बड़ी थकान के बड़े से बिछावन पर,
अपनी कमाई का छोटा तकिया लेकर,
बिछाता हूं उम्मीदों की बड़ी सी चादर,
और ओढ़ लेता हूं चादर धुंधले सपनों की झीनी सी,
सिराहने रखा है एक हथपंखा
अपनी छोटी जरूरतों का।
बिस्तर की खाट के नीचे छुपा रखे हैं मैने
अपने टूटे सपनों का ढेर,
कुछ ऐसे बिछाई है उम्मीदों की चादर
कि दिखने ना पाए लंबी फेहरिस्त
मेरे टूटे सपनों की।
सोने से पहले मद्धम करता हूं लौ
मेरे पसीने से जलते दिए की,
और पीता हूं सुकून के गिलास में
रखा संतोष वाला ठंडा जल।
फिर बड़ी गहरी नींद आती है
जैसे कड़ी धूप के बाद मिल गई हो पीपल की छांह
और बड़े उजागर से सपने आते हैं
मानो पूरा चांद खिला हो आसमान पर
और सुबह आती है ताजगी लिये
जैसे मैने पाई हो मेरे हिस्से की नींद बरसों बाद।
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