Friday, March 4, 2022

टिकोले से प्राप्त जीवन दर्शन

जिसको दुनिया आम का सीजन कहती है, वो तो एक्चुअली पके आमों का सीजन है। आम का असली आनंद तो उससे पहले आता है। कच्चे आम जिसको केरी, अमिया या हमारी भाषा में टिकोला भी कहते हैं। बचपन में हमारी एक जेब में घिसे हुए सीप का आम छीलने का औजार रहता था और दूसरी जेब में नमक और लाल मिर्च का घिसा हुआ पाउडर। किसी चीज को नमक मिर्च लगा कर पेश करने वाला मुहावरा किसी टिकोला खाने वाले ने ही लिखा होगा। भाई साब, जिंदगी के मजे आ जाते थे। चरम सुख का आनंद !! टिकोले की खटास, मिर्च की तेजी और नमक स्वादानुसार!! सुख की सबसे छोटी रेसिपी यही है।

खैर, टिकोला खाना और इसका वर्णन करना जैसे कि मैंने अभी करने का प्रयास किया, एक सतही वर्णन है। वास्तव में बचपन में टिकोला खाने वाले बच्चे अपनी आगे की जिंदगी के लिए बहुत बड़े सबक सीखते हैं। टिकोला खाने को इतना भी बैकवर्ड मत समझिए कि अरे अंधड़ में आम गिर गया तो बचवा उठा के खा रहा है, इसमें कौन सा जीवन दर्शन होगा। खा गए न गच्चा? लगता है बचपन में टिकोला नहीं खाए हो ज्यादा। अभी समझाते हैं।

पके आम की परख तो कोई भी कर सकता है।बचपन से पढ़ाया जाता है कि भैया आम फलों का राजा है। कैटरीना दीदी भी आम के रस को लेकर उत्तेजक लेकिन सूचनाप्रद विज्ञापन बना डालती है।  असली ज्ञान तो छुपा है टिकोला की पहचान करने में। हर टिकोला नहीं खाया जाता। कुछ टिकोले खाए जाते हैं, कुछ नहीं खाए जाते। यहां पर सारे निर्णय गुण और स्वाद के आधार पर होते हैं। नेपोटिज्म का कोई स्थान नहीं होता है इधर कि आम देखने में अच्छा है तो खा लो इसका टिकोला। एक आम होता है जिसको सिंदुरिया आम कहते हैं। देखने में ऐसे जैसे रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः वाला श्लोक इसको देख के ही लिखा गया हो। हरे रंग का ताजगी भरा शरीर, उपरी भाग में गुलाबी रंग की छटक और बाकी हरे पत्तों के बीच से झांकता सिंदुरिया आम। अ हा, मानों सौंदर्य से लदी नायिका अपने नायक द्वारा होली में चेहरे पर अबीर लगा देने के बाद अपनी सहेलियों के बीच खड़ी कुछ शरमा कर कुछ खिल खिला कर हरे परदे की ओट से नायक को देख रही हो। आप कहेंगे कि भैया टिकोला खाना है तो सिंदुरिया आम का ही। लेकिन नहीं, जीवन इतना आसान नहीं होता। सच्चाई यह है कि सिंदुरिया आम सिर्फ देखने में अच्छा होता है, टिकोला उसका मुंह में ना रखा जाय। और तो और पकने के बाद तो और भी बेस्वाद। वो आम बस इसी काम का है कि उसके साथ दो तीन सेल्फी खिंचवा लो, कवि हो तो तो एकाध रोमांटिक कविता लिख लो, लेकिन उसको खरीदो मत। बगल में खड़े हो जाओ, और किसी सावन के अंधे को देखो सिंदुरिया के चक्कर में बर्बाद होते। 

दूसरा एक आम होता है फजली। आमों के बीच हाइट वाइज दीपिका और फिगर वाइज कटरीना वाला स्थान रखता है फजली आम। टिकोला भी खाने में सबसे जबरदस्त। खट्टे मीठे का ऐसा संतुलन जैसा कि us प्रसिद्ध कविता में वर्णित है कि ना उन्नीस से कम हों ना इक्कीस से ज्यादा,दीवानों का ना जाने क्या है इरादा। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि यही फजली पकने पर बेस्वाद। पक जाने पर फजली ऊपर से कटरीना और अंदर से ललिता पवार निकलती है। तो फ़जली आम का यही यूज़ है कि उसका टिकोला खा लो, बहुत शौक है तो खट मिठ्ठी अचार बना के थोड़ा सा बॉटल में रख लो, लेकिन उसके साथ लंबी पारी मत खेलो। पकने पर फजली पका देता है।

अब आता है तीसरा आम, नाम है लंगड़ा। एक तो इसका नाम खराब है ,देहाती वाला नाम। बाकी इसके साथी लोग अलफांसो जैसा स्टाइलिश नाम रख के चलते हैं और यह बेचारा इतना पिछड़ा हुआ है कि सदियों से बॉडी शेमिंग झेल रहा है लेकिन आज तक कोई वोक जनता इसके पक्ष में खड़ी नहीं हुई। ऊपर से इसका टिकोला खा लो तो तीन दिन तक दांत खट्टे हो जाय। और कुछ खाया ना जाय। कोई भी लंगड़ा के टिकोले को पसंद नहीं करता। लेकिन अगर आपने टिकोले के स्वाद के आधार पर लंगड़ा को रिजेक्ट कर दिया तो आपसे बड़ा बेवकूफ कोई नहीं। यही आम आगे चल कर सबसे मीठा हो जाता है। समझदार लोग लंगड़ा आम को आम बचा के रखते हैं आगे की जिंदगी के लिए । आमों के बीच लंगड़ा विकी कौशल जैसा है। भले शुरू में इसको भाव ना मिले, इसके टिकोले को कोई मुंह ना लगाए, लंगड़ा लंगड़ा कह के चिढ़ाए, लेकिन भैया यही आगे चल कर कैटरीना को उठा ले जाएगा। सिंदुरिया जैसे चॉकलेटी बॉय, फजली जैसे हार्ट थ्रोब के बीच लंगड़ा पूरा हसबैंड मैटेरियल है। 
जो बच्चे बचपन में टिकोला खाते हैं वो अपने अनुभव का इस्तेमाल कर सभी आमों के बीच सिंदुरिया के आकर्षण से अपने आप को बचाते हैं, फजली के साथ मजे जरूर लेते हैं लेकिन उसके पकने से पहले ही उसको टाटा बाय कर देते हैं। और साथ निभाते हैं लंगड़ा का, जो शुरू में चाहे सबसे कड़वा लगे, नाम भी जिसका अजीब सा हो लेकिन आगे चल के जो सबसे ज्यादा स्वाद दे। बाकी आप खुद समझदार हो। सोच लो, कौन सा वाला आम खाना है!! 

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