Sunday, January 30, 2022

भीष्म का जाना आवश्यक हो जाता है

विचार ऐसे होते हैं जो मरते नहीं। कोई उनको खत्म नहीं कर सकता। इस प्रकार से विचार भीष्म पितामह की तरह होते हैं। इच्छा मृत्यु प्राप्त होती है उन्हें। लेकिन विचार भले ही न मरें, वृद्ध और जीर्ण शीर्ण जरूर होते हैं। मृत्यु नहीं लेकिन उनका क्षय तो जरूर होता है। विचार मरते नहीं लेकिन सड़ते जरूर हैं। पुराने विचारों की प्राणवायु भले न निकले, उनसे पुरानी सड़ांध तो निकलती ही है। पुराने भीष्म की तरह जो विचार अपने जीवन आयु से ज्यादा जी चुके हैं, नई पीढ़ी के गुडाकेश अर्जुन से यह आशा तो की ही जा सकती है कि भले ही उनके हृदय में वृद्ध पितामह का सम्मान हो लेकिन यह सम्मान उनको पितामह को शर शैय्या पर लिटाने से नहीं रोकना चाहिए। नए विचारों की गांडीव का निशाना सड़ चुकी विचारधारा और उसके प्रतिनिधियों की छाती पर ही होना चाहिए। भले ही विचार की मृत्यु हमारे हाथ में नहीं है, उनको तीरों से बिंध कर समेटने के प्रयास में हमारी कोई कसर नहीं रहनी चाहिए। पितामह के जाने के दुख भी हो लेकिन अगर पितामह नए बदलाव के रास्ते में खड़े होकर धर्मयुद्ध में अन्याय के पक्ष में खड़े हों तो अपनी गांडीव का रुख उनकी तरफ मोड़ने में कतई संकोच नहीं होना चाहिए। 

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