एक महिला ने डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर साब, मेरे पति की तबियत ठीक नहीं है। डॉक्टर साब अपना आला, अपना बैग सब लेकर आए। पेसेंट को अच्छे से चेक किया और कहा , आई एम सॉरी। आपके पति अब नहीं रहे। महिला के पति ने कहा अबे यह क्या बात हुई मैं तो जिंदा हूं। महिला ने अपने पति को डांटते हुए कहा कि चुप रहो जी। तुम डॉक्टर हो या ये। तुमसे ज्यादा जानते हैं ये। ऐसे ही डॉक्टर थोड़े बने हैं।
कहने के लिए यह चुटकुला मैंने बचपन में सुना था और शायद सुन कर हँसा भी था। लेकिन मन में यह भाव भी था कि ऐसा थोड़े ही हो सकता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि सामने वाला बोले कि मैं जिंदा हूं और कोई डॉक्टर की बात मान के उसको मुर्दा मान ले। लेकिन जब से टीवी और आजकल यूट्यूब चैनल वालों को देखता हूं चुनाव परिणामों को समीक्षा करते हुए तो यही जोक याद आता है। जनता बोल चुकी है जो उसको बोलना था, और ये चुनावी पंडित अपने "सर्वे और अपने जमीनी अनुभव" का हवाला दे दे कर जनता को गलत साबित करने में लगे हुए हैं। भैया अब तो मान लो कि तुम्हारी डायग्नोसिस गलत थी। लेकिन नहीं, गले में चोंगा टांग रखा है तो हो गए डॉक्टर। और डॉक्टर तो हमेशा मरीज से ज्यादा ही जानता है!!
तो उसी प्रकार से सामने एक माइक रख लेने और नाम के आगे वरिष्ठ पत्रकार, और चुनाव विशेषज्ञ लगा लेने के बावजूद भी जनता की आवाज के सामने तुम्हारी बात सही नहीं हो जाती।
अगर आप अभी भी चुनावी विश्लेषण में लगे हुए हैं तो आप वोही डॉक्टर हैं जो जिंदा मरीज को मुर्दा और मुर्दा को जिंदा बता रहे हैं क्योंकि आपकी रिपोर्ट ऐसा कहती है। अगर आप उन लोगों में से हैं जो अभी तक उनको सुन रहे हैं और डॉक्टर को सही मानते हैं तो आप वो महिला हैं। मैडम, मरीज की सुनिए, डॉक्टर की नहीं। मरीज का हाल सबसे बेहतर मरीज ही बता सकता है। और अगर आप डॉक्टर और महिला दोनो नहीं हैं तो फिर आप जनता हैं। आप अच्छे से जिंदा हैं, किसी के कहने से आप और लोकतंत्र मर नहीं जाते, चाहे वो कहने वाला कोई भी हो। पंजाब हो या गोवा हो या हो उत्तर प्रदेश, जनता की आवाज में जनार्दन बोलते हैं। तो डॉक्टर साब, प्लीज अपना आला समेटिए, और निकल लीजिए पतली गली से। अगली बार किसी को दस्त की शिकायत हुई तो आपको फिर से आपको याद करेंगे !!
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