सत्तू शब्द की उत्पत्ति संभवतः सात्विक शब्द से हुई है। दूसरी संभावना है कि यह सत्व शब्द से निकला है जिसका अर्थ है किसी पदार्थ से निकला सार तत्व या मूल रस । दोनो अर्थों में सत्तू अपने नाम को चरितार्थ करता है। एक भोजन के रूप में यह जल जितना सात्विक है इसमें नमक, मसाला, तेल , घी किसी का समावेश नहीं। चना, जौ, मकई को बिना किसी मिलावट के पीस के सत्तू तैयार होता है। सत्तू अपने अवयव अनाजों के मूल गुणों के सबसे नजदीक है ।यह उनका बिना गुण परिवर्तित किए उनको उपभोग के लिए उपलब्ध कराता है। आज के पोषण विशेषज्ञों की मानें तो सत्तू एक सुपर फूड है। एक आदर्श आहार जो आपकी स्वस्थ जीवनशैली का एक अहम हिस्सा बन सकता है। चूंकि यह बिहार का उत्पाद है यह अत्यंत ही सरल और सस्ता है। आप इसको पानी में घोल कर नींबू नमक मिलाकर एक स्वादिष्ट पेय बना सकते हैं तो यही आटे की गोली के अंदर जाकर उसको प्रसिद्ध लिट्टी बना देता है। इसको नाश्ते खाने सब में प्रयोग कर सकते हैं ।
असंख्य बिहारियों के अथक परिश्रम और अक्षय ऊर्जा का स्रोत है यह सत्तू। बिहार के लोग संकोची हैं , शायद आपको बिना कहे सत्तू ना खिलाएं। यह सोच कर कि मेहमानों को तो पूरी हलवा खीर खिलाना चाहिए, सत्तू तो बहुत साधारण है। इसलिए अपने किसी बिहारी परिचित से मिलें या आप बिहार आएं तो एक बार इसकी मांग अवश्य करें। आप सत्तू के स्वाद, गुण, सरलता के मणिकांचन योग के सुखद आश्चर्य में अपने आप को पाएंगे। बिहार दिवस के अवसर पर हम गर्व से अपने सत्तू को वो पहचान दिलाने का प्रयास कर सकते हैं जिसका वो सर्वथा हकदार है।
बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।।
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