Wednesday, March 30, 2022

Will Smith crossed a line and should be punished

Chris Rock's Slapgate again raises the same question. What is the permissible limit of jokes at someone's expense? How far can you go? What is the fine line that lies between offensive and funny? How will you evaluate a joke? 

Well, comedy or humour always comes from exaggeration, hyperbole, and connecting unexpected things with a twist. A comedian tells a joke with the intent of creating laughter. There is a target audience, and the resultant is an impact of the joke on them. The most successful jokes are the ones where the impact of the jokes matches exactly the intent of the comedian. 

Sarcasm or humour is also like a non-violent weapon in the war of words. A sharp witty comment can destroy your opposition like no weapon can without shedding a drop of blood. So, according to the rules of the battlefield, you shouldn't use your weapon on a weaker one or on a person who can't retaliate. The best weapons are the ones that destroy an aggressor. Similarly, a joke should mostly be directed towards a stronger person than you. Those who are underprivileged are easy to make fun of, but that is not an ideal joke.

 In the case of Chris Rock's joke on Jada, Jada was certainly not an unprivileged one. I am sure she must have received many nastier comments on social media via memes and comments. How many of those were slapped and humiliated by Will Smith? Moreover, people in public life or celebrities should have much thicker skin and more tolerant temperment than displayed by Jada and Smith.

If we evaluate Chris Rock's joke on the parameters of impact and intent, I also find it is not that bad. I could easily hear laughter from the audience, and even Will Smith was seen smiling. Something happened to him, which was triggered by the facial expressions of Jada. 

Since comedy is a subjective matter, what is funny in India will not be funny in Saudi Arabia. Something American find light-hearted may offend a British national. So the above mentioned rules don't always apply. However,
even considering all the above, I feel Will Smith crossed a line and he should be punished for his deplorable act. Chris Rock's joke might have offended his wife and him, but it was certainly unintentional. Chris Rock doesn't deserve a slap in the face in front of a global audience. A mere apology from Will Smith is not enough! Atleast he should be banned from all award functions. The arrogant narcissistic behaviour by Will Smith and the humiliation suffered by Chris deserves both criminal and financial punishments.

#322

Monday, March 28, 2022

जिंदगी का यह पुल तंग सा

तंग करता है यह 
पुल जिंदगी का तंग सा।

पुल के नीचे पानी सा बेधड़क 
बहता जा रहा वक्त बेरंग सा।

और ऊपर पुल पर ट्रैफिक में 
अटका खड़ा मैं दंग सा।

आस पास खड़ी गाडियां ढेरों लेकिन
लगता नहीं कुछ भी संग सा।

पीछे वाला आगे जाने को उतावला
झुंझलाता हॉर्न बजाता जैसे
 हार रहा हो कोई जंग सा।

आगे खड़ी सुस्त गाडियां की रफ्तार
अलसाया जैसे अजगर भुजंग सा।

जिंदगी चल रही रुक रही ,
दुनिया की शर्तों पे,
भले दिल चाहे खुला आसमान पतंग सा।

स्वीकार्य हो रही यह सच्चाई शनै शनै
मुस्कुराता रहा सुन दुनिया का शोर जैसे मृदंग सा।

दर्द निराशा में मिला दिया दो घूंट उमंग
फिर पी गया जैसे प्याला हो भंग सा।

निभाता रहा हूं साथ तेरा ए जिंदगी,
 दुर्योधन से किया वचन निभाता हो
कर्ण महाराज अंग सा।













Tuesday, March 22, 2022

बिहार हूं मैं

अशोक की तलवार नहीं, ईशान किशन का बल्ला हूं मैं,

विष्णुगुप्त का अर्थशास्त्र नहीं ,शुभम का टॉपर वाला हल्ला हूं मैं,


चाणक्य की नीति नहीं, प्रशांत की चुनाव नीति हूं मैं,

कर्ण का अमोघ तीर नहीं, श्रेयषी का निशाने पर सटीक प्रहार हूं मैं,

दिनकर की ओजस्वी कविता नहीं, अरुण कमल की नई कविता की हुंकार हूं मैं,

राष्ट्रपति भवन का पहला राष्ट्रपति नहीं, मनोज और पंकज जैसा फनकार हूं मैं,

ऐतिहासिक कथाओं का राजा नहीं, भविष्य का संभावनापूर्ण राजकुमार हूं मैं,

इतिहास के पन्नो में पीला पड़ा सूखा फूल नहीं, नए कलियों की सुगंध का उभार हूं मैं,

बिहार हूं मैं। 


Monday, March 21, 2022

बिहार का सुपर फूड सत्तू

सत्तू शब्द की उत्पत्ति संभवतः सात्विक शब्द से हुई है। दूसरी संभावना है कि यह सत्व शब्द से निकला है जिसका अर्थ है किसी पदार्थ से निकला सार तत्व या मूल रस । दोनो अर्थों में सत्तू अपने नाम को चरितार्थ करता है। एक भोजन के रूप में यह जल जितना सात्विक है इसमें नमक, मसाला, तेल , घी किसी का समावेश नहीं। चना, जौ, मकई को बिना किसी मिलावट के पीस के सत्तू तैयार होता है। सत्तू अपने अवयव अनाजों के मूल गुणों के सबसे नजदीक है ।यह उनका बिना गुण परिवर्तित किए उनको उपभोग के लिए उपलब्ध कराता है। आज के पोषण विशेषज्ञों की मानें तो सत्तू एक सुपर फूड है। एक आदर्श आहार जो आपकी स्वस्थ जीवनशैली का एक अहम हिस्सा बन सकता है। चूंकि यह बिहार का उत्पाद है यह अत्यंत ही सरल और सस्ता है। आप इसको पानी में घोल कर नींबू नमक मिलाकर एक स्वादिष्ट पेय बना सकते हैं तो यही आटे की गोली के अंदर जाकर उसको प्रसिद्ध लिट्टी बना देता है। इसको नाश्ते खाने सब में प्रयोग कर सकते हैं । 

असंख्य बिहारियों के अथक परिश्रम और अक्षय ऊर्जा का स्रोत है यह सत्तू। बिहार के लोग संकोची हैं , शायद आपको बिना कहे सत्तू ना खिलाएं। यह सोच कर कि मेहमानों को तो पूरी हलवा खीर खिलाना चाहिए, सत्तू तो बहुत साधारण है। इसलिए अपने किसी बिहारी परिचित से मिलें या आप बिहार आएं तो एक बार इसकी मांग अवश्य करें। आप सत्तू के स्वाद, गुण, सरलता के मणिकांचन योग के सुखद आश्चर्य में अपने आप को पाएंगे। बिहार दिवस के अवसर पर हम गर्व से अपने सत्तू को वो पहचान दिलाने का प्रयास कर सकते हैं जिसका वो सर्वथा हकदार है।
बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।।

harfon ke sabak

मरने से पहले पढ़ लूं
हर्फों के सबक
जान लूं कि कैसे लगती है सही नुक्ता
क्या सही हिज्जे है जिंदगी की
सीख लूं कायदे हैं सही जुबान लिखने के
और दुहरा लूं अलिफ बे ते से फिर से
थोड़ी सुधार लूं अपनी लिखावट
खरीद लूं चंद महंगे वरक 
और एक अदद कीमती सी कलम
ताकि मेरी खुदकुशी के खत में
कोई कमी न रह जाए।

कि जानता हूं मैं
सब निकालेंगे गलतियां 
मेरी लिखावट में
गलत हिज्जे लिखने के
मुझपर तोहमत लगाए जाएंगे
बताएंगे माहिर ए सर्फ ओ नहो
 कि कितना जाहिल था मैं
जो नहीं जानता था जुबान की बुनियादी बातें
आयेंगे मेरे खत के कागज़ को सस्ता बताने वाले
उठाये जाएंगे सवाल मेरी तालीम पर
 मेरी परवरिश पर
 नापी जाएगी मेरी औकात 
मेरे खत की स्याही से ।

कि जानता हूं मैं कि कोई भी
बताएगा नहीं कि मेरी वजह ए खुदकुशी
कोई पकड़ेगा नहीं मेरे गुनहगारों को
सब के सब गलतियां निकालेंगे
 मेरे खत में,
मुझमें और मेरी खुदकुशी में।

इसलिए दुहरा लेता हूं
हर्फो के सबक
मरने से पहले
आखिरी खत लिखने से पहले।



Thursday, March 17, 2022

This Holi let's save excuses..

भैया होली ना खेलने के शहरी बहाने गांव में नहीं चलते। अगर आपने कहा कि मुझे रंगो से एलर्जी है तो कीचड़ लगा देंगे। अगर आपने ज्यादा काबिल बनने के चक्कर में कह दिया कि नो आर्टिफिशियल कलर्स, आई यूज ऑनली नेचुरल कलर्स, तो केले के रस से आपकी वो पुताई होगी कि नेचुरल कलर्स से नफरत हो जायेगी आपको। अगर आपने कहा कि मैं लोकल रंग नहीं लगाता सिर्फ इंपोर्टेड रंगों से ही खेलता हूं, तो सऊदी अरब से आया हुआ इंजन ऑयल आपका इंतजार कर रहा है। मेडिकल सर्टिफिकेट लेकर घूमने वाले और भी सावधान रहें । अगर यह बहाना बनाया कि पानी से ठंड लग जायेगी और फलाना ढिमका, और सामने वाले आपकी बात मान के वापस चले जाएं , तो ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। आपके बालों में सूखा रंग डाला जा चुका है। अब आपके साथ होली आपका महंगा शॉवर खेलेगा।

बहाने ना बनाएं, होली खेलें। बहाने बचा कर रखें अपने बॉस से छुट्टी लेने के लिए। उनको होली पर बर्बाद न करें। Save Excuses, play Holi..

होली की शुभकामनाएं।।

Wednesday, March 16, 2022

मेरे हिस्से की नींद

रोज़ रात को सो जाता हूं
बड़ी थकान के बड़े से बिछावन पर,
अपनी कमाई का छोटा तकिया लेकर,
बिछाता हूं उम्मीदों की बड़ी सी चादर,
और ओढ़ लेता हूं चादर धुंधले सपनों की झीनी सी,
सिराहने रखा है एक हथपंखा 
अपनी छोटी जरूरतों का।

बिस्तर की खाट के नीचे छुपा रखे हैं मैने
अपने टूटे सपनों का ढेर,
कुछ ऐसे बिछाई है उम्मीदों की चादर 
कि दिखने ना पाए लंबी फेहरिस्त 
मेरे टूटे सपनों की।
सोने से पहले मद्धम करता हूं लौ 
 मेरे पसीने से जलते दिए की,
और पीता हूं सुकून के गिलास में 
रखा संतोष वाला ठंडा जल।

फिर बड़ी गहरी नींद आती है
जैसे कड़ी धूप के बाद मिल गई हो पीपल की छांह
और बड़े उजागर से सपने आते हैं
मानो पूरा चांद खिला हो आसमान पर
और सुबह आती है ताजगी लिये
जैसे  मैने पाई हो मेरे हिस्से की नींद बरसों बाद।



Sunday, March 13, 2022

सच्चाई का साथ

 झूठ को भी झूठ दिखना नहीं चाहिए, वरना पकड़ा जाएगा। झूठ को सच की तरह दिखना चाहिए। उसी तरह धूर्त को भी धूर्त की तरह आचरण करने पर शिकार नहीं मिलता ,उसे भी सदाचारी होने का स्वांग तो रचना ही पड़ता है। विदेशी जासूस भी मित्रता का नाटक करते हैं और विष खिला कर प्राण ले लेने वाली विषकन्याओं को भी प्रेयसी बन कर व्यवहार करना होता है। रावण को भी संत का रूप धारण करना पड़ा था सीता के हरण के लिए।

बुराई तक को सफल होने के लिए अच्छाई का सहारा लेना पड़ता है। तो फिर आप अच्छाई त्याग बुराई अपना कर सफल होने की आशा कैसे कर सकते हैं। यह एक अलग बात है कि कभी कभी सच होना काफी नहीं होता, सच को सच दिखना भी चाहिए।

Saturday, March 12, 2022

डॉक्टर गलत मरीज सही

एक महिला ने डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर साब, मेरे पति की तबियत ठीक नहीं है। डॉक्टर साब अपना आला, अपना बैग सब लेकर आए। पेसेंट को अच्छे से चेक किया और कहा , आई एम सॉरी। आपके पति अब नहीं रहे। महिला के पति ने कहा अबे यह क्या बात हुई मैं तो जिंदा हूं। महिला ने अपने पति को डांटते हुए कहा कि चुप रहो जी। तुम डॉक्टर हो या ये। तुमसे ज्यादा जानते हैं ये। ऐसे ही डॉक्टर थोड़े बने हैं।
कहने के लिए यह चुटकुला मैंने बचपन में सुना था और  शायद सुन कर हँसा भी था। लेकिन मन में यह भाव भी था कि ऐसा थोड़े ही हो सकता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि सामने वाला बोले कि मैं जिंदा हूं और कोई डॉक्टर की बात मान के उसको मुर्दा मान ले। लेकिन जब से टीवी और आजकल यूट्यूब चैनल वालों को देखता हूं चुनाव परिणामों को समीक्षा करते हुए तो यही जोक याद आता है। जनता बोल चुकी है जो उसको बोलना था, और ये चुनावी पंडित अपने "सर्वे और अपने जमीनी अनुभव" का हवाला दे दे कर जनता को गलत साबित करने में लगे हुए हैं। भैया अब तो मान लो कि तुम्हारी डायग्नोसिस गलत थी। लेकिन नहीं, गले में चोंगा टांग रखा है तो हो गए डॉक्टर। और डॉक्टर तो हमेशा मरीज से ज्यादा ही जानता है!! 
तो उसी प्रकार से सामने एक माइक रख लेने और नाम के आगे वरिष्ठ पत्रकार, और चुनाव विशेषज्ञ लगा लेने के बावजूद भी जनता की आवाज के सामने तुम्हारी बात सही नहीं हो जाती। 

अगर आप अभी भी चुनावी विश्लेषण में लगे हुए हैं तो आप वोही डॉक्टर हैं जो जिंदा मरीज को मुर्दा और मुर्दा को जिंदा बता रहे हैं क्योंकि आपकी रिपोर्ट ऐसा कहती है। अगर आप उन लोगों में से हैं जो अभी तक उनको सुन रहे हैं और डॉक्टर को सही मानते हैं तो आप वो महिला हैं। मैडम, मरीज की सुनिए, डॉक्टर की नहीं। मरीज का हाल सबसे बेहतर मरीज ही बता सकता है। और अगर आप डॉक्टर और महिला दोनो नहीं हैं तो फिर आप जनता हैं। आप अच्छे से जिंदा हैं, किसी के कहने से आप और लोकतंत्र मर नहीं जाते, चाहे वो कहने वाला कोई भी हो। पंजाब हो या गोवा हो या हो उत्तर प्रदेश, जनता की आवाज में जनार्दन बोलते हैं। तो डॉक्टर साब, प्लीज अपना आला समेटिए, और निकल लीजिए पतली गली से। अगली बार किसी को दस्त की शिकायत हुई तो आपको फिर से आपको याद करेंगे !! 

Thursday, March 10, 2022

the serious Humor

In our movies, popular culture humour was always something complementary to the main narrative. Hero was either a sad, serious man like Gurudutt saab in Pyasa who was supported by Johny Walker singing Sar jo Tera Chakraye or it was an angry young man like Bachchan saab supported by likes of Mukri, Kader Khan and Mehmood...even in our epics Like Mahabharata and Ramayana, our heros are either Maryada Purushottam who will always talk about morals or Krishna who will either preach Geeta or guide Arjun in the battlefield. The humor was considered something lower than serious.



But in recent times and with the rise of social media, humor is no longer a subsidiary thing. It is not a filler performed by a joker while other artists are getting ready for the next act. It has become mainstream. It is not the side dish but the main course. All messages can and are delivered via memes, jokes and short videos, and the common flavor is humor.



In our schools, we had a blackboard where we used to write 'Thought of the day'. Now we are in an era of 'Meme of the day' and 'viral video of the day'. Here again, humor takes the lion's share of things. The great Indian laughter challenge was the first TV show where the humor /comedy became the theme of reality show. Today, people associated with that show have become legends in their own right. Kapil Sharma is one of the highest paid artists who earns much more than 99% of so-called bollywood stars. Raju Shrivastav has his own following. Creatives like TVF and AIB are sensations among the young people.



And now with the rise of Bhagwant Maan as Punjab CM, also a product of the great Indian laughter challenge, humor has stamped its authority. I have always believed that comedy is a serious and the toughest business. If you have to make anyone laugh, you can't ensure that even by giving him a million dollars. Even if you make him laugh by bribing him, all you will get is a fake laugh. Compare it to the scenario where you have to make someone cry. Just slap him hard .. making someone cry is the easiest of all, even an onion can do that. 



Congratulations to Bhagwant Maan on his success. Keep your humour intact and you will do great.. You have been a master of humour and have made people smile. Any other job is going to be easier than that. World will bow down to the supremacy of Humor.



 All the very best.. 

Wednesday, March 9, 2022

Yogendra ji ke prati

Zindagi mein bas utni mithas chahiye jitni yogendra ji ki boli mein hai..

Career mein bas utni variety chahiye jitni yogendra ji ke career mein hai..

Khichdi mein daal aur chawal ka utna hi balance chahiye jitna yogendra ji ki dadhi mein safed aur kaale balon ka hai..

Partner aiss hi hamesha saath rahe jaise yogendra ji ka gamchha unke saath rahta hai .

Mere dost hon to yogandra ji ki tarah .. unko laat mar ke party ke bhaga bhi doon phir bhi TV per mujhe defend karein..

Election day ho to Yogendra ji ke saath ho, warna na ho . 😀

Tuesday, March 8, 2022

Happy women's day!!

Unless you are living under a rock or belong to Pyongyang, I am sure you must have seen this picture atleast hundred times today. My personal count is more than 150+. Over FB timelines, Twitter, Whatsapp groups, status, insta stories , wherever you see this picture is there. Now when the dust has settled for women's day, I thought why not look at at this picture little more closely

This pic has every wrong messaging which can be sent on women's day. First about the picture of the women on it. It is not a real woman picture. Instead this is the picture which cosmetic companies sells and portray as an ideal woman. The Barbie doll figure . An hour-glass figure decided by men for women as an ideal figure. This defeats the whole purpose of celebrating women's day if we still carry the dogma it was supposed to fight.


And the list of dogma and prejudice still continues in the picture where word  woman has been deciphered as an acronym. You look into the definition and you will see the rules and long list of expectations society has from women..W stands for wonderful wife.. Ha ha.. Just think the definition of a wonderful wife society has and you will start seeing what's wrong in this picture. If you are not a wonderful wife, W is omitted and what remains is O-MAN!! 

If you go through the rest of the acronym definition, you will realise it's nothing but a long list of expectations and standards men set for women.. you are a woman only if you are wonderful, outstanding, marvellous, adorable and Nurturing.. and we will decide whether you are wonderful, outstanding or marvellous or not. It's a trap. It's like wishing Happy women's day with a star mark * pointing you to *'Conditions apply' section. And the conditions section has nothing but all the prejudices which a patriarchal society craves for.

Dear ladies, please decide for yourself. You must have experienced in your life that flattering seldom shares any ground with truth and reality. And this picture is full of flattering and bullshit. 
 #311

http://sumanblogs8.blogspot.com/2022/03/happy-womens-day.html

Monday, March 7, 2022

मां फलेषु कदाचन !!

पिछली बार जब मैंने टिकोले के बारे में लिखा तो कई दोस्तों ने कहा कि उनको बचपन की यादें आ गई। फिर मैंने सोचा कि बचपन में टिकोले खाए तो थे लेकिन मेरा बचपन इतना भी एकरंगा नहीं था कि उसमें केवल टिकोले का हरा रंग बिखरा हो। हमारा बचपन तो मानो एक मल्टी स्टारर फिल्म था जिसमें तरह तरह के फल थे, आम का टिकोला तो उस मल्टी स्टारर फिल्म में प्रमुख भूमिका में था बस।बाकी फलों का जिक्र नहीं करना हमारे बचपन में उनके योगदान को नकार देना होगा। तो चलिए इस फिल्म के बाकी किरदारों से मिलते हैं।

 बात आम से शुरू हुई थी तो आम के बागों में ही आम के सीजन से थोड़ा पहले एक फल मिलता है जामुन। आम बगीचों की मेड़ पर जामुन के पेड़ मिलते हैं। आम के पेड़ की जहां खाद पानी स्प्रे से खूब आवभगत होती रहती है, जामुन का पेड़ किसी प्राइवेट स्कूल के दरवाजे पर खड़ा गरीब बच्चे की तरह अंदर अमीरों के बच्चों की आवभगत देखता रहता है। शायद ही कभी आम के पेड़ों जैसी आवभगत जामुन के पेड़ की होती है। लेकिन पेड़ों के बीच में यह भेदभाव बड़े भले ही करें, हम बच्चों का प्यार उतना ही जामुन के लिए था जितना टिकोले के लिए। जामुन का पेड़ होता है बड़ा तुनक मिजाजी। कब उसकी टहनी टूट जाय कोई नहीं जानता। अपने फलों के जैसे हल्के बच्चों को जामुन उठा सकता है अपनी टहनी पर, लेकिन जैसे ही कोई बड़ा आदमी जामुन के पेड़ पर चढ़ा, पेड़ उसको कब सीधा नीचे उतार दे कोई कह नहीं सकता। इसीलिए बड़े हमेशा कहते कि जामुन के पेड़ पर भूत रहते हैं, इसपर मत चढ़ना। लेकिन अब लगता है कि जामुन का पेड़ मानों बड़ों से अपने साथ किए गए भेदभाव का बदला लेता है।

जामुन के पेड़ पर चढ़ना भले खतरा हो लेकिन कम से कम उस पर चढ़ा जा सकता है। एक दूसरा फल है जिसके पेड़ पर चढ़ना लगभग असंभव ही है। वर्तुल आकार में लाल होते आधे बंद आधे खुले छिलके और अंदर से झांकती सफेद मलाई जैसे फल और उसके बीच कहीं दुबका छुपा बैठा उसका काला बीज। इसको जलेबी का फल कहते हैं। यकीन मानिए, दूर उत्तुंग टहनी पर लटके जाल पकी जिलेबी और उसको तोड़ने की कोशिश में लगे बच्चों का झुंड जब आप देखेंगे तो मान लेंगे कि, You can't buy it, you have to earn it वाली कहावत को जलेबी का फल ही चरितार्थ करता है सच्चे मायनो में। बांस की बल्लियां और उसके पतले सिरे पर एक छोटी टहनी बांध कर जलेबी तोड़ने का हथियार बनाया जाता है। एक एक फल तोड़ने में मेहनत लगती है। मेहनत का फल मीठा होता है , इस मुहावरे को पेड़ से जलेबी तोड़ कर खाने वाले बच्चों से बेहतर शायद ही कोई समझ सकता है।

लेकिन फल मीठा ही हो कोई जरूरी नहीं। तूत को ही लीजिए। काले लाल रंग का इल्लियों जैसा दिखने वाला फल। मीठा होने का नैतिक भार आम ने भले ले रखा हो, तूत अपने आप को इन दायित्वों के भार से मुक्त रखता है। उसकी मर्जी हुई तो खट्टा हुआ , मर्जी हुई तो मीठा, मर्जी हुई तो खट मीठा। हम बच्चे भी तूत खाकर कभी शिकायत नहीं करते। जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया वाला दार्शनिक भाव हमें तूत खाकर ही मिलता था। आम के भले ही बागान हों, जामुन के बड़े बड़े पेड़ हों, जलेबी भी सड़कों के किनारे बहुतायत में मिल जाय, लेकिन तूत हमेशा दुर्लभ रहेगी। गांव में मुश्किल से तीन चार पेड़ हों तो बहुत है। इसलिए तूत की तूती हमेशा बोलती थी। हजारों तारों के बीच अकेला ध्रुव तारे की तरह अलग पहचान रखता है तूत।

एक और फल जिसका मोल इतना ज्यादा है कि भगवान राम भी जिसपर मोहित हो गए । अयोध्या का सिंहासन ठुकरा देने वाले राम इस फल को नहीं ठुकरा पाए। और तो और वो भी जूठे। बेर वो नहीं जो आजकल बाजार में मिलते है सेव के आकार के। असली बेर होते हैं छोटे। गोल से बीज के ऊपर गूदे की एक पतली सी परत होती है। बेर का असली आनंद उसी जंगली बेर में आता है। इसलिए माता शबरी ने जंगल के सभी फल छोड़ कर अपने आराध्य को यही फल खिलाया था। हम बच्चों का भी पसंदीदा यह बेर ही था। एक पेड़ सौ बच्चों को हफ्तों तक अपने फल खिला सकता है।आप एक दिन में सारे आम तोड़ सकते हैं,जामुन भी सारी तोड़ ली जाती है, किसी की मजाल कि एक पेड़ से सारे बेर तोड़ कर दिखा दे। कुबेर का अक्षय भंडार है जैसे बेर के पास। दूसरे फलों के ना मिलने की निराशा हम बेर खा कर ही दूर करते थे । बेर हमारा वो फ्रेंड जोन वाला दोस्त था जिसके पास हम दूसरों के द्वारा दिल तोड़े जाने पर आते थे। फिर भी बेर ने हमें कभी दुत्कारा नहीं। उसके पास हमेशा हमारे लिए बेर का एकाध गुच्छा निकल ही आता। कभी कभी तो उसी टहनी से जिसे हमने एक दिन पहले ही पूरी तरह खाली कर दिया था। बेर का यह जादू बच्चों को हमेशा खुश कर जाता। 

चीनी यात्री ह्वेन सांग अपनी किताब में लिखते हैं कि भारत के लोगों के चेहरे में एक अलग सी चमक दिखती है, और उनकी बुद्धि अत्यंत प्रखर है। कारण के लिए अगर मैं चीन और यहां के बीच एक अंतर ढूंढू तो यह कि भारत के लोगों के आहार का एक बड़ा हिस्सा फल हैं। शायद हमारा बचपन इन फलों के साथ गुजरा जो हमारे लिए अनमोल हैं। अनमोल इस लिए भी क्योंकि हमने किसी के लिए पैसे नहीं चुकाए। ना बेर के ना जलेबी के , जामुन हमें बिना मांगे मिली और तूत का कोई क्या कीमत लगाए भला। मॉल में जाकर फ्रूट सैलेड खाने वाली पीढ़ी शायद यह अहसास कभी महसूस नहीं कर पाएगी और यह अहसास हमारी पीढ़ी के साथ ही चला जायेगा।

मां फलेषु कदाचन!!

Saturday, March 5, 2022

men will be men

एक दिन लाल कुंवर ने कहा कि बादशाह सलामत, क्या मेरी खुशी के लिए आप आज दरबार बिना कपड़ों के जा सकते हैं? बादशाह से कहा आपके लिए तो जान हाजिर है बेगम इम्तियाज महल। आपकी बात को मैने कभी मना किया है! अगले रोज बादशाह दीवाने खास में बिना कपड़ों के पहुंच गए। सारे वजीर, नवाब, रानियों के शर्म से आंखें नीची कर ली। कुछ पुराने दरबारियों ने कहा बादशाह सलामत। यह दीवाने खास है। आपका हमाम नहीं, यहां बैठ कर हम हिंदुस्तान की तकदीर जा फैसला करते हैं। जिस तख्त पर आप बैठे हैं वहां पर जो पहले बैठ चुके हैं, कम से कम उनका तो खयाल करिए। 

बादशाह अपनी बेगम के पास पहुंचे। बेगम को कहा कि आज दीवाने खास में उनको लोगों ने बुरा भला कहा। बेगम ने कहा कि आखिर लोगों की शिकायत क्या है? यही ना कि आपने कपड़े नहीं पहने थे? कल को आप मेरे कपड़े पहन कर दरबार सजा लीजिए। सबका मुंह बंद हो जायेगा। अगले दिन बादशाह अपनी बेगम के कपड़े और जेवरात पहन कर दरबार पहुंच गया। 

यह कोई काल्पनिक कथा नहीं है। औरंगजेब के पोते जहांदार शाह और उसकी बेगम लाल कुंवर की असली कहानी है। जहांदार शाह एक नाचने वाली लाल कुंवर के इश्क में ऐसा गिरफ्त हुआ कि उसे सही गलत किसी चीज का अंदाजा न रहा। लाल कुंवर के साथ एक औलाद पाने के लिए बादशाह खुले चौक पर रानी के साथ संभोग करने लगा। 

प्रेम में पड़े कामुक नर से निरीह दुनिया में कोई प्राणी नहीं। जिसको दुनिया प्यार कहती है उसको प्यार वोही समझता है जो प्यार में पड़ा होता है, बाकी के लिए वो पागलपन और बेवकूफी ही है। कभी सोचता हूं कि यह हनी ट्रैपिंग काम कैसे कर जाती है? इतने समझदार आर्मी ऑफिसर, राजनयिक, जासूस जो सारी दुनिया की धमकी, धन के प्रलोभन के आगे टस से मस नहीं होते ,एक महिला की प्रेमपूर्वक बातें सुनकर अपने सारे राज खोल देते हैं। यह तो निश्चित है कि हनी ट्रैपिंग में फंसा व्यक्ति भी आपने आप को एक प्रेमी ही मानता है जब तक उसको यह पता नहीं चलता कि वो प्रेमी नहीं एक शिकार मात्र है।

यह पुरुषों की एक सर्वव्यापक कमजोरी है कि प्रेम में पड़ने के बाद उसकी सारी बुद्धि विवेक और ज्ञान पर प्रेम हावी हो जाता है। महाभारत में भी माता गांधारी ने दुर्योधन का पूरा शरीर वज्र का बना दिया लेकिन अंग विशेष फिर भी कोमल रह गया जो उसकी मृत्यु का कारण बना। Men will be men वाले विज्ञापन भले ही इसी कमजोरी को मजाकिया अंदाज में दिखाते हैं। अगर men होने का मतलब इस नैसर्गिक कमजोरी के आगे विवश होना है तो men निहायत ही कमज़ोर जीव हैं, जिनकी कमजोरी जगजाहिर हैं।यह वोही इश्क है उसके चक्कर में तुलसीदास जैसा विद्वान सांप को रस्सी समझ बैठता है।  

 जहांदार शाह की हरकतें आज मुगलिया सल्तनत की तारीख में एक धब्बा हैं, लेकिन उसकी जगह खड़े होकर देखें तो उसने वो सारे काम लाल कुंवर के इश्क में आकर किए। इश्क ,पागलपन, बेवकूफी, हार्मोंस का केमिकल लोचा सब एक ही चीज़ें हैं। बस देखने वाला कहां खड़ा है इसपर निर्भर करता है कि उसको क्या दिख रहा है। समझदारी इसी में है कि कुछ फैसले लेते समय आप men बन कर ना लें, कुछ समय unmanly होना ही बेहतर है। एक कामुक नर से तुलसीदास का सफर men बन के तय नहीं किया जा सकता। 

Friday, March 4, 2022

टिकोले से प्राप्त जीवन दर्शन

जिसको दुनिया आम का सीजन कहती है, वो तो एक्चुअली पके आमों का सीजन है। आम का असली आनंद तो उससे पहले आता है। कच्चे आम जिसको केरी, अमिया या हमारी भाषा में टिकोला भी कहते हैं। बचपन में हमारी एक जेब में घिसे हुए सीप का आम छीलने का औजार रहता था और दूसरी जेब में नमक और लाल मिर्च का घिसा हुआ पाउडर। किसी चीज को नमक मिर्च लगा कर पेश करने वाला मुहावरा किसी टिकोला खाने वाले ने ही लिखा होगा। भाई साब, जिंदगी के मजे आ जाते थे। चरम सुख का आनंद !! टिकोले की खटास, मिर्च की तेजी और नमक स्वादानुसार!! सुख की सबसे छोटी रेसिपी यही है।

खैर, टिकोला खाना और इसका वर्णन करना जैसे कि मैंने अभी करने का प्रयास किया, एक सतही वर्णन है। वास्तव में बचपन में टिकोला खाने वाले बच्चे अपनी आगे की जिंदगी के लिए बहुत बड़े सबक सीखते हैं। टिकोला खाने को इतना भी बैकवर्ड मत समझिए कि अरे अंधड़ में आम गिर गया तो बचवा उठा के खा रहा है, इसमें कौन सा जीवन दर्शन होगा। खा गए न गच्चा? लगता है बचपन में टिकोला नहीं खाए हो ज्यादा। अभी समझाते हैं।

पके आम की परख तो कोई भी कर सकता है।बचपन से पढ़ाया जाता है कि भैया आम फलों का राजा है। कैटरीना दीदी भी आम के रस को लेकर उत्तेजक लेकिन सूचनाप्रद विज्ञापन बना डालती है।  असली ज्ञान तो छुपा है टिकोला की पहचान करने में। हर टिकोला नहीं खाया जाता। कुछ टिकोले खाए जाते हैं, कुछ नहीं खाए जाते। यहां पर सारे निर्णय गुण और स्वाद के आधार पर होते हैं। नेपोटिज्म का कोई स्थान नहीं होता है इधर कि आम देखने में अच्छा है तो खा लो इसका टिकोला। एक आम होता है जिसको सिंदुरिया आम कहते हैं। देखने में ऐसे जैसे रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः वाला श्लोक इसको देख के ही लिखा गया हो। हरे रंग का ताजगी भरा शरीर, उपरी भाग में गुलाबी रंग की छटक और बाकी हरे पत्तों के बीच से झांकता सिंदुरिया आम। अ हा, मानों सौंदर्य से लदी नायिका अपने नायक द्वारा होली में चेहरे पर अबीर लगा देने के बाद अपनी सहेलियों के बीच खड़ी कुछ शरमा कर कुछ खिल खिला कर हरे परदे की ओट से नायक को देख रही हो। आप कहेंगे कि भैया टिकोला खाना है तो सिंदुरिया आम का ही। लेकिन नहीं, जीवन इतना आसान नहीं होता। सच्चाई यह है कि सिंदुरिया आम सिर्फ देखने में अच्छा होता है, टिकोला उसका मुंह में ना रखा जाय। और तो और पकने के बाद तो और भी बेस्वाद। वो आम बस इसी काम का है कि उसके साथ दो तीन सेल्फी खिंचवा लो, कवि हो तो तो एकाध रोमांटिक कविता लिख लो, लेकिन उसको खरीदो मत। बगल में खड़े हो जाओ, और किसी सावन के अंधे को देखो सिंदुरिया के चक्कर में बर्बाद होते। 

दूसरा एक आम होता है फजली। आमों के बीच हाइट वाइज दीपिका और फिगर वाइज कटरीना वाला स्थान रखता है फजली आम। टिकोला भी खाने में सबसे जबरदस्त। खट्टे मीठे का ऐसा संतुलन जैसा कि us प्रसिद्ध कविता में वर्णित है कि ना उन्नीस से कम हों ना इक्कीस से ज्यादा,दीवानों का ना जाने क्या है इरादा। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि यही फजली पकने पर बेस्वाद। पक जाने पर फजली ऊपर से कटरीना और अंदर से ललिता पवार निकलती है। तो फ़जली आम का यही यूज़ है कि उसका टिकोला खा लो, बहुत शौक है तो खट मिठ्ठी अचार बना के थोड़ा सा बॉटल में रख लो, लेकिन उसके साथ लंबी पारी मत खेलो। पकने पर फजली पका देता है।

अब आता है तीसरा आम, नाम है लंगड़ा। एक तो इसका नाम खराब है ,देहाती वाला नाम। बाकी इसके साथी लोग अलफांसो जैसा स्टाइलिश नाम रख के चलते हैं और यह बेचारा इतना पिछड़ा हुआ है कि सदियों से बॉडी शेमिंग झेल रहा है लेकिन आज तक कोई वोक जनता इसके पक्ष में खड़ी नहीं हुई। ऊपर से इसका टिकोला खा लो तो तीन दिन तक दांत खट्टे हो जाय। और कुछ खाया ना जाय। कोई भी लंगड़ा के टिकोले को पसंद नहीं करता। लेकिन अगर आपने टिकोले के स्वाद के आधार पर लंगड़ा को रिजेक्ट कर दिया तो आपसे बड़ा बेवकूफ कोई नहीं। यही आम आगे चल कर सबसे मीठा हो जाता है। समझदार लोग लंगड़ा आम को आम बचा के रखते हैं आगे की जिंदगी के लिए । आमों के बीच लंगड़ा विकी कौशल जैसा है। भले शुरू में इसको भाव ना मिले, इसके टिकोले को कोई मुंह ना लगाए, लंगड़ा लंगड़ा कह के चिढ़ाए, लेकिन भैया यही आगे चल कर कैटरीना को उठा ले जाएगा। सिंदुरिया जैसे चॉकलेटी बॉय, फजली जैसे हार्ट थ्रोब के बीच लंगड़ा पूरा हसबैंड मैटेरियल है। 
जो बच्चे बचपन में टिकोला खाते हैं वो अपने अनुभव का इस्तेमाल कर सभी आमों के बीच सिंदुरिया के आकर्षण से अपने आप को बचाते हैं, फजली के साथ मजे जरूर लेते हैं लेकिन उसके पकने से पहले ही उसको टाटा बाय कर देते हैं। और साथ निभाते हैं लंगड़ा का, जो शुरू में चाहे सबसे कड़वा लगे, नाम भी जिसका अजीब सा हो लेकिन आगे चल के जो सबसे ज्यादा स्वाद दे। बाकी आप खुद समझदार हो। सोच लो, कौन सा वाला आम खाना है!! 

Wednesday, March 2, 2022

When the chips are down!!

It's sad but it's true that human history is history of wars. It's sad but it is reality. War changes the course of civilization. War is like an x-ray, it shows the real face of so called Humanity. It takes off the mask which society wears during the gap between the wars also called peace time.

The war is the biggest man made tragedy our civilization sees. Apart from the destruction, it also exposes our hypocrisy. Take an example of Ukraine Russia conflict. It shows a mirror to all of us.

It shows a mirror to Western world whose racism is out in open. They are crying and crying because the refugees have white skin and blue eyes. Even in war zone, help seekers with any Non- white skin tone are finding it difficult to get help and support from the West. Glaring Example is situation on Poland border.

It shows a mirror to peace keeping agencies like UN and US who take pride in calling themself a protector of democracy. After giving all false promises to Urkraine about support and safety , all help to Urkraine is limited to tweets and press conferences. Best they have done it to strip Putin of his honorary black belt.

It shows a mirror to Europe. They all have their mouth shut becuase Russia is major supplier of gas and commodities to them. Had there been an attack of any eurorpean in Africa or South east Asia, all these BBC's and CNN's would have cried as if a war has been started..now there is an actual work they are evaluating every word every sentence before they utter anything about Urkraine.

It shows a mirror to us Indians. We have found a way to fight among ourselves on the basis of what is happening in Kiev. So everything we utter is according to their agenda. Our intellectuals are worried if Urkranian war will affect UP election results. 

It shows a mirror to world. All those illusion of a humanity , fraternity and all those fancy words, no one cares about them when most needed. It all about what there for me? It's all about money, stupid!!

War shows a mirror to humanity how frivolous it is. Those opposing Putin are those who would have opposed him anyway. Those supporting him were already supporting him before. So their support is based on their own prejudices and interests. There is no case independent judgement or any honest effort to understand both sides. All we hear are prejudice colored arguments and logics which won't stand for a second in court of truth.

Those who are not speaking and are neutral, are busy with managing their portfolios and discussions with their fund managers.

It makes me ponder if any quote is nearer to truth than what joker says to Batman in the movie " The dark Knight"..

"You see, their morals, their code, it's a bad joke. Dropped at the first sign of trouble. They're only as good as the world allows them to be. I'll show you. When the chips are down, these... these civilized people, they'll eat each other. See, I'm not a monster. I'm just ahead of the curve. -The Joker"

http://sumanblogs8.blogspot.com/2022/03/when-chips-are-down.html

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