पुल जिंदगी का तंग सा।
पुल के नीचे पानी सा बेधड़क
बहता जा रहा वक्त बेरंग सा।
और ऊपर पुल पर ट्रैफिक में
अटका खड़ा मैं दंग सा।
आस पास खड़ी गाडियां ढेरों लेकिन
लगता नहीं कुछ भी संग सा।
पीछे वाला आगे जाने को उतावला
झुंझलाता हॉर्न बजाता जैसे
हार रहा हो कोई जंग सा।
आगे खड़ी सुस्त गाडियां की रफ्तार
अलसाया जैसे अजगर भुजंग सा।
जिंदगी चल रही रुक रही ,
दुनिया की शर्तों पे,
भले दिल चाहे खुला आसमान पतंग सा।
स्वीकार्य हो रही यह सच्चाई शनै शनै
मुस्कुराता रहा सुन दुनिया का शोर जैसे मृदंग सा।
दर्द निराशा में मिला दिया दो घूंट उमंग
फिर पी गया जैसे प्याला हो भंग सा।
निभाता रहा हूं साथ तेरा ए जिंदगी,
दुर्योधन से किया वचन निभाता हो
कर्ण महाराज अंग सा।
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