Sunday, January 23, 2022

राजनीति का द्विवेदी युग

बीसवीं सदी के पहले दशक में हिंदी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का उदय हुआ। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका सरस्वती के संपादक के रूप में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने संपादन से परे जाकर दो महती कार्य शुरू किये। पहले उनके प्रयासों से जहां हिंदी भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया को बल मिला। आचार्य द्विवेदी  मानकीकृत भाषा के प्रयोग को जहां मुख्य धारा में शामिल किया, आचार्य द्विवेदी का मुख्य योगदान रहा काव्य की संवेदना और विषयगत कार्यक्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन।

आचार्य द्विवेदी ने समकालीन साहित्यकारों से कहा कि कविता के पारंपरिक विषयों से इतर कविता के लिए नए विषय तलाशे जाय। इतिहास से उन चरित्रों को निकाल कर उनको यथोचित स्थान दिलाया जाय तो अब तक उपेक्षित रहे हैं। बुद्ध के ज्ञान और परिणिर्वाण को लेकर बहुत कागज़ काले किए जा चुके हैं, अब यशोधरा पर लिखा जाय। लक्ष्मण के त्याग और भातृप्रेम का बहुत गुणगान हो चुका, अब अवध में सिसकती उर्मिला की आवाज को सबको सुनाया जाय। अर्जुन के गांडीव की कथाओं से पटे आसमान में सूर्यपुत्र कर्ण की गौरव गाथा की किरणें बिखेरी जाय।

आचार्य द्विवेदी की इस पहल का असर यह हुआ कि हमारी साहित्यिक संवेदना का विस्तार हुआ और साहित्य को उस संकुचन से मुक्ति मिली जिसने हमें अपने इतिहास के ठुकराए गए नायकों की चर्चा तक करने से रोक रखा था। इसीलिए हिंदी साहित्य में राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने  साकेत की रचना की । यह आचार्य द्विवेदी का ही प्रभाव था कि " सखि, वो मुझसे कह कर जाते " जैसी अमर कविता लिखी जा सकी। इसी कारण से बीसवीं सदी के पहले दो दशक निर्विवाद रूप से द्विवेदी युग के नाम से जाने जाते हैं।

भारतीय राजनीति की हालिया प्रवृतियों को देखें तो शायद अभी द्विवेदी युग का प्रतिरूप चल रहा है। सरदार पटेल, नेताजी सुभाष बोस , शहीद ऊधम सिंह जैसे हमारे नायकों को वो सम्मान दिलाने का प्रयास चल रहा है जिसके वो हकदार तो थे लेकिन जो उन्हें प्राप्य ना हो सका था। यकीन मानिए, भले ही इसके कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा सकते हैं, इन प्रयासों से हमारी राजनैतिक विमर्श, सोच और इतिहास बोध का दायरा विस्तृत और समृद्ध ही होगा। जिस प्रकार द्विवेदी युग समाप्त होने के काफी बाद राष्ट्रकवि दिनकर ने रश्मिरथी जैसा काव्य रचा, राजनीति की इन नवीन प्रवृतियों का सुखद फल हमें आने वाले लंबे समय तक मिलना तय है।

नेताजी की एक सौ पच्चीसवीं जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र का नमन।।

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