Saturday, March 5, 2022

men will be men

एक दिन लाल कुंवर ने कहा कि बादशाह सलामत, क्या मेरी खुशी के लिए आप आज दरबार बिना कपड़ों के जा सकते हैं? बादशाह से कहा आपके लिए तो जान हाजिर है बेगम इम्तियाज महल। आपकी बात को मैने कभी मना किया है! अगले रोज बादशाह दीवाने खास में बिना कपड़ों के पहुंच गए। सारे वजीर, नवाब, रानियों के शर्म से आंखें नीची कर ली। कुछ पुराने दरबारियों ने कहा बादशाह सलामत। यह दीवाने खास है। आपका हमाम नहीं, यहां बैठ कर हम हिंदुस्तान की तकदीर जा फैसला करते हैं। जिस तख्त पर आप बैठे हैं वहां पर जो पहले बैठ चुके हैं, कम से कम उनका तो खयाल करिए। 

बादशाह अपनी बेगम के पास पहुंचे। बेगम को कहा कि आज दीवाने खास में उनको लोगों ने बुरा भला कहा। बेगम ने कहा कि आखिर लोगों की शिकायत क्या है? यही ना कि आपने कपड़े नहीं पहने थे? कल को आप मेरे कपड़े पहन कर दरबार सजा लीजिए। सबका मुंह बंद हो जायेगा। अगले दिन बादशाह अपनी बेगम के कपड़े और जेवरात पहन कर दरबार पहुंच गया। 

यह कोई काल्पनिक कथा नहीं है। औरंगजेब के पोते जहांदार शाह और उसकी बेगम लाल कुंवर की असली कहानी है। जहांदार शाह एक नाचने वाली लाल कुंवर के इश्क में ऐसा गिरफ्त हुआ कि उसे सही गलत किसी चीज का अंदाजा न रहा। लाल कुंवर के साथ एक औलाद पाने के लिए बादशाह खुले चौक पर रानी के साथ संभोग करने लगा। 

प्रेम में पड़े कामुक नर से निरीह दुनिया में कोई प्राणी नहीं। जिसको दुनिया प्यार कहती है उसको प्यार वोही समझता है जो प्यार में पड़ा होता है, बाकी के लिए वो पागलपन और बेवकूफी ही है। कभी सोचता हूं कि यह हनी ट्रैपिंग काम कैसे कर जाती है? इतने समझदार आर्मी ऑफिसर, राजनयिक, जासूस जो सारी दुनिया की धमकी, धन के प्रलोभन के आगे टस से मस नहीं होते ,एक महिला की प्रेमपूर्वक बातें सुनकर अपने सारे राज खोल देते हैं। यह तो निश्चित है कि हनी ट्रैपिंग में फंसा व्यक्ति भी आपने आप को एक प्रेमी ही मानता है जब तक उसको यह पता नहीं चलता कि वो प्रेमी नहीं एक शिकार मात्र है।

यह पुरुषों की एक सर्वव्यापक कमजोरी है कि प्रेम में पड़ने के बाद उसकी सारी बुद्धि विवेक और ज्ञान पर प्रेम हावी हो जाता है। महाभारत में भी माता गांधारी ने दुर्योधन का पूरा शरीर वज्र का बना दिया लेकिन अंग विशेष फिर भी कोमल रह गया जो उसकी मृत्यु का कारण बना। Men will be men वाले विज्ञापन भले ही इसी कमजोरी को मजाकिया अंदाज में दिखाते हैं। अगर men होने का मतलब इस नैसर्गिक कमजोरी के आगे विवश होना है तो men निहायत ही कमज़ोर जीव हैं, जिनकी कमजोरी जगजाहिर हैं।यह वोही इश्क है उसके चक्कर में तुलसीदास जैसा विद्वान सांप को रस्सी समझ बैठता है।  

 जहांदार शाह की हरकतें आज मुगलिया सल्तनत की तारीख में एक धब्बा हैं, लेकिन उसकी जगह खड़े होकर देखें तो उसने वो सारे काम लाल कुंवर के इश्क में आकर किए। इश्क ,पागलपन, बेवकूफी, हार्मोंस का केमिकल लोचा सब एक ही चीज़ें हैं। बस देखने वाला कहां खड़ा है इसपर निर्भर करता है कि उसको क्या दिख रहा है। समझदारी इसी में है कि कुछ फैसले लेते समय आप men बन कर ना लें, कुछ समय unmanly होना ही बेहतर है। एक कामुक नर से तुलसीदास का सफर men बन के तय नहीं किया जा सकता। 

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