झूठ को भी झूठ दिखना नहीं चाहिए, वरना पकड़ा जाएगा। झूठ को सच की तरह दिखना चाहिए। उसी तरह धूर्त को भी धूर्त की तरह आचरण करने पर शिकार नहीं मिलता ,उसे भी सदाचारी होने का स्वांग तो रचना ही पड़ता है। विदेशी जासूस भी मित्रता का नाटक करते हैं और विष खिला कर प्राण ले लेने वाली विषकन्याओं को भी प्रेयसी बन कर व्यवहार करना होता है। रावण को भी संत का रूप धारण करना पड़ा था सीता के हरण के लिए।
बुराई तक को सफल होने के लिए अच्छाई का सहारा लेना पड़ता है। तो फिर आप अच्छाई त्याग बुराई अपना कर सफल होने की आशा कैसे कर सकते हैं। यह एक अलग बात है कि कभी कभी सच होना काफी नहीं होता, सच को सच दिखना भी चाहिए।
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