते। फ्राइडे द थरटींथ से तो पूरी दुनिया थरथर कांपती है। और हमारे यहां भी तेरहवीं का मतलब तो वही हुआ कि वसीयत निकालो बुड्ढे की, किसको क्या देकर गया है।
तो ऐसे अशुभ दिन पर कोई बड़ा फैसला मत लो। चुपचाप से घर पर रहो। बजरंग दल वाले हो तभी कल बाहर निकलना वरना वो बजेगी कि सियालदह स्टेशन से बजबज लोकल की तरह भागोगे। पता ही नहीं चलेगा कि तुम्हारे हाथ का गुलाब ज्यादा लाल है या तुम्हारा पिछवाड़ा।

बाकी तुम खुद समझदार हो।

Friday, February 11, 2022

Gehraiyaan Review

Infidelity and extramarital affairs have always been a running theme of Bollywood's stories. Most of the times, it has been either comedies like Sajan Chale Sasural or Gharwali Baharwali, where extramarital affairs are shown as something funny. This is the same treatment bollywood has been giving to serious matters like homosexuality. While hollywood makes a Philadelphia we are happy dancing on the tunes of 'Maa ka ladla bigad gaya' in Dostana. It is may be due to commercial obligations or simply the lack of depth in our writers. Though we have some serious attempts in handling such taboo topics in movies like Aligarh and Masoom. 


Coming to topic of infidelity, whether bollywood's take is comical like in Sajan chale sasural or Serious like in Masoom, extramarital affairs have always been accompanied by guilt. They are shown like an accident while protagonists happen to fall into the uninteded relationship. Our movies never justified those. But recent release of Gehraiyaan, shows that bollywood has decided to replace the feeling of guilt with the oft-abused word Choice. 


Not even a single time, any protagonist feel any guilt towards his/her partner for cheating. And that's the scary part. All those high class lifestyles, luxurious yatch, and expensive wines may give you an Indication that 'choice' is cool. It's nothing more than an evil advertisement of a cola drink by a sportsperson. The way cola is bad for your health, no matter how big sportsperson endorses it, the so called choice is destined for doom no matter how much you try to glamorize it.


Gehraiyaan fails on many fronts.. we have already discussed about the missing guilt part. It was only the financial trouble that rocked the boat. If there was no financial trouble, the total amount of guilt all protagonists would have felt is zilch. And thats not correct, it's wrong messaging. There is a comic quote about junk food. That it stays for One second on lips and for a lifetime on hips. Same is with extramarital affairs. Only difference is that it stays for more than a lifetime and the burden is carried not only by the guilty but the coming generations too.


Second part where Gehraiyaan fails is casting. Ananya Pandey is doing the same thing in the film for which she is famous.. struggle. She has got the part to play the Shabana Azmi of Masoom.. enough said.. Producers should have gone with someone with more depth in acting department for a film which derives its name from depths. 


Third aspect where it fails is it's setting. As Shakespeare's classics has shown that human emotions are same irrespective of economic conditions, geography or time era. Macbeth can become Maqbool and Hamlet can become Haidar and people won't even notice that story writer is from Europe who died 500 years ago. So while trying to make a film on infidelity why do you have to select an ultra rich urbane set up, to which only 0.0001% of India connects to. Narrate the same story with middle class setup and maximum of our audience will relate to. Yeah that will weed out the need to show expensive bikinis and plunging neckline. I am sure that was the touch given by KJo who is hell bent on sending the middle class on a guilt trip.. Tum saala gareeb log kya janoge, yeh dekho Ameer kaise hote hain.. bhai saab, woh hum internet per bhi dekh sakte hain, tum dhang se story sunao.. for bikinis and deep necklines, audience have countless better options. 


To give credit where due, Deepika has hit right chords and she looks like a light house among the sea of mediocrity full of Pandeys and chaturvedis. Rest everything is same gloss and same old wine in a new bottle. Watch it once if you want. If you don't, you aren't missing much. 


Wednesday, February 9, 2022

Visiting Aurangzeb's Tomb

Whereas whole of Maharashtra is now overwhelmed by the legend of great Chhatrapati Shivaji, on an non-descript lane in Aurangabad under an unmarked grave lies the man against whom Shivaji fought all his life. Alamgir Muhi-uddin Mohammad Aurangzeb. The same person by whose name city Aurangabad is named after.

I took out the time to visit his grave while others accompanying me waited outside. Even others also suggested against visiting Alamgir's tomb saying wahan pe aakhir rakha kya hai!! But visiting his final resting place made me realise the famous quote, " After the game, the king and the pawn go into the same box.".

The man who ruled India for 49 years with absolute authority finally gets a place in the most modest place with a blind guy standing by his grave who narrates a 85 second speech about Alamgir Aurangzeb in lieu of any amount you may give him as alms. May be Aurangzeb also saw and realized his fate and overall futility of life at his deathbed. That's why the dying old man confessed to his son, Azam, in February 1707, "I came alone and I go as a stranger. I do not know who I am, nor what I have been doing." 

Rest in peace, Alamgir.. Have your much needed rest, which you never had in your life and neither you let anyone else around you have it when you were alive.

Tuesday, February 8, 2022

आशिकों के नाम खुला पत्र

बेरोजगार आशिकों, 

अब भी वक्त है संभल जाओ। कुछ पढ़ाई वढ़ाई कर लो। यह जिम जा जा कर जो बॉडी बना के अपने आप को सलमान खान समझ कर शीशे में निहारते रहते हो ना, कुछ काम नहीं आएगा। तुम अपनी ही शादी में सलमान बने रह जाओगे, और कोई बैंक पीओ शाहरुख बन के तुम्हारी काजोल को उठा ले जायेगा। फिर तुम रह जाओगे और "कुछ कुछ होता है " वाली दुनिया से "कुछ भी ना हो रहा beep" वाली दुनिया में जाकर गिरोगे।

भगवान से नहीं तो कम से कम बैंक पीओ वालों से तो डरो। उनके सामने ही काउंटर पर " सोनम गुप्ता बेवफा है " लिखे हुए नोट जमा करने के लिए तुम काउंटर पर खड़े रहोगे, और तुम्हारी लाइफ से तुम्हारी सोनम गुप्ता को उठा ले जाने वाला बैंक पीओ तुम्हीं को कहेगा कि लंच के बाद आना। अभी लंच टाइम है। फिर उसी लंच टाइम में वो तुम्हारे सामने ही स्टील के तीन मंजिले टिफिन बॉक्स को खोल कर तुम्हारी ही सोनम गुप्ता के कोमल कोमल हाथों से बनाया हुआ फुल्का और आलू भुजिया खायेगा। और तुम लाइन में खड़े खड़े याद करोगे कि रोज रात को हमसे पूछती थी कि मेले बाबू ने थाना थाया? 

तुमको उसी समय समझ जाना चाहिए था कि उसके मन में कोई बाबू ही बस सकता है। बड़ा बाबू, सरकारी बाबू, पीओ बाबू। तुम बिना क्वांट्स बार अंग्रेजी पढ़े ही अपने आप को बाबू मान बैठे तो अब झेलो। बाबू बनते बनते बन गए बबुवा , बुड़बक बबुवा कहीं के।

तुम बिना बैंक पीओ बने बस आसमान के तारे तोड़ लाने की बात कर के जहां नहीं पहुंच पाए, वो बैंक पीओ बन के तुम्हारी वाली के लिए मंदिर के सामने से दस रुपए का गजरा खरीद के पहुंच गया। बैंक पीओ वालों से डरो, तुम्हारी कहानी का विलेन बजरंग दल वाला नहीं है, वो तो किसी कोचिंग क्लास में बैठा है। बजरंग दल वाला तो तुमको पीओ बनवाना चाहता है। तुम ईलू ईलू से ज्यादा अंग्रेजी कभी सीख नहीं पाए और वो इंग्लिश का ऑब्जेक्टिव सेट तीन बार बना के तुम्हारी लाइफ का ऑब्जेक्टिव ही उठा ले गया।
अभी भी वक्त है, यह लेटर वेटर लिखना छोड़ो। बैंक पीओ का फॉर्म निकला है वो भरो। 14 फरवरी से पानी टंकी के बगल में हम बैंकिंग वालों के लिए नया बैच शुरू कर रहे हैं। आज ही एडमिशन ले लो। फीस का चिंता मत करना। तुम जो टेडी बियर खरीदने का सोच रहे हो ना, उसके दाम से बस थोड़ा ही ज्यादा फीस रखे हैं। अपना अभी वाला सेटिंग के बारे में सोचना छोड़ के हमारा कोचिंग ज्वाइन कर लो, चिंता मत करो। को-एड बैच में सीट दिलवा देंगे, तुम्हारा वो वाला इंतजाम भी हो जायेगा।

स्योर सक्सेस कोचिंग क्लासेस, पानी टंकी चौक , कटिहार
नोट: हमारी कोई और शाखा नहीं है। 

शेर का सबसे बड़ा हथियार

शेर के पंजों और जबड़े की ताकत के बारे में सब जानते हैं जो शेर को सबसे बड़ा शिकारी और जंगल का राजा बनाते हैं। लेकिन शेर का एक और गुण होता है, वो यह कि शेर के चलने पर आवाज नहीं होती। घात लगा कर शेर घंटों बैठ सकता है। बिना चूं भर की आवाज किए। भूखे प्यासे ओट में दुबक कर बैठा रह सकता है और बिना अजीमो शान शहंशाह की आवाज निकाले, शांति से इधर से उधर जा सकता है। गौर से देखें तो यह चुपचाप बैठने की आदत और बिना हल्ला किए चलने की आदत के बिना उसके जबड़े और पंजों की ताकत बिलकुल बेकार है। किसी भी शिकारी का सबसे बड़ा हथियार होता है धैर्य और सब्र। यह वो हथियार हैं जो सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं। पंजों और जबड़े का काम तो कुछ पलों का होता है, बाकी समय तो बस सब्र से काम लेना होता है, बिना आवाज किए।

Monday, February 7, 2022

जब होता हूं सड़कों पर

बैठा होगा कोई अपने शीश महल में
अपने झरोखों से झांकते हुए
उसने देखा होगा किसी मुसाफिर को
कंधे पर झोला लटकाए,पैदल चलते
और सोचा होगा कि सामने वाला
दुखी है कितना,
धूल धूप झेल रहा है
बोझा उठाए चल रहा है
तो उसने कहा होगा 
मुहावरा कि फलां सड़क पर आ गया
फिर उसने कहा होगा कि
सड़क पर होने का मतलब
आज से हुआ बरबाद हो जाना।

जब होता हूं सड़कों पर
तो शायद खुश रहता हूं सबसे ज्यादा,
क्योंकि मेरी सारी जरूरतें 
सिमट जाती हैं
मेरे कंधे पर लटके एक थैले में।
एक जोड़ी कपड़े और एक बोतल पानी
और एक कुछ बासी पूरियां एक टिफिन में,
काफी हो जाती है मेरे लिए।
शायद उससे भी ज्यादा हो जाती हैं
क्योंकि जब खड़ा होता हूं सड़कों पर।
तो आ जाता है कोई भूखा
होठों पर प्यास और आखों में आस लिए
एक टुकड़ा रोटी के लिए हाथ फैलाए।
फिर सोचता हूं कि 
यह आया है मेरे पास मांगने एक रोटी
शीश महल में क्यों नहीं जाता 
जहां हैं मेवे के भंडार 
और यह आया है मेरे पास जिसके पास है
एक झोला कंधे पर
और गिनी चुनी चार पूरियां।
क्योंकि पता है उसे भी शायद कि
दे वो ही सकता है जिसकी खुद की
जरूरतें कम हैं ।

जब होता हूं सड़कों पर
कम होती हैं मेरी जरूरतें
कम होता है मेरा बोझा
इसीलिए तेज चल पाता हूं
इसीलिए किसी भूखे के दिल में
आस जगा पाता हूं।
जब होता हूं सड़कों पर 
समझ पाता हूं चीजों की असली अहमियत
इसीलिए संभाल कर बंद करता हूं
पानी की छोटी बोतल का ढक्कन।
जबकि घर पर खुला बहता नल भी 
मुझे परेशान नहीं करता,
इसीलिए हजारों लीटर वाली टंकी भी 
कम पड़ जाती है।

जब होता हूं सड़कों पर
तो गुरूर नहीं होता मेरे पास,
पीछे छूट जाती हैं मेरी डिग्रियां
और ज्ञान का अहंकार।
एक अनपढ़ रिक्शेवाले से भी पूछता हूं 
कि भैया जरा रास्ता बताओगे,
 थोड़ा भटक गया हूं।
एक सड़क किनारे टपरी पर खड़ी बुढिया से
पूछता हूं कि आई! एक कप चाय मिलेगी क्या?
ना मांगने वाले में शर्म, 
ना देने वाले में कोई कोई शिकन
सामने वाला जिसे एक पल
में बना लिया भाई और मां
बताते हैं रास्ता इत्मीनान से
और दे देते हैं दो बिस्किट 
चाय के साथ बिना मांगे।

जब होता हूं सड़कों पर
ज्यादा समझता हूं रिश्तों की अहमियत
याद करता हूं दोस्तों को,
घर वालों को।
एक पल को ठहर सा जाता हूं
जब देखता हूं लिखा कि 
धीरे चलिए, घर पर कोई 
आपका इंतजार कर रहा है।

जब होता हूं सड़कों पर 
तो हो जाता हूं ज्यादा विनम्र
हर छोटे बड़े मंदिर पर शीश झुकाता हूं।
स्वीकार करता हूं लंगर,
 भिक्षुक की तरह हाथ फैलाए।
आगे नहीं निकलता बिना सजदा 
किए किसी पीर को।
निकल जाता हूं बगल से, 
सड़क के बीच बैठी गाय के
बिना उसे उठाए, बिना उसे जगाए।
रुक जाता हूं जब तक खत्म नहीं होता
छोटे कुत्ते के बच्चों का खेल सड़क पर।
इंतजार करता हूं तब तक
जब तक सारे बच्चे बतख के 
पार नहीं कर लेते सड़क।
जब होता हूं सड़क पर
तो हंसता हूं उसपर
 जिसने बरबाद होने को नाम दिया
सड़क पर होने का।
क्योंकि जब होता हूं सड़क पर
तो रत्ती भर ही सही 
शायद होता हूं ज्यादा आबाद।
एक माशा ही सही
शायद होता हूं एक बेहतर इंसान
एक इंच ही सही
शायद होता हूं प्रकृति के नजदीक
एक पल के लिए ही सही 
शायद होता हूं ज्यादा खुश।

जब होता हूं सड़कों पर
जब होता हूं सड़कों पर

Sunday, February 6, 2022

"tryst with destiny" in Hindi

I was sitting idle so thought of translating the great speech ' tryst of destiny' in Hindi. 

As a sample, I have translated one para. Hope you like my work and encourage me for more translations..

Original text: 'At the stroke of the midnight hour,
when the world sleeps, India will awake to life and freedom.'

Translation: देखो भैया, ऐसा है कि हम लोग सोते हैं रात में। सब लोग सोते हैं रात में। आपको यकीन नहीं है, तो आप रात को पड़ोसी के घर में रात को जाइए, उनका दरवाजा खटखटाईये। सच में खटखटाईये, तो वो बाहर निकलेंगे आंख मलते हुए। उनसे पूछिए, कि आप सो रहे थे ना। तो वो आपको बताएंगे कि ना भैया, अब हमको कहां नींद आती है। नींद तो बस अब मोदी जी के दोस्त अदानी जी और अंबानी जी को आती है। तो भईया ऐसा है ऐसा है कि अंबानी अंदानी जब सो रहे होंगे, तो हम पूरे देश को रात बारह बजे दरवाजा खटखटा के उठाएंगे। जरूर जगाएंगे लेकिन एक बात और सुन लो भैया। आंख बंद करके सोने वालों को हम आंख मार के जगाएंगे। हम नफरत से नहीं जगाएंगे, प्यार और मोहब्बत से जगाएंगे। समझे भैया । आपको मेरी बात अच्छी लगी, लगी तो एक बार मार दीजिए, बस एक बार ऐसे मार दीजिए।

witnessing the legend of Raja Ravi Varma

Raja Ravi Verma was from Kerala, patronized by a king from Gujarat who was originally from Maharashtra. He was asked to paint indian mythological characters like Radha and Sita who had connections in northern India UP and Bihar. Raja Ravi Verma paints them in Maharashtrian sarees and that's the image we indian have of Maa Saraswati, Maa Lakshmi , subhdra and Radha since then.. No one even objected why Radha, a Gopi from Vrindavan is shown wearing a Marathi attire. May be this gives us a hint of inner bond we share in Bharatvarsh. That's the reason all indian imagination of Indian godesses in nothing but what Raja Ravi Verma imagined them to be like.
Lucky to have witnessed these masterpieces at Lakshmi Vilas palace , vadodara and Maharaja Fateh Singh museum. Kudos to amazing audio guides available at these sites.. Spent almost 5 hours at these places and feel I could have spent a lifetime there admiring his works. Luckily, no cameras are allowed inside so no time was wasted in taking photos but was spent in appreciating the legend of Raja Ravi Verma and great Sayaji Rao Gaekwad III. I am putting images from Google but you must visit these places to witness what is one of the greatest treasure of our Indian culture.

Friday, February 4, 2022

बच्चों का , बच्चों के लिए और बच्चों द्वारा संचालित त्योहार, वसंत पंचमी

बिहार में सरस्वती पूजा सिर्फ माता सरस्वती की पूजा और अर्चना का त्योहार नहीं है और ना ही यह दुर्गापूजा की तरह नवरात्र की पूजा और भव्य मेला के आयोजन जैसा कोई त्योहार है। इस त्योहार की खास बात यह है कि इसका आयोजन पूरी तरह बच्चों के द्वारा किया जाता है। बड़े वयस्क और गुरुजन इस त्योहार में बस प्रसाद लेने और चंदा देने की भूमिका तक सीमित रहते हैं।
पूजा के दो से तीन हफ्ते पहले से ही बच्चों की टोलियां चंदा जमा करने के लिए घूमने लगती हैं। मां सरस्वती के लिए मन में चाहे कितनी भी श्रद्धा और भक्ति हो, माता लक्ष्मी के आशीर्वाद के बिना कोई उपलक्ष आज तक पूरा हुआ है भला। बच्चे की टोलियां आपसे कोई भी चंदा स्वीकार नहीं करेंगी। आपका पूर्ण आर्थिक, सामाजिक और वैयक्तिक विश्लेषण के बाद ही हर व्यक्ति के लिए चंदे की राशि निर्धारित की जाती है। क्या चाची, आपके यहां तो दो दो लोगों को नौकरी है, भैया का भी दरोगा वाला एग्जाम का पीटी निकलिए गया है। पिछले बार आप 51 रुपया देकर निकल लिए थे, इस बार आपका रसीद 501 से कम का नहीं कटेगा। इतनी व्यूह योजना के बाद शायद ही कोई बहाने की गुंजाइश बचती है।
अर्थ संकलन के बाद एक टोली का काम होता है मूर्ति की व्यवस्था करना। वैसे तो मां का हर रूप मोहक और वात्सल्य पूर्ण होता है लेकिन बच्चों के लिए मां की मूर्ति पिछले साल और पड़ोस के स्कूल के बड़ी और सुंदर होनी की शर्त अनिवार्य है। कुम्हार बेचारा बच्चों की हर मांग मानते मानते और कीमत पर बकझक कर कर के परेशान हो जाता है। हर बच्चे की मांग होती है कि कम से कम कीमत पर उनको सबसे सुंदर प्रतिमा दी जाय। मां की साड़ी, आभूषण, हंस की गर्दन हर चीज पर बच्चों को बात कलाकार को माननी ही पड़ती है। मूर्ति पूजा से पहले कम से कम तीन दिन पहले तैयार हो जानी चाहिए। हरेक दिन बच्चों की टोली मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया का निरीक्षण करने पहुंच ही जाती है और कम से कम एक घंटे तक अपने सुझाव कारीगर को देकर ही लौटती है।
पंडाल सजाने का काम मुख्यता पूजा की पूर्व संध्या को ही किया जाता है। रंगीन कागज़, फूल , आम की पत्ते की लड़ियों से मां का दरबार सुसज्जित किया जाता है। यहां भी शर्त वही है कि सजावट पिछले साल और पड़ोस से स्कूल से अच्छी होनी चाहिए। जिन बच्चों की आंख सूरज के ढलते ही लग जाती है, वोही बच्चे पूरी रात जागकर सजावट करते हैं। उससे पहले स्कूल प्रांगण की सफाई, फूलों के गमले की क्यारियां सजाने का काम एक दिन पहले ही पूरा कर लिया जाता है। चूने और लाल रंग से रंगी ईंटों को एक के बाद एक तिरछे रूप से सजा कर रास्ते बनाए जाते हैं, फिर चूने की धारियों से मां के पंडाल तक जाने वाले रास्ते के आस पास जय मां सरस्वती, जय मां शारदे जैसे उद्घोष लिखे जाते हैं। 
रात भर जाग कर सजावट करने के बाद पौ फटने के आसपास ही प्रसाद काटने का काम शुरू होता है। मिश्रीकंद, बेर, गाजर, शकरकंद, नारंगी, केले और सेव का पूर्ण रूप से प्राकृतिक प्रसाद काट कर रख लिया जाता है। उसके साथ रस वाली बूंदी का जोड़ ना हो तो प्रसाद अधूरा ही रहता है। इसीलिए सुबह से हलवाई की दुकान पर मधुमक्खियों से ज्यादा बच्चे मौजूद रहते हैं। जल्दी कीजिए, जल्दी कीजिए, पंडी जी आ गए हैं, इगारे बजे तक का मुहूर्त है, जल्दी दीजिए प्रसाद , अभी घर जाकर नहाना भी है। कैसे होगा, आपको कल्हे बोल दिए , सात किलो बुनिया का एडवांस भी दिया हुआ है। जल्दी कीजिए। हलवाई सभी ताने सुन सुन के जल्दी जल्दी बुनिया छानता रहता है।
अब बारी आती है पूजा के कार्यक्रम की। सारे बच्चे अपने बस्ते एक एक किताब लेकर मां के चरणों में रखते हैं। जितनी बड़ी टोली, किताबों का उतना ही बड़ा जखीरा मां के चरणों में जमा हो जाता है। बच्चों की मेहनत, पढ़ाई, ट्यूशन सब ठीक है लेकिन जब तक मां का आशीर्वाद ना मिले , आज तक किसी को विद्या नहीं मिलती। दूसरी बात यह भी कि मां की पूजा में किसी भी प्रकार की अवहेलना सातों विद्या नाश कर देने का खतरा उत्पन्न कर देती है।

यही श्रद्धा और कुछ भय का परिणाम होता है कि चाहे चंद्र टरै, सूरज टरै, बिना पूजा के पूर्ण हुए कोई भी बच्चा एक दाना अनाज का मुख को नहीं डालता। भले मुंह अंधेरे किसी और की बगिया से सारे फूल चुरा लेने का पाप बच्चे कर दें, बिना पुष्पांजलि के कोई भोजन ग्रहण नहीं करता। मां का प्रसाद जल्दी मिले, भोग की खिचड़ी जल्दी खाएं, इसके लिए जरूरी है कि पंडित सबसे पहले उनके यहां ही पूजा करवाएं। इसके लिए पंडित को सबसे पहले बुलाने के लिए एक बच्चों का दल पंडित के यहां सुबह से ही पिकेटिंग करता रहता है। पूजा कर भले ही पुण्य मिले, लेकिन पंडित जी हर टोली को यही झूठा आश्वासन देते रहते हैं कि तुम्हारे यहां सबसे पहले आयेंगे। आखिर इससे नीचे कोई बच्चा मानता भी तो नहीं।

पूजा संपन्न होने के बाद मां की वंदना के गीत गाए जाते हैं, शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। आखिर मां सरस्वती विद्या के साथ साथ संगीत की भी देवी तो हैं। मां वीणा पाणि की पूजा बिना संगीत समारोह के पूर्ण भी नहीं हो सकती। यह समस्त आयोजन सिर्फ बच्चों द्वारा संचालित और व्यवस्थित किए जाते हैं। और इसके हिंदू बच्चों का त्योहार समझ कर यह मानने की भूल न करें कि यह आयोजन हिंदू बच्चों द्वारा किए जाते हैं। हर धर्म संप्रदाय के बच्चे इसमें शामिल होते हैं आखिर विद्या किसे नहीं चाहिए और मूर्ति विसर्जन की मस्ती से कौन वंचित रहना चाहता है। 

मूर्ति विसर्जन में बच्चे अपनी सारी थकावट मिटा के अबीर लगा कर खूब नाचते हैं , गाते हैं। कुछ जिम्मेदार बच्चे मां की प्रतिमा के पास उनको संभाल कर रखते है कि रास्ते के गड्ढों से मां को कोई चोट ना लगे। बाकी बच्चों के लिए तो मानों होली, गरबा, इंडियन आइडल का ऑडिशन और डांस इंडिया डांस की तैयारी सबका सम्मिश्रण है मां का विसर्जन ।

मां को अगले बार इस बार से भी बेहतर आयोजन और विदाई के संकल्प के साथ ही सरस्वती पूजा का उत्सव संपन्न होता है।

सबको वसंत पंचमी की शुभकामनाएं। मां शारदे की अनवरत कृपादृष्टि आपपर सदैव बनी रहे। जय मां सरस्वती। 

Tuesday, February 1, 2022

middle class ho tum

Restaurant ke menu mein dish ki jagah, apni aukaat dhoondhte ho to,

 middle class ho tum..

Har budget ke baad apne chot ko sahlate hue joke share karte ho to,

 middle class ho tum,

Do minute mein geyser aur teen minute mein AC off kar dete ho to,

 middle class ho tum,

Doodh ke fat jaane per paneer ki sabji khate ho to,

 middle class ho tum,

Humein kuchh na mila, kuch na mila
Lagatar kar rahe yahi bakwaas ho tum,

Na vote hain tumhare paas aur na hai paise ki aukaat,

 to lagaye hue kaun si aas ho tum,

Bhool jaate isiliye yaad dila raha hoon ki,
 
middle class ho tum.

Haan, Middle class ho tum..